MP Board Class 7 Social Science Civics Chapter 4 : लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना

म.प्र. बोर्ड कक्षा सातवीं संपूर्ण हल- नागरिकशास्त्र – सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन 2 (Civics: Social & Political Life – II )

इकाई 3 : लिंग बोध-जेण्डर

पाठ 4 : लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना

प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)

महत्त्वपूर्ण बिन्दु

  • समोआ द्वीप प्रशान्त महासागर के दक्षिण में स्थित छोटे-छोटे द्वीपों के समूह का ही एक भाग है।
  • सामोअन समाज पर किए गए अनुसन्धान की रिपोर्ट के अनुसार 1920 के दशक में बच्चे स्कूल नहीं जाते थे।
  • वे बड़े बच्चों और वयस्कों से बहुत-सी बातें सीखते थे।
  • 1960 में मध्य प्रदेश के लड़कियों के स्कूल, लड़कों के स्कूल से बिल्कुल अलग ढंग से बनाए जाते थे।
  • सारी दुनिया में घर के काम की मुख्य जिम्मेदारी स्त्रियों की ही होती है; जैसे-बच्चों की देखभाल, खाना बनाना, कपड़े धोना व अन्य घरेलू कार्य एवं परिवार का ध्यान रखना इत्यादि।
  • परन्तु घर के अन्दर किये जाने वाले कार्य को महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता। समानता हमारे संविधान का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।
  • संविधान स्त्री या पुरुष होने के आधार पर भेदभाव नहीं करता।
  • शासन के कानून के अनुसार यदि किसी संस्था में महिला कर्मचारियों की संख्या 30 से अधिक है तो उसे वैधानिक रूप से बालवाड़ी (क्रेश) की सुविधा देनी होगी।

महत्त्वपूर्ण शब्दावली

अस्मिता – यह एक प्रकार से स्वयं के होने यानि अपने अस्तित्व के प्रति जागरूकता का भाव है।

अवमूलियत – जब कोई अपने काम के लिए अपेक्षित मान्यता या स्वीकृति नहीं पाता है, तब वह स्वयं को अवमूल्यित महसूस करता है।

प्रश्न 1. आपके बड़े होने के अनुभव सामोआ के बच्चों और किशोरों के अनुभव से किस प्रकार भिन्न हैं ? इन अनुभवों में वर्णित क्या कोई ऐसी बात है, जिसे आप अपने बड़े होने के अनुभव से शामिल करना चाहेंगे ?

उत्तर – जब हम छोटे थे तो हमारी देखभाल हमारे माता-पिता और घर के अन्य सदस्य; जैसे दादा-दादी, बुआ, चाचा इत्यादि करते थे और 5 साल के बाद हम प्रतिदिन स्कूल जाते थे। शाम को सभी बच्चे पार्क में, मैदान में, घर में खेलते थे, लेकिन सामोआ द्वीप के बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। वे बड़े बच्चों और वयस्कों से बहुत-सी बातें सीखते थे; जैसे छोटे बच्चों की देखभाल, घर का काम इत्यादि। छोटे बच्चे जैसे ही चलना शुरू कर देते थे उनकी माताएँ या बड़े लोग उनकी देखभाल करना बन्द कर देते थे। लड़के और लड़कियाँ दोनों अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करते थे। नौ वर्ष का बालक बड़े लड़कों के समूह में सम्मिलित हो जाता था और बाहर के काम सीखता था। लड़कियाँ लगभग 14 वर्ष की उम्र के बाद बाहर के काम करती थीं; जैसे-मछलियाँ पकड़ना, डलिया बुनना इत्यादि। लड़के भोजन पकाने का कार्य करते थे जिसमें लड़कियाँ उनकी मदद करती थीं। हमारे बड़े होने के अनुभव में हमारे ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं थी लेकिन समोआ द्वीप के बच्चों पर छोटी उम्र से ही अपने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी थी।

प्रश्न 2. लड़कियाँ स्कूल जाते हुए समूह बनाकर चलना क्यों पसन्द करती हैं ?

उत्तर– लड़कियाँ स्कूल जाते हुए समूह बनाकर चलना इसलिए पसन्द करती हैं क्योंकि उनके मन में एक अनजाना डर-सा बना रहता है। उन्हें लगता है कि वह अगर अकेले स्कूल जायेंगी तो उन पर कोई हमला कर देगा। इसलिए अधिकांशतः वह समूह बनाकर चलने में अपने आपको सुरक्षित महसूस करती हैं

पृष्ठ संख्या # 46

प्रश्न 1. अपने पड़ोस की किसी गली या पार्क का चित्र बनाइए। उसमें छोटे लड़के व लड़कियों द्वारा की जा सकने वाली विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को दर्शाइए। यह कार्य आप अकेले या समूह में भी कर सकते हैं।

उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2. आपके द्वारा बनाए गए चित्र में क्या उतनी ही लड़कियाँ हैं जितने लड़के ? सम्भव है कि आपने लड़कियों की संख्या कम बनाई होगी। क्या आप वे कारण बता सकते हैं जिनकी वजह से आपके पड़ोस में, सड़क पर, पार्कों और बाजारों में देर शाम या रात के समय स्त्रियाँ तथा लड़कियाँ कम दिखाई देती हैं ?

