MP Board Class 10th Geography Solution Chapter 5 :  खनिज और ऊर्जा संसाधन

MP Board Class 10 th Geography Solution भूगोल-समकालीन भारत-II

Chapter 5 : खनिज और ऊर्जा संसाधन [Minerals and Energy Resources]

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • भू-पपर्टी (पृथ्वी की ऊपरी परत) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है।
  • खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक सम्मिलित हैं।
  • खनिजों के बिना जीवन प्रक्रिया नहीं चल सकती। इनके बिना हम 99.7 प्रतिशत भोज्य पदार्थों का उपयोग करने में असमर्थ होंगे।
  • आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं, जैसे-जस्ता, ताँबा, जिंक और सीसा आदि।
  • अनेक खनिज अवसादी चट्टानों के अनेक खनिज संस्तरों या परतों में पाए जाते हैं, जैसे-कोयला व लौह अयस्क, दूसरी श्रेणी में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम।
  • सामान्य नमक, मैग्नीशियम तथा ब्रोमाइन समुद्री जल से ही प्रग्रहित होते हैं।
  • लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है।
  • भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं।
  • मैंगनीज मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है। ओडिशा मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
  • मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं।
  • एलुमिनियम एक महत्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है। यह सबसे अधिक बॉक्साइट अयस्क में पाया जाता है। 
  • अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है। 
  • ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों, जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत् से किया जाता है।
  • ऊर्जा के परम्परागत साधनों में लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत् (दोनों जल विद्युत् व ताप विद्युत्) सम्मिलित हैं। 
  • गैर-परम्परागत साधनों में सौर, पवन, ज्वारीय, भू-तापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल किये जाते हैं।
  • भारत में कोयला बहुतायत में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। कोयले का निर्माण पादप पदार्थों के लाखों वर्षों तक संपीडन से हुआ है।
  • भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है।
  • मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं। प्राकृतिक गैस एक महत्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो पेट्रोलियम के साथ अथवा अलग भी पाई जाती है।
  • प्राकृतिक गैस को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है।
  • तेज बहते जल से जल विद्युत् उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है।
  • ताप विद्युत्-कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है।
  • परमाणु अथवा आण्विक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है।
  • भारत एक उष्ण-कटिबंधीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम सम्भावनाएँ हैं।

पाठान्त अभ्यास

प्रश्न 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न

(i) निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज अपक्षयित पदार्थ के अवशिष्ट भार को त्यागता हुआ चट्टानों के अपघटन से बनता है ?

(क) कोयला

(ख) बॉक्साइट

(ग) सोना

(घ) जस्ता ।

उत्तर- (क) कोयला

(ii) झारखण्ड में स्थित कोडरमा निम्नलिखित से किस खनिज का अग्रणी उत्पादक है ?

(क) बॉक्साइट

(ख) अभ्रक

(ग) लौह अयस्क

(घ) ताँबा।

उत्तर- (ख) अभ्रक

(iii) निम्नलिखित चट्टानों में से किस चट्टान के स्तरों में खनिजों का निक्षेपण और संचयन होता है?

(क) तलछटी चट्टानें

(ख) कायांतरित चट्टानें

(ग) आग्नेय चट्टानें

(घ) इनमें से कोई नहीं।

उत्तर- (क) तलछटी चट्टानें

(iv) मोनोजाइट रेत में निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज पाया जाता है ?

(क) खनिज तेल

(ख) यूरेनियम

(ग) थोरियम

(घ) कोयला।

उत्तर- (ग) थोरियम

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

(i) निम्नलिखित में उत्तर 30 शब्दों से अधिक न दें।

(क) लौह और अलौह खनिज

लौह खनिज-लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं। ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं। भारत अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के पश्चात् बड़ी मात्रा में धात्विक खनिजों का निर्यात करता है, जैसे-लौह-अयस्क, मैंगनीज आदि।

अलौह खनिज-भारत में अलौह खनिजों की संचित राशि व उत्पादन अधिक संतोषजनक नहीं है। यद्यपि ये खनिज जिनमें ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना आते हैं, धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत् उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(ख) परम्परागत तथा गैर-परम्परागत ऊर्जा साधन

(ii) खनिज क्या हैं ?

उत्तर- भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्व हैं जिनकी एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक सम्मिलित हैं।

(iii) आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण कैसे होता है ?

उत्तर-

(1) आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं।

(2) छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं।

(3) इनका निर्माण भी अधिकतर उस समय होता है जब ये तरल अथवा गैसीय अवस्था में दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं तथा ऊपर आते हुए ठण्डे होकर जम जाते हैं।

(4) मुख्य धात्विक खनिज, जैसे-जस्ता, ताँबा, जिंक और सीसा आदि इसी तरह शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं।

(iv) हमें खनिजों के संरक्षण की क्यों आवश्यकता है ?

उत्तर- खनिज प्रकृति की अनुपम देन है। करोड़ों वर्षों में खनिज तैयार होते हैं। उनकी मात्रा सीमित है। मानव विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन निर्बाध रूप से कर रहा है। इससे खनिजों की मात्रा में भारी कमी आई है। इसके दुष्परिणाम आने वाले समय में देखने को मिल सकते हैं। मूल्यवान व उपयोगी खनिजों के दोहन में स्पर्धा इतनी बढ़ गई है कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण करने से भी नहीं चूकता। खनिज पदार्थों के असंयमित दोहन से प्राकृतिक असन्तुलन बिगड़ा है वहीं उसके अत्यधिक उपयोग से वातावरण में प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। इसलिए खनिज पदार्थों को भावी पीढ़ियों के उपयोग हेतु संरक्षण की आवश्यकता है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए

(i) भारत में कोयले के वितरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर- भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है

(1) गोंडवाना कोयला क्षेत्र-इसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है। देश में सर्वाधिक कोयला इन्हीं चट्टानों से प्राप्त होता है। गोंडवाना कोयला, जो धातु शोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी, बोकारो में स्थित हैं जो महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र है। गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं। देश के कुल भण्डारण का 96 प्रतिशत तथा उत्पादन का 99 प्रतिशत कोयला इसी क्षेत्र से उत्पादित होता है।

(2) टरशियरी कोयला क्षेत्र – टरशियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं। टरशियरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों-मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैण्ड में पाया जाता है। भारत में कुल उत्पादित कोयले का एक प्रतिशत इस क्षेत्र से प्राप्त होता है। यहाँ लिग्नाइट प्रकार का घटिया कोयला मिलता है।

(ii) भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है। क्यों ?

