MP Board Class 8th Sanskrit Surbhi Solution Chapter 8 – यक्षप्रश्नाः

Chapter 8 – यक्षप्रश्नाः हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ एवं अभ्यास

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत्. (एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) भूमेः गुरुतरा का? (पृथ्वी से भारी क्या है?)
उत्तर:
माता। (माता)

(ख) खात् उच्चतरः कः? (आकाश से अधिक ऊँचा क्या है?)
उत्तर:
पिता। (पिता)

(ग) वातात् शीघ्रतरं किम्? (वायु से तेज क्या है?)
उत्तर:
मनः। (मन)

(घ) प्रवसतः किं मित्रम्? (विदेश में रहने वाले का मित्र क्या है?)
उत्तर:
सार्थः। (धनयुक्त होना)

(ङ) आतुरस्य मित्रं किम्? (रोगी का मित्र क्या है?)
उत्तर:
भिषग्। (वैद्य)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) का तृणात् बहुतरी? (तिनके से अधिक क्या है?)
उत्तर:
चिन्ता तृणात् बहुतरी। (चिन्ता तिनके से अधिक है।)

(ख) गृहे सतः किं मित्रम्? (घर में रहने वाले का मित्र क्या है?)
उत्तर:
गृहे सतः भार्या मित्रम्। (घर में रहने वाले का मित्र पत्नी है।)

(ग) युधिष्ठिरस्य मातुः नाम किम्? (युधिष्ठिर की माता का नाम क्या था?)
उत्तर:
युधिष्ठिरस्य मातुः नाम कुन्ती। (युधिष्ठिर की माता का नाम कुन्ती था।)

(घ) मरिष्यतः मित्रं किम्? (मरने वाले का मित्र क्या है?)
उत्तर:
मरिष्यतः मित्रं दानम्। (मरने वाले का मित्र दान है।)

(ङ) नकुलस्य मातुः नाम किम्? (नकुल की माता का नाम क्या था?)
उत्तर:
नकुलस्य मातुः नाम माद्री। (नकुल की माता का नाम माद्री था।)

(च) प्रसन्नो भूत्वा यक्षः किम् अकरोत्? (प्रसन्न होकर यक्ष ने क्या किया?)
उत्तर:
प्रसन्नो भूत्वा यक्षः सर्वेभ्यः जीवनं दत्तवान्। (प्रसन्न होकर यक्ष ने सभी को जीवन दे दिया।)

प्रश्न 3.
कोष्ठकप्रदत्तैः शब्दैः सह उचितं विभक्ति प्रयुज्य रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत (कोष्ठक में दिये गये शब्दों के साथ उचित विभक्ति लगाकर रिक्त स्थान भरो-)
(क) चिन्ता ……….. बहुतरी भवति।
(ख) माता ……….. गुरुतरा अस्ति। (भूमि)
(ग) वायोः ……….. शीघ्रतरं भवति। (मन)
(घ) भार्या मम गृहे सतः ……….. भवति। (मित्र)
(ङ) ……….. भिषग् मित्रं भवति। (आतुर)
उत्तर:
(क) तृणात्
(ख) भूमेः
(ग) मनः
(घ) मित्रम्
(ङ) आतुरस्य।

प्रश्न 4.
युग्मनिर्माणं कुरुत(जोड़े बनाओ-)

उत्तर:
(क) → (iii)
(ख) → (iv)
(ग) → (i)
(घ) → (ii)
(ङ) → (vi)
(च)→ (v)

प्रश्न 5.
उदाहरणानुसारं निम्नलिखितपदानां समानार्थकपदानि लिखत
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित पदों के समानार्थक पद लिखो-)

यथा- खात् – आकाशात्
उत्तर:
भूमेः – पृथिव्याः।
वातात् – पवनात्।
आतुरस्य – रुग्णस्य।
तृणात् – बुसात्।
भ्रातृणाम् – सहोदराणाम्।
मातृभ्याम् – जननीभ्याम्।

यक्षप्रश्नाः हिन्दी अनुवाद

यक्ष उवाच-
केनस्विच्छोत्रियो भवति केनस्विद्विन्दते महत्?
केन द्वितीयवान्भवति राजन्! केन च बुद्धिमान?

