Chapter 6 – जैव प्रक्रम
MP Board Class 10th Science Chapter 6 पाठ के अन्तर्गत के प्रश्नोत्तर
पृष्ठ संख्या 105
प्रश्न 1.
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?
उत्तर:
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की शरीर के सभी भागों को आवश्यकता होती है तथा इन जीवों की सभी कोशिकाएँ अपने आस-पास के पर्यावरण के सीधे सम्पर्क में नहीं रहती अत: साधारण विसरण सभी कोशिकाओं की आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर सकता इसलिए विसरण अपर्याप्त है।
प्रश्न 2.
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदण्ड का उपयोग करेंगे?
उत्तर:
कोई वस्तु सजीव है इसका निर्धारण करने के लिए हम विभिन्न प्रकार की अदृश्य आण्विक गतियों को जीवन सूचक मापदण्ड मानेंगे।
प्रश्न 3.
किसी जीव द्वारा किन-किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
किसी जीव द्वारा कच्ची सामग्री के रूप में विभिन्न कार्बन आधारित अणुओं, ऑक्सीजन, जल एवं सौर ऊर्जा तथा विभिन्न लवणों का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 4.
जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर:
जीवन के अनुरक्षण के लिए हम पोषण, श्वसन, शरीर के अन्दर पदार्थों का संवहन तथा अपशिष्ट हानिकारक पदार्थों के उत्सर्जन आदि प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे।
पृष्ठ संख्या 111
प्रश्न 1.
स्वयंपोषी पोषण एवं विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्वयंपोषी पोषण में जीव बाहर से कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल ग्रहण करके क्लोरोफिल एवं सौर प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश – संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, जबकि विषमपोषी पोषण में जीव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वयंपोषी जीवों द्वारा निर्मित भोजन ग्रहण करते हैं।
प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण के लिए पौधा जल मृदा से तथा कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल से एवं ऊर्जा सौर प्रकाश से प्राप्त करता है।
प्रश्न 3.
हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर:
हमारे आमाशय में अम्ल भोजन के साथ आये हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है तथा माध्यम को अम्लीय बनाता है जो पेप्सिन एन्जाइम की क्रिया में सहायक होता है, लेकिन अधिक मात्रा में अम्ल अम्लीयता (ऐसिडिटी) पैदा करता है।
प्रश्न 4.
पाचक एन्जाइमों का क्या कार्य है?
उत्तर:
पाचक एन्जाइम जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल पदार्थों में परिवर्तित करने में सहायक होते हैं। ये कार्बोहाइड्रेट्स को ग्लूकोज में, वसा को वसीय अम्लों में तथा प्रोटीनों को अमीनो अम्लों में परिवर्तित करके भोजन का पाचन करते हैं।
प्रश्न 5.
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रान्त को कैसे अभिकल्पित किया गया
उत्तर:
क्षुद्रान्त की भित्ति के आन्तरिक अस्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं। ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं तथा दीर्घ रोमों में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो पचे हुए भोजन का अवशोषण कर लेते हैं। इस प्रकार क्षुद्रान्त को पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए अभिकल्पित किया गया है।
पृष्ठ संख्या 116
प्रश्न 1.
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर:
जलीय जीव श्वसन के लिए जल में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं, जबकि स्थलीय जीव वायुमण्डल में उपस्थिति ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा वायुमण्डल में उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहुत कम होती है। इसलिए श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव ज्यादा लाभप्रद है।
प्रश्न 2.
ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
उत्तर:
ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ सर्वप्रथम कोशिकाद्रव्य में ग्लूकोज विखण्डित होकर तीन कार्बन अणु देता है, जिसे पायरुवेट कहते हैं। पायरुवेट पुनः चित्र के अनुसार विखण्डित होकर ऊर्जा देता है।
प्रश्न 3.
मनुष्य में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर:
मनुष्य में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन मनुष्य के रक्त की लाल रक्त कणिकाओं में उपस्थित लाल वर्णक हीमोग्लोबिन द्वारा होता है।
प्रश्न 4.
गैसों के विनियम के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?
