MP Board Class 8th History Chapter 3 :  ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना

म.प्र. बोर्ड कक्षा आठवीं संपूर्ण हल- इतिहास– हमारे अतीत 3 (History: Our Pasts – III)

Chapter 3 :  ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना

प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)

महत्वपूर्ण बिन्दु

  • 12 अगस्त, 1765 को मुगल बादशाह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को बंगाल का दीवान तैनात किया।
  • 1770 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा जिसमें लगभग 1 करोड़ से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई।  
  • कम्पनी ने 1793 में स्थायी बन्दोबस्त लागू किया जिसमें राजाओं व तालुकदारों को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गई।
  • टॉमस मुनरो ने दक्षिण भारत में रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू की।
  • 18वीं सदी के अन्त में कम्पनी ने भारतीयों को अफीम व नील की खेती के लिए मजबूर किया।  
  • मार्च 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती करने से इंकार कर दिया तथा लगान चुकाने से भी मना कर दिया।  
  • महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर बिहार में नील किसानों के पक्ष में चंपारण सत्याग्रह (1917) को सफल नेतृत्व प्रदान किया।
  • बीघा – जमीन की एक माप
  • रैयत – किसान।
  • दीवान – संस्था या कम्पनी जिसे भू-राजस्व इकट्ठा करने का अधिकार दिया जाता था।
  • 1819-26-मद्रास का गवर्नर टॉमस मुनरो को बनाया गया।  
  • 1791-सेंट डॉमिंग्यू में गुलामों की बगावत ।

पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

पृष्ठ संख्या # 28

प्रश्न 1. आपको ऐसा क्यों लगता है कि कोलबुक बंगाल के उप-पट्टेदारों की स्थिति पर इतने चिंतित हैं ? पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ 26 से 28 तक पढ़कर सम्भावित कारण बताइए।

उत्तर – कोलबुक बड़े मेधावी गणितज्ञ, उत्साही ज्योतिषी तथा संस्कृत भाषा के विद्वान थे। इन्होंने प्राच्य विद्या के विविध अंगों पर मौलिक लेख लिखे। वे 1807-14 तक बंगाल एशियाटिक सोसायटी के सभापति रहे। बंगाल की अर्थव्यवस्था एक गहरे संकट में फंसती जा रही थी। किसान अपना लगान नहीं चुका पा रहे थे। बंगाल के ताकतवर रैयत खुद खेती नहीं करते थे। वे औरों को पट्टे पर जमीन दे देते थे और उनसे भारी लगान वसूल करते थे। उपपट्टेदारों पर बटाई की भारी शर्तों, मवेशियों, बीज, आजीविका का बोझ बढ़ता जा रहा था। उसी वस्तुस्थिति को देखते हुए कोलबुक अत्यधिक चिंतित थे।

पृष्ठ संख्या #30

प्रश्न 2. कल्पना कीजिए कि आप कम्पनी के प्रतिनिधि की हैसियत से कम्पनी के शासन के अन्तर्गत ग्रामीण इलाकोंकी दशा पर एक रिपोर्ट इंग्लैण्ड भेज रहे हैं। रिपोर्ट में आप क्या लिखेंगे?

उत्तर – कम्पनी के प्रतिनिधि द्वारा कम्पनी शासन को ग्रामीण इलाकों की दशा पर एक रिपोर्ट निम्नलिखित है

रिपोर्ट

(1) किसानों पर लागू स्थायी बंदोबस्त, महलवारी तथा रैयतवारी व्यवस्था असफल हो गयी है, क्योंकि इन व्यवस्थाओं से प्राप्त राजस्व से कम्पनी की आय नहीं बढ़ रही है।

(2) जमींदार अपनी जमीन की बेहतरी में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।

(3) किसानों को भी लगान चुकाने में कठिनाई हो रही है, साथ ही उन्हें यह नीति दमनकारी लग रही है।

(4) ग्रामीण इलाकों की दशा दिन-व-दिन खराब होती जा रही है।

पृष्ठ संख्या # 36

प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आप नील आयोग के सामने गवाही दे रहे हैं। डब्ल्यू. एच. सीटन कार आपसे पूछते हैं-“रैयत किस सूरत में नील की खेती कर सकते हैं ?” आपका जवाब क्या होगा?

