MP Board Class 9th History Chapter 4 : वन्य-समाज और उपनिवेशवाद

इतिहास – भारत और समकालीन विश्व-I (History: India and The Contemporary World – I )

खण्ड II : जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज

Chapter 4 : वन्य-समाज और उपनिवेशवाद [Forest-Society and Colonialism]

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी। आज यह आँकड़ा बढ़कर आधे तक पहुँच गया है।
  • 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़त हुई।
  • 1850 के दशक में रेल लाइनों का प्रसार हुआ। भारत में रेल-लाइनों का जाल 1860 के दशक में तेजी से फैला।
  • 1890 तक लगभग 25,500 किमी लम्बी लाइनें बिछायी जा चुकी थीं जो 1946 तक 7,65,000 किमी तक बढ़ चुकी थी।
  • अकेले मद्रास प्रेसीडेंसी में 1850 के दशक में प्रतिवर्ष 35,000 पेड़ स्लीपरों के लिए काटे गए।
  • एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1,760 से 2000 तक स्लीपर की जरूरत थी।
  • ड्रायट्रिच बेंडिस नामक जर्मन विशेषज्ञ को देश का पहला वन महानिदेशक नियुक्त किया।
  • बेंडिस ने 1864 में भारतीय वन सेवा की स्थापना और 1865 में वन अधिनियम लागू किया।
  • 1906 में इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना देहरादून में हुई।
  • 1865 में वन अधिनियम में दो बार संशोधन किए गए-पहले 1878 में और फिर 1927 में।
  • 1878 वाले अधिनियम में जंगलों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया – आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण।
  • अकेले जॉर्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने 400 बाघों को मारा था।
  • बस्तर छत्तीसगढ़ के सबसे दक्षिणी छोर पर आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा व महाराष्ट्र की सीमाओं से लगा हुआ क्षेत्र है।
  • बस्तर में मरिया और मुरिया गोंड, धूरवा, भतरा, हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं। •
  • इंडोनेशिया में जावा ही वह क्षेत्र है जहाँ डचों ने वन-प्रबन्धन की शुरूआत की थी।
  • सन् 1600 में जावा की अनुमानित आबादी 34 लाख थी।
  •  जावा में कलांग समुदाय के लोग कुशल लकड़हारे और घुमंतू किसान थे।
  • 1882 में अकेले जावा से ही 2,80,000 स्लीपरों का निर्यात किया गया।
  • पहले और दूसरे विश्व युद्ध का जंगलों पर गहरा असर पड़ा।
  • जावा पर जापानियों के कब्जे से ठीक पहले डचों ने ‘भस्म-कर-भागो नीति’ अपनायी।

पाठान्त अभ्यास

प्रश्न 1. औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया ?

(i) झूम खेती करने वालों को,

(ii) घुमंतू और चरवाहा समुदायों को,

(iii) लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कम्पनियों को,

(iv) बागान मालिकों को,  

(v) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को।

उत्तर –

(i) झूम खेती करने वालों को – यूरोपीय उपनिवेशवाद का सबसे गहरा प्रभाव झूम खेती की प्रथा पर दिखायी पड़ता है। एशिया, अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के अनेक भागों में यह खेती का एक परम्परागत तरीका है। इसके कई स्थानीय नाम हैं, जैसे-दक्षिण-पूर्व एशिया में लादिंग, मध्य अमेरिका में मिलया, अफ्रीका में चितमेन या तावी व श्रीलंका में चेना।

झूम खेती के लिए जंगल के कुछ भागों को बारी-बारी से काटा और जलाया जाता है। मानसून की पहली बारिश के बाद इस राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर-नवम्बर में फसल काटी जाती है। इन खेतों पर दो-एक साल खेती करने के बाद इन्हें 12 से 18 साल तक के लिए परती छोड़ दिया जाता है जिससे वहाँ पर फिर से जंगल पनप जाए।

यूरोपीय वन रक्षकों की नजर में यह तरीका जंगलों के लिए नुकसानदेह था। उन्होंने अनुभव किया कि जहाँ कुछेक सालों के अन्तर पर खेती की जा रही हो ऐसी जमीन पर रेलवे के लिए इमारती लकड़ी वाले पेड़ नहीं उगाए जा सकते। साथ ही, जंगल जलाते समय बाकी बेशकीमती पेड़ों के भी फैलती लपटों की चपेट में आ जाने का खतरा बना रहता है। इस खेती के कारण सरकार के लिए लगान का हिसाब रखना भी मुश्किल था। इसलिए सरकार ने इस खेती पर रोक लगाने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप अनेक समुदायों को जंगलों में उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया गया। कुछ को अपना पेशा बदलना पड़ा तो कुछ ने छोटे-बड़े विद्रोहों के जरिए प्रतिरोध किया।

