Class 6th Hindi Chapter 17 : संकल्प
पाठ 17 : संकल्प
सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
(1)
पथ की बाधाएँ गिनने से, निज विश्वास घटे।
करने से होता है सब कुछ, करना शुरू करें।
एक बूंद गिरकर सूखेगी, बार-बार गिर घट भर देगी।
बिना रुके जो बूंदें गिरती, उद्गम रूप धरें।
गिर-गिरकर चलना सीखेंगे, गिरने से न डरें।।
शब्दार्थ – पथ = मार्ग। बाधाएँ = रुकावटें। घट = घड़ा। उद्गम = निकलना, उत्पन्न होना।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषाभारती’ के पाठ ‘संकल्प’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता लक्ष्मीनारायण भाला ‘अनिमेष’ हैं।
प्रसंग – मार्ग में आने वाली बाधाओं के गिनने से अपना विश्वास कम हो जाता है।
व्याख्या – कवि का तात्पर्य यह है कि कोई भी काम करने पर ही होता है, उस कार्य को करना प्रारम्भ कीजिए। उस कार्य के करने के मार्ग में आने वाली रुकावटों की गिनती मत करो। ऐसा करने से तो आत्म-विश्वास घट जाता है। आकाश से एक बूंद गिरती है, तो वह सूख ही जाती है, लेकिन वही बूंद बार-बार गिरेगी, तो वह एक घड़े को भर देती है। बूंदों के गिरने की निरन्तरता किसी भी नदी का उद्गम बन जाती है अर्थात् नदी के प्रवाह को रूप दे देती है। इसलिए बार-बार गिरते-पड़ते रहने से हम चलना सीखते हैं। गिरमे से कभी नहीं डरना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जीवन में विफलताएँ तो आती हैं, पर उनसे निराश नहीं होना चाहिए। विफलताएँ ही सफलता की सीढ़ियाँ हुआ करती हैं।
(2)
नदियों का उद्गम अति छोटा, दुर्गम-पथ,
पर्वत सम बाधा।
बिना थमे चलती जब धारा, सागर गले मिले।
चलने से मंजिल पायेंगे, चलना शुरू करें।
शब्दार्थ – दुर्गम पथ = कठिनाई भरा मार्ग। बाधा = रुकावटें। गले-मिले = मिल जाती है। मंजिल पाना = अपने पहुँचने के स्थान तक पहुँच जाते हैं।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषाभारती’ के पाठ ‘संकल्प’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता लक्ष्मीनारायण भाला ‘अनिमेष’ हैं।
प्रसंग – कोई भी कार्य करने से ही पूरा होता है। चलते रहने से अपने अभीष्ट स्थान तक पहुंच जाते हैं।
व्याख्या – नदी अपनी उत्पत्ति स्थल पर बहुत छोटे आकार की होती है। उसका मार्ग बहुत कठिनाई भरा होता है। मार्ग में पर्वत जितनी ऊँची रुकावटें आती हैं लेकिन बिना रुके लगातार जब वह जल की धारा चलती रहती है, बहती रहती है, तो समुद्र से मिल जाती है। उसी तरह हे मनुष्यो ! जब आप चलना प्रारम्भ कर देंगे, तो निश्चय ही अपनी मंजिल प्राप्त करने में सफल हो जायेंगे, अत: तुम्हें चलना तो शुरू कर देना चाहिए।
(3)
जलाशयों पर किरणें पड़तीं,
प्रतिदिन जल वाष्य में बदलतीं।
बादल बनकर गरज-गरज वह धरती पर बरसे।
ताप सहे, जल को भी सोखे, धरती फल उगले॥