उत्तर -नील आयोग के सामने गवाही देते समय जवाब निम्न प्रकार से होगा

(1) नील की खेती करने वाले रैयतों (किसान) को जमीन वृहत स्तर पर दी जाये। उनकी जमीन पर उनका अधिकार सुरक्षित हो।

(2) उनके समस्त कर्जे माफ किये जायें तथा लगान व्यवस्था में ढील दी जाये।

(3) उनके द्वारा किया गया उत्पादन कम्पनी उचित दामों में खरीदें।

पाठान्त प्रश्नोत्तर

आइए कल्पना करें

प्रश्न – एक किसान को नील की खेती के लिए मजबूर किया जा रहा है। बागान मालिक और उस किसान के बीच बातचीत की कल्पना कीजिए। किसान को राजी करने के लिए बागान मालिक क्या कारण बताएगा ? किसान किन समस्याओं का ज़िक्र करेगा ? इस बातचीत को अभिनय के जरिए दिखाएँ ?

उत्तर – किसान व बागान मालिक के बीच बातचीत की झलकियाँ बागान मालिक – तुम्हें अपनी जमीन पर नील की खेती करनी होगी।

किसान – नहीं, मैं नील की खेती नहीं करूँगा। मेरी उपजाऊ जमीन खराब हो जायेगी।

बागान मालिक – नील की खेती करने के लिए तुम्हें कर्ज आसानी से मिल जायेगा।

किसान – नहीं, श्रीमान कर्ज तो मिल जायेगा लेकिन ब्याज की दर बहुत ऊँची होगी मैं उसे चुका नहीं पाऊँगा।

बागान मालिक – नील का उत्पादन करने पर तुम्हें कोई परेशानी नहीं आयेगी। इसमें ब्रिटिश सरकार भी तुम्हारा साथ देगी।

किसान – नहीं, मैं मर जाऊँगा परन्तु नील की खेती नहीं करूँगा। अपनी उपजाऊ धरती को बेकार नहीं करूँगा।

फिर से याद करें

प्रश्न 1. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ

    ‘अ’               ‘ब’

(क) रैयत               (i) ग्राम-समूह

(ख) महाल             (ii) किसान

(ग) निज               (iii) रैयतों की जमीन पर खेती

(घ) रैयती              (iv) बागान मालिकों को अपनी

                          ज़मीन पर खेती

उत्तर – (क) → (ii), (ख) → (i), (ग) → (iv),. (घ) → (iii)।

प्रश्न 2. रिक्त स्थान भरें

(क) यूरोप में वोड उत्पादकों को ……….. से अपनी आमदनी में गिरावट का खतरा दिखाई देता था।

(ख) अठारहवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन में नील की माँग ………. के कारण बढ़ने लगी।

(ग) ……… की खोज से नील की अन्तर्राष्ट्रीय माँग पर बुरा असर पड़ा। (घ) चंपारण आन्दोलन …… के खिलाफ था।

उत्तर – (क) नील, (ख) औद्योगीकरण, (ग) कृत्रिम रंग, (घ) नील बागान मालिकों।

आइए विचार करें

प्रश्न 3. स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर – 1793 में कम्पनी ने राजस्व आय के लिए स्थायी बन्दोबस्त लागू किया, जिसके मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं

(1) इस बन्दोबस्त के हिसाब से राजाओं और तालुकेदारों को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गई।

(2) राजाओं, तालुकदारों और जमींदारों को किसान से लगान वसूल कर कम्पनी को जमा करना होगा।

(3) जमीनों से राजस्व की राशि निश्चित कर दी गयी, जिससे कम्पनी को नियमित राजस्व मिलता रहे।

(4) जमींदारों को जमीन में सुधार के लिए खर्च करने का प्रोत्साहन मिले।

(5) किसानों से भूमि सम्बन्धी अधिकार छीनकर जमींदार को सौंप दिये गये।

प्रश्न 4. महालवारी व्यवस्था स्थायी बन्दोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?