(ii) घुमंतू और चरवाहा समुदायों को – औपनिवेशिक सरकार ने 1905 में जब जंगल के दो-तिहाई हिस्से को आरक्षित करने, घुमंतू खेती को रोकने और शिकार व वन्य-उत्पादों के संग्रह पर पाबन्दी लगाने जैसे प्रस्ताव रखे तो बस्तर के लोग बहुत परेशान हो गए। कुछ गाँवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई का काम मुफ्त करेंगे और जंगल को आग से बचाए रखेंगे। बाकी गाँवों के लोग बगैर किसी सूचना या मुआवजे के हटा दिए गए। काफी समय से गाँव वाले जमीन के बढ़े हुए लगान तथा औपनिवेशिक अफसरों के हाथों बेगार और चीजों की निरन्तर माँग से त्रस्त थे।

औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिन्दगी में गहरे बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने-जाने पर बंदिशें लगने लगी और उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई।

खेती में उनका हिस्सा घटने लगा और उनके पेशे और हुनरों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा। अंग्रेज अफसर घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखते थे। देश के ज्यादातर चरवाही इलाकों में उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया। इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया गया।

(ii) लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कम्पनियों को – जंगलों पर वन विभाग का नियन्त्रण स्थापित हो जाने से लोगों को कई तरह के नुकसान हुए, लेकिन कुछ लोगों को व्यापार के नए अवसरों का लाभ भी मिला। कई समुदाय अपने परम्परागत पेशे छोड़कर वन-उत्पादों का व्यापार करने लगे। महज भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में कुछ ऐसा ही नजारा दिखता है।

भारत में वन-उत्पादों का व्यापार कोई अनोखी बात नहीं थी। मध्यकाल से ही आदिवासी समुदायों द्वारा बंजारा आदि घुमंतू समुदायों के माध्यम से हाथियों और दूसरे सामान जैसे खाल, सींग, रेशम के कोये, हाथी-दाँत, बाँस, मसाले, रेशे, घास, गोंद और राल के व्यापार के सबूत मिलते हैं।

लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद व्यापार पूरी तरह सरकारी नियन्त्रण में चला गया। ब्रिटिश सरकार ने कई बड़ी यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों को विशेष इलाकों में वन उत्पादों के व्यापार की इजारेदारी (एकाधिकार) सौंप दी। स्थानीय लोगों द्वारा शिकार करने और पशुओं को चराने पर बंदिशें लगा दी गईं। इस कार्यवाही में मद्रास प्रेसीडेंसी के कोरावा, कराचा व येरूकुला जैसे अनेक चरवाहे और घुमंतू समुदाय अपनी जीविका से हाथ धो बैठे। इनमें से कुछ को ‘अपराधी कबीले’ कहा जाने लगा और ये सरकार की निगरानी में फैक्ट्रियों, खदानों व बागानों में कार्य करने को मजबूर हो गए।

(iv) बागान मालिकों को – यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बने और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों का एक भारी हिस्सा साफ किया गया। औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अपने कब्जे में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत सस्ती दरों पर यूरोपीय बागान मालिकों को सौंप दिया। इन इलाकों की बाड़बन्दी करके जंगलों को साफ कर दिया गया और चाय-कॉफी की खेती की जाने लगी।

(v) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को-जहाँ एक तरफ वन कानूनों ने लोगों को शिकार के परम्परागत अधिकार से वंचित किया, वहीं बड़े जानवरों का आखेट एक खेल बन गया। भारत में बाघों और दूसरे जानवरों का शिकार करना सदियों से दरबारी और नवाबी संस्कृति का हिस्सा रहा था। अनेक मुगल कलाकृतियों में शहजादों और सम्राटों को शिकार का मजा लेते हुए दिखाया गया है।

औपनिवेशिक शासन के दौरान शिकार का चलन इस पैमाने तक बढ़ा कि कई प्रजातियाँ लगभग पूरी तरह लुप्त हो गईं। अंग्रेजों की नजर में बड़े जानवर जंगली, बर्बर और आदि समाज के प्रतीक-चिह्न थे। उनका कहना था कि खतरनाक जानवरों को मारकर वे हिन्दुस्तान को सभ्य बनाएँगे। बाघ, भेड़िये और दूसरे बड़े जानवरों के शिकार पर यह कहकर इनाम दिए गए कि इनसे किसानों को खतरा है। 1875 से 1925 के मध्य इनाम के लालच में 80,000 से ज्यादा बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िये मार गिराए गए। धीरे-धीरे बाघ के शिकार को एक खेल की ट्रॉफी के रूप में देखा जाने लगा। अकेले जॉर्ज यूल नामक ब्रिटिश अफसर ने 400 बाघों को मारा था। प्रारम्भ में जंगल के कुछ इलाके शिकार के लिए ही आरक्षित थे।

प्रश्न 2. बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबन्धन में क्या समान्ताएँ हैं?

