म.प्र. बोर्ड कक्षा सातवीं संपूर्ण हल- इतिहास– हमारे अतीत 2 (History: Our Pasts – II)
पाठ 6 : नगर, व्यापारी और शिल्पीजन
प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)
महत्त्वपूर्ण बिन्दु
- मध्ययुगीन नगर प्रशासनिक नगर तथा मन्दिर नगर होने के साथ-साथ वाणिज्यिक कार्यकलापों और शिल्प उत्पादन के केन्द्र भी थे।
- तंजावूर एक मन्दिर नगर का उदाहरण है। वहाँ धीरे-धीरे बड़ी संख्या में पुरोहित, पुजारी, कामगार, शिल्पी,व्यापारी आदि मन्दिर तथा उसके दर्शनार्थियों तथा तीर्थयात्रियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मन्दिर के आस-पास बस गए।
- सत्रहवीं शताब्दी में सूरत भारत का प्रमुख बन्दरगाह था।
- मछलीपट्टनम का किला हॉलैण्डवासियों ने बनवाया था।
- अठारहवीं शताब्दी में बम्बई, कलकत्ता और मद्रास नगरों का उदय हुआ जो आज प्रमुख महानगर हैं।
- पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा अटलांटिक महासागर के साथ-साथ यात्रा करते हुए केप ऑफ गुड होप से निकलकर हिन्द महासागर को पार करके भारत पहुंचा।
महत्त्वपूर्ण शब्दावली
गिल्ड – व्यापारियों का संघ।
हुण्डी – एक ऐसा दस्तावेज जिसमें जमा कराई गई रकम दर्ज (लिखी) होती है।
व्हाइट टाउन्स – भारतीय नगरों में जहाँ अंग्रेज रहा करते थे, उन्हें व्हाइट टाउन्स कहते थे।
ब्लैक टाउन्स – जिन क्षेत्रों में भारतीय रहा करते थे, उन्हें ब्लैक टाउन्स कहते थे।
महत्त्वपूर्ण तिथियाँ
1336 -विजय नगर की स्थापना।
1565 -गोलकुंडा, बीजापुर, अहमद नगर इत्यादि के शासकों द्वारा विजय नगर की पराजय।
1668 -बम्बई में अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मुख्यालय स्थापितं ।
पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर
प्रश्न – आपके मत में लोग तंजावूर को एक महान नगर क्यों मानते थे ?
उत्तर – चोल राजाओं की राजधानी तंजावूर थी। यह बारहमास बहने वाली कावेरी नदी के पास स्थित थी। इस राजधानी में विशाल राजराजेश्वर मन्दिर था। इस मन्दिर के अलावा नगर में अनेक राजमहल थे, सैन्य शिविर भी बने थे। नगर बाजारों की हलचल से भरा हुआ रहता था। यहाँ बहुत सारे लोग रोजगार में लगे हुए थे। इस प्रकार यह अवसरों का एक केन्द्र बन गया था। इन सभी कारणों से तंजावूर को एक महान नगर माना जाता था।
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प्रश्न – आपके विचार से इस प्रविधि के प्रयोग के क्या-क्या लाभ थे?
उत्तर – लुप्तमोम तकनीक के अन्तर्गत मोम की एक प्रतिमा बनाकर उस पर चिकनी मिट्टी से पूरी तरह लीपकर सुखाया जाता था। प्रतिमा सूखने पर उसे गर्म करके उसमें छोटा-सा छेद बनाकर मोम बाहर निकाल लिया जाता था। फिर चिकनी मिट्टी के खाली साँचे में उसी छेद के रास्ते पिघली हुई धातु भर दी जाती थी। जब वह धातु ठण्डी होकर ठोस हो जाती थी तब चिकनी मिट्टी का आवरण हटाकर प्रतिमा को साफ करके चमका दिया जाता था। – यह प्रतिमा बनाने का एक अद्भुत तरीका था, मोम दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता था। इस तकनीक से किसी भी आकार की मूर्ति को शीघ्रता से बनाया जा सकता है। कांस्य मूर्तियाँ ठोस होती थीं और लम्बे समय तक चलती थीं।
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प्रश्न-अपने जिले के नगरों की सूची बनाएँ और उनका प्रशासनिक केन्द्रों, मन्दिरों, नगरों/तीर्थ केन्द्रों के रूप में वर्गीकरण करें।
उत्तर-इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक, अभिभावक की सहायता से स्वयं हल करने का प्रयास करें।
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प्रश्न-आज बाजार पर लगने वाले करों के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें-इन्हें कौन इकट्ठा करता है, वे किस प्रकार वसूल किए जाते हैं और उनका प्रयोग किस काम के लिए होता है ?
