पाठ 14 : मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है
सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
1.
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।
चलने के प्रण से, तुम्हें नहीं टलना है।
केवल गति ही जीवन, विश्रान्ति पतन है।
तुम ठहरे, तो समझो ठहरा जीवन है।
जब चलने का व्रत लिया, ठहरना कैसा?
अपने हित सुख की खोज बड़ी छलना है।
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।
शब्दार्थ – प्रण = प्रतिज्ञा; टलना = हटना; गति = चलना; विश्रान्ति = थकान, या रुकावट; पतन = गिरावट, अधोगति; ठहरे = स्थिर होना, रुकना; व्रत = प्रण, प्रतिज्ञा; हित = भलाई के लिए, कल्याण के लिए;
छलना = धोखा; ठहरो-रुको।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक की कविता ‘मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता श्रीकृष्ण ‘सरल’ हैं।
प्रसंग – जीवन गतिमान होता है। ठहराव आने पर अवनति हो जाती है।
व्याख्या – हे मनुष्य ! तुम्हें ठहरना नहीं है। तुम्हें तो लगातार चलते रहना है। तुमने चलने का जो प्रण (व्रत, प्रतिज्ञा) किया है, उसी पर तुम्हें मजबूती से बने रहना है। उससे बिल्कुल भी हटना नहीं है। जीवन में गति हुआ करती है। थकान या रुकावट आने पर आदमी को समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन में गिरावट आ गई। इसलिए तुम्हारे ठहराव से जीवन भी ठहर जाता है। शायद उसे फिर जीवन नहीं कहते हैं, परन्तु जब हमने चलते रहने का प्रण किया हुआ है, प्रतिज्ञा की हुई है तो ठहराव किस बात का, कैसा ? अपने कल्याण के लिए यदि हम सुख की खोज करते हैं, तो यही एक धोखा है। तुम्हें बिना ठहरे ही चलते रहना है।
2.
तुम चलो, जमाना अपने साथ चलाओ,
जो पिछड़ गये हैं, आगे उन्हें बढ़ाओ।
तुमको प्रतीक बनना है, विश्व प्रगति का,
तुमको जनहित के साँचे में ढलना है।
मत व्हरो तुमको चलना ही चलना है।
शब्दार्थ – जमाना = युग; प्रतीक = चिह्न, पहचान; विश्व प्रगति-संसार की उन्नति जनहित सभी लोगों की भलाई के।
सन्दर्भ – पूर्व की तरह। प्रसंग-कवि सन्देश दे रहा है कि हमें आगे बढ़ना चाहिए और दुनिया के अन्य लोगों को भी आगे बढ़ाना चाहिए।
व्याख्या – कवि कहता है कि तुम्हें लगातार चलते रहना है, साथ ही युग को भी अपने साथ चलाना है। इस उन्नति की दौड़ में जो पीछे रह गये हैं, उन्हें भी आगे बढ़ाने का हमारा कर्तव्य है। इस तरह संसार की उन्नति का, उसमें परिवर्तन लाने का आदर्श बनकर तुम्हें प्रतीक (पहचान) बनना है। इस संसार के लोगों की भलाई के लिए कार्य करने के साँचे में तुम्हें ढल जाना चाहिए। इसलिए तुम ठहरो मत, तुम्हें तो आगे ही आगे बढ़ते जाना है।
3.
बाधाएँ, असफलताएँ तो आती हैं।
दृढ़ निश्चय लख, वे स्वयं चली जाती हैं।
जितने भी रोड़े मिलें, उन्हें ठुकराओ,
पथ के काँटों को पैरों से दलना है।
मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
शब्दार्थ – बाधाएँ = रुकावटें; असफलताएँ = विफलताएँ; दृढ़ निश्चय- पक्का इरादा; लख – देखकर रोड़े-रुकावट, मार्ग की बाधाएँ ठुकराओ = ठोकर मारकर हटा दो; पथ – मार्ग; दलना = कुचलना है।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक की कविता ‘मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता श्रीकृष्ण ‘सरल’ हैं।
प्रसंग – कवि सन्देश देता है कि हमें असफलताओं, बाधाओं से नहीं घबराना चाहिए।
व्याख्या – मनुष्य के जीवन में आने वाली बाधाएँ (रुकावटें) और विफलताएँ मनुष्य के पक्के इरादों को देखकर अपने आप ही चली जाती हैं। वे उसके मार्ग में रुकावट बनने से हट जाती हैं। इसलिए मार्ग के रोड़ों को अपने पैर की ठोकर से एक तरफ हटा दो। अपने मार्ग के काँटों को अपने पैरों से कुचल डालो और अपने मार्ग पर चलते रहो, तुम्हें रुकना नहीं है।
4.