उत्तर-

(1) भारत के बस्तर व इंडोनेशिया के जावा में वन कानूनों में कई समानताएँ थीं। (2) जावा ही वह क्षेत्र है जहाँ डचों ने वन-प्रबन्धन की शुरूआत की थी जबकि बस्तर में अंग्रेजों ने।

(3) जावा और बस्तर दोनों ही जगह में स्थानान्तरी खेती पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(4) जावा और बस्तर दोनों में ही वन नियमों के अन्तर्गत वनों का वर्गीकरण किया गया और सुरक्षित वनों में लकड़ी काटने तथा वन सामग्री एकत्रित करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(5) अंग्रेजों की तरह डच लोग भी जहाज बनाने के लिए जावा से लकड़ी हासिल करना चाहते थे।

(6) भारत की ही तरह यहाँ भी जहाज और रेल लाइनों के निर्माण ने वन-प्रबन्धन और वन सेवाओं को लागू करने की आवश्यकता पैदा कर दी।

(7) बस्तर में औपनिवेशिक राज्य और इसके दमनकारी कानूनों से किसी न किसी तरह जुड़े थे इसी प्रकार उपनिवेशिकों ने जावा में वन-कानून लागू कर ग्रामीणों की जंगल तक पहुँच पर बंदिशें थोप दीं।

प्रश्न 3. सन् 1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10-86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ

(1) रेलवे, (2) जहाज निर्माण,(3) कृषि विस्तार, कमाया जाकियामक की जिला (4) व्यावसायिक खेती, (5) चाय-कॉफी के बागान, (6) आदिवासी और किसान।

उत्तर-

(1) रेलवे की वनाच्छादित क्षेत्र की गिरावट में भूमिका-1850 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ने लकड़ी के लिए एक नई तरह की माँग पैदा कर दी। इंजनों को चलाने के लिए ईंधन के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए ‘स्लीपरों’ के रूप में लकड़ी की भारी आवश्यकता थी। एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1760-2000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। र भारत में रेल लाइनों का जाल 1860 के दशक से तेजी से फैला। 1890 तक लगभग 25,500 किमी लम्बी लाइनें बिछायी जा चुकी थीं। 1946 में इन लाइनों की लम्बाई 7,65,000 किमी तक बढ़ चुकी थी। रेल लाइनों के प्रसार के साथ-साथ बड़ी तादाद में पेड़ भी काटे गए। सरकार ने आवश्यक मात्रा की आपूर्ति के लिए निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया। रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे।

(2) जहाज निर्माण की वनाच्छादित क्षेत्र की गिरावट में भूमिका – उन्नीसवीं सदी की शुरूआत तक इंग्लैण्ड में बलूत (ओक) के जंगल लुप्त होने लगे थे। इसकी वजह से शाही नौसेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में मुश्किल आ खड़ी हुई। मजबूत और टिकाऊ लकड़ी की नियमित आपूर्ति के बिना अंग्रेजी जहाज भला कैसे बन सकते थे? और जहाजों के बिना शाही सत्ता कैसे बचाई और बनाए रखी जा सकती थी ? 1820 के दशक में खोजी दस्ते हिन्दुस्तान की वन-सम्पदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के भीतर बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जाने लगे और भारी मात्रा में लकड़ी का हिन्दुस्तान से निर्यात होने लगा जिससे वनाच्छादित क्षेत्र में गिरावट आई।

(3) कृषि-विस्तार की वनाच्छादित क्षेत्र की गिरावट में भूमिका – उन्नीसवीं सदी की शुरूआत में औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अनुत्पादक समझा। उनके हिसाब से इस व्यर्थ के बियाबान पर खेती करके उससे राजस्व और कृषि उत्पादों को पैदा किया जा सकता था और इस तरह राज्य की आय में बढ़ोत्तरी की जा सकती थी। यही वजह थी कि 1880 से 1920 के मध्य खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़त हुई।

कृषि के विस्तार को हम विकास का सूचक मानते हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जमीन को जोतने के पहले जंगलों की कटाई करनी पड़ती है।

(4) व्यावसायिक खेती की वनाच्छादित क्षेत्र की गिरावट में भूमिका-उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय जनसंख्या में भी तीव्र गति से वृद्धि हुई इसलिए यूरोपीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने कृषकों को व्यावसायिक खेती फसलों; जैसे-पटसन, गन्ना तथा कपास आदि को प्रोत्साहन देना प्रारम्भ किया। इसके लिए कृषि क्षेत्रों को बढ़ाने के लिए जंगलों को बड़े पैमाने पर साफ किया गया।

(5) चाय-कॉफी के बागानों की वनाच्छादित क्षेत्र की गिरावट में भूमिका-यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान लगाए गए और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों का एक बड़ा भाग साफ किया गया। औपनिवेशिक सरकार ने वनों को अपने कब्जे में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत सस्ती दरों पर यूरोपीय बागान मालिकों को सौंप दिया। इन क्षेत्रों की बाड़ाबंदी करके वनों को साफ कर दिया गया और चाय-कॉफी की खेती की जाने लगी। जोकि वन क्षेत्र में गिरावट का महत्वपूर्ण कारक बना।

(6) आदिवासी और किसान की भूमिका-सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी। आज यह आँकड़ा बढ़कर आधे तक पहुँच गया है। इन सदियों के दौरान जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गयी और खाद्य पदार्थों की माँग में भी वृद्धि हुई, वैसे-वैसे किसान भी जंगलों को साफ करके खेती की सीमाओं को विस्तार देते गए। आदिवासी और किसान वन क्षेत्रों में कृषि की स्थानांतरी पद्धति को अपनाते थे जिसके कारण वनों को जलाकर भूमि प्राप्त की जाती थी। कई बार वनों की आग बड़े पैमाने पर वनों को नष्ट कर देती थी। जोकि वन क्षेत्र में गिरावट का कारण रहा।

प्रश्न 4. युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं ?