उत्तर-आज बाजार में लगने वाले करों में सम्पत्ति कर, वस्तु एवं सेवा कर, विक्रय कर इत्यादि हैं। इन करों को केन्द्र या राज्य सरकार राजस्व विभाग द्वारा वसूलती है। कर विक्रेताओं से वसूल किये जाते हैं। इन करों का प्रयोग प्रशासनिक कार्यों, विकास कार्यों और लोक कल्याणकारी कार्य के लिए किया जाता है।
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प्रश्न-जैसा कि आप समझ सकते हैं, इस काल के दौरान लोगों तथा माल का आना-जाना लगा ही रहता था। आपके विचार से इस आवाजाही का नगरों तथा गाँव के जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा? नगरों में रहने वाले कारीगरों की सूची बनाएँ।
उत्तर-लोगों तथा माल की आवाजाही से लोगों को समस्त वस्तुएँ सही कीमत पर व आसानी से उपलब्ध हो जाती होंगी। सभी को रोजगार उपलब्ध होता होगा जिससे सभी पहले से अधिक व्यस्त होंगे। उनकी आय व जीवन-स्तर में सुधार आया होगा।
नगरों में रहने वाले कारीगरों में मुख्यत: लोहार, सुनार, काष्ठ, नक्काश, बुनकर, मूर्तिकार, धातु कर्मी, माली इत्यादि
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प्रश्न-आपके विचार से यही नगर किलेबन्द क्यों था ?
उत्तर -हम्पी नगर विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। हम्पी कई वाणिज्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से समृद्धशाली थी। हम्पी के बाजार में मुस्लिम सौदागरों, चेट्टियों और पुर्तगालियों जैसे यूरोपीय व्यापारियों के एजेण्टों का जमघट लगा रहता था। सुरक्षा की दृष्टि से इस नगर को किलेबन्द किया गया था जिससे कि वह बाहरी आक्रमण से सुरक्षित रह सके।
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प्रश्न – अंग्रेजों और हॉलैण्डवासियों ने मसूलीपट्टनम में अपनी बस्तियाँ बसाने का निर्णय क्यों लिया ?
उत्तर – मसूलीपट्टनम नगर कृष्णा नदी के डेल्टा पर स्थित है। सत्रहवीं शताब्दी में यह भिन्न-भिन्न प्रकार की गतिविधियों का नगर था। धीरे-धीरे व्यापारी लोग भी यहाँ रहने लगे। व्यापारी लोगों का दूसरे देशों से व्यापार होता रहता था। यहाँ पर इंग्लैण्ड तथा हॉलैण्ड के निवासी आते-जाते रहते थे। हॉलैण्ड और इंग्लैण्ड दोनों देशों की ईस्ट कम्पनियाँ मसूलीपट्टनम पर अपना नियन्त्रण करना चाहती थीं, इसलिए अंग्रेजों और हॉलैण्डवासियों ने मसूलीपट्टनम में धीरे-धीरे अपनी बस्तियाँ बसाने का निर्णय लिया।
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कल्पना करें
प्रश्न – आप सत्रहवीं शताब्दी में सूरत से पश्चिमी एशिया की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं। इस सम्बन्ध में आप कैसी तैयारियाँ करेंगे?