उत्तर – अधिकांशतः किसी गली, पार्क, बाजार इत्यादि में लडकियों और महिलाओं की संख्या कम ही दिखती है और शाम या रात को तो ये संख्या और भी कम हो जाती है, क्योंकि लड़कियाँ या महिलायें घर के काम में दिन भर व्यस्त रहती हैं। उन्हें बाहर जाने का समय ही नहीं मिलता और वे स्वयं को बाहर असुरक्षित भी महसूस करती हैं। इसलिए बाजारों में देर शाम या रात में स्त्रियाँ तथा लड़कियाँ कम दिखाई देती हैं।

प्रश्न 3. क्या लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग कामों में लगे हैं ? क्या आप विचार करके इसका कारण बता सकते हैं ? यदि आप लड़के और लड़कियों का स्थान परस्पर बदल देंगे, अर्थात् लड़कियों के स्थान पर लड़कों और लड़कों के स्थान पर लड़कियों को रखेंगे, तो क्या होगा?

उत्तर – (1) भारतीय संस्कृति में लड़कियों को घर के काम का जिम्मा सौंपा जाता है, जबकि घर के बाहर के कामों की जिम्मेदारी लड़कों को दी गयी है।

(2) विभिन्न व्यवसायों; जैसे-ड्राइवर, सेना, पुलिस इत्यादि में लड़कों की बहुलता है, जबकि शिक्षा के क्षेत्र में, नर्स, प्रबन्धन इत्यादि में लड़कियों की संख्या बढ़ती जा रही है। यदि हम लड़कियों के स्थान पर लड़कों को और लड़कों के स्थान पर लड़कियों को रखेंगे तो कई दिक्कतें हो सकती हैं; जैसे कुछ काम लड़कियों द्वारा ही सही तरीके से किया जाता है तो कई काम लड़के सही तरीके से करते हैं। इसलिए लड़के-लड़कियाँ अपने अनुकूल व्यवसाय को चुनते हैं। ऐसी स्थिति में अगर हम परिवर्तन करते हैं तो काम करने में थोड़ी कठिनाई अवश्य आयेगी लेकिन कोशिश करने पर दोनों ही एक-दूसरे के काम को कर सकेंगे।

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प्रश्न 1. क्या हरमीत और सोनाली का यह कहना सही था कि हरमीत की माँ काम नहीं करती?

उत्तर – हरमीत और सोनाली का यह कहना सही नहीं था कि हरमीत की माँ काम नहीं करती। हरमीत की माँ घर का सारा काम करती थी। वह सिर्फ बाहर काम करके पैसा नहीं कमा पाती थी। लेकिन पूरे घर के काम को ठीक तरह से उसकी माँ ही करती थी। क्योंकि हरमीत की माँ के हड़ताल पर चले जाने से पूरे घर का काम अस्त-व्यस्त हो गया था।

प्रश्न 2. आप क्या सोचते हैं, अगर आपकी माँ या वे लोग, जो घर के काम में लगे हैं, एक दिन के लिए हड़ताल पर चले जाएँ तो क्या होगा?

उत्तर – अगर हमारी या आपकी माँ या वे लोग, जो घर के काम में लगे हैं, एक दिन हड़ताल पर चले जायें तो पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जायेगा। घर में चारों तरफ गन्दगी नजर आयेगी और कई सारे काम; जैसे-खाना पकाना, कपड़े धोना, बुजुर्गों की देखभाल, बच्चों की पढ़ाई इत्यादि ठप्प पड़ जायेंगे और घर का प्रत्येक सदस्य चिड़चिड़ा हो जायेगा।

प्रश्न 3. आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि सामान्यतया पुरुष या लड़के घर का काम नहीं करते ? आपके विचार में क्या उन्हें घर का काम करना चाहिए ?

