म.प्र. बोर्ड कक्षा आठवीं संपूर्ण हल- इतिहास– हमारे अतीत 3 (History: Our Pasts – III)
Chapter 4 : आदिवासी, दीकू और एक स्वर्ण युग की कल्पना
प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)
महत्वपूर्ण बिन्दु
- जंगलों में जीवन-यापन करने वाले मानव आदिवासी जनजाति कहलाते हैं।
- आदिवासी जंगलों में निवास करते थे तथा जंगलों पर ही निर्भर थे।
- आदिवासी मुख्यत: 4 प्रकार से जीवन-यापन करते थे-(1) कुछ झूम खेती करते थे, (2) कुछ शिकारी और संग्राहक थे, (3) कुछ जानवर पालते थे तथा, तथा (4) कुछ लोग एक जगह खेती करते थे।
- ब्रिटिश शासन के द्वारा आदिवासियों पर कई प्रतिबंध लगाये गये।
- 19वीं और 20वीं शताब्दियों के दौरान देश के विभिन्न भागों में जनजातीय समूहों ने बदलते कानूनों, पाबंदियों, शोषणों के खिलाफ बगावत की। → 1906 में सोंग्रम संगमा द्वारा असम में और 1930 के दशक में मध्य प्रान्त में वन सत्याग्रह किया गया।
- आदिवासियों समूहों के नायक बिरसा मुंडा ने आन्दोलन का नेतृत्व किया।
महत्वपूर्ण शब्दावली
परती – कुछ समय के लिए बिना खेती छोड़ दी जाने वाली जमीन जिससे वह दोबारा उपजाऊ हो जाये।
महुआ-एक फूल जिसे खाने या शराब बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
स्लीपर-लकड़ी के क्षैतिज तख्ते जिन पर रेल की पटरियाँ बिछाई जाती हैं।
महत्वपूर्ण तिथियाँ
1855 – संथाल में बगावत।
1910 – मध्य भारत में बस्तर विद्रोह।
1940 – महाराष्ट्र में वर्ली विद्रोह
पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर
पृष्ठ संख्या # 42
प्रश्न 1. बैगा औरतें और मर्द जो काम करते हैं, उनको ध्यान से पढ़ें। क्या आपको उनमें कोई क्रम दिखाई देता है ? उनके कामों में क्या फर्क थे?
उत्तर – बैगा औरत और मर्द के काम में क्रम और फर्क निम्नलिखित थे
(1) औरतें लकड़ी इकट्ठा करने, बचे-खुचे दूंठों को काटती यो जबकि पुरुष बड़े-बड़े पेड़ काटते थे।
(2) औरतें, सागो, इमली, मशरूम, फल, बीज इत्यादि इकट्ठा करती थीं और पुरुष शिकार करते थे।
(3) औरतें जंगलों से अधजली लकड़ियों को ईंधन के लिए बीन लेती थीं और मर्द खेतों में काम करने जाते थे।
पृष्ठ संख्या 247
प्रश्न 2. पता लगाएँ कि कोयला खदानों में काम के हालात बदल गए हैं या नहीं पता लगाएँ कि खदानों में हर साल कितने लोग मरते हैं और उनकी मौत के क्या कारण होते हैं ?
उत्तर -कोयला खदानों में काम के हालातों में काफी हद तक परिवर्तन आया है परन्तु यह परिवर्तन सुरक्षा की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। आज भी खदानों में काम करने वाले मजदूरों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है; जैसे
(1) मजदूरों के पास सुरक्षा के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं होते हैं।
(2) कोयला खदानें अत्यधिक गहराई में होने के कारण वहाँ अँधेरा और घुटन का सामना करना पड़ता है।
(3) मशीनों के कारण खदानों में अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण होता है जिससे मजदूरों की श्रवण क्षमता प्रभावित होती है।
(4) खदानों में उड़ने वाली धूल से मजदूरों को साँस की बीमारी होने की आशंका रहती है।
खदान में मजदूरों की मौत के कारण :
(1) खदान में अचानक पानी भर जाना।
(2) सुरक्षा उपायों की कमी।
(3) खदानों में छप्पर का अचानक गिर जाना।
(4) दम घुटना इत्यादि।
पाठान्त प्रश्नोत्तर
आइए कल्पना करें
प्रश्न 1. मान लीजिए कि आप उन्नीसवीं सदी के वन गाँव में रहने वाले झूम काश्तकार हैं। आपको कहा गया है कि जहाँ आप पैदा हुए हैं अब वह जमीन आपकी नहीं मानी जाएगी। अंग्रेज अफसरों से मिलकर आप अपनी समस्याओं के बारे में बताना चाहते हैं। आप उन्हें क्या बताएँगे?
