MP Board Class 8th History Chapter 8 :  महिलाएँ, जाति एवं सुधार

म.प्र. बोर्ड कक्षा आठवीं संपूर्ण हल- इतिहास– हमारे अतीत 3 (History: Our Pasts – III)

Chapter 8 : महिलाएँ, जाति एवं सुधार

प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)

महत्वपूर्ण बिन्दु

  • प्राचीन भारत में महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग-अलग नियम थे।  
  • समाज जातियों में बँटा हुआ था। ब्राह्मण और क्षत्रिय खुद को ऊँची जाति मानते थे इसके बाद व्यापारी, महाजनी, काश्तकार, बुनकर व कुम्हार जैसे दस्तकार आते थे। सबसे निचले पायदान पर शूद्र आते थे, जिन्हें अछूत कहा जाता था।
  • राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में ब्रह्म समाज नाम से एक सुधारवादी संगठन बनाया था। ये महिलाओं के लिए स्वतन्त्रता व समानता के पक्षधर थे।
  • ईश्वरचन्द विद्यासागर व स्वामी दयानन्द सरस्वती विधवा विवाह का समर्थन करते थे।
  • बेगम रुकैया सखावत हुसैन ने कलकत्ता और पटना में मुस्लिम महिलाओं के लिए विद्यालय खोला।
  • सत्य शोधक समाज नामक संगठन स्थापित कर ज्योतिबा फुले ने जातिवाद खत्म करने की मुहिम चलायी।
  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और ई. वी. रामास्वामी नायकर ने बीसवीं सदी में जाति सुधार आन्दोलन चलाये।

महत्वपूर्ण शब्दावली

समाज सुधारक – समाज में फैली कुरीतियों को बदलने वाला व्यक्ति।

सती प्रथा – पति की मृत्यु के बाद उसके शव के साथ जिन्दा महिलाओं के जल जाने की परम्परा।  

जिहादी – धर्म के नाम पर संघर्ष करने वाला।

महत्वपूर्ण तिथियाँ

1829 – सती प्रथा पर पाबंदी लगा दी गयी।

1856 -विधवा विवाह के पक्ष में कानून पारित हुआ।  

1929 -बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित किया गया।

पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

पृष्ठ संख्या # 95

प्रश्न 1. क्या आप बता सकते हैं कि जब किताबें, समाचार-पत्र और पर्चे आदि छापने की तकनीक नहीं थी उस समय सामाजिक रीति-रिवाजों और व्यवहारों के बारे में किस तरह चर्चा चलती होगी?

उत्तर – जब किताबें, समाचार-पत्र और छापने की तकनीक नहीं थी उस समय सामाजिक रीति-रिवाजों और व्यवहारों के विषय में आपसी वार्तालाप, सामूहिक बैठकें, सम्मेलनों, त्यौहारों का उत्सव, हस्तलिखित संदेशों, लोकगीतों एवं कहानियों इत्यादि के माध्यम से चर्चा चलती रहेगी।

पृष्ठ संख्या # 97

प्रश्न 2. ये संवाद 175 साल से भी ज्यादा पहले के हैं। आपने भी अपने आसपास महिलाओं के महत्व और क्षमताओं के बारे में तरह-तरह के तर्क सुने होंगे। उन्हें लिखें। देखें कि तब और अब की दलीलों में क्या फर्क आया है ?

उत्तर – 175 साल पहले की महिलाएँ

(1) स्त्री को कभी अकेले नहीं रहना चाहिए उसे सदैव किसी-न-किसी के संरक्षण में रहना चाहिए।

(2) नारी को घर की चारदीवारी में रहना चाहिए।

(3) महिलाओं के ऊपर भरोसा नहीं किया जा सकता।

आज की महिलाएँ

(1) आज महिलाओं की स्थिति पुरुषों के समान है। उन्हें किसी संरक्षण की आवश्यकता नहीं है। वे अपना आत्मविकास और उत्थान कर सकती है।

(2) आज की नारी की शक्ति एवं योग्यता पर भरोसा किया जाता है।

(3) आज नारी कन्या के रूप में, पत्नी के रूप में, माँ के रूप में, योग्यता व वरिष्ठ पदों पर प्रतिष्ठित है।

पृष्ठ संख्या # 102

प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आप स्कूल के बरामदे में बैठकर कक्षा में पढ़ाए जा रहे सबक सुन रहे हैं। तब आपके दिमाग में किस तरह के सवाल पैदा होंगे?

