MP Board Class 7th Solution For Sahayak Vachan Chapter 1 : योग परिचय

Class 7th सहायक वाचन Solution

खण्ड 2 : योग शिक्षा ( yoga siksha )

पाठ 1 : योग परिचय

रिक्त स्थान की पूर्ति

1. योग ………………….. वृक्ष के समान है।

2. अष्टांग योग का सातवाँ अंग …………………. है।

3. योगाभ्यास के लिए सर्वोत्तम समय …………………. होता है।

उत्तर– 1. कल्प, 2. ध्यान, 3. प्रात:काल

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. योग शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों को लिखिए।

उत्तर –

योग शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य – योग शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) योग शिक्षा विभिन्न स्तरों पर लाभ पहुँचाकर व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करती है।

(2) योग शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को भौतिक (शारीरिक) स्वास्थ्य लाभ होता है।

(3) योग शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य लाभ होता है।

(4) योग शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ होता है।

(5) नियमित योगाभ्यास शारीरिक एवं मानसिक समरूपता को अनुशासित करने की क्षमता रखता है।

(6) व्यक्ति योग शिक्षा के माध्यम से आज के आपाधापी, भागदौड़ वाले इस युग में तनाव से मुक्त होता है।

प्रश्न 2. अष्टांग योग की विवेचना कीजिए ।

उत्तर—

अष्टांग योग — महर्षि पतंजलि कृत अष्टांग योग उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है। इसके अनुसार अष्टांग ज्ञान के निम्नलिखित आठ अंग बताए गए हैं—

(1) यम, (2) नियम, (3) आसन, (4) प्राणायाम, 5) प्रत्याहार, (6) धारणा, (7) ध्यान, एवं (8) समाधि ।

इनमें प्रथम पाँच अंग बहिरंग साधन एवं अन्तिम तीन अंग अन्तरंग साधन कहे गए हैं। अर्थात् प्रथम पाँच का शारीरिक स्तर पर तथा अन्तिम तीन का मानसिक स्तर पर अभ्यास किया जाता है। इन आठ अंगों के कारण ही इस योग को अष्टांग योग कहा जाता है।

इन अंगों की संक्षिप्त विवेचना निम्न प्रकार है-—

(1) यम—अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को यम कहा जाता है। ये वे मूल्य हैं जिनके अभ्यास से व्यक्ति के सामाजिक जीवन में सुख-शान्ति एवं समरसता की प्राप्ति के फलस्वरूप विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास होता है।

(2) नियम — शौच (स्वच्छता), संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान नियम कहलाते हैं । इनके द्वारा मन, कर्म, वचन में अहिंसा, रागद्वेष से मुक्ति, त्याग एवं वैराग्य तथा अज्ञानता से मुक्ति मिलती है।

(3) आसन – शारीरिक स्थिति को आसन कहा जाता है। इसके द्वारा माँसपेशियों, नाड़ियों एवं ग्रंथियों की प्रणाली को सम्यक स्थिति में रखकर शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है तथा मन की चंचलता दूर होती है।

(4) प्राणायाम – प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना होता है। प्राण एवं आयाम जिसका अर्थ होता है प्राण पर नियन्त्रण । प्राणायाम द्वारा नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है एवं मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।

(5) प्रत्याहार — इन्द्रियों को अपने विषयों से परे आत्मतत्व की ओर अन्तर्मुखी होना प्रत्याहार कहलाता है। इसके द्वारा इन्द्रियों का परम वशीकरण प्राप्त होता है।

(6) धारणा – धारणा के अभ्यास के दौरान हमारा मन केवल अपने लक्ष्य पर ही केन्द्रित होता है। इससे धैर्य की प्राप्ति होती है ।

(7) ध्यान — चित्त की एकाग्रता, दर्शन, अन्तरदर्शन अर्थात् अपने में लीन होना ही ध्यान कहलाता है। इसके फलस्वरूप दिव्य ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

(8) समाधि——गहन ध्यान के द्वारा प्राप्त दिव्य चेतना की वह अवस्था जिसमें साधक अपने इष्ट (परमात्मा) के साथ एक हो जाता है, समाधि कहलाती है। समाधि समग्र चेतना, आत्मानुभूति एवं परमानंद की अवस्था होती है। इसके द्वारा चित्त और शरीर में अद्भुत शक्ति, कुण्डलिनी का जागरण और सिद्धियों का अवतरण होता है।

प्रश्न 3. योगाभ्यास के दौरान ध्यान रखने योग्य सावधानियों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – योगाभ्यास के दौरान ध्यान रखने योग्य साव- धानियाँ—योगाभ्यास के दौरान निम्नलिखित प्रमुख सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए—

(1) योगाभ्यास का स्थान साफ-सुथरा, हवादार तथा शान्तिपूर्ण होना चाहिए।

(2) योगाभ्यास से पूर्व मल त्याग, दाँतों तथा मुँह की सफाई एवं हाथ पाँवों को धोकर स्वच्छ कर लेना चाहिए।

(3) योगाभ्यास के समय शरीर पर स्वच्छ, हल्के तथा सुखदायक वस्त्र ही धारण करने चाहिए।

(4) योगाभ्यास के लिए सर्वोच्च उपयुक्त समय प्रात:काल का होता है। अत: जहाँ तक सम्भव हो योगाभ्यास प्रातःकाल ही करना चाहिए।

(5) योगाभ्यास पुस्तकें पढ़कर या टी. वी. देखकर ही नहीं करना चाहिए बल्कि किसी योग्य अनुभवी प्रशिक्षक के निर्देशन में ही योगाभ्यास करना चाहिए।

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