जो कुछ करना है, उठो ! करो, जुट जाओ,
जीवन का कोई क्षण, मत व्यर्थ गवाओ।
कर लिया काम, भज लिया राम यह सच है,
अवसर खोकर तो सदा हाथ मलना है।
मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
शब्दार्थ – जुट जाओ – (काम में) लग जाओ; व्यर्थ = बेकार, निष्फल; गँवाओ= नष्ट करो, बिताओ; अवसर खोकर – मौका नष्ट करके; सदा = हमेशा; हाथ मलना है पश्चाताप करना है, पछताना है।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक की कविता ‘मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता श्रीकृष्ण ‘सरल’ हैं।
प्रसंग – कवि कहता है कि समय व्यर्थ बिताकर मनुष्य को जीवनभर पश्चाताप करना पड़ता है।
व्याख्या – हे मनुष्यो ! तुम्हें जो भी कार्य करना है, उसे पूरा करने के लिए तुम्हें उठना चाहिए। कार्य पूरा करो। कार्य में तल्लीन होकर लग जाओ। अपने जीवन के समय का एक भी क्षण व्यर्थ (बेकार के कामों में) नहीं बिताना चाहिए। यदि तुमने अपने कर्तव्य का पालन किया हुआ है, तो समझो तुमने राम का भजन कर लिया। अर्थात् अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना ही ईश्वर की भक्ति है। काम को पूरा करने का समय गंवा दिया, तो फिर सदा ही पछताना पड़ेगा। इसलिए तुम्हें ठहरना नहीं, सदैव गतिमान बने रहो।
पाठ का अभ्यास
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
(क) कवि का ठहरने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
ठहरने से कवि का तात्पर्य है, गतिहीन हो जाना, किसी भी प्रकार की उन्नति से रहित। दूसरा अर्थ जीवन का रुक जाना भी होता है।
(ख) हमें अपने साथ किन्हें लेकर चलना है?
उत्तर
हमें अपने साथ जमाने को लेकर चलना है। साथ ही, पिछड़े हुए लोगों को भी आगे बढ़ाना है।
(ग) जीवन की बाधाओं को कैसे दूर किया जा सकता
उत्तर
पक्के निश्चय से (पक्के इरादों से) जीवन की बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
(घ) कवि के अनुसार मनुष्य को कब पछताना पड़ता है?
उत्तर
काम करने के उचित अवसर के हाथ से निकाल दिये जाने पर मनुष्य को पछताना पड़ता है।
(ङ) कवि निरन्तर चलते रहने को महत्त्व क्यों दे रहा
उत्तर
कवि निरन्तर चलते रहने को महत्त्व इसलिए दे रहा है, क्योंकि ठहरना पतन का और मृत्यु का प्रतीक है। जीवन में ठहराव अवनति लाने वाला होता है।
(च) समय व्यर्थ क्यों नहीं गवाना चाहिए?
उत्तर
हमें अपना समय व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। अपनी जिम्मेदारी का निभाना ही ईश्वर की पूजा है। अतः प्रत्येक क्षण का सही उपयोग करते हुए काम को पूरा करें, नहीं तो काम करने के उचित अवसर के बीत जाने पर हमें पछताना पड़ेगा।
प्रश्न 2.
