MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solution Chapter 6 – भक्ति के पद

हिन्दी भाषा भारती पाठ 6– भक्ति के पद

भक्ति के पद सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

(1) 

मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज को पंछी, फिरि जहाज पर आवै।
कमल-नैन को छाँड़ि महातम और देव को ध्यावे?
परम गंग को छोड़ि पियासौ, दुरमति कूप खनावै।
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील फल भावै।
सूरदास, प्रभु, कामधेनु तजि, छरी कौन दुहावै ?

शब्दार्थ – मेरौ= मेरा; अनत-अन्यत्र,दूसरी जगह; पावै प्राप्त कर सकता है; पंछी = पक्षी; फिरि = लौटकर आवै = आ-जाता है; कमल-नैन = कमल के समान नेत्र वाले भगवान कृष्ण; छाँड़ि = छोड़कर या अतिरिक्त; महातम = महान् मूर्ख और देव = अन्य देवता को; ध्यावै = ध्यान करता है; परम = महान्; पियासौ = प्यासा व्यक्ति; दुरमति = दुर्बुद्धि; कूप – कुऔं; खनावै = खुदवाता है; जिहि = जिस; मधुकर = भौरे ने; अंबुज-रस = कमल के पराग का; चाख्यौ = आस्वादन किया है; करील फल = टेंटी; भावै = अच्छी लगें; छेरी = बकरी; दुहावै दुहेगा।

सन्दर्भ प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती के पाठ’ भक्ति के पद’ से अवतरित है। इसके रचयिता ‘सूरदास हैं।

प्रसंग प्रस्तुत पद में सूरदास ने अपनी दीनता भरी विनती को स्पष्ट किया है। वे आशा करते हैं कि हे भगवान श्री कृष्ण जी ! आपके ही चरणों में मुझे शरण प्राप्त होगी।

व्याख्या – मेरा मन दूसरे स्थान पर किस तरह सुख प्राप्त कर सकता है। जिस तरह समुद्री जहाज से जमीन के होने की जानकारी के लिए छोड़ा गया पक्षी लौटकर फिर से जहाज पर ही आ जाता है, क्योंकि स्थल पास में नहीं होता है। उसे उसी जहाज पर शरण प्राप्त होती है। उसी पक्षी की तरह यह मेरा मूर्ख बना मन श्रीकृष्ण को झेड़कर किसी दूसरे देव का ध्यान क्यों धरता है। महान् पुण्यशाली पवित्र गंगा को छोड़कर मूर्ख और कुबुद्धि मनुष्य ही कुआँ खोदने की बात सोचता है। जिस भौरे ने कमल के पराग का ही पान किया हो, वह भौरा करील के फल (टेंटी) क्यों खायेगा ? सूरदास वर्णन करते हैं कि कामधेनु को छोड़कर बकरी दुहने का विचार कौन करता है ? तात्पर्य यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर, हे मेरे मन ! तू किस दूसरे देव की आराधना करने का विचार करता है ? यदि तू ऐसा करता है तो निश्चय ही तू बड़ा मूर्ख है, उचित और अनुचित के भेद को तू नहीं जानता है।

(2) 

जाऊँ कहाँ तजि चरन तिहारे ?
काको नाम पतित पावन ? जग केहि अति दीन पियारे ?
कौन देव बराय बिरद-हित, हठि हठि अधम उधारे ?
खग, मृग, व्याघ, पषान, बिटप, जड़, जवन कवन सुर तारे ?
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब, माया-बिबस बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु कहा ‘अपनपी हारे’।।

शब्दार्थ – तजि = छोड़कर; तिहारे = तुम्हारे; काको = किसका; पतित-पावन = नीच व्यक्ति का उद्धार करने वाला; जग = संसार में; केहि = किसको, अति = बहुत अधिक; दीन = गरीब पियारे= प्रिय हैं; बराय = दूसरा; बिरद-हित = यश के लिए: हठि-हठि= हठपूर्वक; अधम = पापियों का; उधारे = उद्धार किया है; खग = जटायु; मृग = मारीच; व्याघ – वाल्मीकि जो पहले डाकू थे; पषान = अहिल्या; बिटप = यमलार्जुन; जड़भरतमुनि; मनुज = मनुष्य; माया-बिबस = माया से भ्रमित होकर; बिचारे = दीन बने हुए हैं। अपनपौ = अपनेपन अर्थात् अपनी दीनता; हारे = हार मान जाये।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के पाठ’ भक्ति के पद’ से अवतरित है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।