उत्तर-युद्धों से जंगल निम्न प्रकार प्रभावित होते हैं

(1) पहले और दूसरे विश्व युद्ध का जंगलों पर गहरा प्रभाव पड़ा। भारत में तमाम चालू कार्य योजनाओं को स्थगित करके वन विभाग ने अंग्रेजों की जंगी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बेतहाशा पेड़ काटे।

(2) जावा पर जापानियों के कब्जे से ठीक पहले डचों ने ‘भस्म-कर-भागो नीति’ अपनायी, जिसके तहत् आरा-मशीनों और और सागौन के विशाल लट्ठों के ढेर जला दिए गए जिससे वे जापानियों के हाथ न लग पाएँ।

(3) इसके बाद जापानियों ने वनवासियों को जंगल काटने के लिए बाध्य करके अपने युद्ध उद्योग के लिए जंगलों का निर्मम दोहन किया। बहुत सारे गाँव वालों ने इस अवसर का लाभ उठाकर जंगल में अपनी खेती का विस्तार किया।

(4) जंग के बाद इंडोनेशिया वन सेवा के लिए इन जमीनों को वापस हासिल कर पाना कठिन था। हिन्दुस्तान की ही तरह यहाँ भी खेती योग्य भूमि के प्रति लोगों की चाह और जमीन को नियन्त्रित करने तथा लोगों को उससे बाहर रखने की वन विभाग की जिद के बीच टकराव पैदा हुआ।

(C) अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. सन् 1700 से 1995 के बीच विश्व के जंगलों का कितना क्षेत्रफल साफ कर दिया गया ?

(i) 150 लाख वर्ग किलोमीटर,

(ii) 139 लाख वर्ग किलोमीटर,

(iii) 128 लाख वर्ग किलोमीटर,

(iv) 115 लाख वर्ग किलोमीटर।

2. सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग में कितने हिस्से पर खेती होती थी?

(i) तीसरे,

(ii) चौथे,

(iii) पाँचवें,

(iv) छठे।

3. सन् 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में कितनी बढ़त हुई ?

(i) 67 लाख हेक्टेयर,

(ii) 80 लाख हेक्टेयर,

(iii) 50 लाख हेक्टेयर,

(iv) 88 लाख हेक्टेयर।

4. ‘यूनाइटेड फ्रूट कम्पनी’ का गठन किस देश के आधित्य में हुआ?

(i) फ्रांस,

(ii) जापान,

(iii) इंडोनेशिया,

(iv) अमेरिका।

5. मद्रास प्रेसीडेंसी में 1850 के दशक में प्रतिवर्ष कितने पेड़ काटे गए ?

(i) 50,000 पेड़,

(ii) 45,000 पेड़,

(iii) 35,000 पेड़,

(iv) 25,000 पेड़।

6. भारत का पहला वन महानिदेशक नियुक्त किया गया

(i) हर्बर्ट स्पेंसर,

(ii) हगलमार,

(iii) डायट्रिच बेंडिस,

(iv) इनमें से कोई नहीं।

7. भारतीय वन सेवा की स्थापना कब की गई ?

(i) 1864,

(ii) 1885,

(iii) 1901,

(iv) 1905.

8. जावा पर किसने अपना अधिकार किया ?

(i) ब्रिटिश,

(ii) डच,

(iii) फ्रांस,

(iv) अमेरिका

उत्तर- -1. (ii), 2. (iv), 3. (i), 4. (iv), 5. (iii), 6. (iii), 7. (i), 8. (ii). 

रिक्त स्थान पूर्ति

1. वनों के लुप्त होने को सामान्यतः ………… कहते हैं।

2. ऐमेजॉन के जंगलों के एक ही टुकड़े में पौधों की………… अलग-अलग प्रजातियाँ मिल जाती हैं।

3. खेती के विस्तार को हम …………का सूचक मानते हैं।

4. 1878 वाले अधिनियम में जंगलों को …….. श्रेणियों में बाँटा गया।

5. अकेले ……….. नामक अंग्रेज अफसर ने 400 बाघों को मारा था।

उत्तर- -1. वन-विनाश, 2. 500, 3. विकास, 4. तीन, 5. जॉर्ज यूल। 

सत्य/असत्य

1. 1865 में वन अधिनियम के लागू होने के बाद इसमें चार बार संशोधन किए गए।

2. सियादी की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती है।

3. घुमंतू खेती के कारण सरकार के लिए लगान का हिसाब रखना सरल था।

4. 1947 में बस्तर रियासत को काँकेर रियासत में मिला दिया गया।

5. अंग्रेजों ने ‘भस्म-कर-भागो नीति’ अपनायी।

उत्तर--1. असत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. असत्य। 

सही जोड़ी मिलाइए

उत्तर-1.→ (घ), 2. → (ङ), 3. → (क), 4. → (ख), 5. → (ग)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. 1700 से 1995 के बीच विश्व के कुल क्षेत्रफल का कितने प्रतिशत भाग जंगल के लिए साफ कर दिया ?

2. इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना कब और कहाँ हुई ?

3. भारत में रेलवे लाइनों का प्रसार कब शुरू हुआ ?

4. औपनिवेशिक सरकार ने भारत में आदिवासी अपराध कानून कब पारित किया ?

5. बस्तर में वन विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था ?

उत्तर -1.9.3 प्रतिशत, 2. 1906 में देहरादून, 3. 1850, 4. 1871, 5. गुंडा धूर।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए कितने स्लीपर की जरूरत थी?

उत्तर एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1,760 से 2,000 तक स्लीपर की जरूरत थी।

प्रश्न 2. भारत का पहला वन महानिदेशक किसको नियुक्त किया गया?

उत्तर -जर्मन के डायट्रिच बेंडिस को वन महानिदेशक नियुक्त किया गया।

प्रश्न 3. इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च में किस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी?

उत्तर -यहाँ जिस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी उसे ‘वैज्ञानिक वानिकी’ (साइंटिफिक फॉरेस्ट्री) कहा गया। लेकिन आज पारिस्थितिकी विशेषज्ञों सहित ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह पद्धति कतई वैज्ञानिक नहीं है।

प्रश्न 4. लेटेक्स क्या है ? इसका उपयोग बताइए।

उत्तर -रबड़ के पेड़ से प्राप्त तरल पदार्थ को लेटेक्स कहा जाता है। इसका उपयोग रबड़ निर्माण में किया जाता है।

प्रश्न 5. हिन्दुस्तान में घुमंतू खेती के लिए स्थानीय नाम बताइए।

उत्तर-हिन्दुस्तान में घुमंतू खेती के लिए धया, पेंदा, बेवर, नेवड़, झूम, पोडु, खंदाद और कुमरी ऐसे ही कुछ स्थानीय नाम हैं।

प्रश्न 6. बस्तर में कौन-कौन से आदिवासी समुदाय रहते हैं ?

उत्तर -बस्तर में मरिया और मुरिया गोंड, घुरवा, भतरा, हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं।

प्रश्न 7. ब्लेन्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली’ क्या थी?

उत्तर -डचों ने इस प्रणाली की शुरूआत कुछ गाँवों में इस शर्त पर की कि वे वनों से पेड़ काटने और ढोने का काम मुफ्त में किया करेंगे।

प्रश्न 8. सुरोत्तिको सामिन कौन था ?

उत्तर रान्दुब्लातुंग गाँव का निवासी जिसने जावा में वनों के स्वामित्व के विरुद्ध आन्दोलन शुरू किया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. औपनिवेशिक शासन के दौरान रेलवे के विकास तथा समुद्री जहाजों के निर्माण का भारत के वनों पर किस प्रकार प्रभाव पड़ा?

अथवा

1860 के पश्चात् भारत में रेलवे लाइनों के आस-पास के जंगल क्यों गायब होने शुरू हो गये ?

उत्तर – 1850 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ने लकड़ी के लिए एक नई तरह की माँग पैदा कर दी। इंजनों को चलाने के लिए ईंधन के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए ‘स्लीपरों’ के रूप में लकड़ी की भारी आवश्यकता थी। एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1760-2000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। भारत में रेल लाइनों का जाल 1860 के दशक से तेजी से फैला। 1890 तक लगभग 25,500 किमी लम्बी लाइनें बिछायी जा चुकी थीं। 1946 में इन लाइनों की लम्बाई 7,65,000 किमी तक बढ़ चुकी थी। रेल लाइनों के प्रसार के साथ-साथ बड़ी तादाद में पेड़ भी काटे गए। सरकार ने आवश्यक मात्रा की आपूर्ति के लिए निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया। रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे।

उन्नीसवीं सदी की शुरूआत तक इंग्लैण्ड में बलूत (ओक) के जंगल लुप्त होने लगे थे। इसकी वजह से शाही नौसेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में मुश्किल आ खड़ी हुई। मजबूत और टिकाऊ लकड़ी की नियमित आपूर्ति के बिना अंग्रेजी जहाज भला कैसे बन सकते थे? और जहाजों के बिना शाही सत्ता कैसे बचाई और बनाए रखी जा सकती थी ? 1820 के दशक में खोजी दस्ते हिन्दुस्तान की वन-सम्पदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के भीतर बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जाने लगे और भारी मात्रा में लकड़ी का हिन्दुस्तान से निर्यात होने लगा जिससे वनाच्छादित क्षेत्र में गिरावट आई।

