MP Board Class 9th Sanskrit Shemushi Solution Chapter 5 –सूक्तिमौक्तिकम्

कक्षा नवमीं संस्कृत – शेमुषी (Class 9 Sanskrit Shemushi)

पाठ: पञ्चमः – सूक्तिमौक्तिकम्

पाठ का अभ्यास

 पाठ का हिन्दी अनुवाद/भावार्थ

(१) वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।

अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः ॥

भावार्थ – मनुष्य को अपने चरित्र (आचरण) की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट हो जाने पर मनुष्य क्षीण नहीं होता अर्थात् उसका चरित्र सुरक्षित रहता है लेकिन चरित्र के नष्ट होने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।

(२) श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।

आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्॥ -विदुरनीति:

भावार्थ – धर्म (कर्तव्य पालन का ज्ञान) का सार क्या है, सुनो। और सुनकर इसका अनुगमन (धारण) करना चाहिए। स्वयं को जो अच्छा न लगे वह व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।

(३) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।

तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥ -चाणक्यनीतिः

भावार्थ – सभी प्राणी मीठी वाणी बोलने से प्रसन्न (सन्तुष्ट) होते हैं। इसलिए वही (मीठी वाणी) बोलनी चाहिए, बोलने में कैसी कंजूसी ? अर्थात् मीठी वाणी में असीम शक्ति होती है। मीठी वाणी से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं।

(४) पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः

स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।

नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः

परोपकाराय सतां विभूतयः॥ -सुभाषितरत्नभाण्डागारम्

भावार्थ -नदियाँ स्वयं ही अपना पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते हैं। निश्चित ही बादल (अपनी) फसलों को नहीं खाते हैं। इसी प्रकार से सज्जनों की सम्पत्तियाँ परोपकार के लिए होती हैं। अर्थात् महान् लोगों की सम्पत्तियाँ, साधन और यहाँ तक कि जीवन भी परोपकार के लिए होता है।

(५) गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।

गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः॥ -मृच्छकटिकम्

भावार्थ – मनुष्य को सदा गुणों को ही प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। गुणवान् व्यक्ति निर्धन होते हुए भी गुणों से हीन ऐश्वर्यशाली के समान नहीं हो सकता अर्थात् वह उससे कहीं अधिक श्रेष्ठ होता है।

(६) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण  

लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।

दिनस्य पूर्वार्द्धपराद्धभिन्ना

छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥ – नीतिशतकम्

भावार्थ – आरम्भ में लम्बी (बड़ी) फिर धीरे-धीरे घटते (कम होते) स्वभाव वाली तथा पहले छोटी फिर बाद में लम्बी (बड़ी) होती हुई दिन के पूर्वाह्न और अपराह्न काल की छाया की तरह दुष्टों और संज्जनों की मित्रता भी अलग-अलग होती है। । अर्थात् जिस प्रकार दिन के पूर्वाह्न में छाया पहले बड़ी होती है और धीरे-धीरे छोटी होती चली जाती है। उसी प्रकार दुष्टों की मित्रता भी पहले ज्यादा और बाद में कम होती चली जाती है। इसके विपरीत अपराह्न की छाया जिस प्रकार पहले कम और धीरे-धीरे बढ़ती जाती है उसी प्रकार सज्जनों की मित्रता भी पहले कम और शनैः-शनैः प्रगाढ़ होती जाती है।

(७) यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु-

हँसा महीममण्डलमण्डनाय।

हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां  

येषा मरालैः सह विप्रयोगः॥ भामिनीविलासः

भावार्थ – हंस पृथ्वी को सुशोभित करने के लिए जहाँ कहीं भी चले जाएँगे (उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता)। पर हानि तो उन तालाबों की होती है जिनका हंसों के साथ वियोग होता है।

अर्थात् श्रेष्ठ, सज्जन कहीं भी रहें वे अपने गुणों से संसार को लाभान्वित ही करेंगे, पर वह जिस स्थान से चले जाएँगे वह स्थान निश्चित ही उनके लाभों से वंचित रह जाएगा।

