MP Board Class 6th Hindi nibandh निबन्ध लेखन

Class 6 Hindi Nibandh

मेरा प्रिय नेता या महापुरुष
(महात्मा गाँधी)

गाँधीजी युग पुरुष थे। भारत जब विदेशियों की गुलामी में सिसक-सिसक कर दम तोड़ रहा था, तब इस महापुरुष ने भारत की धरती पर अवतार लेकर भारतीयों को जीवन की एक नई आशा -किरण दिखलाई थी। उन्होंने सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर अपने देश को स्वतन्त्र कराया था।

गाँधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. में काठियावाड़ जिले के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। गाँधीजी की माता का नाम पुतली बाई था। वे बहुत ही धार्मिक विचारों की महिला थीं। गाँधीजी के पिता राजकोट में दीवान के पद पर कार्य करते थे। गाँधीजी का विवाह बचपन में ही कस्तूरबा गाँधी से हो गया था। कस्तूरबा गाँधी अत्यन्त सहज और सरल जीवन गुजारती थीं। गाँधीजी ने अपने बचपन की पढ़ाई भारत में पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा लन्दन से प्राप्त की। गाँधीजी के हृदय में देश प्रेम और देश सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। वे शान्तिपूर्ण तरीके से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे। उन्होंने स्वयं को देश-सेवा तथा देश को स्वतन्त्र कराने के लिए समर्पित कर दिया।

अंग्रेजों के विरुद्ध उन्होंने असहयोग आन्दोलन छेड़ा। उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने डाँडी यात्रा निकाली और नमक-कानून को तोड़ने के लिए आन्दोलन चलाया। गाँधीजी ने देश के सभी नागरिकों को सदैव एकसमान समझा और सबके साथ मिलकर उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लक्ष्य को पूरा किया।

एक सभा में प्रार्थना करते समय 30 जनवरी, 1948 ई. को नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति द्वारा गोली मार दिये जाने से उन्होंने अपनी सांसारिक यात्रा को विराम दिया और परलोक सिधार गये।

आज गाँधीजी अपने भौतिक शरीर से भले ही हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनका नाम सदैव अमर रहेगा। उनके महान् त्याग और संकल्प को भुलाया नहीं जा सकता। विश्व उन्हें एक युग पुरुष के रूप में युग-युग तक याद करता रहेगा।

कोई त्यौहार (होली)

हिन्दुओं द्वारा अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं। ‘होली’ का त्यौहार उनमें महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार मार्च महीने में मनाया जाता है। यह त्यौहार हिन्दी महीना फाल्गुन की पूर्णमासी को मनाया जाता है।

यह कहा जाता है कि प्रहलाद ईश्वर का बड़ा भक्त था। उसके पिता हिरण्यकश्यप थे। वे घमण्डी और स्वयं को ही ईश्वर मानते थे। वह चाहता था कि प्रहलाद उसी की पूजा किया करे। जब प्रहलाद सहमत नहीं हुए, तो हिरण्यकश्यप ने उसे मारना चाहा, लेकिन प्रहलाद किसी भी तरह नहीं मर सका। अन्त में उसने अपनी बहन ‘होलिका’ की सहायता ली। वह अग्नि में नहीं जल सकती थी। वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। वह जल गई। लेकिन प्रहलाद सुरक्षित बाहर निकल आया। इसी घटना की स्मृति में ‘होली’ मनाई जाती है।

हर मुहल्ले या गाँव में लड़के बहुत-सी लकड़ी और गोबर के कंडे एकत्र करते हैं और उसमें आग लगा देते हैं। लोग इसकी परिक्रमा करते हैं और होली के गीत गाते हैं। दूसरे दिन होली का वास्तविक उत्सव शुरू होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने पुराने कपड़े पहन लेता है। लोग अपने मित्रों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं। वे आपस में गले मिलते हैं और चेहरे पर गुलाल लगाते हैं। रंगीन पानी उन पर फेंकते हैं। उन्हें मिठाई देते हैं और पान भी खिलाते हैं। वे फिर होली के गीत भी गाते हैं। यह सब दोपहर तक होता रहता है।

वास्तव में यह त्यौहार बसन्त ऋतु का उत्सव है। किसानों की फसल पक जाती है, उसकी खुशी में वे इस त्यौहार को मनाते हैं।