प्रश्न 2. रेलवे के विस्तार ने भारत में वनों को कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर- 1850 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ने लकड़ी के लिए एक नई तरह की माँग पैदा कर दी। इंजनों को चलाने के लिए ईंधन के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए ‘स्लीपरों’ के रूप में लकड़ी की भारी आवश्यकता थी। एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1760-2000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। र भारत में रेल लाइनों का जाल 1860 के दशक से तेजी से फैला। 1890 तक लगभग 25,500 किमी लम्बी लाइनें बिछायी जा चुकी थीं। 1946 में इन लाइनों की लम्बाई 7,65,000 किमी तक बढ़ चुकी थी। रेल लाइनों के प्रसार के साथ-साथ बड़ी तादाद में पेड़ भी काटे गए। सरकार ने आवश्यक मात्रा की आपूर्ति के लिए निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया। रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे।

प्रश्न 3. घुमंतू खेती क्या है ? अंग्रेज इसे नुकसानदेह क्यों मानते थे ?

उत्तर-घुमंतू खेती में जंगलों को साफ किया जाता है। सामान्यत: चट्टानों की ढलानों पर पेड़ों को काटने के बाद राख के लिए इन्हें जला दिया जाता है। इसके बाद इस क्षेत्र में फिर बीज बिखेर दिए जाते हैं और वर्षा से सिंचाई के लिए इन्हें छोड़ दिया जाता है।

यूरोपीय वन रक्षकों की नजर में यह तरीका वनों के लिए नुकसानदेह था। उन्होंने महसूस किया कि जहाँ कुछेक सालों के अन्तर पर खेती की जा रही हो ऐसी जमीन पर रेलवे के लिए इमारती लकड़ी वाले पेड़ नहीं उगाए जा सकते। साथ ही, जंगल जलाते समय बाकी बेशकीमती पेड़ों के भी फैलती लपटों की चपेट में आ जाने का खतरा बना रहता है। घुमंतू खेती के कारण सरकार के लिए लगान का हिसाब रखना भी मुश्किल था। इसलिए सरकार ने घुमंतू खेती पर रोक लगाने का फैसला किया।

प्रश्न 4. अंग्रेजी शासनकाल में वन अधिनियम कब लागू किया गया ? इस अधिनियम को कितनी बार संशोधित किया गया? इस अधिनियम के अनुसार तीन प्रकार के वनों के नाम लिखिए।

उत्तर-अंग्रेजी शासनकाल में वन अधिनियम 1865 में लागू किया गया। इस अधिनियम में दो बार संशोधन किए गए-पहले 1878 में और फिर 1927 में। 1878 वाले अधिनियम में जंगलों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया-आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण। सबसे अच्छे जंगलों को ‘आरक्षित वन’ कहा गया। गाँव वाले इन जंगलों से अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे। वे घर बनाने या ईंधन के लिए केवल सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे।

प्रश्न 5. अंग्रेजों के विरुद्ध बस्तर के लोगों ने क्यों और कैसे बगावत की?

उत्तर -औपनिवेशिक सरकार ने 1905 में जब जंगल के दो-तिहाई हिस्से को आरक्षित करने, घुमंतू खेती को रोकने और शिकार व वन्य उत्पादों के संग्रह पर पाबन्दी लगाने जैसे प्रस्ताव रखे तो बस्तर के लोग बहुत परेशान हो गए।

इस कारण लोगों ने बाजारों में, त्यौहारों के मौके पर और जहाँ कहीं भी गाँवों के मुखिया और पुजारी इकट्ठा होते थे वहाँ जमा होकर इन मुद्दों पर चर्चा करना प्रारम्भ कर दिया। काँगेर वनों के धुरवा समुदाय के लोग इस मुहिम में सबसे आगे थे क्योंकि आरक्षण सबसे पहले यहीं लागू हुआ था। हालांकि कोई एक व्यक्ति इनका नेता नहीं था लेकिन बहुत सारे लोग नेथागर गाँव के गुंडा धूर को इस आन्दोलन की अहम शख्सियत मानते हैं। 1910 में आम की टहनियाँ, मिट्टी के ढेले, मिर्च और तीर गाँव-गाँव चक्कर काटने लगे। यह गाँवों में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का संदेश था। प्रत्येक गाँव ने इस बगावत के खर्चे पर कुछ न कुछ मदद की। बाजार लूटे गए, अफसरों और व्यापारियों के घर, स्कूल और पुलिस थानों को लूटा व जलाया गया तथा अनाज का पुनर्वितरण किया गया। जिन पर हमले हुए उनमें से ज्यादातर लोग औपनिवेशिक राज्य और इसके दमनकारी कानूनों से किसी न किसी तरह जुड़े थे।

प्रश्न 6. भारत में प्रथम वन महानिदेशक कौन था ? भारतीय वन सेवा कब स्थापित की गयी ? वैज्ञानिक वानिकी की मुख्य विशेषताएँ बताइए।

उत्तर भारत में प्रथम वन महानिदेशक डायट्रिच बेंडिस थे उन्होंने 1864 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की। वैज्ञानिक वानिकी की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं

(1) वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया। इनकी जगह सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगा दिए गए। इसे बागान कहा जाता है।

(2) वन विभाग के अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्र की नाप-जोख की और वन-प्रबन्धन के लिए योजनाएँ बनायीं। उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाएगा।  

(3) कटाई के बाद खाली जमीन पर पुनः पेड़ लगाए जाने थे ताकि कुछ वर्षों में यह क्षेत्र पुनः कटाई के लिए तैयार हो जाए।

प्रश्न 7. जावा के कलांग समुदाय के लोगों को कुशल लकड़हारों के रूप में क्यों जाना जाता था ?