उत्तर – ऐसी स्थिति में दिमाग में निम्नलिखित सवाल पैदा होंगे

(1) मेरे मन में सवाल आता है कि सारे मानव एक जैसे हैं फिर हमारे साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है ?

(2) ऐसी सामाजिक व्यवस्था वाले समाज का विकास कैसे होगा?

(3) मेरे मन में विचार आयेगा कि यह व्यवस्था कब परिवर्तित होगी ?

प्रश्न 4. कुछ लोगों को लगता था कि अछूतों को शिक्षा से पूरी तरह वंचित रखने के मुकाबले यह स्थिति फिर भी बेहतर थी। क्या आप इस राय से सहमत हैं ?

उत्तर– नहीं, मैं इस राय से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ क्योंकि ऐसी व्यवस्था से अछूतों के मन में हीन भावना आती है। उनके आत्मविश्वास को ठेस पहुँचती है।

पृष्ठ संख्या # 103

प्रश्न 5. स्रोत 3 को ध्यान से पढ़ें। “मैं यहाँ और तुम वहाँ” से ज्योतिराव फुले का क्या आशय है?

उत्तर – मैं यहाँ और तुम वहाँ” से ज्योतिराव फुले का आशय ऊँच-नीच और छुआछूत से है। उनके विचार में सम्पन्नता और एकता की ताकत दिखाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में अपने सहयोग की बात कह रहे हैं। अंग्रेजों से छुटकारा मिलने के पश्चात् फिर वही सामाजिक भेदभाव दिखेगा जो आज दिखाई दे रहा है।

प्रश्न 6. आज भी जाति विवादास्पद मुद्दा क्यों बनी हुई है ? औपनिवेशिक काल में जाति के विरुद्ध सबसे महत्वपूर्ण आन्दोलन कौन सा था?

उत्तर – आज भी जाति विवादास्पद मुद्दा इसलिए बनी हुई है क्योंकि कुछ राजनीतिक दल जातिवाद को बढ़ावा देते हैं। वह जाति के नाम पर वोट की गन्दी राजनीति खेलते हैं जिससे यह मुद्दा न होकर भी मुद्दे का रूप ले लेती है।

औपनिवेशिक काल में जाति विरुद्ध सबसे महत्वपूर्ण आन्दोलन ज्योतिबा फुले द्वारा सत्यशोधक समाज नामक संगठन ने जातीय समानता के समर्थन की मुहिम चलाई। जाति सुधार का यह आन्दोलन बीसवीं सदी तक चलता रहा।

पाठान्त प्रश्नोत्तर

आइए कल्पना करें

प्रश्न – मान लीजिए कि आप रुकैया हुसैन द्वारा स्थापित किए गए एक स्कूल में पढ़ाते हैं। आपकी कक्षा में 20 लड़कियाँ हैं। अपनी कल्पना के आधार पर इस स्कूल में किसी एक दिन हुई चर्चाओं का एक विवरण लिखिए

उत्तर – लड़कियों को शिक्षित करने के विषय में चर्चा हुई।

(1) वहाँ उपस्थित सभी लड़कियों की शिक्षा का समर्थन कर रहे थे।

(2) लड़कियों की शिक्षा में बाधक कुछ राजनैतिक तत्वों एवं रूढ़ियों का डटकर सामना करने की बात पर भी चर्चा हुई।

फिर से याद करें

प्रश्न 1. निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया

(1) राममोहन राय, (2) दयानन्द सरस्वती, (3) वीरेशलिंगम पंतुलु, (4) ज्योतिराव फुले, (5) पंडिता रमाबाई, (6) पेरियार, (7) मुमताज अली, (8) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर।