(८) गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति

ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।

आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः

समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥ -हितोपदेशः

भावार्थ-गुणों को जानने पहचानने वालों के लिए ही वास्तव में गुण, गुण होते हैं, गुणहीनों के लिए तो वे दोष ही होते हैं। नदियाँ स्वादिष्ट जल के साथ बहती रहती हैं, पर समुद्र में मिलकर वह भी पीने योग्य नहीं रह जाती।

पाठ का अभ्यास

प्रश्न १. एकपदेन उत्तरं लिखत

(एक शब्द में उत्तर लिखिए-)

(क) वित्ततः क्षीणः कीदृशः भवति ?

(धन से क्षीण कैसा होता है ?)

उत्तर-अक्षीणः। (क्षीण नहीं)।

(ख) कस्य प्रतिकूलानि कार्याणि परेषां न समाचरेत् ?

(किसके प्रतिकूल कार्यों को दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए ?)

उत्तर-आत्मनः। (स्वयं के)।

(ग) कुत्र दरिद्रता न भवेत् ?

(कहाँ दरिद्रता नहीं होनी चाहिए ?)

उत्तर-वचने। (बोलने में)।

(घ) वृक्षाः स्वयं कानि न खादन्ति ?

(वृक्ष स्वयं क्या नहीं खाते हैं ?)

उत्तर-फलानि। (फलों को)।

(ङ) पुरा का लघ्वी भवति ?

(पहले क्या छोटी होती है ?)

उत्तर-छाया। (छाया)।

प्रश्न २. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा के द्वारा लिखिए-)

(क) यत्नेन किं रक्षेत् वित्तं वृत्तं वा ?

(प्रयत्नपूर्वक किसकी रक्षा करनी चाहिए धन की या चरित्र की ?)

उत्तर-यत्नेन वृत्तं रक्षेत्। (प्रयत्नपूर्वक चरित्र की रक्षा करनी चाहिए।)

(ख) अस्माभिः (किं न समाचरेत) कीदृशम् आचरणं न कर्त्तव्यम् ?.

(हमारे द्वारा (क्या नहीं करना चाहिए) कैसा आचरण नहीं करना चाहिए ?)

उत्तर-अस्माभिः आत्मनः प्रतिकूलम् आचरणं परेषां न कर्तव्यम्।

(हमारे द्वारा स्वयं को जो अच्छा न लगे ऐसा व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।)

अथवा

अस्माभिः आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।

(हमारे द्वारा स्वयं को जो अच्छा न लगे ऐसा व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।)

(ग) जन्तवः केन तुष्यन्ति ?

(प्राणी किस विधि से प्रसन्न होते हैं ?)

उत्तर-जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति।

(प्राणी मीठी वाणी बोलने से प्रसन्न होते हैं।)

(छ) सज्जनानां मैत्री कीदशी भवति ?

(सज्जनों की मित्रता कैसी होती है ?)

उत्तर-सज्जनानां मैत्री पुरा लघ्वी वृद्धिमती च पश्चात् भवति।

(सज्जनों की मित्रता पहले छोटी और बाद में बढ़ने वाली होती है।)

(ङ) सरोवराणां हानिः कदा भवति ?

(सरोवरों की हानि कब होती है ?)

उत्तर – सरोवराणां हानिः मरालैः सह वियोगेन भवति।

(सरोवरों की हानि हंसों के साथ वियोग से होती है।)

प्रश्न ३. ‘क’स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि, तानि यथोचितं

(‘क’ स्तम्भ में विशेषण और ‘ख’ स्तम्भ में विशेष्य दिए गये हैं, उनको सही-सही मिलाइये

उत्तर– (क)→ (3), (ख)→ (4), (ग)→ (1), (घ)→ (2).