उत्तर – झूम काश्तकार द्वारा समस्याओं के बारे में बताना
(1) हम लोग वन में रहते हैं और आजीविका के लिए पूर्णतया वनों पर ही निर्भर हैं। हम वनों के बिना नहीं रह सकते हैं।
(2) हम अपने पशुओं के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। हम वनों में नहीं जायेंगे, तो उनके लिए चारा कहाँ से आयेगा।
(3) हम एक आदिवासी हैं। हमारी संस्कृति सबसे अलग है और हम शिक्षित भी नहीं हैं। इसलिए हम अपने वनों के बिना जीवित नहीं रह सकते। अतः हमें वनों से वंचित न करें।
फिर से याद करें
प्रश्न 1. रिक्त स्थान भरें
(क) अंग्रेजों ने आदिवासियों को ………. के रूप में वर्णित किया।
(ख) झूम खेती में बीज बोने के तरीके को ……….. कहा जाता है।
(ग) मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अन्तर्गत आदिवासी मुखियाओं को ………..स्वामित्व मिल गया।
(घ) असम के ………..और बिहार की ……….. में काम करने के लिए आदिवासी जाने लगे।
उत्तर (क) जंगली और बर्बर, (ख) बिखेरना, (ग) जमीन का, (घ) चाय बागानों, कोयला खानों।
प्रश्न 2. सही या गलत बताएँ
(क) झूम काश्तकार जमीन की जुताई करते हैं और बीज रोपते हैं।
(ख) व्यापारी संथालों से कृमिकोष खरीदकर उसे पाँच गुना ज्यादा कीमत पर बेचते थे।
(ग) बिरसा ने अपने अनुयायियों का आह्वान किया कि वे अपना शुद्धिकरण करें, शराब पीना छोड़ दें और डायन व जादू-टोने जैसी प्रथाओं में यकीन न करें।
(घ) अंग्रेज आदिवासियों की जीवन पद्धति को बचाए रखना चाहते थे।
उत्तर – (क) गलत, (ख) सही, (ग) सही, (घ) गलत।
आइए विचार करें
प्रश्न 2. ब्रिटिश शासन में घुमंतू काश्तकारों के सामने कौन-सी समस्याएँ थीं ?
उत्तर – घुमंतू काश्तकारों की जिन्दगी जंगलों में बेरोकटोक आवाजाही और फसल उगाने के लिए जंगलों के इस्तेमाल पर आधारित थी परन्तु अंग्रेजी शासन में अंग्रेजों ने घुमंतू काश्तकारों को एक जगह रहने पर मजबूर किया। उनकी स्वतंत्रता भंग कर दी, उनसे लगान की वसूली की जाने लगी, उन पर जमीन के नियम लागू किये गये तथा कुछ किसानों को भूस्वामी और दूसरों को पट्टेदार घोषित किया। अतः घुमंतू काश्तकारों को अंग्रेजी शासन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।
प्रश्न 3. औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं की ताकत में क्या बदलाव आए ?
उत्तर – अंग्रेजों के आने से पहले आदिवासी मुखियाओं का अपने इलाके में महत्वपूर्ण स्थान होता था। उनके पास अपने इलाके के आर्थिक और प्रशासनिक अधिकार होते थे। वे जमीन एवं वन प्रबंधन के स्थानीय नियम खुद बनाते थे। परन्तु ब्रिटिश शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं के कामकाज और अधिकारों में काफी बदलाव आए; जैसे-
(1) आदिवासी मुखियाओं के प्रशासनिक अधिकार छीन लिए गए उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया गया।
(2) आदिवासी मुखियाओं से अंग्रेजी अधिकारियों द्वारा नजराने देने को मजबूर किया। साथ ही उन्हें अपने समूह को अनुशासन में रखने को कहा गया।
(3) अंग्रेजी अधिकारियों ने आदिवासी मुखियाओं की समस्त ताकत अपने हाथ में ले ली तथा उनके परम्परागत कार्य भी उनसे छीन लिए गये।
प्रश्न 4. दीकुओं से आदिवासियों के गुस्से के क्या कारण थे?