उत्तर- भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य निम्न कारणों से उज्ज्वल है

(1) भारत एक उष्ण-कटिबंधीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम सम्भावनाएँ हैं।

(2) फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत् में परिवर्तित किया जाता है।

(3) सौर ऊर्जा का उपयोग पानी को गर्म करने तथा भोजन पकाने, जगह को गर्म करने तथा वस्तुओं को सुखाने, पानी को शुद्ध करने व फसलों को पकाने, प्रकाश व मशीनों के संचालन के लिए किया जाता है।

(4) भारत के ग्रामीण तथा सुदुर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। ऐसी अपेक्षा है कि सौर ऊर्जा के प्रयोग में ग्रामीण घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम किया जा सकेगा।

(5) सौर ऊर्जा से प्राप्त बिजली का उपयोग वर्तमान में व्यावसायिक स्तर पर भी किया जाने लगा है।

(6) फलस्वरूप यह पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा और कृषि में भी खाद्य की पर्याप्त आपूर्ति होगी।

अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय

प्रश्न 1. लौह अयस्क का प्रकार नहीं है

(i) हेमेटाइट

(ii) मैग्नेटाइट

(iii) सिडेराइट

(iv) बॉक्साइट।

उत्तर- (iv) बॉक्साइट।

2. मध्य प्रदेश किस खनिज के उत्पादन में भारत में प्रथम स्थान रखता है ?

(i) लोहा

(ii) अभ्रक

(iii) सोना

(iv) हीरा।

उत्तर- (iv) हीरा।

3. कोयला उत्पादन में भारत का स्थान है

(i) प्रथम

(ii) द्वितीय

(iii) तृतीय

(iv) पाँचवाँ।

उत्तर- (iii) तृतीय

4. भारत में खनिज तेल का उत्पादन सर्वप्रथम किस राज्य में प्रारम्भ हुआ?

(i) असम

(ii) राजस्थान

(iii) गुजरात

(iv) कर्नाटक।

उत्तर- (i) असम

5. मैंगनीज का उत्पादन किस राज्य में सबसे अधिक होता है?

(i) कर्नाटक

(ii) मध्य प्रदेश

(iii) राजस्थान

(iv) गुजरात।

उत्तर- (iii) राजस्थान

6. लौह-अयस्क का उत्पादन किस राज्य में सबसे अधिक होता है ?

(i) ओडिशा

(ii) कर्नाटक

(iii) छत्तीसगढ़

(iv) झारखण्ड।

उत्तर- (i) ओडिशा

7. देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा किस राज्य में होता है ?

(i) राजस्थान

(ii) महाराष्ट्र

(iii) मध्य प्रदेश

(iv) ओडिशा

उत्तर- (iii) मध्य प्रदेश

रिक्त स्थान पूर्ति

1. खनिजों के बिना ………………. नहीं चल सकती।

2. पहाड़ियों के आधार या घाटी तल के रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में पाये जाने वाले निक्षेप ………………….. के नाम से जाने जाते हैं।

3. मैंगनीज मुख्य रूप से ………………. के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है।

4. कृष्णा-गोदावरी नदी बेसिन में ………………. के विशाल भण्डार खोजे गये हैं।

5. नागरकोइल और जैसलमेर देश में …………… के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।

उत्तर- 1. जीवन प्रक्रिया, 2. प्लेसर निक्षेप, 3. इस्पात, 4. प्राकृतिक गैस, 5. पवन ऊर्जा ।

सत्य/असत्य

1. एंथेसाइट एक सर्वोत्तम कोयला है।

2. हीरे की खुदाई सर्वप्रथम भारत में हुई थी।

3. खनिज केवल कठोर रूप में पाए जाते हैं।

4. अयस्कों के सतत् उत्खनन से लागत घटती है।

5. भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं।

6. बायोमास ऊर्जा गैस एवं विद्युत् दोनों रूपों में प्राप्त की जाती है।

उत्तर- 1. सत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. असत्य, 5. सत्य, 6. सत्य। 

सही जोड़ी मिलाइए

उत्तर-

1.→ (ख), 2. → (ग), 3. → (घ), 4.→ (क), 5. → (ङ)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. सामान्य नमक, मैग्नीशियम तथा ब्रोमाइन ज्यादातर कहाँ से प्रग्रहित (derived) होते हैं ?

2. लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के कितने भाग का योगदान करते हैं ?

3. सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क कौन-सा है ?

4. एक टन इस्पात बनाने में कितनी मैंगनीज की आवश्यकता होती है ?

5. मध्य प्रदेश की कौन-सी खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं ?

6. अधात्विक खनिज का एक उदाहरण दीजिए।

7. गुजरात का सबसे महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र कौन-सा है ?

8. भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है।

उत्तर- 1. समुद्री जल से, 2. तीन-चौथाई, 3. मैग्नेटाइट, 4. 10 किग्रा., 5. बालाघाट, 6. अभ्रक 7. अंकलेश्वर, 8. गुजरात।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भू-पर्पटी क्या है ?

उत्तर--भू-पर्पटी (पृथ्वी की ऊपरी परत) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है।

प्रश्न 2. अपनति से क्या अर्थ है ?