उत्तर:
हमारे फुफ्फुसों के मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाता है जिन्हें कपिका कहते हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैस का विनिमय हो सके। इस प्रकार गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुसों में अधिकतम क्षेत्रफल अभिकल्पित किया गया है।
पृष्ठ संख्या 122
प्रश्न 1.
मानव के वहन तन्त्र के घटक कौन-से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
मानव के वहन (परिसंचरण) तन्त्र के घटक निम्न हैं –
- रक्त (रुधिर)।
- हृदय।
- रुधिर वाहिकाएँ।
1. रक्त:
यह परिवहन माध्यम का कार्य करता है जो अपने अन्दर विभिन्न गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड; ऑक्सीजन), विभिन्न एन्जाइमों, अपशिष्ट हानिकारक पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन करता है।
2. हृदय – यह रक्त को विभिन्न भागों को भेजने एवं वहाँ से रक्त एकत्रित करने के लिए पम्प का कार्य करता है।
3. रुधिर वाहिकाएँ: इनके माध्यम से ही रक्त का विभिन्न भागों में परिवहन होता है।
प्रश्न 2.
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित एवं विऑक्सीजनित रुधिर को अलग-अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
स्तनधारी एवं पक्षियों को अपने शरीर एक तापमान बनाए रखने के लिए निरन्तर ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिए उच्च ऊर्जा की आवश्यकता की आपूर्ति के लिए इनमें ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग-अलग करना आवश्यक है जिससे उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की आपूर्ति हो सके।
प्रश्न 3.
उच्च संगठित पादप में वहन तन्त्र के घटक क्या हैं ?
उत्तर:
उच्च संगठित पादप में वहन तन्त्र के प्रमुख घटक हैं-जाइलम तथा फ्लोएम, जिन्हें संयुक्त रूप से संवहन ऊतक कहते हैं।
प्रश्न 4.
पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
उत्तर:
पादपों में जल एवं खनिज लवणों का वहन संवहन ऊतक जाइलम द्वारा होता है।
प्रश्न 5.
पादप में भोजन का स्थानान्तरण कैसे होता है?
उत्तर:
पादप में भोजन का स्थानान्तरण संवहन ऊतक फ्लोएम द्वारा होता है।
पृष्ठ संख्या 124
प्रश्न 1.
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना एवं क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना:
केशिकागुच्छ (ग्लोमेरुलस) वृक्क में अनेक आधारी निस्यंदन एकक होते हैं, जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रॉन) कहते हैं। इनमें बहुत वृक्क पतली भित्ति वाली रुधिर केशिकाओं का गुच्छ, (ग्लोमेरुलस) होता है जो एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अन्दर होता है जिसे बोमन सम्पुट कहते हैं।
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की क्रियाविधि:
वृक्क धमनी वृक्काणु की नलिका केशिका गुच्छ से छने हुए मूत्र जिसमें यूरिया, यूरिक अम्ल आदि होते हैं, को एकत्रित कर लेती है। इस प्रारम्भिक निस्यंद में कुछ उपयोगी पदार्थ ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। नलिका में मूत्र जैसे-जैसे आगे बढ़ता है। इन पदार्थों का चयनित पुनरावशोषण हो जाता है। यह मूत्र प्रत्येक वृक्काणु नलिका से संग्राहक मूत्र वाहिनी में एकत्रित होता है जहाँ से मूत्राशय में जाकर एकत्रित हो जाता है।
प्रश्न 2.
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं?
उत्तर:
पादप अपशिष्ट पदार्थों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए विविध तकनीकों का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए अपशिष्ट पदार्थ कोशिका रिक्तिका में संचित किए जा सकते हैं या गोंद व रेजिन के रूप में पुराने जाइलम से संचित हो सकते हैं अथवा गिरती पत्तियों द्वारा दूर किये जा सकते हैं या ये अपने आस-पास की मृदा में उत्सर्जित कर देते हैं। इस प्रकार पादप अपशिष्ट पदार्थों से छुटकारा पाने के लिए अनेक विधियों का उपयोग करते हैं।
प्रश्न 3.
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा एवं उत्सर्जन हेतु प्राप्त विलेय वर्ण्य की मात्रा पर निर्भर करता है।
पाठान्त अभ्यास के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मनुष्य में वृक्क एक तन्त्र का भाग है, जो सम्बन्धित है –
(a) पोषण।
(b) श्वसन।
(c) उत्सर्जन।
(d) परिवहन।
उत्तर:
(c) उत्सर्जन।
प्रश्न 2.
