MP Board Class 8th History Chapter 5 :  जब जनता बगावत करती है : 1857 और उसके बाद

म.प्र. बोर्ड कक्षा आठवीं संपूर्ण हल- इतिहास– हमारे अतीत 3 (History: Our Pasts – III)

Chapter 5 : जब जनता बगावत करती है : 1857 और उसके बाद

प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)

महत्वपूर्ण बिन्दु

  • 1857 ई. तक सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेजों का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हो गया था।  
  • अंग्रेजी शासन की दमनकारी नीतियों से भारतीय सैनिक, कृषक, बुद्धिजीवी, शासक, हिन्दू तथा मुसलमान सभी आक्रोशित तथा असन्तुष्ट थे।  
  • सन् 1857 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के खिलाफ भारतीयों ने बगावत की।  
  • 1857 में भारतीयों ने पहला प्रभावशाली आन्दोलन किया जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता आन्दोलन माना जाता है।  
  • 1857 के स्वतन्त्रता आन्दोलन में मंगल पांडे, बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब, कुंवर सिंह, अवन्ती बाई, झलकारी बाई इत्यादि महान् योद्धाओं ने अंग्रेजों के दाँत खट्टे किये। परन्तु यह क्रान्ति असफल रही।  
  • ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक नये कानून के तहत ईस्ट इंडिया कम्पनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ सौंप दिए। देश के सभी शासकों को भरोसा दिलाया गया कि उनके भू-क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया जायेगा। उन्हें अपनी रियासत अपने वंशजों यहाँ तक कि दत्तक पुत्रों को सौंपने की छूट दे दी गयी, लेकिन वे ब्रिटेन की रानी को अपना अधिपति स्वीकार करें।

महत्वपूर्ण शब्दावली  

सैनिक विद्रोह – जब सिपाही इकट्ठा होकर अपने सैनिक अफसरों का हुक्म मानने से इनकार कर देते हैं। .

फिरंगी – विदेशी।

जन विद्रोह – जनता द्वारा सामूहिक रूप से शासन के विरुद्ध किया गया विरोध।

महत्वपूर्ण तिथियाँ

1857–भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम। .

29 मार्च, 1857 – मंगल पांडे को अंग्रेजी अफसरों पर हमला करने के आरोप में फाँसी पर लटका दिया।

पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

पृष्ठ संख्या # 52

प्रश्न 1. कल्पना कीजिए कि आप कम्पनी की सेना में सिपाही हैं। आप नहीं चाहते कि आपका भतीजा कम्पनी की फौज में नौकरी करे। आप उसे क्या कारण बताएँगे?

उत्तर – कम्पनी की फौज में नौकरी नहीं करने के निम्नलिखित कारण बताएँगे

(1) कम्पनी की फौज में भारतीय सिपाहियों के साथ भेदभाव किया जाता है।

(2) कम्पनी की फौज में नौकरी करके धार्मिक भावना पर ठेस लगती है।

(3) कम्पनी के आदेश की अवहेलना पर सख्त सजा दी जाती है।

पृष्ठ संख्या # 55

प्रश्न 2. सीताराम और विष्णुभट्ट के मुताबिक लोगों के दिमाग में मुख्य चिंताएँ कौन-सी थीं?

उत्तर – सीताराम और विष्णुभट्ट के मुताबिक लोगों के दिमाग में मुख्य चिंताएँ अपने धर्म के भ्रष्ट होने को थी क्योंकि कारतूसों पर चर्बी के इस्तेमाल से मुसलमान और हिन्दू दोनों ही धर्म भ्रष्ट हो जायेंगे तथा लोगों को अंग्रेजी शासन के अत्याचारों की चिंता थी।

प्रश्न 3. उनकी राय में शासकों ने क्या भूमिका निभाई ? सिपाही क्या भूमिका निभाते दिखाई दे रहे थे ?