उत्तर-अवसादी चट्टानों में संपीडन बल से उत्पन्न एक मेहराबदार मोड़ अपनति कही जाती है।

प्रश्न 3. आर्द्र भूमि से क्या आशय है ?

उत्तर--वह भूमि जो समय-समय पर जलमग्न हो जाती है। इसमें लवण कच्छ, ज्वारनदमुख, कच्छ व दलदल सम्मिलित हैं।

प्रश्न 4. भारत में मैंगनीज के प्रमुख उत्पादक तीन राज्य कौन-से हैं ?

उत्तर--भारत में मैंगनीज के मुख्य उत्पादक तीन राज्य हैं

(1) मध्य प्रदेश, (2) महाराष्ट्र, (3) ओडिशा।

प्रश्न 5. भारत में लौह-अयस्क के तीन प्रधान उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।

उत्तर-भारत में लौह-अयस्क के तीन प्रधान उत्पादक राज्य हैं-(1) ओडिशा, (2) छत्तीसगढ़, B) कर्नाटक।

प्रश्न 6. बॉक्साइट का क्या उपयोग है?

उत्तर-– बॉक्साइट का उपयोग मुख्यतः ऐलुमिनियम बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त बोनी-मिट्टी के बर्तन बनाने, मिट्टी का तेल साफ करने, विद्युत् सुचालक के रूप में बर्तन बनाने, मिश्र धातु बनाने आदि में बॉक्साइट का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 7. ऊर्जा के खनिज संसाधनों के नाम बताइए।

उत्तर-– कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा परमाणु शक्ति के लिए यूरेनियम और थोरियम ऊर्जा के खनिज संसाधन हैं।

प्रश्न 8. ऊर्जा के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर--कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत्, सौर-ऊर्जा व परमाणु ऊर्जा।

प्रश्न 9. भारत में ऊर्जा के गैर-परम्परागत किन साधनों का प्रयोग होने लगा है ?

अथवा

ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- (1) सौर ऊर्जा, (2) पवन ऊर्जा, (3) ज्वारीय ऊर्जा, (4) जैविक ऊर्जा तथा (5) अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा । यह नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं।

प्रश्न 10. भारत में कार्यरत चार परमाणु बिजलीघरों के नाम लिखें।

उत्तर- (1) तारापुर (महाराष्ट्र), (2) रावतभाटा (राजस्थान), (3) कलपक्कम (तमिलनाडु),(4) नरौरा उत्तर प्रदेश)।

प्रश्न 11. भारत में खनिज तेल के तीन उत्पादक क्षेत्रों के नाम लिखिए।

उत्तर- (1) असम घाटी का क्षेत्र, (2) अंकलेश्वर (गुजरात), (3) मुम्बई हाई।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. खनिज पदार्थ का क्या महत्व है ?

उत्तर-– धरातल के नीचे बहुत गहराई तक खोदकर बहुत-से पदार्थ निकाले जाते हैं जिन्हें खनिज पदार्थ कहते हैं।

खनिज के महत्त्व-

(1) औद्योगिक विकास का आधार खनिज हैं।

(2) यातायात के सभी साधन, मशीनें, उपकरण, कृषि यन्त्र, पेट्रोलियम से बने पदार्थ, सोना, चाँदी व हार से बने आभूषण आदि हमें खनिजों से ही प्राप्त होते हैं।

(3) लोहा और कोयला दो ऐसे खनिज हैं, जिनके बिना औद्योगिक प्रगति सम्भव नहीं है।

(4) खनिजों का शक्ति के साधनों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका विकास किये बिना कोई भी देश या के आर्थिक और औद्योगिक प्रगति नहीं कर सकता। इससे स्पष्ट है कि खनिजों का मानव के लिए अत्यधिक महत्व है।

(5) दैनिक जीवन में काम आने वाली प्रत्येक वस्तु का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खनिजों से सम्बन्ध बुड़ा है।

प्रश्न 2. अवसादी चट्टानों में खनिजों का निर्माण किस प्रकार होता है ?

उत्तर- (1) अनेक खनिज अवसादी चट्टानों के अनेक खनिज संस्तरों या परतों में पाए जाते हैं।

(2) इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण, संचयन व जमाव का परिणाम है।

(3) कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लम्बी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा उदबाव का परिणाम है।

(4) अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है।

प्रश्न 3. धरातलीय चट्टानों तथा पहाड़ियों के आधार पर खनिजों का निर्माण किस प्रकार होता है ?

उत्तर- (1) धरातलीय चट्टानों द्वारा-खनिजों के निर्माण की एक अन्य विधि धरातलीय चट्टानों का अपघटन है। चट्टानों के घुलनशील तत्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं। बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रकार होता है।

(2) पहाड़ियों के आधार पर-पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोड़ जमाव के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं। ये निक्षेप ‘प्लेसर निक्षेप’ के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्रायः ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।

प्रश्न 4. भारत में खनिज सम्पदा और वितरण की प्रमुख विशेषताओं को बताइए। वे कौन-से खनिज हैं जिनमें

(क) भारत बहुत सम्पन्न है या (ख) जिनका भारत में अभाव है।

उत्तर- (1) भारत अच्छे और विविध प्रकार के खनिज संसाधनों में सौभाग्यशाली है, यद्यपि इनका वितरण असमान है।

(2) मोटे तौर पर प्रायद्वीपीय चट्टानों में कोयले, धात्विक खनिज, अभ्रक व अन्य अनेक अधात्विक खनिजों के अधिकांश भण्डार संचित हैं।

(3) प्रायद्वीप के पश्चिमी और पूर्वी पाश्र्वो पर गुजरात और असम की तलछटी चट्टानों में अधिकांश खनिज तेल निक्षेप पाए जाते है। प्रायद्वीपीय शैल क्रम के साथ राजस्थान में अनेक अलौह खनिज पाए जाते हैं।

(4) उत्तरी भारत के विस्तृत जलोढ़ मैदान आर्थिक महत्त्व के खनिजों से लगभग विहीन हैं। ये विभिन्नताएँ खनिजों की रचना में अंतरग्रस्त भू-गर्भिक संरचना, प्रक्रियाओं और समय के कारण हैं।

(क) लौह-अयस्क, मैंगनीज, बॉक्साइट, अभ्रक, चूने का पत्थर बहुतायत में उपलब्ध है।

(ख) जस्ता, सीसा, सोना, ताँबा तथा गंधक की कमी है।

प्रश्न 5. अभ्रक का क्या उपयोग है ? भारत में अभ्रक के भण्डार कहाँ-कहाँ पाये जाते हैं ?