उत्तर– आदिवासी बाहर से आने वाली शक्तियों; जैसे सूदखोर, जमींदार, महाजन, व्यापारी और अंग्रेज अधिकारियों को दीकु कहते थे। दीकुओं से आदिवासियों के गुस्से के निम्नलिखित कारण थे
(1) आदिवासी दीकुओं को अपनी गरीबी तथा दयनीय अवस्था का कारण मानते थे।
(2) आदिवासियों का मानना था कि इन दीकुओं ने हमारी स्वतन्त्रता और पारम्परिक संस्कृति को नष्ट किया है।
(3) आदिवासियों का मानना था कि दीकुओं के आने से हमारी जमीन छिन गयी है तथा दीकू ही हमें गुलाम बना रहे हैं।
प्रश्न 5. बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग किस तरह का था? आपकी राय में यह कल्पना लोगों को इतनी आकर्षक क्यों लग रही थी?
उत्तर – बिरसा की कल्पना एक ऐसे स्वर्ण युग की थी जिसमें वे पूर्णतः स्वतन्त्र थे। उनके परम्परागत अधिकार तथा संस्कृति थी। वे लोग अच्छा जीवन जीते थे, तटबंध बनाते थे, कदरती झरनों को नियंत्रित करते थे, पेड और बाग लगाते थे, अपनी जमीन पर खेती करते थे। बिरसा अपने अनुयायियों से अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्जीवित करने की कल्पना करते थे। यह कल्पना बिरसा के समर्थकों के साथ-साथ इलाके के दूसरे आदिवासियों को भी आकर्षित लग रही थी क्योंकि समस्त आदिवासी दीकुओं से छुटकारा चाहते थे। न आइए करके देखें
प्रश्न 6. अपने माता-पिता, दोस्तों या शिक्षकों से बात करके बीसवीं सदी के अन्य आदिवासी विद्रोहों के नायकों के नाम पता करें। उनकी कहानी अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – बीसवीं सदी के आदिवासी विद्रोहों के नायकों के नाम निम्नलिखित हैं
(1) तीरत सिंह – ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूरब दिशा में जयंतिया तथा पश्चिम में गारो पहाड़ियों के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने ब्रह्मपुत्र घाटी तथा सिलहट को जोड़ने के लिए एक सैन्य मार्ग बनाने की योजना बनायी। तीरत सिंह ने अंग्रेजों की इस योजना का विरोध किया तथा गारो, खाम्पटी एवं सिंहपो लोगों की सहायता से विदेशी लोगों को वहाँ से भगाने का प्रयास किया।
(2) गोमधर कुँवर – गोमधर कुँवर ने असम में अहोम विद्रोह किया। असम के अहोम अभिजाति वर्ग के लोगों ने कम्पनी पर वर्मा युद्ध के बाद असम वापस लौटने का वचन न पूरा करने का आरोप लगाया। इसके अतिरिक्त जब अंग्रेजों ने अहोम प्रदेश को भी अपने प्रदेशों में सम्मिलित करने का प्रयास किया तो विद्रोह फूट पड़ा। इस विद्रोह के प्रणेता गोमधर कुँवर थे।
(3) जात्रा उराँव – जात्रा उराँव झारखंड राज्य के छोटा नागपुर पठार का एक जनजातीय क्षेत्र था। जात्रा उराँव के नेतृत्व में उराँव विद्रोह किया। इस विद्रोह में आदिवासी लोगों में भगत कहे जाने वाले संत, धर्माचार्य, फकीर आदि ने किया था। इसके अन्तर्गत उराँव जनजातीय में प्रचलित कुरीतियों, भूत-प्रेत, बुरी आत्माओं पर विश्वास, पशु बलि एवं शराब सेवन का विरोध तथा शाकाहार तपस्या एवं संयम को प्रोत्साहित किया गया था। विद्रोह के विस्तार के साथ ही इसमें कृषक समस्याएँ एवं आर्थिक, राजनीतिक मुद्दे भी सम्मिलित हो गये।
नोट – विद्यार्थी अन्य आदिवासी नायकों के बारे में भी पता लगा सकते हैं।