इस दिन लोग अपनी पुरानी दुश्मनी भूल जाते हैं और फिर से मित्र बन जाते हैं। कुछ लोग गन्दा पानी और कीचड़ फेंकते हैं। कुछ लोग इस दिन शराब पीते हैं।

होली का त्यौहार बहुत अच्छा होता है यदि इसे ठीक तरह से मनाया जाये।

विज्ञान वरदान या अभिशाप

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। नित्य नये आविष्कार हो रहे हैं, नये-नये उपकरण बनाये जा रहे हैं। यह सब विज्ञान के द्वारा ही हो रहा है। विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान या सूक्ष्म ज्ञान। वह ज्ञान जो किसी वस्तु की गहराई तक जाता है और उसकी बारीक से बारीक बात की जानकारी कराता है, विज्ञान कहलाता है। विज्ञान केवल जानकारी ही नहीं देता है अपितु नित्य नये-नये आविष्कार भी करता है। नये-नये प्रयोग करता है और फिर उन्हें मनुष्य की सुख-सुविधा के लिए प्रस्तुत करता है। विज्ञान मनुष्य के लिये चमत्कार बनकर आया है।

रेल, बस, हवाई जहाज, रेडियो, ट्रांजिस्टर तो आज पुरानी बातें हो गई हैं। यद्यपि ये हैं सब विज्ञान के ही. आविष्कार। किन्तु आज के समय पर विज्ञान अपनी चरम उन्नति पर है। कम्प्यूटर, दूरदर्शन, दूरभाष आदि सैकड़ों हजारों मील दूर की जानकारी पल भर में दे देते हैं। इन्टरनेट विश्व के बड़े से बड़े बाजार, पुस्तकालय आदि का घर बैठे दर्शन करा देता है। विज्ञान ने इतनी बड़ी दुनिया को एक दायरे में समेट दिया है। इसलिये सात समुन्दर पार की घटनाएँ अनजानी नहीं रह गई हैं। रॉकेट आदि उपग्रहों ने चन्द्रमा और मंगल आदि ग्रहों को भी मनुष्य की सीमा में पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी समस्याएँ, आवश्यकताएँ, व्यापार, नौकरी आदि सब कम्प्यूटर, इन्टरनेट की सहायता से पल भर में ही हल हो जाती हैं।

इस प्रकार जहाँ विज्ञान ने हमें बिजली, मशीनें, वाहन, आदि अनेक प्रकार के सुख साधन दिये हैं वहीं उसने अणुबम, मिसाइलें आदि बनाकर देश को शत्रुओं से सुरक्षित कर दिया है।

विज्ञान का सबसे बड़ा दुष्परिणाम आज परमाणु बम के रूप में निर्मित हो चुका है। द्वितीय महायुद्ध में यह परमाणु बम जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों को पूरा का पूरा निगल चुका है। भविष्य में भी यदि इसका उपयोग किया गया तो यह सम्पूर्ण मानवता के लिये अत्यन्त खतरनाक सिद्ध होगा।

इस प्रकार विज्ञान ने हमें बहुत सुख-सुविधा प्रदान की है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि विज्ञान का उपयोग मानवता के कल्याण के लिये ही हो, विनाश के लिये नहीं। तभी विज्ञान हमारे लिये सदा सर्वदा खुशी के फूल खिलाता रहेगा।

गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)

गणतन्त्र दिवस का उत्सव प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। यह उत्सव 26 जनवरी को इसलिए मनाया जाता है कि इस दिन भारत ने अपना नया संविधान लागू किया और देश को 26 जनवरी, 1950 ई. को गणतन्त्र घोषित किया। इस वर्ष इस उत्सव को बड़े जोश और खुशी से अपने विद्यालय में मनाया। विद्यालय के सभी छात्र-छात्राएँ विद्यालय के प्रार्थना स्थल पर प्रातः साढ़े आठ बजे एकत्र हो गए। सबसे पहले विद्यालय की प्रार्थना हुई। इसके बाद सभी छात्र/छात्राएँ सावधान मुद्रा में खड़े हो गए। विद्यालय के प्रधान अध्यापक महोदय ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। एन. सी. सी. के कैडेट्स ने झण्डे को सलामी दी। राष्ट्रगान हुआ। प्रधान अध्यापक महोदय ने शिक्षा विभाग से प्राप्त पत्र को पढ़कर सुनाया। पत्र के माध्यम से हमें बताया कि हम कठिन परिश्रम करें, समय पर कार्य करें, जिससे हमारे देश की प्रगति हो सके। इसके बाद हम मैदान में चले गए।