उत्तर- अभ्रक इस प्रकार का खनिज पदार्थ है जो ताप तथा विद्युत् का कुचालक है। अतः इसका प्रयोग विद्युत् सामग्री बनाने के लिए होता है। रंग, रोगन, वार्निश आदि तैयार करने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। अभ्रक के उत्पादन में भारत का अग्रणी स्थान है। विश्व में अभ्रक का 60 प्रतिशत व्यापार भारत करता है। अभ्रक के आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भण्डार चार राज्यों-बिहार, झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेश और राजस्थान में है।

प्रश्न 6. ताँबे की उपयोगिता का वर्णन कीजिए और उसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र बताइए।

उत्तर- ताँबा एक धात्विक खनिज है। इसके अनेक उपयोग हैं। यह अलौह खनिजों की श्रेणी में आता है। घातवर्ष (malleable), तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक और रसायन उद्योगों में किया जाता है। इसके अलावा मूर्ति, बर्तन तथा सजावट के सामान भी इस धातु द्वारा बनाये जाते हैं।  मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं। झारखण्ड का सिंहभूम जिला भी ताँबे का मुख्य उत्पादक है। राजस्थान की खेताड़ी खदानें भी ताँबे के लिए प्रसिद्ध थीं।

प्रश्न 7. कौन-से खनिज दंतमंजन में सहायक होते हैं ?

अथवा

‘खनिज व दंतमंजन से एक उज्ज्वल मुस्कान’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- -(1) दंतमंजन हमारे दाँत साफ करते हैं।

(2) कुछ अपघर्षक खनिज, जैसे सिलिका, चूना पत्थर, एलुमिनियम ऑक्साइड व विभिन्न फॉस्फेट खनिज स्वच्छता में मदद करते हैं।

(3) फ्लूराइड जो दाँतों को गलने से रोकता है, फ्लूओराइट नामक खनिज से प्राप्त होता है।

(4) अधिकतर दंतमंजन टिटेनियम ऑक्साइड से सफेद बनाए जाते हैं जोकि यूटाइल, इल्येनाइट तथा साटेज नामक खनिजों से प्राप्त होते हैं। कुछ दंतमंजन जो चमक प्रदान करते हैं, उनका कारण अभ्रक है।

(5) टूथब्रश व पेस्ट की ट्यूब पेट्रोलियम से प्राप्त प्लास्टिक की बनी होती है।

प्रश्न 8. खनिजों के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- -सामान्य व वाणिज्यिक उद्देश्य हेतु खनिज निम्न प्रकार से वर्गीकृत किये जाते हैं

प्रश्न 9. रेट होल (Rat Hole) खनन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- (1) भारत में अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं और इनका निष्कर्षण सरकारी अनुमति के पश्चात् होसम्भव है।

(2) उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में, खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत व समुदायों को प्राप्त है।

(3) मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर व डोलोमाइट के विशाल निक्षेप पाए जाते हैं।

(4) जोवाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्य द्वारा एक लम्बी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रेट होल खनन कहते हैं।

(5) नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इन क्रियाकलापों को अवैध घोषित किया है और सलाह दी है क इसे तुरन्त बन्द कर देना चाहिए।

प्रश्न 10. खनन के जोखिम या खतरे बताइए।

अथवा

खनन का खनिकों के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर- खनन के निम्नलिखित दुष्प्रभाव होते हैं

(i) खदानों में कार्य करने वाले श्रमिक निरन्तर धूल व हानिकारक धुएँ में साँस लेते हुए फेफड़ों सम्बन्धी बीमारियों से अक्सर ग्रस्त हो जाते हैं।

(ii) खदानों की छतों के गिरने, सैलाब आने (जल प्लावित होना), कोयले की खानों में आग लगने आदि खतरे खान श्रमिकों के लिए स्थाई हैं

(iii) खदान क्षेत्रों में खनन के कारण जल स्रोत दूषित हो जाते हैं।

(iv) अवशिष्ट पदार्थों तथा खनिज तरल मलबे के खत्ता लगाने से भूमि व मृदा का अवक्षय होता है और नदियों का प्रदूषण बढ़ता है।

प्रश्न 11. हमारे देश के औद्योगीकरण में ऊर्जा का क्या महत्व है ?

