खण्ड 3 : हमारा मध्यप्रदेश
पाठ 3 : मध्य प्रदेश की जनजातीय संस्कृति
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जनजातीय पर्व एवं त्यौहारों का वर्णन कीजिये
उत्तर – मध्य प्रदेश के जनजातीय पर्व एवं त्यौहार – जनजातियों के पर्व एवं त्यौहारों से उनकी परम्पराओं तथा सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों का पता चलता है।
(1) गोंडों के पर्व एवं त्यौहार — गोंडों के पारम्परिक त्यौहारों में बिदरी पूजा, बकबंदी, नवाखानी, जवारी, भड़ई एवं हरढिली आदि प्रमुख हैं।
(2) भीलों के पर्व एवं त्यौहार – भीलों के पारम्परिक त्यौहारों में भगोरिया, चलावली, जातरा, नवई, गल एवं गढ़ आदि प्रमुख हैं।
भगौरिया — यह भीलों का सर्वप्रसिद्ध पर्व है। यह होली के अवसर पर मनाया जाता है। होली से पहले तीन साप्ताहिक हाटें लगती हैं जो क्रमश: ‘गुलालिया’, ‘त्यौहारिया’ एवं ‘भगोरिया’ हाट कहलाती हैं।
ढोल – मादल एवं थाली की थाप तथा बाँसुरी की स्वर लहरियों के साथ सजी-धजी युवक एवं युवतियों की टोलियाँ हाट की ओर चल पड़ती हैं तथा खूब नृत्य-गान होता है।
(3) कोरकुओं के पर्व एवं त्यौहार – कोरकू अमावस्या को पवित्र मानते हैं तथा पड़वा एवं दौज को त्यौहार मनाते हैं। इनके ज्येष्ठ में डेडावली, सावन में जिरोती, नाग पंचमी एवं रक्षाबंधन, भादों में पोला, क्वार में देव दशहरा, कार्तिक में दीपावली, माघ में दशहरा, फाल्गुन में होली आदि प्रमुख त्यौहार एवं पर्व हैं। इस प्रकार कोरकू जनजाति के लोग वर्षभर पर्व एवं त्यौहार मनाते हैं।
(4) बैगाओं के पर्व एवं त्यौहार – हरेली, गेला, नवाखानी, दशहरा, काली चौदस, दीपावली एवं करमाया पूजा आदि बैगा जनजाति के लोगों के प्रमुख पर्व एवं त्यौहार हैं। है
(5) भारियाओं के पर्व एवं त्यौहार – बिदरी, नवाखानी, जवारा, दीपावली एवं होली आदि भारिया जनजाति के लोगों के प्रमुख पर्व एवं त्यौहार हैं।
बिदरी — इसमें बादलों की आगवानी के साथ बीज की पूजा की जाती है।
नवाखानी — यह नयी फसल का पर्व है।
जवारा – नवरात्रि का पर्व है।
दीपावली — इस पर्व पर पशुधन के साथ ‘खिरका’ खेलने की परम्परा है।
होली — इस पर्व पर मेघनाथ का पर्व मनाने की परम्परा है।
(6) सहरियाओं के पर्व एवं त्यौहार — सहरियाओं में सभी हिन्दू पर्व त्यौहार मनाने की परम्परा है।
(7) अन्य जनजातियों के पर्व एवं त्यौहार — अन्य जनजातियाँ अपने विभिन्न पारम्परिक त्यौहारों के साथ हिन्दू पर्व एवं त्यौहार मनाती हैं।
प्रश्न 2. प्रदेश के प्रमुख जनजातीय नृत्य कौन-से हैं ? लिखिए।
उत्तर – प्रदेश के प्रमुख जनजातीय नृत्य-नृत्य एवं संगीत जनजातियों की सहज जीवन शैली के अभिन्न अंग होते हैं क्योंकि इनके मनोरंजन का एकमात्र साधन ही यही है।
(1) गोंडों के प्रमुख नृत्य – करमा, सैला, विरहा, सूआ. दीपावली, कहरवा एवं भड़ौनी आदि गोंड़ों के प्रमुख नृत्य हैं। ‘सजनी’ इनका भाव-मुद्राओं युक्त गीत नृत्य है।
इनके वाद्य हैं — मादल, टिमकी, सिंगबाजा, नगाड़ा, मंजीरा, गुदुम, खड़ताल, ठिसकी, चुटकोला, झाँझ, बाँसुरी, अलगोजा शहनाई, तमूरा, चिकारा एवं किंदरी बाना आदि।
(2) भीलों के प्रमुख नृत्य – लाहरी, डाँगसोली, पाली, चलावणी, दौड़ावणी एवं घोड़ी भीलों के प्रमुख नृत्य हैं।
इनके वाद्य हैं — ढोल, मादक, कुण्डी, काँसे की थाली, वाहली (बाँसुरी), चपटे मुँह वाला अलगुंजा एवं बाँस की चिपलियों से बना केन्दरिया आदि।
(3) कोरकुओं के प्रमुख नृत्य – इनके नृत्य पर्यों के प्रसंग एवं मिथकों पर आधारित होते हैं। जिस प्रकार कोरकू वर्ष भर त्यौहार पर्व मनाते हैं, इनके नृत्य भी वर्ष भर ही चलते हैं।