उत्तर -महालवारी व्यवस्था व स्थायी बंदोबस्त में भिन्नताएँ निम्नलिखित हैं

(1) महालवारी राजस्व व्यवस्था होल्ट मैकेंजी ने 1822 में बंगाल के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों में लागू की जबकि स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था 1793 ई. में कार्नवालिस ने बंगाल और बिहार में लागू की।

(2) महालवारी राजस्व व्यवस्था में गाँव के एक-एक खेत के अनुमानित राजस्व को जोड़कर हर गाँव या ग्राम समूह (महाल) से वसूल होने वाले राजस्व का हिसाब लगाया गया जबकि स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था में राजस्व की राशि स्थायी (निश्चित) थी।

(3) महालवारी व्यवस्था में राजस्व एकत्रित करने की जिम्मेदारी गाँव के मुखिया की थी जबकि स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था में जमींदार किसानों से लगान वसूल कर कम्पनी में जमा कराते थे।

(4) महालवारी व्यवस्था में ग्राम समुदायों का भूमि पर सामूहिक अधिकार अथवा स्वामित्व होता था जबकि स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था में जमींदार को जमीन पर स्थायी और वंशगत स्वामित्व मिल गया था।

प्रश्न 5. राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।

उत्तर -राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई समस्याएँ निम्नलिखित हैं

(1) नयी मुनरो व्यवस्था लागू होने के बाद अधिकारियों ने जमीन से होने वाली आमदनी बढ़ाने के चक्कर में ज्यादा राजस्व तय कर दिया जिसे किसान नहीं चुका पाये और वे गाँव छोड़कर जाने लगे।

(2) मुनरो व्यवस्था के अफसरों को यह आशा थी कि नयी व्यवस्था किसानों को सम्पन्न उद्यमशील बना देगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

प्रश्न 6. रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे ?

उत्तर -रैयत नील की खेती करने से इसलिए कतरा रहे थे क्योंकि बागान मालिक किसान से अपने सबसे उपजाऊ खेतों। में नील की खेती कराते थे नील की खेती के बाद धरती की उर्वरता खत्म हो जाती थी तथा नील की फसल के बाद खेत धान की खेती करने लायक नहीं रहते थे। साथ ही किसान को नील की खेती करने के लिए अग्रिम ऋण दिया जाता था परन्तु फसल कटने पर कम कीमत में बेचने को मजबूर किया जाता था जिससे किसान ऋण नहीं चुका पाते थे और ऋण के कर्ज में फंस जाते थे।

प्रश्न 7. किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया ?

उत्तर – बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी होने की निम्नलिखित परिस्थितियाँ थीं

(1) मार्च 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती करने से इंकार कर दिया। उन्होंने बागान मालिकों को लगान चुकाने से भी मना कर दिया क्योंकि बागान मालिक उन्हें नील की खेती करने को मजबूर करते थे तथा इससे रैयत कर्ज में डूबते जा रहे थे।

(2) बागान मालिकों के लिए काम करने वालों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। बागान मालिकों के गुमाश्ता एजेंटों की पिटाई की गई।

(3) 1859 में बहुत सारे गाँवों के मुखिया (जिनसे नील के अनुबंधों पर जबरन दस्तखत कराये गये थे) ने भी इस विद्रोह का समर्थन दिया।