उत्तर- ऊर्जा ने हमारे राष्ट्र के औद्योगीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और उद्योगों के विकास के लिए वरदान सिद्ध हुई है। बड़ी-बड़ी मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है और राष्ट्र के औद्योगीकरण के लिए यह परमावश्यक है। इस्पात और रसायन उद्योगों के विकास में तो इसका विशेष महत्व है। खनिज तेल से भी हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। इससे सड़क परिवहन, हवाई जहाज और समुद्री जहाजों को चालन-शक्ति प्राप्त होती है। अतः राष्ट्र के उद्योगों के विकास हेतु ऊर्जा की हमें अत्यन्त आवश्यकता है।

प्रश्न 12. जल-विद्युत् के लाभ लिखिए।

उत्तर- (1) जल-विद्युत् शक्ति का सबसे सस्ता साधन है।

(2) जल-विद्युत् से भारत में नहरों तथा नलकूपों द्वारा सिंचाई सुविधाएँ जुटायी गयी हैं।

(3) अन्य सभी साधन धीरे-धीरे समाप्त हो जाएँगे, लेकिन एक बार जल-विद्युत्-गृह बनाकर सदैव के लिए विद्युत् का उत्पादन किया जा सकता है, क्योंकि जल शक्ति का नियतवाही स्रोत है।

(4) स्वच्छता के कारण जल-विद्युत् को श्वेत कोयला कहकर भी पुकारा जाता है। अपेक्षाकृत सस्ती होने के कारण औद्योगिक क्षेत्र में इसका महत्व बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 13. भारत में परमाणु ऊर्जा पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- परमाणु या आण्विक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। जब इस प्रकार का परिवर्तन किया जाता है तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है और इसका उपयोग विद्युत् ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है। यूरेनियम और थोरियम जो झारखण्ड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, का प्रयोग परमाणु अथवा आण्विक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।

प्रश्न 14. शक्ति के संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?

उत्तर- शक्ति के संसाधनों का संरक्षण-वर्तमान अर्थव्यवस्था में शक्ति के संसाधन ‘प्राणवायु की भूमिका में माने जाते हैं। जैसे-मानव का शरीर प्राण वायु के अभाव में मृत हो जाता है, ठीक वैसे ही अर्थव्यवस्था के विभिन्न घटक-कृषि, उद्योग परिवहन, व्यापार आदि भी शक्ति संसाधनों के बिना संचालित नहीं हो सकते। अतः देश में उपलब्ध शक्ति के संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है जिससे मानव की शक्ति सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति सदैव होती रहे, शक्ति के संसाधन का समुचित उपयोग हो, शक्ति के स्रोतों से भविष्य में भी ऊर्जा मिलती रहे तथा शक्ति संसाधनों से पर्यावरण प्रदूषित न हो।

प्रश्न 15. ऊर्जा के किन्हीं चार गैर-परम्परागत साधनों के नाम लिखिए। भारत के लिए सौर ऊर्जा क्यों महत्वपूर्ण है ?

उत्तर- ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन –

(1) सौर ऊर्जा, (2) पवन ऊर्जा, (3) बायोगैस, (4) भू-तापीय ऊर्जा ।

गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों में सौर ऊर्जा का प्रमुख स्थान है। भारत के लिए सौर ऊर्जा का विशेष महत्व है, क्योंकि भारत में वर्षभर सूर्य चमकता है और सौर ऊर्जा का विकास सुगमता से किया जा सकता है। हमारे देश के अधिकांश भागों में प्रायः स्वच्छ मौसम पाया जाता है जिससे सौर ऊर्जा के विकास की अच्छी सम्भावनाएँ रहती हैं। भारत में जल-विद्युत्, कोयला तथा खनिज तेल जैसे शक्ति-साधनों की कमी है। इसके स्थानापन्न के रूप में सौर ऊर्जा के विकास की पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में लौह अयस्क क्षेत्रों के वितरण का वर्णन कीजिए।

अथवा

भारत में लौह अयस्क के भण्डारों के वितरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

भारत में लौह अयस्क लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं। भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है। मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुम्बकीय गुण होते हैं।जो विद्युत् उद्योगों में विशेष रूप उपयोगी है। हेमेटाइट सर्वाधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। किन्तु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी सी कम होती है।

भारत में लौह अयस्क क्षेत्रों (या पेटियों) का वितरण निम्न प्रकार है

(1) ओडिशा- झारखण्ड पेटी – ओडिशा में उच्च कोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरगंज वझर जिलों में बादाम पहाड़ खदानों से निकाला जाता है। इसी से सम्बद्ध झारखण्ड के सिंहभूम जिले में कुला तथा नोआमंडी से हेमेटाइट अयस्क का खनन किया जाता है।

(2) दुर्ग-बस्तर-चन्द्रपुर पेटी – यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के अन्तर्गत पाई जाती है। उनीसगढ़ के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी श्रृंखलाओं में अति उत्तम कोटि का हेमेटाइट पाया जाता है। इस खदानों का लौह अयस्क विशाखापट्टनम पत्तन से जापान तथा दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।

(3) बल्लारि-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरू – तुमकूर पेटी-कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की वृहत् राशि संचित है। कर्नाटक में पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत-प्रतिशत निर्यात इकाई हैं। कडेमुख निक्षेप विश्व के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं।

(4) महाराष्ट्र-गोआ पेटी – यह पेटी गोआ तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले में स्थित है। यद्यपि यहं का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है यद्यपि इसका दक्षता से दोहन किया जाता है। मरमागाओ पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।

प्रश्न 2. भारत में खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय लिखिए।

उत्तर- खनिज संसाधन उद्योगों का आधार है, इनके बिना कोई भी राष्ट्र प्रगति की ओर अग्रसर नहीं उसकता। खनिज संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। इनके संरक्षण के प्रमुख उपाय

(1) खनिज सम्पदा का उपयोग मितव्ययितापूर्वक तथा विवेकपूर्ण विधि से करना चाहिए।

(2) देश में जो खनिज कम मात्रा में उपलब्ध हैं, उनका मितव्ययितापूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए, बारहण के लिए-चाँदी, गन्धक, पोटाश, जस्ता, पारा, सीसा आदि।

(3) जो खनिज संसाधन निर्यात किये जा रहे हैं, उदाहरण के लिए-मैंगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट, क्रोमाइट आदि इन पर नियन्त्रण रखना चाहिए, क्योंकि इससे हमारे बहुमूल्य खनिज संसाधनों का अभाव हो रहा है।

(4) लौह-अयस्क का उपयोग बार-बार गलाकर किया जाय न कि लौह-अयस्क को खदानों से निकालते ही जाएँ।