अनुवाद :
यक्ष बोला-हे राजन्! (मनुष्य) श्रोत्रिय (वेद में प्रवीण) किससे होता है? महत्पद (बड़ा स्थान) किससे प्राप्त करता है? द्वितीयवान् (दूसरे साथी से युक्त) किससे होता है और बुद्धिमान् किससे होता है?

युधिष्ठिर उवाच-
श्रुतेन श्रोत्रियो भवति, तपसा विन्दते महत्।
धृत्या द्वितीयवान्भवति, बुद्धिमान्वृद्धसेवया॥

अनुवाद :
युधिष्ठिर बोला-(मनुष्य) वेदाध्ययन से श्रोत्रिय होता है, तपस्या से महत्पद (बड़ा स्थान) प्राप्त करता है; धैर्य से द्वितीयवान् (दूसरे साथी से युक्त) होता है और वृद्धों की सेवा से बुद्धिमान् होता है।

यक्ष उवाच-
किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात्।
किंस्विच्छीघ्रतरं वायोः किस्विद बहतरं तणात्॥

अनुवाद :
यक्ष बोला-पृथ्वी से भारी क्या है (गौरव किसका है)? आकाश से अधिक ऊँचा क्या है? वायु से तेज क्या है? तिनकों से भी अधिक (असंख्य) क्या है?

युधिष्ठिर उवाच-
माता गुरुतरा भूमेः खात्यितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहतरी तणात्॥

अनुवाद :
युधिष्ठिर बोला-माता पृथ्वी से भारी है (अर्थात् माता का गौरव पृथ्वी से ज्यादा है)। पिता आकाश से अधिक ऊँचे हैं, मन वायु से तेज चलने वाला है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक (जनसंख्या या अनन्त) है।

यक्ष उवाच-
किंस्वित्प्रवसतो मित्रं किंस्विन्मित्रं गृहे सतः।
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन्मित्रं मरिष्यतः॥

अनुवाद :
यक्ष बोला-विदेश में रहने वाले का मित्र क्या है? घर में रहने वाले (गृहस्थ) का मित्र क्या है? रोगी का मित्र क्या है और मरने वाले का मित्र क्या है?

युधिष्ठिर उवाच-
सार्थः प्रवसतोमित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः।
आतुरस्य भिषमित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः॥

अनुवाद :
युधिष्ठिर बोला-धन से युक्त होना विदेश में रहने का मित्र है। घर में रहने वाले (गृहस्थ) का मित्र पत्नी है। रोगी का मित्र वैद्य है और मरने वाले का मित्र दान है।

(युधिष्ठिरस्य उत्तरेण सन्तुष्टः यक्षः अवदत्)
यक्ष उवाच-
भो राजन्! त्वं भ्रातृषु यम् एकम् इच्छसि सः जीवेत्। युधिष्ठिर उवाच-नकुलो जीवेत् इति ममेच्छा अस्ति।

यक्ष उवाच-
प्रियस्ते भीमसेनोऽयमर्जुनो वः परायणम्।
तत् कस्मान्नकुलं राजन् सापलं जीवमिच्छसि॥

अनुवाद :
(युधिष्ठिर के उत्तर से सन्तुष्ट यक्ष बोला) यक्ष ने कहा-हे राजन्! भाइयों में तुम जिस एक को चाहो वह जीवित हो जाये। युधिष्ठिर ने कहा-‘नकुल जीवित हो जाये’ यह मेरी इच्छा यक्ष ने कहा-हे राजन्! तुम्हारा प्रिय भीमसेन है और अर्जुन तुम सबका अनन्य भक्त है, तो फिर किसलिए सौतेले भाई। (नकुल) को जिलाना चाहते हो?

युधिष्ठिर उवाच-
यथा कुन्ती तथा माद्री विशेषो नास्ति मे तयोः।
मातृभ्यां सममिच्छामि नकुलो यक्ष जीवितु॥
युधिष्ठिरस्य निष्पक्षतया धर्मनिष्ठया च प्रसन्नः यक्षः सर्वेभ्यः जीवनं दत्तवान्।

अनुवाद:
युधिष्ठिर ने कहा-हे यक्ष! जैसी मेरे लिए कुन्ती, वैसी माद्री हैं, दोनों में अन्तर नहीं है। दोनों के प्रति समान भाव रखना चाहता हूँ, इसलिए नकुल जीवित हो। युधिष्ठिर की निष्पक्षता और धर्मनिष्ठा से प्रसन्न यक्ष ने सभी को जीवन दे दिया।

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