उत्तर – भारतीय समाज में अधिकांशतः परिवारों में लड़कियाँ और महिलाएँ ही घर का काम करती हैं और उनसे बचपन से ही घर के काम समझाए और कराये जाते हैं। घर के पुरुष या लड़कों को घर के काम करने की शिक्षा नहीं दी जाती। इसलिए सामान्यतया पुरुष या लड़के घर का काम नहीं करते। लेकिन हमारे विचार से पुरुषों और लड़कों को घर का काम करना चाहिए जिससे जब महिलाएँ बीमार पड़ जायें या घर से कहीं बाहर चली जायें तो घर की व्यवस्था न बिगड़े और जिस तरह से स्त्रियाँ या लड़कियाँ पुरुषों या लड़कों के समान ही बाहर | के सारे काम कर लेती हैं, उसी तरह पुरुषों और लड़कों को भी  उनके घरेलू काम में सहयोग करना चाहिए जिससे हमारा परिवार खुशहाल होगा।

प्रश्न 1. निम्न तालिका में भारत के केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा किए गए विशेष अध्ययन के कुछ आँकड़े हैं (1998-99)। देखिए, क्या आप रिक्त स्थानों को भर सकते हैं ?

उत्तर

प्रश्न 2. हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में स्त्रियाँ प्रति सप्ताह कुल कितने घण्टे काम करती हैं ?

उत्तर – हरियाणा में स्त्रियों द्वारा प्रति सप्ताह किए जाने वाले काम के कुल घंटे = 23 + 30 = 53 घंटे।

तमिलनाडु में स्त्रियों द्वारा प्रति सप्ताह किये जाने वाले काम के कुल घंटे = 19 + 35 = 54 घंटे।

प्रश्न 3. इस सम्बन्ध में स्त्रियों और पुरुषों में कितना फर्क दिखाई देता है ?

उत्तर

हरियाणा में पुरुष स्त्रियों से 13 घंटे कम काम करते हैं। । तमिलनाडु में पुरुष स्त्रियों से 10 घंटे कम काम करते हैं।

प्रश्न 1. आप क्या सोचते हैं, यह पोस्टर क्या कहने की कोशिश कर रहा है ?

उत्तर – पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 52 पर दिखाया गया पोस्टर यह कहने की कोशिश कर रहा है कि उन्हें भी उनके मौलिक अधिकार मिलने चाहिए।

प्रश्न 2. यह पोस्टर बंगाल की महिलाओं के एक समूह ने बनाया है क्या इसे आधार बनाकर आप कोई अच्छा-सा नारा तैयार कर सकते हैं?

उत्तर – पोस्टर के आधार पर नारा ” कभी माँ तो कभी बहन बनकर दुलारती है। महिला न जाने कितने जीवन संवारती है।”

प्रश्न 1. साथ में दिए गए कुछ कथनों पर विचार कीजिए और बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य ? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण भी दीजिए।

(क) सभी समुदाय और समाजों में लड़कों और लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में एक जैसे विचार नहीं पाए जाते।

(ख) हमारा समाज बढ़ते हुए लड़कों और लड़कियों में कोई भेद नहीं करता।

(ग) वे महिलाएँ जो घर पर रहती हैं कोई काम नहीं करतीं।

(घ) महिलाओं के काम, पुरुषों के काम की तुलना में कम मूल्यवान समझे जाते हैं।

उत्तर

(क) यह कथन सत्य है, क्योंकि जिन समुदाय या समाजों में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम होती है या जो समाज रूढ़िवादी परम्परा से जकड़ा हुआ है, वहाँ लड़कियों को आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने और घर के बाहर ऑफिस में कार्य करने की मनाही है। वहीं दूसरे समाजों में न केवल वे आधुनिक शिक्षा पा सकती हैं, बल्कि अपनी इच्छा से नौकरी भी कर सकती हैं। अत: कई समाजों में लड़कों और लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में एक जैसे विचार नहीं पाए जाते।

(ख) यह कथन असत्य है, क्योंकि हमारा समाज बचपन से ही लड़कों और लड़कियों में भेद करता आया है। दोनों की परवरिश व पोषण में बहुत अन्तर किया जाता है। शिक्षा, खेल, व्यवहार आदि सभी में अन्तर किया जाता है।

(ग) ये कथन भी असत्य है, जो महिलाएँ घर पर रहती हैं, वे घर के समस्त काम; जैसे-खाना पकाना, साफ-सफाई, बच्चों व बुजुर्गों की देखभाल, कपड़े धोना इत्यादि करती हैं। वह वास्तव में पुरुषों से अधिक घंटे कार्य करती हैं।

(घ) यह कथन सही है, क्योंकि महिलाएँ जो घर में काम करती हैं, उसे पैसों में नहीं आंका जाता और न ही इन कामों से आय की प्राप्ति होती है। इसी तरह वे घर के बाहर कार्यालय में भी परिचारिका, व्यक्तिगत सहायक, जन सम्पर्क, कम्प्यूटर से सम्बन्धित काम करती हैं, किन्तु उनके काम को कमतर आँका जाता है।

प्रश्न 2. घर का काम अदृश्य होता है और इसका कोई मूल्य नहीं चुकाया जाता।

घर के काम शारीरिक रूप से थकाने वाले होते हैं। घर के कामों में बहुत समय खप जाता है।