प्रसंग – तुलसीदास भगवान राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति और विश्वास को प्रकट करते हैं। वे अपने इष्ट राम के चरणों में ही शरण प्राप्त करते हैं।

व्याख्या – तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान राम ! मैं आपके चरणों की भक्ति को छोड़कर कहाँ जाऊँ ? आपके अतिरिक्त किसका नाम पतितपावन है ? दीनों के प्रति किसे अति प्रेम है ? अन्य कौन-सा देवता है जिसने हठपूर्वक अपने यश के लिए पापियों का उद्धार किया हो ? पक्षी (जटायु), मृग (मारीच), व्याध वाल्मीकि), पाषान (अहिल्या), वृक्ष (यमलार्जुन),जड़ (भरत मुनि) आदि का किस देवता ने संसार-सागर से उद्धार किया है ? देव, राक्षस, मुनि, नाग और मनुष्य आदि सभी माया के वशीभूत होकर दयनीय बने हुए हैं। इसलिए, तुलसीदास अपने आपको समझाते हुए कहते हैं कि इनके समक्ष तू (तुलसी) अपनी दीनता का बखान क्यों करता है ?

(3) 

अब कैसे छूटै नाम रट लागी ? प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी, जा की अंग-अंग बास समानी ।।
प्रभुजी तुम घनवन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती,जाकी ज्योति बरे दिन राती ।।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करे रैदासा ।।

शब्दार्थ – छूटै = समाप्त हो; नाम रट = भगवान के नाम की रट: अंग-अंग = शरीर के प्रत्येक अंग में बास = सगन्धः समानी = व्याप्त हो गयी है; घन बादल; वन जंगल (संसार); हम = प्राणी; मोरा = मोर हैं; जैसे = जिस तरह; चितवत = एक टक होकर देखता रहता है; चंद = चन्द्रमा को; चकोरा = चकोर पक्षी; बाती = बत्ती; ज्योति = प्रकाश, उजाला; बरे = जलती है; दिन राती रात और दिन; सोनहि-सोने में।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती के पाठ ‘भक्ति के पद से अवतरित है। इसके रचयिता भक्त कवि रैदास हैं।

प्रसंग – भक्त कवि रैदास ने इस पद में बताया है कि वे ‘दास’ भाव की भक्ति करते हैं।

व्याख्या – हे प्रभो ! तुम्हारे नाम की लगी हुई रट किसी भी तरह नहीं छट सकती। तुम सुगन्धित चन्दन हो, हम (मैं) पानी के समान हैं। चन्दन की सुगन्ध जल के साथ मिलकर उसमें समा जाती है। उसी तरह, हे प्रभो ! तुम्हारी भक्ति में मेरा अंग-अंग डूबा हुआ है। हे प्रभो ! तुम बादल के समान हो, और हम (भक्तगण) मोर के समान है। हम आपकी तरफ ठीक उसी तरह एकटक होकर देखते रहते हैं, जिस तरह चकोर पक्षी चन्द्रमा की ओर देखता रहता है। आगे फिर कवि कहता है कि हे ईश्वर ! तुम दीपक हो और हम उस दीपक की बत्ती के समान हैं, जिसकी लौ की ज्योति रात-दिन जलती रहती है अर्थात् तुम्हारा ही तेज सर्वत्र बिखरा हुआ है। कवि फिर कहता है कि हे ईश्वर ! तुम मोती के समान हो और मोती पिरोये गये धागे के समान हम (भक्त) लोग हैं अर्थात् भक्त ईश्वर से मिलकर अपनी बात बना ले जाता है। रैदास कवि कहते हैं कि हे प्रभो ! मैं आपका दास हूँ और तुम मेरे स्वामी हो। इस तरह मैं दास भाव की भक्ति करता हूँ।

(4) 

पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सबायो।।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
मीरा,के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस गायो।।