उत्तर -जावा में कलांग समुदाय के लोग कुशल लकड़हारे और घुमंतू किसान थे। उनका महत्व इस बात से आँका जा सकता है कि 1755 में जब जावा की माताराम रियासत बँटी तो यहाँ के 6,000 कलांग परिवारों को भी दोनों राज्यों में बराबर-बराबर बाँट दिया गया। उनके कौशल के बगैर सागौन की कटाई कर राजाओं के महल बनाना बहुत मुश्किल था। डचों ने जब अठारहवीं सदी में वनों पर नियन्त्रण स्थापित करना प्रारम्भ किया तब उन्होंने भी कोशिश की कि कलांग उनके लिए कार्य करें।

प्रश्न 8. ब्रिटिश सरकार ने बस्तर के विद्रोह को किस प्रकार दबाया? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -ब्रिटिश सरकार ने बगावत को कुचल देने के लिए सैनिक भेजे। आदिवासी नेताओं ने बातचीत करनी चाही लेकिन ब्रिटिश फौज ने उनके तंबुओं को घेरकर उन पर गोलियां चला दी। इसके बाद बगावत में शरीक लोगों पर कोड़े बरसाते और उन्हें सजा देते सैनिक गाँव-गाँव घूमने लगे। ज्यादातर गाँव खाली हो गए क्योंकि लोग भागकर जंगलों में चले गए थे। अंग्रेजों को फिर से नियन्त्रण पाने में तीन महीने (फरवरी-मई) लग गए। फिर भी वे गुंडा धूर को कभी नहीं पकड़ सके।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जंगलों से होने वाले लाभ लिखिए।

अथवा

वनों से होने वाले छः लाभ लिखिए।

उत्तर वनों से लाभ

(1) लकड़ी की प्राप्ति-वनों से प्राप्त लकड़ी एक महत्वपूर्ण ईंधन है। वृक्षों से सागौन, साल, देवदार, चीड़, शीशम, आबनूस, चन्दन आदि की लकड़ी प्राप्त होती है।

(2) गौण पदार्थों की प्राप्ति-वनों से अनेक प्रकार के गौण पदार्थ प्राप्त होते हैं, जिनमें बाँस, बेंत, लाख, राल, शहद, गोंद, चमड़ा रंगने के पदार्थ तथा जड़ी-बूटियाँ प्रमुख हैं।

(3) आधारभूत उद्योगों के लिए सामग्री-वनों से प्राप्त लकड़ी, घास, सनोवर तथा बाँस से कागज उद्योग; चीड़, स्यूस तथा सफेद सनोवर से दियासलाई उद्योग; लाख से लाख उद्योग; मोम से मोम उद्योग; महुआ की छालें व बबूल से गोंद; चमड़ा उद्योग, चन्दन, तारपीन और केवड़ा से तेल उद्योग; जड़ी-बूटियों से औषधि उद्योग विकसित हुए हैं।

(4) चरागाह-वन क्षेत्र जानवरों के लिए उत्तम चरागाह स्थल हैं। वनों से जानवरों के लिए घास व पत्तियाँ मिलती हैं।

(5) रोजगार-वनों पर 7.8 करोड़ व्यक्तियों की आजीविका आश्रित है। वनों से जो कच्चे पदार्थ मिलते हैं उनसे बहुत से उद्योग चल रहे हैं और करोड़ों व्यक्तियों को रोजगार मिला हुआ है।

(6) राजस्व की प्राप्ति-सरकार को वनों से राजस्व व रायल्टी के रूप में करोड़ों रुपये की प्राप्ति होती है।

(7) विदेशी मुद्रा का अर्जन-वनों से प्राप्त लाख, तारपीन का तेल, चन्दन का तेल, लकड़ी से निर्मित कलात्मक वस्तुओं का निर्यात करने से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 2. ‘डच वैज्ञानिक वानिकी’ पर टिप्पणी कीजिए।

अथवा

डचों ने जावा के लोगों पर कौन से वन-कानून थोपे और क्यों?