चैत्र में ‘देव दशहरा’, ‘चाचरी’ एवं ‘गोगल्या’, वैशाख में ‘थापटी’, ज्येष्ठ में ‘ढाँढल’ एवं ‘डोडबली’, श्रावण में डंडानाच’ क्वार में ‘होररिया’ एवं ‘चिल्लुड़ी’, कार्तिक की पड़वा पर ‘ठाट्या’ तथा वैवाहिक अवसरों पर स्त्रियों का ‘गादली’ नृत्य।
इनके वाद्य हैं — ढोलक, ढोल, मृदंग, टिमकी, डफ, अलगोजा, बाँसुरी, भूगडु, पवई, झाँझ एवं चिटकोरा आदि।
(4) बैगाओं के प्रमुख नृत्य – ‘झरपट’, ‘दशेहरा’ एवं ‘बिलगा’ बैगाओं के प्रमुख नृत्य हैं। छेरता इनकी नृत्य नाटिका (स्वांग) है जिसमें मुखौटों का प्रयोग किया जाता है।
इनके प्रमुख वाद्य हैं मादल, ढोल एवं नगाड़े।
(5) भारियाओं के प्रमुख नृत्य – भड़म, सैतम और करम सेला भारियाओं के प्रमुख नृत्य हैं।
इनके वाद्य हैं – ढोलक, ढोल, बाँसुरी, झाँझ एवं टिमकी आदि तथा भारिया स्त्रियाँ मंजीरा एवं चिटकुला बजाती हैं।
(6) अन्य जनजातियों के प्रमुख नृत्य – अन्य जनजातियों में भी नृत्य एवं संगीत की समृद्ध परम्परा है।।
प्रश्न 3. जनजातीय शिल्पकला के बारे में लिखिए।
उत्तर – जनजातीय शिल्पकला–जनजातियाँ स्वभावतः कलाप्रेमी होती हैं। दीवारों को लीप-पोतकर उन्हें चित्रांकन करना उन्हें अच्छा लगता है।
(1) गोंडों की शिल्पकला –
(अ) महिलाएँ दीवारों पर मिट्टी की त्रिभुजाकार एवं वृत्ताकार रेखाएँ उभारकर उन्हें सजाती हैं।
(ब) ताकों, खूटियों एवं अनाज की कोठियों को चित्रांकित करते हैं। यह कला ‘चीन्हा’ कहलाती है।
(स) रस्सी, सुतली, मचिया, कृषि औजार, खुमरी, फंदे एवं धनुष बाण स्वयं बनाते हैं।
(2) भीलों की शिल्पकला –
(अ) आँगन में अल्पनाएँ बनाते हैं एवं भित्तिचित्र बनाते हैं।
(ब) पिठौरा में प्रकृति एवं देवी-देवताओं का प्रतीकात्मक चित्रांकन करते हैं।
(3) कोरकुओं की शिल्पकला –
(अ) दीवारों को चित्रांकित करते हैं।
(ब) प्रवेश द्वार पर विशेष अंकन “गुदनी” करते हैं। इसे मांगलिक प्रतीक माना जाता है। ठाठनी गदनी के अंकन में दक्ष होती है। गुदनी खड़िया एवं हिरमिची (लाल मिट्टी) से बनायी जाती है।
(4) बैगाओं की शिल्पकला –
बैगाओं में गुदने का प्रचलन है।
(5) भारियाओं की शिल्पकला –
(अ) पेड़ों की झालों से रस्सी बनाते हैं।
(ब) दरवाजों पर चित्र उकेरते हैं।
(स) बाँस और छिन्द के पत्तों से कलात्मक एवं उपयोगी सामग्री बनाते हैं।
(6) सहरियों की शिल्पकला –
(अ) पीली मिट्टी, छुई या चूने से पुती दीवारों पर सुन्दर चित्रकारी करते हैं।
(ब) आँगन को मॉडलों से अलंकृत करते हैं।
(स) अनाज भण्डारण को कोठी – पेट्टी को बहुत सुन्दर एवं कलात्मक बनाते हैं।
(7) अन्य जनजातियों की शिल्पकला—अन्य जनजातियों में भी शिल्पकला के विभिन्न सुन्दर रूप मिलते हैं।
प्रश्न 4. जनजातीय मौखिक (वाचिक) सम्पदा किस प्रकार समृद्ध है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर – जनजातीय मौखिक (वाचिक) सम्पदा की समृद्धि–जनजातियों ने जीवन के प्रारम्भ से अब तक जो कुछ अनुभव और चिन्तन किया है, वह बौद्धिक सम्पदा के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होता रहा है। यह वाचिक परम्परा अब भी जनजातियों की शक्ति है।
विभिन्न प्रसंगों के लोक गीत, लोक कथाएँ, लोक गाथाएँ, कहावतें, पहेलियाँ, मुहावरे, मंत्र, स्वांग एवं औषधीय ज्ञान जनजातियों की बौद्धिक पहचान है। इन लोगों में आशु कवित्व की विलक्षण प्रतिभा होती है।
यह मौखिक सम्पदा इन आदिवासियों की बोलियों की समृद्धि एवं अभिवृत्ति की क्षमता का प्रतीक है।
जनजातीय संस्कृति समद्ध भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इनकी वाचिक सम्पदा में इतिहास और परम्परा के महत्त्वपूर्ण सूत्र खोजे जा सकते हैं।
इसके माध्यम से हम इनकी सम्पूर्ण सांस्कृतिक यात्रा का अवलोकन एवं आकलन कर सकते हैं।