प्रश्न ४. अधोलिखितयोः श्लोकद्वयोः आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत

(नीचे लिखे दो श्लोकों का आशय हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखो-)

(क) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण

लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।

दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना

छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥

(ख) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।

तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥

उत्तर – पाठ का हिन्दी अनुवाद/भावार्थ शीर्षक के अन्तर्गत क्रमशः ६ एवं ३ का भावार्थ देखें।

प्रश्न ५. अधोलिखितपदेभ्यः भिन्नप्रकृतिकं पदं चित्वा लिखत

(नीचे लिखे शब्दों में से भिन्न प्रकृति के शब्द को चुनकर लिखो-)

(क) वक्तव्यम्, कर्तव्यम्, सर्वस्वम्, हन्तव्यम्।

उत्तर-सर्वस्वम्।

(ख) यत्नेन, वचने, प्रियवाक्यप्रदाने, मरालेन।

उत्तर-वचने।

(ग) श्रूयताम्, अवधार्यताम्, धनवताम्, क्षम्यताम्।

उत्तर-धनवताम्।

(घ) जन्तवः नद्यः, विभूतयः, परितः।

उत्तर-परितः।

प्रश्न ६. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्नवाक्यनिर्माणं कुरुत

(मोटे शब्दों के आधार पर प्रश्न वाक्यों का निर्माण करो-)

(क) वृत्ततः क्षीणः हतः भवति।

(चरित्र से हीन का सब कुछ नष्ट होता है।)

प्रश्ननिर्माणम् कस्मात् क्षीण: हतः भवति ?

(किससे हीन का सब कुछ नष्ट होता है ?)

(ख) धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा अवधार्यताम्।

(धर्म का सार सुनकर धारण करना चाहिए।)

प्रश्ननिर्माणम् किं श्रुत्वा अवधार्यताम् ?

(क्या सुनकर धारण करना चाहिए ?)

(ग) वृक्षाः फलं न खादन्ति ।

(वृक्ष फल नहीं खाते हैं।)

प्रश्ननिर्माणम् के फलं न खादन्ति ?

(कौन फल नहीं खाते हैं ?)

(घ) खलानाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति।

(दुष्टों की मित्रता प्रारम्भ में बढ़ने वाली होती है।)

प्रश्ननिर्माणम् केषाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति ?

(किनकी मित्रता प्रारम्भ में बढ़ने वाली होती है ?)

प्रश्न ७. अधोलिखितानि वाक्यानि लोट्लकारे परिवर्तयत

(नीचे लिखे वाक्यों को लोट्लकार में बदलिए-)

यथा -सः पाठं पठति। सः पाठं पठतु।

(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्ति।

(ख) सः सदैव प्रियवाक्यं वदति।

(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचरसि।

(घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्ति।

(ङ) अहं परोपकाराय कार्यं करोमि।

उत्तर-

(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्तु।

(ख) सः सदैव प्रियवाक्यं वदतु।

(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचार।

(घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्तु।

(ङ) अहं परोपकाराय कार्यं करवाणि।।

परियोजनाकार्यम्

प्रश्न (क) परोपकारविषयकं श्लोकद्वयम् अन्विष्य स्मृत्वा च कक्षायां सस्वरं पठ।

(परोपकार के विषय पर दो श्लोक खोजें और कक्षा में सस्वर पढ़ें।)

उत्तर-

(1) परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय बहन्ति नद्यः ।

परोपकाराय दुहन्ति गाव: परोपकारार्थमिदं शरीरम्।

(2) अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।

परोपकारः पुण्याय पापाय पर परपीडनम्॥

प्रश्न (ख) नद्याः एकं सुन्दरं चित्र निर्माय संकलय्य वा वर्णयत यत् तस्याः तीरे मनुष्याः पशवः खगाश्च निर्विघ्नं जलं पिबन्ति।

(नदी का एक सुन्दर चित्र बनाकर अथवा संकलित करके वर्णन कीजिए कि उसके किनारे मनुष्य, पशु और पक्षी निर्विघ्न जल पी रहे हैं।)

उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें।

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