उत्तर -उन्नीसवीं सदी में जब लोगों के साथ-साथ इलाकों पर भी नियन्त्रण स्थापित करना अनिवार्य लगने लगा तो डच उपनिवेशकों ने जावा में वन-कानून लागू कर ग्रामीणों की जंगल तक पहुँच पर बंदिशें थोप दी। इसके बाद नाव या घर बनाने जैसे खास उद्देश्यों के लिए, सिर्फ चुने हुए जंगलों से लकड़ी काटी जा सकती थी

और वह भी कड़ी निगरानी में। ग्रामीणों को मवेशी चराने, बिना परमिट लकड़ी ढोने या जंगल से गुजरने वाली सड़क पर घोड़ा-गाड़ी अथवा जानवरों पर चढ़कर आने-जाने के लिए दंडित किया जाने लगा।

भारत की ही तरह यहाँ भी जहाज और रेल लाइनों के निर्माण में वन-प्रबन्धन और वन-सेवाओं को लागू करने की आवश्यकता पैदा कर दी। 1882 में अकेले जावा से ही 2,80,000 स्लीपरों का निर्यात किया गया। स्पष्ट है कि पेड़ काटने, लट्ठों को ढोने और स्लीपर तैयार करने के लिए श्रम की आवश्यकता थी। डचों ने पहले तो जंगलों में खेती की जमीनों पर लगान लगा दिया और बाद में कुछ गाँव को इस शर्त पर इससे मुक्त कर दिया कि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए भैंसें उपलब्ध कराने का काम मुफ्त में किया करेंगे। इस व्यवस्था को ब्लेन्डाँगडिएन्स्टेन के नाम से जाना गया। बाद में वन-ग्रामवासियों को लगान-माफी के बजाय थोड़ा-बहुत मेहनताना तो दिया जाने लगा लेकिन वन-भूमि पर खेती करने के उनके अधिकार सीमित कर दिए गए गए।

प्रश्न 3. बस्तर के लोगों की जीवन-शैली का वर्णन कीजिए।

अथवा

बस्तर क्षेत्र का वर्णन कीजिए।

उत्तर -बस्तर छत्तीसगढ़ के सबसे दक्षिणी छोर पर आंध्र प्रदेश, ओडिशा व महाराष्ट्र की सीमाओं से लगा हुआ क्षेत्र है। बस्तर का केन्द्रीय भाग पठारी है। इस पठार के उत्तर में छत्तीसगढ़ का मैदान और दक्षिण में गोदावरी का मैदान है। इन्द्रावती नदी बस्तर के आर-पार पूरब से पश्चिम की तरफ बहती है। बस्तर में मरिया और मुरिया गोंड, धुरवा, भतरा, हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं। अलग-अलग जबानें बोलने के बावजूद इनके रीति-रिवाज और विश्वास एक जैसे हैं। बस्तर के लोग मानते हैं कि प्रत्येक गाँव को उसकी जमीन धरती माँ’ से मिली है और बदले में वे प्रत्येक खेतिहर त्यौहार पर धरती को चढ़ावा चढ़ाते हैं। धरती के अलावा वे नदी, जंगल व पहाड़ों की आत्मा को भी उतना ही मानते हैं। चूँकि प्रत्येक गाँव को अपनी सीमाओं का पता होता है इसलिए ये लोग इन सीमाओं के अन्दर समस्त प्राकृतिक सम्पदाओं की देखभाल करते हैं। यदि एक गाँव के लोग दूसरे गाँव के जंगल से थोड़ी लकड़ी लेना चाहते हैं तो इसके बदले में वे एक छोटा शुल्क अदा करते हैं जिसे देवसारी, दांड़ या मान कहा जाता है। कुछ गाँव अपने जंगलों की हिफाजत के लिए चौकीदार रखते हैं जिन्हें वेतन के रूप में हर घर से थोड़ा-थोड़ा अनाज दिया जाता है। प्रत्येक वर्ष एक बड़ी सभा का आयोजन होता है जहाँ एक परगने (गाँव का समूह) के गाँवों के मुखिया जुटते हैं और जंगल सहित तमाम दूसरे अहम मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

प्रश्न 4. अस्सी के दशक से वानिकी में आये बदलावों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – अस्सी के दशक से एशिया और अफ्रीका की सरकारों को यह समझ में आने लगा कि वैज्ञानिक वानिकी और वन समुदायों को जंगलों से बाहर रखने की नीतियों के चलते बार-बार टकराव पैदा होते हैं। परिणामस्वरूप, वनों से इमारती लकड़ी हासिल करने के बजाय जंगलों का संरक्षण ज्यादा महत्वपूर्ण लक्ष्य बन गया है। सरकार ने यह भी मान लिया है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वन प्रदेशों में रहने वालों की मदद लेनी होगी। मिजोरम से लेकर केरल तक हिन्दुस्तान में प्रत्येक जगह घने जंगल सिर्फ इसलिए बच पाए कि ग्रामीणों ने सरना, देवराकुडु, कान, राई इत्यादि नामों से पवित्र बगीचा समझकर इनकी रक्षा की। कुछ ग्रामीण क्षेत्र तो वन-रक्षकों पर निर्भर रहने के बजाय अपने जंगलों की रक्षा अपने आप करते हैं-इसमें प्रत्येक परिवार बारी-बारी से अपना सहयोग देता है। स्थानीय वन-समुदाय और पर्यावरणविद् अब वन-प्रबन्धन के वैकल्पिक तौर-तरीकों के बारे में विचार करने लगे हैं।

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