उत्तर (1) राममोहन राय – सती प्रथा का विरोध, ब्रह्म समाज की स्थापना।

(2) दयानन्द सरस्वती – आर्य समाज की स्थापना, विधवा विवाह का समर्थन।

(3) वीरेशलिंगम पंतुलु – विधवा पुनर्विवाह।

(4) ज्योतिराव फुले – सत्यशोधक समाज संगठन, जाति आधारित समाज की आलोचना।

(5) पंडिता रमाबाई – महिला अधिकार, विधवा गृह की स्थापना।

(6) पेरियार – हिन्दू धर्मग्रन्थों के आलोचक, स्वाभिमान आन्दोलन।

(7) मुमताज अली – मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा।

(8) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर – महिला शिक्षा।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ

(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, सम्पत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए।

(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर-तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथों से दूर रहना पड़ता था।

(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था।

(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था।

उत्तर – (क) सही, (ख) गलत, (ग) गलत, (घ) गलत।

आइए विचार करें

प्रश्न 3. प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?

उत्तर – प्राचीन ग्रन्थों के ज्ञान से सुधारकों को निम्नलिखित प्रकार से नए कानून बनवाने में मदद मिलती थी

(1) राजा राममोहन राय किसी हानिकारक प्रथा को चुनौती देने के लिए अक्सर प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों के ऐसे श्लोक या वाक्य ढूँढ़ने का प्रयास करते थे जो उनकी सोच का समर्थन करते हो, इसके बाद वे दलील देते थे कि सम्बन्धित वर्तमान रीति-रिवाज प्रारम्भिक परम्परा के खिलाफ है।

(2) प्रसिद्ध सुधारक ईश्वरचन्द विद्यासागर ने भी विधवा विवाह के पक्ष में प्राचीन ग्रंथों का ही हवाला दिया था।

इसी तरह ऐसे कई अन्य समाज सुधारकों ने भी प्राचीन ग्रन्थों के ज्ञान को नए कानून बनवाने में प्रयोग किया।

प्रश्न 4. लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन-से कारण होते थे ?

उत्तर-लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास निम्नलिखित कारण होते थे

(1) स्कूल जाने के लिए लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से गुजरना पड़ेगा, जिससे लड़कियाँ बिगड़ जाएँगी।

(2) लोगों को भय था कि स्कूल वाले लड़कियों को घर से निकाल ले जाएँगे और उन्हें घरेलू कामकाज नहीं करने देंगे।

(3) कई लोगों का विश्वास था कि अगर लड़कियाँ पढ़ी-लिखी होंगी तो वह जल्दी विधवा हो जायेगी।

प्रश्न 5. ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा ? यदि हाँ तो किस कारण ?

उत्तर – ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग इसलिए आलोचना करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि यह भारतीय संस्कृति को नष्ट कर पश्चिमी तौर-तरीकों का प्रचार कर रहे हैं। यह हमारे जनजातीय समूहों का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। यह हमारे पारिवारिक संस्कार नष्ट कर देंगे।

कुछ लोगों के समर्थन का यह कारण था कि ईसाई प्रचारक आदिवासी समुदायों और निचली जातियों के बच्चों के लिए स्कूल खोलने लगे थे। इससे इन बच्चों को बदलती दुनिया में अपना रास्ता ढूँढ़ने के नए साधन मिलने लगेंगे।

प्रश्न 6. अंग्रेजों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन से नए अवसर पैदा हुए जो “निम्न” मानी जाने वाली जातियों से सम्बन्धित थे ?