(5) खनिज संसाधनों की प्राप्ति के लिए नवीन क्षेत्रों का सर्वेक्षण जारी रखना चाहिए जिससे खनिज साधनों में वृद्धि हो सके।

(6) निम्न कोटि के अयस्कों का कम लागतों पर प्रयोग करने के लिए उन्नत तकनीकों का सतत् विकास करते रहना होगा।

(7) धातुओं का पुनः चक्रण, रद्दी धातुओं का प्रयोग तथा अन्य प्रतिस्थापनों का उपयोग भविष्य में समारे खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय हैं।

प्रश्न 3. कोयले के महत्व पर प्रकाश डालते हुए भारत में कोयला उत्पादन क्षेत्रों के वितरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

कोयला आधुनिक औद्योगीकरण के शुभारम्भ एवं विकास का श्रेय कोयला को है। कोयला को ‘उद्योग-धन्धों का जनक’ कहा जाता है। कोयले का निर्माण वनस्पतियों के विघटन से हुआ है। कार्बन, वाष्पशील द्रव्य, राख इत्यादि तत्व इसमें विद्यमान रहते हैं। यह अवसादी चट्टानों में मिलता है।औद्योगिक क्रान्ति के बाद कोयले का महत्व सम्पूर्ण विश्व में बढ़ा है। वर्तमान में कोयले का उपयोग घरेलू ईंधन, संयन्त्र संचालन, विद्युत् उत्पादन तथा अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनाने, जैसे-शृंगार सामग्री, नायलोन, बटन आदि के लिए भी होता है। अपनी तीन विशेषताओं- भाप बनाने, ताप प्रदान करने तथा धातुओं के पिघलाने के कारण वर्तमान में यह आधारभूत शक्ति साधन बना हुआ है। कोयले में कार्बन ज्वलनशील तत्व है। कार्बन की विद्यमान मात्रा के आधार पर भारतीय कोयला चार प्रकार का है

(1) एन्थेसाइट-यह सर्वोत्तम कोयला है। भारत में मिलने वाले इस किस्म के कोयले में कार्बन की मात्रा 85 से 95 प्रतिशत तक है। यह कोयला अत्यधिक कठोर तथा चमकीला होता है। जलते समय धुआँ नहीं देता तथा ताप अधिक देता है।

(2) बिटुमिनस-यह द्वितीय श्रेणी का कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 70 से 80 प्रतिशत तक है। इसका रंग काला होता है तथा चलते समय कम धुआँ देता है।

(3) भूरा व लिग्नाइट-यह घटिया किस्म का कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 40 से 55 प्रतिशत तक होती है। यह छूने पर हाथ काला करता है तथा जलते समय अधिक धुआँ देता है।

(4) पीट-यह कोयले का प्राथमिक रूप है। इसका जमाव छिछले गड्डों में वनस्पति विघटन से हुआ है। इसमें कार्बन की मात्रा 20 प्रतिशत तक है और आर्द्रता 80 प्रतिशत तक है। कोयला उत्पादक क्षेत्र

कोयला प्राप्ति के भारत में दो प्रमुख क्षेत्र माने जाते हैं

(1) गोंडवाना कोयला क्षेत्र – देश में सर्वाधिक कोयला इन्हीं चट्टानों से प्राप्त होता है। देश के कुल भण्डारण का 96 प्रतिशत तथा उत्पादन 99 प्रतिशत कोयला इसी क्षेत्र से उत्पादित होता है। झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कोयला क्षेत्र गोंडवाना काल के हैं। इन क्षेत्रों में उत्तम प्रकार का बिटुमिनस कोयला पाया जाता है।

(2) टरशियरी कोयला क्षेत्र – भारत में कुल उत्पादित कोयले का एक प्रतिशत इस क्षेत्र से प्राप्त होता है। असम, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु आदि राज्य इस कोयला क्षेत्र में हैं। यहाँ लिग्नाइट प्रकार का घटिया कोयला मिलता है।

प्रश्न 4. पेट्रोलियम का क्या महत्त्व है ? भारत के प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र बताइए।

उत्तर- पृथ्वी के गर्भ से निकाला जाने वाला तेल खनिज तेल कहलाता है। इसे पेट्रोलियम भी कहते हैं। खनिज तेल में 90 से 98 प्रतिशत तक हाइड्रोकार्बन तथा शेष ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक और जैविक धातु की मात्रा पाई जाती है। महत्व-वैज्ञानिक प्रगति के साथ खनिज तेल की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। डीजल इंजन, वायुयान तथा मोटर के लिए यह एक चालक शक्ति है। कृषि तथा उद्योगों के विकास में भी खनिज तेल उपयोगी है। ताप एवं प्रकाश भी इससे मिलता है। खनिज तेल को शुद्धि शालाओं में शुद्ध कर पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, गैस, कोलतार आदि बनाया जाता है। वर्तमान में खनिज तेल के बढ़ते उपयोग और महत्व के चार प्रमुख कारण हैं

(1) इसकी ढुलाई आसान है,

(2) इसका प्रत्येक अंश उपयोगी है,

(3) कोयले की अपेक्षा इसकी यन्त्र संचालन शक्ति अधिक है, तथा

(4) इसके प्रयोग में श्रम कम लगता है।

भारत के खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र-भारत में खनिज तेल की खोज सन् 1890 में हुई तथा सन् 1899 में असम् राज्य में इसका उत्पादन आरम्भ हुआ। खनिज तेल टरशियरी काल की चट्टानों में मिलते हैं। वर्तमान में देश में खनिज तेल उत्पादक के प्रमुख तीन क्षेत्र हैं