(4) 1857 की बगावत से अंग्रेज पहले से ही डरे हुये थे इसलिए लेफ्टिनेंट ने गवर्नर के इलाके का दौरा किया और मजिस्ट्रेट ऐशले ईडन ने किसानों को शांत करने के लिए नोटिस जारी किया कि रैयतों को नील के अनुबंध मानने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

(5) विद्रोह के फैलने पर समाज के शिक्षित वर्ग ने भी रैयतों की दुर्दशा, बागान मालिकों की जबरदस्ती व अत्याचारों के बारे में लिखा।

(6) अंग्रेजी सरकार ने नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच करने हेतु नील आयोग बनाया। नील आयोग ने रैयतों का साथ दिया और बागान मालिकों को दोषी बताया तथा किसानों को आश्वासन दिया कि रैयत मौजूदा अनुबंधों को पूरा करे लेकिन आगे वे नील की खेती के लिए मना कर सकते हैं। अतः इस बगावत के बाद नील का उत्पादन धराशायी हो गया।

आइए करके देखें

प्रश्न 8. चंपारण आन्दोलन और उसमें महात्मा गांधी की भूमिका के बारे में जानकारियाँ इकट्ठा करें।

उत्तर -(1) चम्पारण आन्दोलन अप्रैल 1917 में बिहार के चम्पारण नामक स्थान से शुरू हुआ।

(2) यहाँ किसानों को अंग्रेजी अत्याचार का सामना करते हुए नील की खेती के लिए बाध्य किया जा रहा था।

(3) गाँधी जी पंडित राजकुमार शुक्ल के आमन्त्रण पर 10 अप्रैल, 1917 को बांकीपुर पहुँचे और फिर मुजफ्फरपुर होते हुए 15 अप्रैल, 1917 को बिहार के चंपारण पहुँचे और 19 अप्रैल, 1917 को चम्पारण आन्दोलन शुरू हुआ जिसका नेतृत्व गाँधीजी ने किया।

(4) गाँधीजी को चम्पारण के किसानों व बड़े वकीलों का भी सहयोग प्राप्त हुआ।

(5) गाँधीजी ने कई जन सभाएँ की, बैठकें की जिनकी जानकारी वे अंग्रेज पदाधिकारियों को पत्र के माध्यम से देते रहे।

(6) अन्त में ब्रिटिश सरकार ने एक जाँच समिति गठित की जिसका सदस्य गाँधीजी को भी बनाया गया जिसके फलस्वरूप चंपारण कृषि अधिनियम, 1918 बना तथा किसानों को नील की खेती की बाध्यता से मुक्ति मिली।

प्रश्न 9. भारत के शुरूआती चाय या कॉफी बागानों का इतिहास देखें। ध्यान दें कि इन बागानों में काम करने वाले मजदूरों और नील के बागानों में काम करने वाले मजदूरों के जीवन में क्या समानताएँ या फर्क थे ?

उत्तर – चाय या कॉफी बागानों और नील के बागानों में काम करने वाले मजदूरों में समानताएँ व अंतर निम्नलिखित हैं

समानताएँ –

(1) भारत में चाय तथा कॉफी के बागान तथा नील के बागान ब्रिटिश शासन के दौरान ही लगाए गए।

(2) चाय बागानों व नील बागानों में सर्वप्रथम एक अनुबंध कराया जाता था जिसमें मजदूर व किसान को उस अनुबंध की शर्ते स्वीकार करनी होती थीं।

(3) इन बागानों में मजदूरों व किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती थी।

असमानताएँ –

(1) चाय या कॉफी बागानों से मजदूर अनुबंध की अवधि में बाहर नहीं जाते थे, लेकिन नील बागानों में ऐसा नहीं था।

(2) चाय व कॉफी बागानों में पूरे वर्ष काम होता था लेकिन नील बागानों में फसल कटाई या बुवाई के समय अधिक काम होता था।

(3) भारत में चाय व कॉफी की खेती आज भी होती है, परन्तु भारत से नील की खेती समाप्त हो चुकी है।

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