उत्तर – अंग्रेजों के शासनकाल में शहरों का विस्तार होने लगा था जिससे मजदूरों की माँग पैदा हुई। शहरों में नालियाँ, सड़कों, इमारतों का निर्माण होना था इसके लिए कुलियों, खुदाई करने वालों, बोझा ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, नालियाँ साफ करने वालों, सफाईकर्मियों, पालकी ढोने वालों, रिक्शा खींचने वालों की जरूरत थी। इन कामों को संभालने के लिए गाँवों और छोटे कस्बों के गरीब शहरों की तरफ जाने लगे। शहर जाने वालों में बहुत से निम्न जातियों के लोग भी थे। निचली जातियों के लोगों को यह गाँवों में सवर्ण जमीदारों द्वारा उनके जीवन पर दमनकारी कब्जे और दैनिक अपमान से छूट निकालने का एक मौका था।

प्रश्न 7. ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचना को किस तरह सही ठहराया?

उत्तर – ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचना को निम्नलिखित तर्कों से सही ठहराया

(1) ज्योतिराव ने ब्राह्मणों की इस बात को गलत ठहराया कि आर्य होने के कारण वे अन्य लोगों से श्रेष्ठ हैं। ज्योतिराव ने कहा कि आर्य उपमहाद्वीप के बाहर से आए थे उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को हरा कर गुलाम बना लिया तथा पराजित जनता को निम्न जाति वाला मानने लगे।

(2) हदिास ठाकुर ने भी जाति व्यवस्था सही ठहराने वाले ब्राह्मणवादी ग्रन्थों पर सवाल उठाया। उनके अनुसार मानवता ही एक जाति है।

(3) पेरियार हिन्दू वेद पुराणों के कट्टर आलोचक थे। उनका कहना था कि ब्राह्मणों ने निचली जातियों पर अपनी सत्ता तथा महिलाओं पर पुरुषों का प्रभुत्व स्थापित करने के लिए इन पुस्तकों का सहारा लिया है।

(4) अम्बेडकर ने भी समकालीन समाज में उच्च जातीय संरचना पर सवाल उठाये।

प्रश्न 8. फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी को गुलामों की आबादी के लिए चल रहे अमेरिकी आन्दोलन को समर्पित क्यों किया?

उत्तर – फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी को गुलामों की आजादी के लिए चल रहे अमेरिकी आन्दोलन को इसलिए समर्पित किया क्योंकि लगभग दस साल पहले अमेरिकी गृह युद्ध के फलस्वरूप दास प्रथा का अन्त हो चुका था। फुले ने भारत की निम्न जातियों और अमरीका के काले गुलामों की दुर्दशा को एक दूसरे से जोड़कर देखा। इसलिए उन्होंने अपनी पुस्तक गुलामगीरी अमेरिकियों को समर्पित की।

प्रश्न 9. मंदिर प्रवेश आन्दोलन के जरिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे ?

उत्तर – सन् 1927 में अम्बेडकर जी ने मंदिर प्रवेश आन्दोलन शुरू किया। उन्होंने बचपन से जातीय भेदभाव नजदीक से देखा था। वह पूरे देश को यह दिखाना चाहते थे कि समाज में पूर्वाग्रहों की जकड़ कितनी मजबूत है, लेकिन लगातार विरोध करने पर यह जकड़ कमजोर हो जायेगी।

प्रश्न 10. ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे ? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली ?

उत्तर – वे उच्च जाति के लोगों की अगुवाई में चलाए जा रहे राष्ट्रीय आन्दोलन की इसलिए आलोचना करते थे क्योंकि उनका मानना था कि अंतत: यह आन्दोलन उच्च जाति के लोगों के उद्देश्यों की पूर्ति करेगा। आन्दोलन की समाप्ति पर ये लोग फिर से छुआछूत को बढ़ावा देकर ‘मैं यहाँ तुम वहाँ’ की बात करेंगे। रामास्वामी नायकर ने छुआछूत की घटना के कारण कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया। हाँ, उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में काफी मदद मिली। ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आन्दोलन के आलोचक बन गए उन्होंने अपने अधिकारों तथा स्वाभिमान के लिए खुद लड़ाई लड़नी होगी की तर्ज पर स्वाभिमान आन्दोलन चलाया। उनके इस आन्दोलन के कारण कांग्रेस ने अछूतोद्धार को भी राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल कर लिया।

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