क्रीड़ा स्थल पर बॉलीबाल का मैच हुआ। मैच रुचिकर था। दोनों ही टीमें बहुत अच्छी तरह खेली। इसके बाद सभी छात्र हॉल में गए। वहाँ पर प्रधान अध्यापक के आदेश पर कुछ छात्रों ने देशभक्ति के गीत प्रस्तुत किये। अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों को इनाम की घोषणा हुई। बाद में प्रधान अध्यापक महोदय ने अपना संक्षिप्त भाषण दिया जिसमें उन्होंने गणतन्त्र का अर्थ बताया।

बॉलीबाल की दोनों टीमों को तथा गीत प्रस्तुत करने में अच्छे विद्यार्थियों को प्रधान अध्यापक ने इनाम बाँटे और अन्त में सभी छात्रों को अपने घर जाते समय मिष्ठान वितरित किया गया।

मेला

हमारे शहर ग्वालियर में प्रतिवर्ष उद्योग सम्बन्धी मेला लगता है, जिसमें पूरे देश से लोग आते हैं। मैं पिछले सोमवार को मेला देखने गया। मेला स्थल बहुत ही आकर्षक था। सभी जगह लोगों के आने-जाने से भीड़ उमड़ रही थी। सभी के चेहरों पर खुशी थी, उल्लास था। उनके साथ बच्चे भी थे। मेरे साथ मेरे माता-पिता और बड़े भाई भी थे। मेले में प्रवेश करने से पहले मेरे माता-पिता ने वहाँ स्थित शिव मन्दिर में भगवान शंकर के दर्शन किए और हम लोगों को भी दर्शन कराये और प्रसाद प्राप्त किया। वहाँ मैंने देखा लोग कारों, स्कूटरों से चले आ रहे थे। हम ही थे जो पैदल चल रहे थे।

स्थानीय मेलों का बड़ा महत्व है। इन मेलों में तरह-तरह के सामान बेचने के लिए लाए जाते हैं। साथ ही उद्योगों के विषय में भी जानकारी मिलती है। खादी वस्त्र उद्योग, कालीन और दरी उद्योगों का उत्पादन मुझे अच्छा लगा। वहाँ कारों, टैक्ट्ररों आदि की बिक्री के केन्द्र भी थे। वहाँ पर खरीदने के लिए रजिस्ट्रेशन किए जा रहे थे। कारों और कृषि यन्त्रों की कीमतों में भारी छूट थी। बिक्री विभाग ने भी कर में छूट देने के लिए वहाँ घोषणा की हुई थी।

इस मेले में खिलौने, अच्छे साहित्य की पुस्तकों के स्टॉल भी लगे थे। पुस्तकें भारत सरकार से अनुमोदित प्रकाशक ही बेच रहे थे। इनके अलावा खाने-पीने की चीजें भी बेची जा रही थीं। पुलिस और स्वास्थ्य सेवा की एजेन्सियाँ अपने काम में मुस्तेद थीं।

अन्त में मेरा सुझाव है कि इन मेलों में विज्ञान सम्बन्धी जानकारियाँ भी दी जाएँ जिससे विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा हो। इन मेलों से अपनी राष्ट्रीय एकता, सामाजिकता और सांस्कृतिक एकीकरण की बात को बल मिलता है। इन मेलों के द्वारा ‘आओ भारत को जानें ऐसे कार्यक्रम तैयार कराए जाएँ और युवकों तथा युवतियों को इन कार्यक्रमों में भाग लेने को प्रोत्साहित किया जाये।

पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण की सुरक्षा करना अब सम्पूर्ण विश्व के लोगों के लिए एक गम्भीर समस्या है। इसका कारण यह है कि पर्यावरणीय प्रदूषण मानव समाज के जीवन और मृत्यु से जुड़ी एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यदि उपाय नहीं किए गए, तो कुछ वर्षों में ही वातावरण इतना प्रदूषित हो जाएगा कि मानव जाति उसके प्रभाव से सदैव के लिए नष्ट हो जाएगी। यह सब लोगों की भौतिकवादी सोच के कारण ही हो रहा है। प्राकृतिक सम्पदाओं का अविवेकपूर्ण दोहन ही इस प्रदूषण की समस्या का कारण है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से-जल, वायु, भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन प्रदूषण है।

बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिक विकास, विषैला धुआँ, कारखानों का प्रदूषित अपशिष्ट आदि हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है।

प्रदूषण के मुख्य रूप हैं-

  1. वायु प्रदूषण,
  2. जल प्रदूषण,
  3. रासायनिक प्रदूषण एवं
  4. ध्वनि प्रदूषण।

वायु प्रदूषण तो कल-कारखानों की चिमनियों का धुआँ, वाहनों से निकलता धुआँ, ईंधनों से निकलती गैसें, परमाणु बमों के विस्फोटों और परीक्षणों से फैलती रेडियोएक्टिवता आदि से फैल रहा है।

जल प्रदूषण भी उद्योगों के कचरे से फैल रहा है। प्रदूषित जल मनुष्यों, पशुओं और पक्षियों, वनस्पतियों के लिए हानिकारक है।

रासायनिक प्रदूषण खाद, कीटनाशक दवाओं का प्रयोग भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम कर रहा है। ध्वनि प्रदूषण कल-कारखानों की मशीनों की तेज ध्वनि, वाहनों की ध्वनि स्नायु मण्डल के सन्तुलन को बिगाड़ देती है, जिससे तनाव रोग, अनिद्रा रोग पैदा हो जाते हैं।

वायु और जल, प्रदूषण को रोकने के लिए फिल्टर आदि ऐसे उपकरण लगाए जाएँ जिनसे वायु और जल को गंदा होने से बचाया जा सके। पर्यावरण रक्षा के लिए वनों की वृद्धि, वृक्षों का लगाया जाना सर्वश्रेष्ठ उपाय है। वृक्ष ही हमें प्रदूषण मुक्त पर्यावरण दे सकते हैं।

अन्त में यह कहना ही महत्वपूर्ण होगा कि पर्यावरणीय सुरक्षा पर थोड़ी सावधानीपूर्वक ध्यान दे दिया जाए, तो मानव अस्तित्व के लिए बने संकट से बचा जा सकता है।

अनुशासन

दिन-रात का होना, ऋतु परिवर्तन होना, प्रकृति के प्रत्येक कार्य में स्वतन्त्रता के साथ अनुशासन का बने रहना, उसके महत्व को बताता है। अनुशासन में रहना पराधीनता नहीं है। अनुशासन निश्चित ही मनुष्य का आभूषण है। इसके बिना जीवन स्वच्छन्दता भरा होगा, सब काम बेतरतीब होंगे। अत: जीवन के विकास के लिए अनुशासन एक सुनियोजित व्यवस्था होती है।

व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अनुशासन से ही व्यक्ति में आदर्शवादिता और चरित्र निर्माण के आधार निर्मित होते हैं। स्व-अनुशासन से सहयोग, कर्त्तव्यपरायणता एवं सु-नागरिकता के गुण विकसित होते हैं। विद्यार्थी के लिए उक्त सभी बातें बहुत आवश्यक हैं।

अनुशासन से व्यक्ति देश, समाज सभी विकास के पथ पर चल पड़ते हैं, तो निश्चित ही वह व्यक्ति, वह देश, वह समाज सभी का उपदेष्टा बन जाता है। एक आदर्श बनकर अन्य देशों, अन्य विद्यार्थियों, दूसरे समाजों के लिए पथ प्रदर्शक बनकर उन्हें उन्नति के मार्ग पर चलाने वाला गुरु बन जाता है। अनुशासन से धरती स्वर्ग बन जाती है।

अनुशासन से ही पशुत्व और मनुष्यत्व का भेद समझा जा सकता है। मानवता को जीवित रखना है, तो अनुशासित रहिए। अनुशासन ही देश, समाज एवं मानवता को विकास के चरम शिखर तक पहुँचाता है।

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