(1) असम तेल क्षेत्र-यह भारत का सबसे पुराना तेल क्षेत्र है। यहाँ का डिग्बोई तेल क्षेत्र 13 वर्ग किमी में फैला हुआ है। जिसमें 800 तेल कुएँ हैं। असम की सुरमा घाटी में बदरपुर, मसीमपुर तथा पथरिया प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र हैं। नाहरकटिया तेल क्षेत्र दिहांग नदी के किनारे स्थित है। नाहरकटिया से 40 किमी दक्षिणी-पश्चिमी में हुगरीजन-मोरेन तेल क्षेत्र स्थित है। यहाँ प्राकृतिक गैस भी मिलती है। असम में प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन होता है।

(2) गुजरात तेल क्षेत्र-गुजरात के तेल क्षेत्र 15,360 वर्ग किमी में फैले हैं। यहाँ तेल की पेटी सूरत लेकर राजकोट तक फैली है। बड़ौदा, भड़ौच, सूरत, खेड़ा एवं मेहसाना प्रमुख तेल उत्पादक जिले हैं। कलेश्वर गुजरात में सर्वाधिक तेल उत्पादन करता है। खम्भात की खाड़ी के निकट का तेल क्षेत्र लुनेज कहलाता है। अहमदाबाद के निकट किलोल भी प्रमुख उत्पादक है। गुजरात प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन करता है।

(3) समुद्र मग्न अपतटीय तेल क्षेत्र-धरातलीय क्षेत्रों के अतिरिक्त समुद्र मग्न अपतटीय क्षेत्रों में भी तेल मिलता है। मुम्बई नगर से 176 किमी दूर अरब सागर में स्थित मुम्बई हाई (Mumbai High) भारत का प्रमुख तेल क्षेत्र है। यहाँ से प्रतिवर्ष 200 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त असीन, खम्भात बेसिन, कावेरी बेसिन व गोदावरी बेसिन भी खनिज तेल के प्रमुख अपतटीय क्षेत्र हैं।

प्रश्न 5. प्राकृतिक गैस हमारे लिए क्यों आवश्यक है ? भारत के प्राकृतिक गैस क्षेत्र एवं उत्पादन के बारे में बताइए।

अथवा

प्राकृतिक गैस की माँग निरन्तर क्यों बढ़ रही है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- प्राकृतिक गैस ऊर्जा का एक उपयोगी संसाधन है। इसकी माँग निरन्तर बढ़ रही है। इसकी माँग बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

(1) इसका उत्पादन एवं वितरण आसान व कम खर्चीला है तथा संचय के लिए कम स्थान की आवश्यकता होती है।

(2) यह पूर्णतः ज्वलनशील तथा गन्ध एवं कालिख रहित है। अत: घरों को गर्म रखने, भोजन बनाने आदि के लिए उत्तम ईंधन है।

(3) उपयोग के बाद इसमें धूल या राख नहीं होती।

(4) अपने प्राकृतिक रूप में भी यह ज्वलनशील है।

प्राकृतिक गैस का उपयोग गृह ऊर्जा के अतिरिक्त पेट्रो रसायन उद्योग, उर्वरक तथा विद्युत् उत्पादन में भी होता है। इसका 60 प्रतिशत भाग उर्वरक कारखानों, 20 प्रतिशत विद्युत् उत्पादन, 15 प्रतिशत आन्तरिक प्रयोग और 5 प्रतिशत अन्य कार्यों में हो रहा है।

प्राकृतिक गैस, क्षेत्र एवं उत्पादन भारत में प्राकृतिक गैस के क्षेत्र प्रायः खनिज तेल के ही उत्पादक क्षेत्र हैं। ऐसा अनुमान है कि हमारे देश में प्राकृतिक गैस के भण्डार 750 करोड़ घन मीटर हैं। भारत वर्ष में त्रिपुरा, गुजरात व पश्चिमी तट के निकट गैस के भण्डार हैं। कावेरी और गोदावरी क्षेत्र में भी भण्डार होने के अनुमान लगाए गए हैं। भण्डारण की तुलना में देश में प्राकृतिक गैस का उत्पादन कम है। सन् 2014-15 में भारत का कुल प्राकृतिक गैस उत्पादन 25-32 बीसीएम हुआ।

देश में उत्पादित आयातित गैस को देश के भीतरी भागों में पहुँचाने के लिए पाइप लाइनों का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 6. विद्युत् शक्ति क्या है ? विद्युत् उत्पादन के किन्हीं दो स्रोतों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

विद्युत् शक्ति ऊर्जा के प्रारम्भिक स्रोत-कोयला, खनिज, तेल एवं प्राकृतिक गैस की तुलना में विद्युत् अनेक विशेषताओं के कारण अधिक उपयोगी शक्ति संसाधन है। कम उत्पादन लागत, आसान वितरण सुविधा, प्रदूषण रहित होना, आसान प्रयोग और रख-रखाव का कर्म खर्च इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। इन विशेषताओं के कारण आज बिजली आम आदमी की जरूरत बन गई है। कृषि, उद्योग और परिवहन के साथ घरेलू ऊर्जा के लिए इसकी सर्वाधिक माँग है। विद्युत् उत्पादन के प्रधानत: चार स्रोत हैं

(1) ताप विद्युत्, (2) जल विद्युत्, (3) आण्विक विद्युत् एवं (4) गैस एवं खनिज तेल विद्युत् ।

ताप विद्युत् – राष्ट्रीय ताप बिजली निगम (एन.टी.पी.सी) की स्थापना ताप विद्युत् के विकास के लिए केन्द्रीय क्षेत्र के विद्युत् उत्पादन हेतु 1975 में हुई। वर्तमान में एन. टी. पी. सी. कोयला आधारित 12 ताप बिजली परियोजनाएँ तथा गैस तेल आधारित 7 परियोजनाएँ संचालित कर रही है। ताप विद्युत् परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं

(1) सिंगरोली (उत्तर प्रदेश)

(2) कोरबा (छत्तीसगढ़)

(3) रामगुंदम (आन्ध्र प्रदेश)

(4) फरक्का (पश्चिमी बंगाल)