उत्तर – सीताराम और विष्णुभट्ट की राय में शासक सिपाहियों को धर्म के नाम पर अंग्रेजों के खिलाफ भड़का रहे थे ताकि दिल्ली में बादशाह को दोबारा गद्दी पर बैठाया जा सके।

सिपाही की धार्मिक भावना पर ठेस पहुँचने के कारण सैनिक भी भड़क रहे थे।  

पृष्ठ संख्या # 58

प्रश्न 4. मुगल सम्राट विद्रोहियों का समर्थन करने के लिए क्यों तैयार हुए ?

उत्तर – मुगल सम्राट विद्रोहियों का समर्थन करने को इसलिए तैयार हुए क्योंकि अंग्रेजों ने उनके सारे अधिकार छीन लिए थे। इसलिए अंग्रेजी शासन से छुटकारा पाना चाहते थे।

प्रश्न 5. सिपाहियों के प्रस्ताव को मानने से पहले उन्होंने हालात का जो हिसाब लगाया होगा उसके बारे में एक अनुच्छेद लिखेंउत्तर – मुगलों ने सोचा कि कम्पनी मुगलों के शासन को खत्म करने की पूरी योजना बना चुकी है और इस समय सिपाहियों के दिलों में कम्पनी के विरुद्ध नफरत की चिंगारी भरी हुई है। यदि उन्हें मुगलों का नेतृत्व मिल जाये तो यह चिंगारी एक ज्वाला का काम करेगी जो अंग्रेजों के शासन से मुक्ति दिला सकेगी।

पृष्ठ संख्या 59

प्रश्न 6. उन स्थानों की सूची बनाएँ जहाँ 1857 के मई, जून और जुलाई महीनों में विद्रोह हुए।

उत्तर -1857 के मई, जून और जुलाई के महीनों में विद्रोह की सूची

माह, तिथि     स्थान    क्रान्तिकारी नेता का नाम

10 मई       मेरठ     सैनिक, मंगल पांडे, नागरिक

11 मई       दिल्ली    नागरिक, बहादुरशाह जफर का नेतृत्व

4 जून        झाँसी     रानी लक्ष्मीबाई

18 जून       कानपुर   नाना साहेब 25 जुलाई बिहार कुंवर सिंह

नोट – उत्तरी भारत में विद्रोह के कुछ प्रमुख केन्द्र को देखने के लिए विद्यार्थी पाठ्य-पुस्तक में पृष्ठ संख्या 61 पर दिये गये मानचित्र में देखें।

पाठान्त प्रश्नोत्तर

आइए कल्पना करें

प्रश्न – कल्पना कीजिए कि आप विद्रोह के दौरान अवध में तैनात ब्रिटिश अधिकारी हैं। विद्रोहियों से लड़ाई की अपनी योजनाओं को गुप्त रखने के लिए आप क्या करेंगे?

उत्तर – (1) अवध में ब्रिटिश अधिकारी होने के नाते पहले बढ़ते विद्रोह की खबर अपने उच्च अधिकारी को दूंगा।

(2) विद्रोह की वस्तुस्थिति को जानकर अधिकारियों से जल्द ही विद्रोहियों पर कार्यवाही करने को कहूँगा।

(3) विद्रोह को दबाने के लिए समस्त योजनाओं को गुप्त रखने के लिए किसी भारतीय सेना का सहारा नहीं लूँगा।

(4) विद्रोह करने वाले समस्त सिपाहियों की गतिविधियों पर नजर रखूगा।

फिर से विचार करें

प्रश्न 1. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से ऐसी क्या माँग थी जिसे अंग्रेजों ने ठुकरा दिया ?

उत्तर – झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से मांग थी कि अंग्रेज उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को वैध उत्तराधिकारी मान लें, परन्तु अंग्रेजों ने इसे ठुकरा दिया।

प्रश्न 2. ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने क्या किया ?