शब्दार्थ – जलाशय = तालाब या झील। वाष्प = भाप। ताप = गर्मी। फल उगले = फसल के रूप में फल देती है।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषाभारती’ के पाठ ‘संकल्प’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता लक्ष्मीनारायण भाला ‘अनिमेष’ हैं।
प्रसंग – तालाबों का जल सूर्य की किरणों के द्वारा भाप बनता है, वर्षा होती है और धरती से फसल रूप में फल की प्राप्ति होती है।
व्याख्या – कवि कहता है कि तालाबों-झीलों के ऊपर पड़ने वाली सूर्य की किरणें उनके जल को प्रतिदिन भाप के रूप में बदलती रहती हैं, वही भाप बादल बन जाती है। बादल गरज-गरज कर जमीन पर बरस पड़ते हैं। यह धरती सूरज की गर्मी को सहन करती है, बादलों से बरसते जल को सोख लेती है और फिर फसल रूप में अपनी सम्पूर्ण प्रक्रिया का फल हमें देती है। कष्टों की गर्मी जल से शान्त होकर हमें सरस फल देती है। हम सुखी हो जाते हैं।
(4)
चुन-चुनकर गूंथे सुमनों से,
बनें हार अनगिन हाथों से।
मन में ले संकल्प विजय का, आगे बढ़े चलें।
कौन भला रोकेगा जब हम, काँटों से न डरें।
शब्दार्थ – सुमन = फूल। अनगिन = अनेक। संकल्प = प्रण, प्रतिज्ञा। काँटों से = बाधाओं से।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषाभारती’ के पाठ ‘संकल्प’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता लक्ष्मीनारायण भाला ‘अनिमेष’ हैं।
प्रसंग – प्रण करके, संकल्प धारण करके ही जीत पाई जा सकती है।
व्याख्या – एक-एक फूल चुनकर अनेक हाथों से गूंथे जाने पर ही हार (माला) बन पाता है। यदि जीत पाने का हम संकल्प ले लेते हैं, और विजय-पथ पर आगे बढ़ते जाते हैं, तो निश्चय ही हमें कौन रोक सकता है, जीत पाने से। हमें केवल आने वाली रुकावटों से, बाधाओं से डरना नहीं चाहिए।
पाठ का अभ्यास
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए
(क) संकल्प लेकर आगे बढ़ें
(i) मन में
(ii) तन में,
(iii) आँखों में
(iv) साँसों में।
उत्तर
(i) मन में
(ख) हार बनता है
(i) धूल से
(ii) फूल से
(iii) धूप से
(iv) कंकड़ से।
उत्तर
(ii) फूल से।
प्रश्न 2.
सही शब्द चयन कर रिक्त स्थान भरिए
(चुन-चुनकर, गिर-गिरकर, गरज-गरज)
(क) बादल बनकर ……….वह धरती पर बरसे।
(ख) ………… चलना सीखेंगे, गिरने से न डरें।
(ग) ………………. कर गूंथे सुमनों से, बनें हार अनगिन हाथों
उत्तर
(क) गरज-गरज
(ख) गिर-गिरकर
(ग) चुन चुनकर।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
(क) आत्म-विश्वास कब बढ़ता है ?
उत्तर
कार्य करने से आत्म-विश्वास बढ़ता है।
(ख) ‘उद्गम रूप धरें’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘उद्गम रूप धरै’ का आशय यह है कि लगातार वर्षा होने से छोटी-छोटी बूंदें भी नदी का उद्गम स्थल बन जाती हैं।
(ग) धरती फल कब देती है ?
उत्तर
जलाशयों के जल को सूर्य की किरणें जब भाप बना देती हैं, भाप बादल बन जाती है, बादलों के बरस पड़ने पर, ताप सहने वाली धरती जल को सोख लेती है, फिर धरती अपने अन्दर से बीज को उगाकर फल देने लगती है।
(घ) बादल कैसे बनते हैं ?