निम्नांकित पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए
(क) तुमको प्रतीक बनना है, विश्व प्रगति का।
तुमको जनहित के साँचे में ढलना है।
उत्तर
हे मनुष्य, तुम्हें संसार की प्रगति के प्रतीक (पहचान) बनकर प्रत्येक मनुष्य की भलाई के लिए एक साँचा . (आदर्श) बन जाना चाहिए।
(ख) जितने भी रोड़े मिलें, उन्हें ठुकराओ।
पच के कांटों को पैरों से दलना है।
उत्तर
हे मनुष्य, तुम्हारे मार्ग में कितनी ही बाधाएँ और रुकावटें भले ही आ जाएँ, परन्तु उन्हें अपने पैर की ठोकर से हटा दो। मार्ग में कितने भी काँटे हो सकते हैं, परन्तु हिम्मत के साथ उनके ऊपर से चलते हुए, उन्हें कुचलते हुए आगे ही आगे बढ़ते जाना चाहिए। मार्ग की बाधाओं और रुकावटों को हिम्मत से दूर करते हुए, अपने निश्चित मार्ग पर आगे ही आगे गतिमान बने रहना हमारा कर्तव्य है।
प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) सुख की खोज बड़ी ………….. है।
(ख) जनहित के साँचे में ……….. है।
(ग) काँटों को पैरों से ……….. है।
(घ) अवसर खोकर हाथ ………… है।
(ङ) प्रण से तुम्हें नहीं ………. है।
उत्तर
(क) छलना
(ख) ढलना
(ग) दलना
(घ) मलना
(ङ) टलना
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखिए। साथ ही कविता में उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए, जिनमें इन मुहावरों का प्रयोग हुआ है
(क) साँचे में ढलना
(ख) हाथ मलना
(ग) व्रत लेना
(घ) जुट जाना
(ङ) अवसर खोना।
उत्तर
(1) अर्थ-
(क) साँचे में ढलना – अनुसार बन जाना
(ख) हाथ मलना – पछताना
(ग) व्रत लेना – प्रतिज्ञा कर लेना
(घ) जुट जाना – लग जाना
(ङ) अवसर खोना- समय को निकाल देना।
(2) पंक्तियाँ जिनमें मुहावरों का प्रयोग हुआ है
(क) तुमको जनहित के साँचे में ढलना है।
(ख) अवसर खोकर तो सदा हाथ मलना है।
(ग) जब चलने का व्रत लिया, ठहरना कैसा?
(घ) जो कुछ करना है, उठो ! करो, जुट जाओ।
(ङ) अवसर खोकर तो सदा हाथ मलना है।
प्रश्न 2.
इस कविता के तुकान्त शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर
(क) चलना, टलना, छलना, ढलना, दलना मलना।
(ख) पतन, जीवन।
(ग) चलाओ, बढ़ाओ, ठुकराओ, जुट जाओ, गँवाओ।
(घ) आती, जाती।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित शब्दों के । विलोम शब्द भरिए
(क) जीवन में उत्थान और ………… आते ही रहते हैं।
(ख) कहीं भी अधिक ठहरना अच्छा नहीं, हमेशा प्रगति के – पथ पर ……..अच्छा है।
(ग) पशु-पक्षी भी अपना हित ……….. जानते हैं।
(घ) असफलता के बाद ……….का मिलना एक प्रक्रिया
(ङ) सुख सभी चाहते हैं ………कोई नहीं।
उत्तर
(क) पतन
(ख) चलना
(ग) अनहित
(घ) सफलता
(ङ) दुःख।
प्रश्न 4.
दिये गये प्रयोगों की तरह नीचे दिए गए वाक्यों 1 में ‘मत’ का प्रयोग कीजिए।
(क) रुको मत, आगे बढ़ो।
(ख) पढ़ो मत, बात करो।
(ग) हँसो मत, भोजन करो।
(घ) भागो मत, धीरे चलो।
उत्तर
(क) मत रुको, आगे बढ़ो।
(ख) पढ़ो, मत बात करो।
(ग) मत हँसो, भोजन करो।
(घ) मत भागो, धीरे चलो।