शब्दार्थ – पायो = प्राप्त कर लिया है; अमोलक अमूल्य, बेशकीमती किरपा= कृपा, दया; अपनायो- अपना लिया है, स्वीकार कर लिया है। पूँजी = सम्पत्ति खोवायो – खो दिया है; दिन-दिन-प्रतिदिन, रोजाना; बढ़त = वृद्धि हो रही है; सबायो = सवा गुना; सत = सत्य, खेवटिया = खेने वाला; तर आयो = उद्धार प्राप्त कर लिया; नागर = चतुर: हरख-हरख = हर्षित होकर, प्रसन्न होकर; जस = यश, कीर्ति; गायो = गाया है।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती के पाठ’ भक्ति के पद’ से अवतरित है। इस पद की रचयिता भक्त कवयित्री ‘मीराबाई हैं।

प्रसंग – मीरा भगवान कृष्ण की भक्ति करती हैं। वह उनके यश का गान बहुत ही हर्षपूर्वक करती हैं।

व्याख्या – मीराबाई कहती है कि मैंने राम रूपी रत्न को धन के रूप में प्राप्त कर लिया है। मेरे श्रेष्ठ गुरु ने मुझे एक बेशकीमती वस्तु प्रदान की है। मेरे गुरु ने बड़ी ही कृपा करते हुए मुझे अपना लिया है। इस तरह मैंने प्रत्येक जन्म की पूँजी प्राप्त कर ली है। संसार सम्बन्धी सब कुछ (धन इत्यादि) खो दिया। यह भक्ति रूपी सम्पत्ति बहुत ही अजब है जिसे किसी भी तरह खर्च नहीं किया जा सकता। कोई चोर भी इसे चुरा नहीं सकता। यह भक्ति रूपी धन प्रतिदिन ही सवाया होकर बढ़ता जा रहा है। सत्य की नाव को खेने वाला यदि सतगुरु है तो आसानी से ही संसार रूपी सागर को सहज ही पार किया जा सकता है। मीरा वर्णन करती हैं कि मेरे प्रभु तो गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले हैं; वे अति चतुर हैं। मैंने तो उनके यश का गान हर्षित होकर किया है।

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
पंछी = पक्षी; कूप = कुआँ; मधुकर = भौंरा; तजि = छोड़कर; अधम = नीच; दनुज = राक्षस, दानव; घन = बादल; चकोरा = चकोर, चकवा-चकवी; पूँजी = धन; छाँड़ि= छोड़कर; छेरी = बकरी; अम्बुज= कमल; उधारे = उद्धार किया; बास = सुगन्ध।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए

(क) सूर के मन को सुख कहाँ प्राप्त होता है ?
उत्तर
सूरदास के मन को सुख भगवान श्रीकृष्ण के चरणों की भक्ति में प्राप्त होता है।

(ख) अधम का उद्धारक कौन है ?
उत्तर
अधम के उद्धारक भगवान राम हैं।

(ग) रैदास किसके आराधक थे ?
उत्तर
रैदास ईश्वर के नाम के आराधक थे।

(घ) मीराबाई को कौन-सा रत्न प्राप्त हो गया ?
उत्तर
मीराबाई को राम रत्न प्राप्त हो गया।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए

(क) “प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी …………… पंक्ति किस कवि की है ?
(अ) सूर
(आ) तुलसी
(इ) रैदास
(ई) मीराबाई
उत्तर
(इ) रैदास

(ख) तुलसीदास की भक्ति निम्नलिखित में से किस भाव की है ?
(अ) सखाभाव
(आ) दासभाव
(इ) मित्रभाव
(ई) गुरु भाव।
उत्तर
(आ) दासभाव

(ग) ब्रज भूमि में किसकी झाड़ियाँ (कुंज) अधिक मिलती हैं?
(अ) आम
(आ) जामुन,
(इ) नीम
(ई) करील।
उत्तर
(ई) करील

(घ) निम्नलिखित रचनाकारों में से किसका सम्बन्ध राजस्थान से था?
(अ) सूर
(आ) तुलसी
(इ) मीरा
(ई) बिहारी।
उत्तर
(इ) मीरा।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए

(क) ‘जहाज का पक्षी’ किस बात का प्रतीक है? आशय स्पष्ट कीजिए
उत्तर
‘जहाज का पक्षी’ भगवान कृष्ण रूपी जहाज पर स्थल के दूर या समीप होने की जानकारी देने वाला पक्षी रूप भक्त है। जिस तरह समुद्र से यात्रा करने वाले जहाज से जमीन किधर है और कितनी दूर है, इसकी जानकारी लेने के लिए पक्षियों को छोड़ा जाता था। जब जमीन कहीं नहीं दीखती और जमीन पक्षियों की पहुँच से बाहर होती थी, तो पक्षी लौटकर जहाज पर ही आ जाते थे। यदि जमीन दूर या समीप होती, तो पक्षी उसी दिशा में उड़ते हुए चले जाते थे और वह जमीन ही उनकी शरण स्थल बन जाती थी। नाविक भी जहाज को उसी दिशा में खेने लग जाते थे। उस जमीन पर जाकर जहाज अपना लंगर डाल देता था। यह उस समय होता था जब कुतुबनुमा आदि दिशासूचक यन्त्रों का आविष्कार नहीं हुआ था। इस पद में कवि ने अपने आपको जहाज के पक्षी के (भक्त) रूप में चित्रित किया है जो बार-बार सभी ओर से निराश होकर श्रीकृष्ण के चरणों रूपी जहाज पर शरण प्राप्त करता है।

(ख) तुलसी ने किस-किसके उद्धार का उल्लेख किया है ?
उत्तर
तुलसी ने वर्णन किया है कि खग (जटायु), मृग (मारीच), व्याघ (वाल्मीकि), पषान (शाप से पत्थर बनकर पड़ी हुई गौतम पत्नी अहिल्या); बिटप (यमलार्जुन नामक वृक्ष); जड़ (भरत मुनि); आदि का उद्धार भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में और भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में किया था। जटायु पक्षी सीता हरण के समय, सीता को बचाने के लिए रावण से संघर्ष करते हुए घायल हो गया था। श्रीराम ने उसका उद्धार किया था। मृग (मारीच) रावण का सम्बन्धी था जो रावण की सहायता के ‘लिए कपट-मृग (स्वर्ण मृग) बना था; जिसका राम ने उद्धार किया था। व्याध (वाल्मीकि) पहले डाकू थे। राम शब्द का उल्टा जाप करने से उनका कल्याण हो गया। पषान (अहिल्या) गौतम ऋषि की पत्नी थीं। वे अपने ऋषि पति के द्वारा दिये गये शाप के कारण पत्थर (पाषाण) बन गई थीं। भगवान राम ने अपने चरणों की धूल के प्रताप से उनका उद्धार किया था। यमलार्जुन को श्राप लगा और वे वृक्ष बन गये थे। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने उनका उद्धार किया। इस तरह विभिन्न रूप में पतित हुए प्राणियों का भगवान ने उचित समय पर उद्धार किया था।

(ग) रैदास ने भगवान से अपना सम्बन्ध स्थापित करते हुए किस-किससे अपने को जोड़ा है?
उत्तर
रैदास ने भगवान से अपने आपको कई तरह से जोड़ा है। उन्होंने भगवान को चन्दन, धन (बादल), चन्द्रमा, दीपक, मोती के रूप में है और अपने आपको क्रमशः पानी, मोर, चकोर, बत्ती, धागे के रूप में चित्रित किया है। चन्दन पानी के संयोग से घिस जाता है और उसकी गंध फैलने लगती है। बादल की गरजना के साथ ही मोर कूकता है। चन्द्रमा को चकोर एकटक ही देखता है। दीपक में बत्ती होती है, वह दीपक की ज्योति बिखेरती है। मोतियों में धागा पिरोया जाता है, फिर हार (माला) बन जाता है। सोने को सुहागे से चमक प्राप्त होती है। इस तरह ईश्वर से इन जीवों का विभिन्न प्रकार का सम्बन्ध है।