उत्तर – ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने निम्नलिखित काम किए

(1) 1850 में ईसाई धर्म अपनाने वालों के लिए एक नया कानून बनाया।

(2) कानून के प्रावधान में ईसाई धर्म अपनाने वाले भारतीय व्यक्ति की पुरखों की सम्पत्ति पर उसका अधिकार पहले जैसा ही रहेगा।

प्रश्न 3. सिपाहियों को नए कारतूसों पर क्यों ऐतराज था?

उत्तर– सिपाहियों को जो कारतूस दिये गये उनमें गाय तथा सूअर की चर्बी लगी होती थी। कारतूस को काम में लाने से पहले उसे दाँतों से काटना पड़ता था। उन्होंने समझा कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं, इसलिए सिपाहियों ने नए कारतूसों पर ऐतराज किया।

प्रश्न 4. अन्तिम मुगल बादशाह ने अपने आखिरी साल किस तरह बिताए?

उत्तर– सितम्बर 1857 में दिल्ली दोबारा अंग्रेजों के कब्जे में आ गई। अन्तिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। उनके बेटों को उनकी आँखों के सामने गोली मार दी गई। बहादुर शाह और उनकी पत्नी बेगम जीनत महल को अक्टूबर 1858 में रंगून जेल भेज दिया गया। इसी जेल में नवम्बर 1862 में बहादुर शाह जफर ने अन्तिम साँस ली। | आइए विचार करें

प्रश्न 5. मई 1857 से पहले भारत में अपनी स्थिति को लेकर अंग्रेज शासकों के आत्मविश्वास के क्या कारण थे ?

उत्तर– मई 1857 से पहले अंग्रेज शासकों के आत्मविश्वास के अग्रलिखित कारण थे

(1) अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं और नवाबों की सम्मान और सत्ता दोनों ही खत्म कर दिये थे।

(2) स्थानीय शासकों की सेनाओं को भंग कर दिया था।

(3) राजस्व वसूली के अधिकार अंग्रेजों ने अपने कब्जे में कर लिए थे।

(4) अंग्रेजों ने किसान और जमींदारों पर भारी भरकम लगान और कर लागू कर दिये थे अर्थात् ग्रामीण क्षेत्रों पर भी अपना शासन स्थापित कर लिया था।

(5) अंग्रेजों ने अपनी सेना में अधिकांशतः भारतीयों की भर्ती कर ली थी उन्हें विश्वास था कि भारतीय सिपाही उनके विश्वसनीय हैं क्योंकि 1857 से पहले भारतीय सिपाहियों की सहायता से उन्होंने कई लड़ाइयाँ और विद्रोह जीते थे। इसलिए उन्हें भारत में अपनी स्थिति पर आत्मविश्वास था।

प्रश्न 6. बहादुर शाह जफर द्वारा विद्रोहियों को समर्थन देने से जनता और राज-परिवारों पर क्या असर पड़ा ?

उत्तर – बहादुर शाह जफर के समर्थन से जनता बहुत उत्साहित हो गयी। उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत मिली। अंग्रेजों से पहले देश के बहुत बड़े हिस्से पर मुगल साम्राज्य का ही शासन था। छोटे शासक और रजवाड़े मुगल बादशाह के नाम पर ही अपना शासन चलाते थे। ब्रिटिश शासन के विस्तार से भयभीत जनता और राज-परिवारों को लगता था कि अगर मुगल बादशाह दोबारा शासन स्थापित कर लें तो वे मुगल आधिपत्य में दोबारा अपने इलाकों का शासन बेफिक्र होकर चलाने लगेंगे।

प्रश्न 7. अवध के बागी भूस्वामियों से समर्पण करवाने के लिए अंग्रेजों ने क्या किया?