उत्तर – यदि मैं सत्रहवीं शताब्दी में सूरत से पश्चिमी एशिया की यात्रा करने की योजना बनाऊँगा तो मैं निम्नलिखित तैयारियाँ करूँगा
(i) मैं अपनी यात्रा आरम्भ करने के पहले जहाज का टिकट खरीदूंगा।
(ii) मैं थोड़ा धन भी अपने साथ ले जाऊँगा।
(iii) इस यात्रा में रास्ते में कुछ व्यवसाय करने के लिए सोच सकता हूँ।
फिर से याद करें
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) राजराजेश्वर मन्दिर ………… में बनाया गया था।
(ख) अजमेर सूफी सन्त …………’ से सम्बन्धित है।
(ग) हम्पी …………. साम्राज्य की राजधानी थी।
(घ) हॉलैण्डवासियों ने आन्ध्र प्रदेश में …………….. पर अपनी बस्ती बसाई।
उत्तर – (क) ग्यारहवीं सदी में, (ख) ख्वाजा मुइनुउद्दीन चिश्ती, (ग) विजयनगर, (घ) मसूलीपट्टनम ।
प्रश्न 2. बताएँ क्या सही है और क्या गलत
(क) हम राजराजेश्वर मन्दिर के मूर्तिकार (स्थपति) का नाम एक शिलालेख से जानते हैं।
(ख) सौदागर लोग काफिलों में यात्रा करने की बजाय अकेले यात्रा करना अधिक पसन्द करते थे।
(ग) काबुल हाथियों के व्यापार का मुख्य केन्द्र था।
(घ) सूरत बंगाल की खाड़ी पर स्थित एक महत्वपूर्ण व्यापारिक पत्तन था।
उत्तर-(क) सही, (ख) गलत, (ग) गलत, (घ) गलत।
प्रश्न 3. तंजावूर नगर को जल की आपूर्ति कैसे की जाती थी?
उत्तर – तंजावूर नगर बारहों महीने बहने वाली कावेरी नदी के तट पर बसा था। इस नदी से सारे शहर में जल की आपूर्ति की जाती थी। साथ ही नगर में कई कुएँ, तालाब इत्यादि भी थे जो जल आपूर्ति में मदद करते थे।
प्रश्न 4. मद्रास जैसे बड़े नगरों में स्थित ‘ब्लैक टाउन्स’ में कौन रहता था ?
उत्तर – मद्रास जैसे बड़े नगरों में स्थित ‘ब्लैक टाउन्स’ में व्यापारी, शिल्पकार, औद्योगिक मजदूर एवं अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूर रहा करते थे।
आइए समझें
प्रश्न 5. आपके विचार से मन्दिरों के आस-पास नगर क्यों विकसित हुए?
उत्तर –
(1) मन्दिर नगर नगरीकरण का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतिरूप प्रस्तुत करते हैं। मन्दिर समाज और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए ही अत्यन्त महत्वपूर्ण होते थे।
(2) शासक मन्दिरों को भूमि एवं धन अनुदान में देते थे जिनकी आय से धार्मिक अनुष्ठान, विधि-विधान से सम्पन्न किये जाते थे।
(3) मन्दिर के दर्शनार्थी भी दान-दक्षिणा दिया करते थे।
(4) मन्दिर के कर्ता-धर्ता मन्दिर के धन को व्यापार एवं साहूकारी में लगाते थे।
(5) धीरे-धीरे समय के साथ बड़ी संख्या में पुरोहित-पुजारी, कामगार, शिल्पी, व्यापारी आदि मन्दिर तथा उसके दर्शनार्थियों एवं तीर्थयात्रियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मन्दिर के आस-पास बसते गए। इस प्रकार मन्दिर नगरों का विकास हुआ।
प्रश्न 6. मन्दिरों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के लिए शिल्पीजन कितने महत्वपूर्ण थे ?
उत्तर – मन्दिरों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के लिए शिल्पीजन अत्यन्त महत्वपूर्ण थे। वे निम्नलिखित कार्य किया करते थे
(1) बीदर के शिल्पकार ताँबे तथा चाँदी में जड़ाई के काम के लिए इतने अधिक प्रसिद्ध थे कि इस शिल्प का नाम ही ‘बीदरी’ पड़ गया।
(2) पांचाल अर्थात् विश्वकर्मा समुदाय जिसमें सुनार, कसेरे, लोहार, राजमिस्त्री और बढ़ई शामिल थे, मन्दिरों के निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक थे।
(3) शिल्पीजन मन्दिरों के अलावा बड़े-बड़े राजमहल, तालाबों और जलाशयों के निर्माण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे।
(4) सालियार या कैक्कोलार बुनकर भी मन्दिरों को दान-दक्षिणा देते थे।
प्रश्न 7. लोग दूर-दूर के देशों-प्रदेशों से सूरत क्यों आते थे?