(घ) मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर
मीरा की भक्ति दास भावना से ओत-प्रोत है। वे भगवान कृष्ण की भक्त दासी हैं। ईश्वर की भक्ति उनके लिए वह रत्न है जिसे कोई चोर चुरा नहीं सकता, खर्च करने पर भी खर्च नहीं होता। भगवान की भक्ति का रत्न तो प्रतिदिन सवाया ही होता जाता है। इस प्रकार ईश-भक्ति से मनुष्य सतगुरु की कृपा प्राप्त कर लेता है और सत पर आधारित मनुष्य की जीवन नौका बड़ी सरलता से संसार सागर को पार कर जाती है। ईश्वर की भक्ति ही मनुष्य को उद्धार प्राप्त कराने का एकमात्र साधन है। ईश्वर की भक्ति तो संसार की विविध वस्तुओं के प्रति मोह त्यागने पर ही प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) कौन देव बराय बिरद-हित, हठि-हठिअधम उचारे ?
उत्तर
तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान राम ! मैं आपके चरणों की भक्ति को छोड़कर कहाँ जाऊँ ? आपके अतिरिक्त किसका नाम पतितपावन है ? दीनों के प्रति किसे अति प्रेम है ? अन्य कौन-सा देवता है जिसने हठपूर्वक अपने यश के लिए पापियों का उद्धार किया हो ? पक्षी (जटायु), मृग (मारीच), व्याध वाल्मीकि), पाषान (अहिल्या), वृक्ष (यमलार्जुन),जड़ (भरत मुनि) आदि का किस देवता ने संसार-सागर से उद्धार किया है ? देव, राक्षस, मुनि, नाग और मनुष्य आदि सभी माया के वशीभूत होकर दयनीय बने हुए हैं। इसलिए, तुलसीदास अपने आपको समझाते हुए कहते हैं कि इनके समक्ष तू (तुलसी) अपनी दीनता का बखान क्यों करता है ?

(ख) सूरदास प्रभु काम धेनु तजि, छेरी कौन दुहावै ?
उत्तर
सूरदास वर्णन करते हैं कि कामधेनु को छोड़कर बकरी दुहने का विचार कौन करता है ? तात्पर्य यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर, हे मेरे मन ! तू किस दूसरे देव की आराधना करने का विचार करता है ? यदि तू ऐसा करता है तो निश्चय ही तू बड़ा मूर्ख है, उचित और अनुचित के भेद को तू नहीं जानता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का सन्दर्भ सहित भाव स्पष्ट कीजिए
(क) प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।
उत्तर
इस पंक्ति के सन्दर्भ सहित भाव के लिए ‘सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या’ शीर्षक के पद्यांश-03 की व्याख्या सन्दर्भ-प्रसंग सहित देखिए।

(ख) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिकोई चोर नलेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो।।

उत्तर
इन पंक्तियों के सन्दर्भ सहित भाव के लिए ‘सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या’ शीर्षक के पद्यांश-04 की व्याख्या सन्दर्भ-सहित देखिए।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प छाँटकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) पंछी तद्भव शब्द है। इसका तत्सम रूप …… है। (पक्षी, पक्षि, पंच्छी)
(ख) चरन तद्भव शब्द है। इसका तत्सम रूप ……………… है। (पैर, चारन, चरण)
(ग) कमल का पर्यायवाची ……. शब्द है। (नीरद, जलद, नीरज)
(घ) रात का पर्यायवाची ……… है। (दिननाथ, रजनीपति, रजनी)
उत्तर
(क) पक्षी
(ख) चरण
(ग) नीरज
(घ) रजनी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वर्ग पहेली में रात, पानी, कमल के दो-दो पर्यायवाची शब्द दिए हैं। उन्हें ढूँदिए तथा लिखिए।
उत्तर
शब्द – पर्यायवाची
रात = रात्रि, रजनी।
पानी = तोय, जल।
कमल = नीरज, तोयज।

प्रश्न 3.
तालिका में दिए गए शब्दों की सही जोड़ी बनाइए
उत्तर
तद्भव शब्द – तत्सम शब्द
(क) महातम – (1) दुर्मति
(ख) दुरमति – (2) स्वर्ण
(ग) मानुस – (3) माहात्म्य
(घ) सोना – (4) मनुष्य
उत्तर
(क)-(3), (ख)→(1), (ग)→(4), (घ)→2 प्रश्न 4.
निम्नलिखित छंदों में प्रयुक्त मात्राएँ गिनकर लक्षण के अनुसार छंद का नाम लिखिए
(क) वृक्ष कबहु नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।।

उत्तर
यह छंद दोहा है। यह मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ तथा सम चरणों (दूसरे और चौथे) में 11-11 मात्राएँ हैं।


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