(5) विन्ध्यांचल (मध्य प्रदेश)

(6) रिहन्द (उत्तर प्रदेश)

(7) दादरी (उत्तर प्रदेश)

(8) कहलंगाँव (बिहार)

(9) तलचर (ओडिशा)

(10) ऊँचाहार (उत्तर प्रदेश)

(11) बदरपुर (दिल्ली)।

अणु विद्युत् – अणु का विद्युत् के रूप में प्रयोग 1969 से प्रारम्भ हुआ। अणु शक्ति हेतु यूरेनियम, थोरियम, बैरीलियम एवं जिरकोनियम खनिज प्रयोग होते हैं। भारत में यह खनिज अच्छी मात्रा में मिलता है। अत: भारत में अणु विद्युत् उत्पादन सुविधापूर्वक हो सकता है। भारत में आण्विक शक्ति आयोग का गठन 1945 में हुआ तथा 1954 में भारत सरकार ने आण्विक शक्ति विभाग की स्थापना की। इस समय देश में पाँच अणु विद्युत् गृह कार्य कर रहे हैं-

(1) तारापुर (महाराष्ट्र),

(2) कोटा (राजस्थान),

(3) कलपक्कम (तमिलनाडु),

(4) नरौरा (उत्तर प्रदेश),

(5) काकरापार (गुजरात)।

इसके अतिरिक्त सौर ऊर्जा, बायोगैस, समुद्री लहर और भूताप से भी विद्युत् उत्पादित की जाती है। व्यावसायिक दृष्टि से भारत में ताप विद्युत्, जल-विद्युत् एवं अणु विद्युत् का ही अधिक विकास हुआ है।

प्रश्न 7. ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों में प्रमुख निम्नलिखित हैं

(1) सौर ऊर्जा -गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों में सौर ऊर्जा का प्रमुख स्थान है। भारत के लिए सौर ऊर्जा का विशेष महत्व है, क्योंकि भारत में वर्षभर सूर्य चमकता है और सौर ऊर्जा का विकास सुगमता से किया जा सकता है। हमारे देश के अधिकांश भागों में प्रायः स्वच्छ मौसम पाया जाता है जिससे सौर ऊर्जा के विकास की अच्छी सम्भावनाएँ रहती हैं। भारत में जल-विद्युत्, कोयला तथा खनिज तेल जैसे शक्ति-साधनों की कमी है। इसके स्थानापन्न के रूप में सौर ऊर्जा के विकास की पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं।

(2) पवन ऊर्जा – बहती हुई हवा की गति से जो ऊर्जा प्राप्त होती है उसे पवन ऊर्जा कहते हैं। भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन की महान संभावनाएँ है। भारत में पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। गत

(3) बायोमास ऊर्जा – कृषि, वन, पशु, उद्योग एवं अन्य के अपशिष्टों से ऊर्जा प्राप्त करना बायोमास ऊर्जा कहलाता है। बायोमास ऊर्जा गैस एवं विद्युत् दोनों रूपों में प्राप्त की जाती है। गैस उत्पादन हेतु गोबर, मानव का मल-मूत्र तथा अन्य जैव अपशिष्ट प्रयोग करते हैं, इन्हें ऑक्सीजन रहित वातवारण में सड़ाकर मुख्यत: मीथेन गैस प्राप्त की जाती है। इय गैस सस्ती पड़ती है और इसके जलने से प्रदूषण नहीं होता है। इसे बायोगैस कहते हैं। इसके उत्पादन के बाद शेष बचा अपशिष्ट, पौधों के लिए खाद के रूप में उपयोगी होता है।

(4) भू-तापीय ऊर्जा – पृथ्वी का आन्तरिक भाग गर्म है। भू-गर्भ के इस ताप से प्राप्त ऊर्जा भू-तापीय ऊर्जा कहलाती है। इसका उत्पादन गर्म जल के स्रोतों व जलाशयों पर निर्भर करता है। भू-तापीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की सम्भावना की जाँच का कार्य ‘राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक अनुसन्धान संस्थान, हैदराबाद’ द्वारा किया जा रहा है।

भारत में सैकड़ों गर्म पानी के चश्मे हैं, जिनका विद्युत् उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है। भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू की गई हैं। एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में स्थित है तथा दूसरी लद्दाख में पूसा घाटी में स्थित है।

प्रश्न 8. वर्ततान में ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है? ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण के उपाय बताइए।

उत्तर- ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता वर्तमान में ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं

(1) आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है।

(2) राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में प्रत्येक क्षेत्र-कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता है।

(3) आजादी के पश्चात् आर्थिक विकास की योजनाओं को चालू रखने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा को आवश्यकता थी। परिणामस्वरूप पूरे राष्ट्र में ऊर्जा के सभी प्रकारों का उपभोग निरन्तर बढ़ रहा है।

ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण के उपाय ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण के उपाय निम्नलिखित हैं

(1) ऊर्जा विकास के सतत् पोषणीय मार्ग के विकसित करने की तुरन्त आवश्यकता है।

(2) ऊर्जा संरक्षण की प्रोन्नति और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का बढ़ता प्रयोग सतत् पोषणीय ऊर्जा के दो आधार हैं।

(3) हमें ऊर्जा के सीमित संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग के लिए सावधानीपूर्वक उपागम अपनाना होगा।

(4) एक जागरूक नागरिक के रूप में हम यातायात के लिए निजी वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक वाहन का उपयोग करके, जब प्रयोग न हो रहा हो तो बिजली बन्द करके विद्युत् बचत करने वाले उपकरणों के प्रयोग से तथा गैर-पारम्परिक ऊर्जा साधनों के प्रयोग से हम अपना योगदान दे सकते हैं।

NCERT Social Science Book Class 10th Geography Solution Chapter 5 :  खनिज और ऊर्जा संसाधन [Minerals and Energy Resources]

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