अपने शब्दों में लिखिए कि ‘अदृश्य होने’ ‘शारीरिक रूप से थकाने’ और ‘समय खप जाने’ जैसे वाक्यांशों से आप क्या समझते हैं ? अपने घर की महिलाओं के काम के आधार पर हर बात को एक उदाहरण से समझाइए।

उत्तर –

(1) अदृश्य होना  -घर के काम अदृश्य होने से तात्पर्य है कि कई ऐसे छोटे-छोटे काम जिन्हें महिलाएँ प्रतिदिन करती हैं; जैसे-छोटे बच्चों की देखभाल करना, उन पर निगरानी रखना, आने वाले मेहमानों का स्वागत करना. बार-बार घर व्यवस्थित करना इत्यादि। इस प्रकार के कार्य दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए इन्हें अदृश्य कहा जाता है।

(2) शारीरिक रूप से थकाने वाले – घरेलू कार्य; जैसे-घर की सफाई, खाना बनाना, खाना परोसना, कपड़े धोना, प्रेस करना इत्यादि कार्यों में अत्यधिक श्रम की खपत होती है। यह शरीर को थकाने वाले कार्य होते हैं।

(3) समय खपाने वाले -समय खप जाने से अभिप्राय है कि घर में छोटे-छोटे इतने अधिक काम होते हैं जिन्हें करने में दिन का अधिकांश समय चला जाता है; जैसे-कपड़े सुखाना, कपड़े तह करना, मेहमानों के स्वागत हेतु चाय-नाश्ता तैयार करना, बच्चों को नहलाना, सुलाना, खाना खिलाना इत्यादि। इनको करने में काफी समय जाता है। इन्हें करते-करते महिलाओं का काफी समय खप जाता है।

प्रश्न 3. ऐसे विशेष खिलौनों की सूची बनाइए, जिनसे लड़के खेलते हैं और ऐसे विशेष खिलौनों की भी सूची बनाइए, जिनसे केवल लड़कियाँ खेलती हैं। यदि दोनों सूचियों में कुछ अन्तर है, तो सोचिए और बताइए कि ऐसा क्यों है ? सोचिए कि क्या इसका कुछ सम्बन्ध इस बात से है कि आगे चलकर वयस्क के रूप में बच्चों को क्या भूमिका निभानी होगी?

उत्तर – खिलौनों की सूची खिलौने

खिलौनों की सूचियों में अन्तर – लड़कों को प्रायः ऐसे खिलौने दिये जाते हैं जिनसे उनमें कठोरता, बहादुरी का बोध होता हो। जब वह युवावस्था में पहुँचे तो वे उन्हीं कार्यों को करना पसन्द करें जो बचपन में खिलौने के रूप में खेलते थे जैसे-सेना में भर्ती होना, पुलिस अफसर बनना, ड्राइवर बनना इत्यादि। दूसरी तरफ लड़कियों के खिलौनों में कोमलता, मृदुलता आदि का बोध होता है, क्योंकि लड़कियाँ युवावस्था में किसी भी कार्य को करने के साथ-साथ घरेल जिम्मेदारी निभाती हैं।

प्रश्न 4. अगर आपके घर में या आस-पास, घर के कामों में मदद करने वाली कोई महिला है तो उनसे बात कीजिए और उनके बारे में थोड़ा और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके घर में और कौन-कौन हैं ? वे क्या करते हैं? उनका घर कहाँ है ? वे रोज कितने घंटे तक काम करती हैं? वे कितना कमा लेती हैं ? इन सारे विवरणों को शामिल कर, एक छोटी-सी कहानी लिखिए।

उत्तर-हमारे घर के आस-पास हीरा नाम की एक महिला है। उससे बात करने पर पता चला कि उसके घर में उसकी दो लड़कियाँ, उसकी सास, एक छोटी ननद और पति है। वे एक कॉलोनी के पीछे बने नाले के पास झोंपड़-पट्टी बनाकर रहती हैं। हीरा और उसकी सास प्रतिदिन 13 या 14 घंटे काम करती हैं। उसकी लड़कियाँ घर के कामों में अपनी माँ व दादी की मदद करती हैं। उसका पति रिक्शा चलाता है। उसे जब कभी काम नहीं मिलता तो वह शराब पीकर हीरा और अपनी माँ से गाली-गलौज भी करता है। हीरा की सास 2500 रुपये तथा हीरा 3500 रुपये प्रतिमाह कमा लेती हैं। उसी से वह अपने परिवार का पालन-पोषण करती है। उसकी लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती। हीरा जहाँ काम करती है वहाँ के मालिक-मालकिन बहुत सख्त हैं। जरा-सा काम पर लेट होने पर उसे बहुत बुरा-भला कहते हैं।

ये सब काम वह अपने परिवार की सहायता के लिए करती हैं।

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