उत्तर – अंग्रेजों ने बागी भूस्वामियों से समर्पण करवाने के लिए निम्नलिखित नीति अपनायीं

(1) अंग्रेजों ने भू-स्वामियों के खिलाफ कई मुकदमें चलाये तथा उन्हें फाँसी की सजा दी गयी।

(2) अंग्रेजों ने भू-स्वामियों से कहा कि जिन भूस्वामियों ने विद्रोह में भाग लिया है लेकिन किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की है। वे आत्मसमर्पण कर दें तो उन्हें सुरक्षा की गारंटी दी जायेगी।

(3) अंग्रेजों ने यह घोषणा भी की कि जो भूस्वामी ब्रिटिश सरकार का समर्थन करेंगे उन्हें उनकी जमीन पर अपने पारम्परिक अधिकार का उपभोग करने की स्वतन्त्रता होगी।

प्रश्न 8. 1857 की बगावत के फलस्वरूप अंग्रेजों ने अपनी नीतियाँ किस तरह बदलीं?

उत्तर -1857 की बगावत के फलस्वरूप अंग्रेजों ने अपनी नीतियाँ बदली जो कि निम्नलिखित हैं

(1) ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक नया कानून बनाया और ईस्ट इंडिया कम्पनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ सौंप दिए।

(2) ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल में एक सदस्य को भारत मंत्री के रूप में नियुक्त किया। उसे भारत के शासन सम्बन्धित मामलों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया।

(3) भारत के गवर्नर जनरल का वायसराय का ओहदा दिया गया।

(4) देश के सभी शासकों को भरोसा दिया कि भविष्य में उनके भू-क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया जायेगा। उन्हें अपनी रियासत अपने वंशजों को सौंपने की छूट दी गई।

(5) सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और -यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया।

(6) भारत के लोगों के धर्म और सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करने का फैसला लिया।

आइए करके देखें

प्रश्न 9. पता लगाएँ कि सन सत्तावन की लड़ाई के बारे में आपके इलाके या आपके परिवार के लोगों को किस तरह की कहानियाँ और गीत याद हैं ? इस महान विद्रोह से सम्बन्धित कौन-सी यादें अभी लोगों को उत्तेजित करती हैं ?

उत्तर -सन् सत्तावन की लड़ाई के बारे में इलाके तथा परिवार के लोगों को निम्न कहानियाँ और गीत याद हैं

गीत-

(1) बुन्देलों हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

(2) बन्धुओं उठो! उठो! तुम किस चिन्ता में निमग्न हो। तुम्हें पावन धर्म की सौगन्ध हो बन्धुओं उठो ! उठो!

कहानियाँ –

(1) मंगल पांडे की वीरता।

(2) नाना साहेब की चतुराई।

(3) रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान।

(4) रानी अवन्तीबाई का प्रतिरोध इत्यादि।

इस महान विद्रोह से सम्बन्धित समस्त यादें इतिहास के   माध्यम से अभी भी लोगों को उत्तेजित करती हैं।

प्रश्न 10. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में और पता लगाएँ। आप उन्हें अपने समय की एक विलक्षण महिला क्यों मानते हैं ?

उत्तर रानी लक्ष्मीबाई – रानी लक्ष्मीबाई का जन्म सन् 1828 में बनारस में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था। इनके पिता ने इनका पालन-पोषण एक योद्धा की तरह किया। नाना साहब और तात्या टोपे रानी के अभिन्न मित्र थे। 14 वर्ष की आयु में इनकी शादी झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुई। झाँसी की रानी के एक पुत्र हुआ जिसकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी। कुछ समय पश्चात् इन्होंने एक पुत्र गोद ले लिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। कुछ समय पश्चात् इनके पति राजा गंगाधर राव का निधन हो गया। जिसके पश्चात् इन्होंने झाँसी की बागडोर सँभाली। सन् 1858 ई. को अंग्रेजों ने झाँसी पर आक्रमण किया। झाँसी की रानी ने अंग्रेजों से युद्ध लड़ा। जिसमेंरानी ने अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया। रानी को अनेक घाव लगे जिससे इस वीरांगना का प्राणान्त हो गया। उस समय उनकी आयु केवल 22 वर्ष थी। रानी का बलिदान इतिहास में अमर रहेगा। युग-युग तक देश के स्वाधीनता प्रेमियों को अनुप्राणित करता रहेगा।

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