MP Board Class 8th Civics Solution Chapter 5 :  न्यायपालिका

म.प्र. बोर्ड कक्षा आठवीं संपूर्ण हल- नागरिकशास्त्र – सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन 3 (Civics: Social & Political Life – III )

पाठ 5 : न्यायपालिका

प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)

महत्वपूर्ण बिन्दु

  • न्यायपालिका सरकार के प्रमुख तीन अंगों में से एक है।  
  • न्यायपालिका सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य की तरफ से कानून का सही अर्थ निकालती है।
  • भारतीय लोकतन्त्र में न्यायपालिका स्वतन्त्र रूप से कार्य करती है।  
  • भारतीय न्यायपालिका कानून की रक्षा तथा मौलिक अधिकारों के क्रियान्वयन में सहायता करती है।
  • भारत में तीन अलग-अलग स्तर पर अदालतें होती हैं-जिला स्तर, राज्य स्तर, केन्द्र स्तर अर्थात् जिला अदालत, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय।  
  • भारत में 1980 में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक न्याय की पहुँच बनाने के लिए जनहित याचिका विकसित की गयी।  
  • ऐसे लोग जिनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, उन्हें जनहित याचिका दायर करने का अधिकार है।
  • उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के नाम भेजे गये तार (टेलीग्राम) को भी जनहित याचिका माना जा सकता है।

महत्वपूर्ण शब्दावली

बरी करना – जब अदालत किसी व्यक्ति को उन आरोपों से मुक्त कर देती है जिनके आधार पर उसके खिलाफ, मुकदमा चलाया गया था तो उसे बरी करना कहा जाता है।

अपील करना – निचली अदालत के फैसले के विरुद्ध जब कोई पक्ष उस पर पुनर्विचार के लिए ऊपरी न्यायालय में जाता है तो इसे अपील करना कहा जाता है।

मुआवजा – किसी नुकसान की भरपाई के लिए दिये जाने वाले पैसे को मुआवजा कहते हैं।

बेदखली – अभी लोग जिन मकानों में रह रहे हैं, यदि उन्हें वहाँ से हटा दिया जाता है तो इसे बेदखली कहा जाएगा।

उल्लंघन – किसी कानून को तोड़ने या मौलिक अधिकारों के हनन की क्रिया को उल्लंघन कहा जाता है।  

पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

पृष्ठ संख्या # 56

प्रश्न 1. अपनी शिक्षिका की सहायता से तालिका में दिए गए खाली स्थान को भरिए।

उत्तर –

प्रश्न 2. क्या आपको ऐसा लगता है कि इस तरह की न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक भी किसी नेता के खिलाफ मुकदमा जीत सकता है ? अगर नहीं तो क्यों ?

उत्तर – पाठ्य-पुस्तक में दी गयी काल्पनिक न्यायिक व्यवस्था में जहाँ न्यायालय पर नेता का नियन्त्रण है तो न्यायाधीश को हमेशा नेता के पक्ष में ही फैसला देना होगा क्योंकि इस स्थिति में न्यायाधीश स्वतन्त्र रूप से फैसले नहीं ले सकते हैं, उन्हें हमेशा अपने पद और तबादले का संकट सताता रहेगा।

नोट– लेकिन भारत में न्यायपालिका को पूरी तरह स्वतन्त्र रखा गया है।

पृष्ठ संख्या # 57

प्रश्न 3. दो वजह बताइए कि लोकतन्त्र के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका अनिवार्य क्यों होती है ?

उत्तर-लोकतन्त्र के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका की अनिवार्यता की वजह-

(1) न्यायपालिका की स्वतन्त्रता अदालतों को भारी ताकत देती है क्योंकि इसके आधार पर वे विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती है।

(2) स्वतन्त्र न्यायपालिका ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में अहम् भूमिका निभाती है क्योंकि अगर किसी को लगता है कि उसके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है और अपने अधिकारों के हनन को बचा सकता है।

प्रश्न 4. निचली अदालत से ऊपरी अदालत तक हमारी न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड जैसी लगती है। ऊपर दिए गए विवरण को पढ़ने के बाद नीचे दिए गये चित्र को भरें।

उत्तर

चित्र 5.1

प्रश्न 5. उपरोक्त मामले को पढ़ने के बाद दो वाक्यों में लिखिए कि अपील की व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर-

(1) अपील वह व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति अपने विरुद्ध निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है तथा अपना वाद प्रस्तुत कर सकता है।

(2) अपील में सुनवाई के बाद पिछले फैसले को पूर्णतः बदला जा सकता है या उसमें कुछ संशोधन भी किया जा सकता

पृष्ठ संख्या # 60

प्रश्न 6. फौजदारी और दीवानी कानून के बारे में आप जो समझते हैं उसके आधार पर इस तालिका को भरें।