उत्तर-सूरत नगर में लोगों के दूर-दूर प्रदेशों से आने के निम्नलिखित कारण थे
(1) सूरत भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट का मध्ययुगीन सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाह था।
(2) सूरत से पश्चिमी एशिया के देशों से व्यापार होता था।
(3) सूरत को मक्का का प्रस्थान द्वार भी कहा जाता था।
(4) सूरत एक सर्वदेशीय नगर था जहाँ सभी जातियों और धर्मों के लोग रहते थे।
(5) सत्रहवीं शताब्दी में वहाँ पुर्तगालियों, डचों और अंग्रेजों के कारखाने एवं मालगोदाम थे।
(6) किसी एक वक्त पर भिन्न-भिन्न देशों के औसतन एक सौ जहाज इस बन्दरगाह पर लंगर डाले खड़े देखे जा सकते थे।
(7) सूरत के वस्त्र अपने सुनहरे गोटा-किनारियों के लिए प्रसिद्ध थे। जिसके लिए पश्चिम एशिया, अफ्रीका और यूरोप में बाजार उपलब्ध थे।
(8) यहाँ अनेक विश्रामगृह, भव्य भवन और असंख्य मनोरंजक स्थल थे।
(9) सूरत में काठियावाड़ी सेठों तथा महाजनों की बड़ी-बड़ी साहूकारी कम्पनियाँ थीं।
(10) सूरत से जारी हुण्डियों को दूर-दूर के बाजारों में मान्यता प्राप्त थी।
प्रश्न 8. कलकत्ता जैसे नगरों में शिल्प उत्पादन तंजावूर जैसे नगरों के शिल्प उत्पादन से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर- कलकत्ता तथा तंजावूर में शिल्प उत्पादन में काफी भिन्नता थी
आइए विचार करें
प्रश्न 9. इस अध्याय में वर्णित किसी एक नगर की तुलना आप, अपने परिचित किसी कस्बे या गाँव से करें। क्या दोनों के बीच कोई समानता या अन्तर है ?
उत्तर-सूरत नगर और टेकारी (कस्बा) की तुलना सूरत
प्रश्न 10. सौदागरों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था ? आपके विचार से क्या वैसी कुछ समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं ?
उत्तर – सौदागरों के सामने निम्नलिखित समस्याएँ थीं
(1) व्यापारियों को अनेक रास्तों से गुजरना पड़ता था जो कई – बार जोखिमों से भरे भी होते थे। इसलिए वे आमतौर पर काफिले बनाकर एक साथ यात्रा करते थे।
(2) सौदागर अपने हितों की रक्षा के लिए व्यापार संघ बनाते थे।
(3) प्राचीन काल में आवागमन के साधन न होने के कारण । उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता था।
(4) सौदागरों को बहुत सारे कर चुकाने पड़ते थे।
(5) उन्हें कहीं-कहीं एजेण्टों के रूप में भी काम करना पड़ता था। न आइए करके देखें
प्रश्न 11. तंजावूर या हम्पी के वास्तुशिल्प के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें और इन नगरों के मन्दिरों तथा अन्य भवनों के चित्रों की सहायता से एक स्क्रेपबुक गार करें।
उत्तर-हम्पी-हम्पी की वास्तुकला विशिष्ट प्रकार की थी। वहाँ के शाही भवनों में भव्य मेहराब और गुम्बद थे। वहाँ स्तम्भों वाले कई विशाल कक्ष थे, जिनमें मूर्तियों को रखने के लिए आले बने हुए थे। वहाँ सुनियोजित बाग-बगीचे भी थे जिनमें कमल और टोड़ों की आकृति वाले मूर्तिकला के नमूने थे।
नोट – नगरों के मन्दिरों तथा अन्य भवनों के चित्रों की एक स्क्रप बुक विद्यार्थी स्वयं तैयार करें।
प्रश्न 12. किसी वर्तमान तीर्थस्थान का पता लगाएँ। बताएँ कि लोग वहाँ क्यों जाते हैं ? वहाँ क्या करते हैं, क्या उस केन्द्र के आस-पास दुकानें हैं और वहाँ क्या खरीदा और बेचा जाता है ?
उत्तर –
वैष्णो देवी तीर्थ स्थान – आज वर्तमान में अधिकांश वर्गों के तथा सभी उम्र के लोग माता वैष्णो देवी तीर्थ स्थल पर जाते हैं। वहाँ मन्दिर में श्रद्धा के साथ दर्शन करते हैं। आस-पास के सभी दर्शनीय स्थलों को देखते हैं। इन तीर्थ केन्द्रों में व्यापारियों की बहुत-सी दुकानें होती हैं। प्रसाद के अलावा इन दुकानों पर वहाँ की प्रचलित वस्तुएँ एवं अन्य उत्पाद भी बेचे जाते हैं।