उत्तर
जल सूर्य की किरणों से भाप बन जाता है, वही भाप बादल बन जाती है।
(ङ) कविता में संकल्प करने पर क्यों बल दिया गया
उत्तर
कविता में कवि ने मन में अच्छी शुद्ध कामना-पवित्र विचारपूर्वक कार्य करने पर बल दिया है। इससे मनुष्य अपने सुविचारित कार्य में सफलता प्राप्त करता है।
(च) सुमनों का हार किस प्रकार बनता है ?
उत्तर
अनेक हाथों से एक-एक कर तोड़े गए एवं एकत्र किए गए फूलों को धागे में पिरोने पर हार बनता है। सहयोग और कार्य को निरन्तर करते रहने पर ही उसका फल आकर्षक हार के रूप में प्राप्त होता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) एक बूंद गिरकर सूखेगी, बार-बार गिर घट भर देगी। बिना रुके जो बूंदें गिरी, उद्गम रूप धरें।
(ख) चुन-चुनकर गूंथे सुमनों से, बने हार अनगिन हाथों से। मन में ले संकल्प विजय का, आगे बढ़े चलें।
उत्तर
‘सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या’ के अन्तर्गत पद्यांश संख्या 1 व4 का अध्ययन कीजिए।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए
विश्वास, जलाशय, दुर्गम, उद्गम, संकल्प।
उत्तर
अपने अध्यापक महोदय की सहायता से उच्चारण करना सीखिए और अभ्यास कीजिए।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी शुद्ध कीजिए
(i) बूंदें
(ii) सकल्प
(iii) दुरगम
(iv) किरने
(v) परबत।
उत्तर
(i) बूंदें
(ii) संकल्प
(iii) दुर्गम
(iv) किरणें
(v) पर्वत।
प्रश्न 3.
दिए गए शब्दों में से विलोम शब्दों की सही जोड़ी बनाइए-
(i) विश्वास
(ii) पराजय
(iii) धरती
(iv) सुगम
(v) आकाश
(vi) जय
(vii) दुर्गम
(viii) अविश्वास।
उत्तर
शब्द -विलोम शब्द
(i) विश्वास – (viii) अविश्वास
(ii) पराजय – (vi) जय
(iii) धरती – (v) आकाश
(iv) सुगम – (vii) दुर्गम
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए
(क) पथ
(ख) प्रतिदिन
(ग) बादल
(घ) विजय
(ङ) काँटा।
उत्तर
(क) पथ = संकल्प लेकर आगे बढ़ने से पथ की बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।
(ख) प्रतिदिन = ईश्वर की पूजा करके प्रतिदिन का कार्य प्रारम्भ करने से विजय मिलती है।
(ग) बादल = बादल गरजते हैं और बरसते हैं।
(घ) विजय =संकल्पित होकर विजय पथ पर आगे बढ़ते रहो।
(ङ) काँटा = उत्साह भरे मन से आगे बढ़ते हुए मार्ग के काँटा भी फूल बन जाते हैं।
प्रश्न 5.
भिन्न अर्थ वाले शब्द को छाँटकर लिखिए
(i) नदी = तटिनी, सरिता, सविता, तरंगिणी।
(ii) पर्वत = गिरि, पहाड़, अचल, पाहन।
(iii) सागर = समुद्र, पीयूष, जलधि, उदधि।
(iv) फूल = पुष्प, सुमन, कुसुम, लता।
(v) धरती = गगन, पृथ्वी, भू, धरा।
उत्तर
(i) सविता
(ii) पाहन
(iii) पीयूष
(iv) लता
(v) गगन।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में से अनुप्रास अलंकार पहचानकर लिखिए
(क) दुर्गम पथ पर्वत सम बाधा।
(ख) बार-बार गिर घट भर देगी।
(ग) गिर-गिरकर चलना सीखें।
(घ) गरज-गरजकर बादल बरसें।
उत्तर
(क)
- पथ-पर्वत
- दुर्गम-सम।
(ख)
- बार-बार
- गिर-भर।
(ग) गिर-गिरकर।
(घ) गरज-गरजकर ।