उत्तर

पृष्ठ संख्या #63

प्रश्न 7. न्यायाधीशों की कमी से मुकदमा करने वालों को न्याय मिलने में होने वाले प्रभाव की चर्चा करें।

उत्तर – न्यायाधीशों की कमी से मुकदमा करने वालों को न्याय मिलने में होने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं

(1) अपीलकर्ता को अत्यधिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।

(2) न्याय न मिलने पर आरोपियों के हौंसले बुलन्द होते जाते हैं।

(3) न्यायालय के निर्णय का इन्तजार करते-करते पीड़ित पक्ष का अत्यधिक समय बर्बाद हो जाता है।

(4) न्यायाधीशों की कमी से कई मुकदमों को तो सुनवाई की तारीखें भी नहीं मिल पाती है।

पाठान्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. आप पढ़ चुके हैं कि ‘कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना’ न्यायपालिका का एक मुख्य काम होता है। आपकी राय में इस महत्त्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना क्यों जरूरी है।

उत्तर – सरकार का अंग होने के नाते न्यायपालिका भारतीय लोकतन्त्र की व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। यह इस भूमिका को केवल इसलिए निभा पाती है क्योंकि यह स्वतन्त्र है। न्यायपालिका की यह स्वतन्त्रता अदालतों को भारी ताकत देती है। इसके आधार पर वे विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती हैं। स्वतन्त्र न्यायपालिका ही देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाती है।

स्वतन्त्र न्यायपालिका के अभाव में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता खतरे में पड़ जाती है। कार्यपालिका के प्रभाव से केवल स्वतन्त्र न्यायपालिका द्वारा ही बचा जा सकता है। अतः न्यायपालिका के कार्यों को देखते हुये न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना बहुत जरूरी है।

प्रश्न 2. अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है। उसे फिर पढ़ें। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है ?

उत्तर-संवैधानिक उपचार का अधिकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की गारण्टी देता है। यदि किसी नागरिक को लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो वह न्यायालय की शरण में जा सकता है। इस प्रकार न्यायपालिका संसद द्वारा पारित कानूनों की इस आधार पर समीक्षा कर सकती है कि वे नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं करते हैं। अतः स्पष्ट है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के आधार पर जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 3. नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस न्यायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था ? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलाकर देखें।

चित्र 5.2

उत्तर-

(1) निचली अदालत -1980 में सुधा के पति लक्ष्मण, उसकी माँ शकुन्तला और सुधा के जेठ सुभाषचन्द्र को दोषी करार दिया और मौत की सजा सुनाई।

(2) उच्च न्यायालय – 1983 में उच्च न्यायालय ने सुधा की मौत को एक दुर्घटना मानते हुए लक्ष्मण, शकुन्तला व सुभाषचन्द्र को बरी (अपराध मुक्त) कर दिया।

(3) सर्वोच्च न्यायालय -1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने लक्ष्मण व शकुन्तला को दोषी पाया जबकि सुभाषचन्द्र के खिलाफ सबूत न मिलने से आरोपों से बरी कर दिया व दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।

प्रश्न 4 . सुधा गोयल मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िए। जो वक्तव्य सही हैं उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत हैं उनको ठीक कीजिए।

(क) आरोपी इस मामले को उच्च न्यायालय लेकर गए क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे।

(ख) वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ़ उच्च न्यायालय में चले गए।

(ग) अगर आरोपी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से सन्तुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैं।

उत्तर –

(क) सही।

(ख) गलत, वे निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।

(ग) गलत सर्वोच्च न्यायालय देश की सबसे ऊपरी अदालत है, इसके फैसले के खिलाफ निचली अदालत में नहीं जा सकते हैं।

प्रश्न 5. आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इन्साफ दिलाने के लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी?

उत्तर- जनहित याचिका –

(1) सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय तक ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुँच स्थापित करने के लिए प्रयास किया है।

(2) न्यायालय ने किसी भी व्यक्ति या संस्था को ऐसे लोगों की ओर से जनहित याचिका दायर करने का अधिकार दिया है जिनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।

(3) यह याचिका उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है।

(4) सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के नाम भेजे गए पत्र या तार (टेलीग्राम) को भी जनहित याचिका माना जा सकता है।

(5) जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय ने कानूनी प्रक्रिया को बेहद सरल बना दिया है।

अतः ऐसा लगना स्वाभाविक है कि जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी।

प्रश्न 6. ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अंशों को दोबारा पढ़िए। इस फैसले में कहा गया है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जजों का क्या मतलब था ?

उत्तर-ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में जजों का मतलब निम्नलिखित था

(1) जीवन का अधिकार का एक पहलू आजीविका का अधिकार भी है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जीने के साधनों यानी आजीविका के बिना जीवित नहीं रह सकता।

(2) प्रस्तुत मामले में आनुभविक साक्ष्यों से यह सिद्ध हो जाता है कि याचिकाकर्ता झुग्गियों और पटरियों पर रहते हैं क्योंकि वे शहर में छोटे-मोटे काम धंधों में लगे होते हैं और उनके पास रहने की कोई जगह नहीं होती। वे अपने काम करने की जगह के आस-पास किसी पटरी पर या झुग्गियों में रहने लगते हैं। इसलिए अगर उन्हें पटरी या झुग्गियों से हटा दिया जाए तो उनका रोजगार ही खत्म हो जायेगा। इसका निष्कर्ष निकलता है कि याचिकाकर्ता को उजाड़ने से वे अपनी आजीविका से हाथ धो बैठेंगे और इस प्रकार जीवन से भी वंचित हो जाएँगे।

प्रश्न 7. ‘इंसाफ़ में देरी यानी इंसाफ़ का कत्ल’ इस विषय पर एक कहानी बनाइए।

उत्तर-‘इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल’ विषय पर एक कहानी निम्न प्रकार से है

श्रीमान् श्रीनिवास एक सरकारी कर्मचारी थे। सेवानिवृत्ति के पश्चात् उन्होंने पेंशन के कागज सम्बन्धित ऑफिस में जमा कर दिये और उन्हें कुछ समय पश्चात् आने को कहा गया। 15 दिन पश्चात् जब वह पेंशन कार्यालय पहुंचे तो वहाँ कोई अधिकारी उपस्थित न होने की सूचना मिली। इसी तरह उनके छः माह बीत गये और उनकी पेंशन चालू नहीं हुई। उन्होंने इसके लिए न्यायालय में एक याचिका दायर की कि जल्द-से-जल्द सम्बन्धित अधिकारी द्वारा उनकी पेंशन स्वीकृत की जाये जिससे उनकी जीविका चल सके। परन्तु न्यायालय में 4 साल बीतने पर भी उनके केस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई क्योंकि पेंशन सम्बन्धित अधिकारी ने इस केस को प्राथमिकता नहीं दी क्योंकि श्रीनिवास के पास रिश्वत देने के पैसे नहीं थे। न्यायिक प्रक्रिया में भी उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा परन्तु उनके केस पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई। श्रीनिवास दाने-दाने को मोहताज हो गये। 6 साल बाद केस की सुनवाई हुई तब जाकर उनकी पेंशन शुरू हो सकी। 6 साल तक श्रीनिवास ने अपनी जीविका मजदूरी करके चलाई जिससे उन्हें अत्यन्त पीड़ा का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 8. अगले पन्ने (पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 65) पर शब्द संकलन में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइए।

उत्तर – शब्द प्रयोग

(1) बरी करना – राहुल गैस हत्याकांड में बरी हो गया।

(2) अपील करना – आरोपी निचली अदालत के फैसले से असन्तुष्ट होने पर उच्च न्यायालय में अपील कर सकते

(3) मुआवजा – न्यायालय पीड़ित पक्ष को मुआवजा देने का आदेश दे सकता है।

(4) बेदखली – रेलवे स्टेशन के पास झुग्गियों में रहने वालों को अदालत ने वहाँ से बेदखल कर दिया।

(5) उल्लंघन – किसी महिला का उत्पीड़न करना कानून का उल्लंघन है।

प्रश्न 9. यह पोस्टर (पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 65 पर) भोजन अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है।

इस पोस्टर को पढ़ कर भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची बनाइए।

इस पोस्टर में कहा गया है कि “भूखे पेट भरे गोदाम ! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!!” इस वक्तव्य को पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ 61 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबन्ध से मिलाकर देखिए।

उत्तर-भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची निम्नलिखित है

(1) प्रत्येक व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराना।

(2) यह सुनिश्चित करना कि किसी व्यक्ति को भूखा न सोना पड़े।

(3) कुपोषण एवं भूख से किसी की मृत्यु न हो।

(4) भूख की मार सबसे ज्यादा झेलने वाले बेसहारा, बुजुर्ग, विकलांग, विधवा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!! यह व्यक्तव्य पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या 65 पर दिये गए चित्र निबन्ध “भोजन का अधिकार” से सम्बन्धित है। चित्र में हम देखते हैं कि राजस्थान और उड़ीसा में सूखे की वजह से लाखों लोगों के सामने भोजन का भारी अभाव पैदा हो गया था। जबकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे पड़े थे। इस स्थिति को देखते हुए पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पी.यू.सी.एल.) नामक एक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की।

याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद में दिए गए जीवन के मौलिक अधिकारों में भोजन का अधिकार भी शामिल है। राज्य की इस दलील को भी गलत साबित कर दिया गया कि उसके पास संसाधन नहीं हैं क्योंकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे हुए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि वह नए रोजगार पैदा करे। राशन की सरकारी दुकान के जरिए सस्ती दर पर भोजन उपलब्ध कराए और बच्चों को स्कूल में दोपहर का भोजन दिया जाए।

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