पादप में जाइलम उत्तरदायी है –
(a) जल का वहन।
(b) भोजन का वहन।
(c) अमीनो अम्ल का वहन।
(d) ऑक्सीजन का वहन।
उत्तर:
(a) जल का वहन।
प्रश्न 3.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है –
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल।
(b) क्लोरोफिल।
(c) सूर्य का प्रकाश।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4.
पायरुवेट का विखण्डन कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है –
(a) कोशिकाद्रव्य में।
(b) माइटोकॉण्ड्रिया में।
(c) हरितलवक में।
(d) केन्द्रक में।
उत्तर:
(b) माइटोकॉण्ड्रिया में।
प्रश्न 5.
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर:
हमारे शरीर में वसा का पाचन क्षुद्रान्त्र के ऊपरी भाग ग्रहणी (ड्यूओडिनम) में होता है। जहाँ पित्ताशय से क्षारीय पित्त रस पित्त नली द्वारा भोजन में मिलता है जो भोजन के माध्यम को क्षारीय बना देता है जिससे अग्न्याशय से प्राप्त पाचक रस सक्रिय होते हैं। पित्त रस वसा को इमल्सीफाई कर देता है तथा अग्न्याशय रस से प्राप्त लाइपेज एन्जाइम इमल्सीफाइड वसा का पाचन वसीय अम्लों में कर देता है। इस प्रकार वसा का पाचन हमारे शरीर में क्षुद्रान्त के ऊपरी भाग में होता है।
प्रश्न 6.
भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मुँह में स्थित लार ग्रंथियों से लार निकलकर चबाये हुए भोजन में मिलकर इसे चिकना तथा लसलसा बना देती है जिससे यह भोजननली में आसानी से फिसल सकता है। इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि लार में उपस्थित एन्जाइम एमाइलेज मण्ड के जटिल अणुओं को शर्करा में खण्डित कर देती है जो मण्ड की अपेक्षा काफी सरल अणु होते हैं। इस तरह लार भोजन के पाचन में अहम् भूमिका निभाती है।
प्रश्न 7.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ:
- कार्बन डाइऑक्साइड की उपलब्धता।
- जल की उपलब्धता।
- सौर ऊर्जा की उपलब्धता।
- क्लोरोफिल की उपलब्धता।
स्वपोषी पोषण के उपोत्पाद:
- ग्लूकोज।
- ऑक्सीजन गैस।
प्रश्न 8.
वायवीय एवं अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
उत्तर:
वायवीय श्वसन एवं अवायवीय श्वसन में अन्तर:
प्रश्न 9.
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर:
कूपिकाएँ गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए पर्याप्त सतह उपलब्ध कराती हैं।
प्रश्न 10.
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
श्वसन के फलस्वरूप प्राप्त ऑक्सीजन का परिवहन करने तथा उसे ऊतकों तक पहुँचाने का कार्य हीमोग्लोबिन करता है। इसकी कमी से श्वसन क्रिया प्रभावित होगी। शरीर को ऊर्जा कम मिलेगी क्योंकि ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा प्राप्त नहीं होगी।
प्रश्न 11.
मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
“मनुष्य में प्रत्येक चक्र में रुधिर दो बार हृदय में जाता है। इसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं।” इस प्रक्रिया में एक बार ऑक्सीजनित रक्त फुफ्फुसों (फेफड़ों) से हृदय में आता है तो दूसरी बार अनॉक्सीजनित रक्त शरीर के विभिन्न भागों से हृदय में आता है।
दोहरा परिसंचरण ऑक्सीजनित एवं विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकने में सहायक होता है जिससे उच्च ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 12.
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जाइलम पादपों में जड़ों द्वारा मृदा से अवशोषित जल एवं खनिजों को पत्तियों तक पहुँचाने के लिए वहन करते हैं, जबकि फ्लोएम पत्तियों द्वारा निर्मित खाद्य पदार्थों को पादप के विभिन्न भागों तक पहुँचाने के लिए वहन करते हैं।
प्रश्न 13.
फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
उत्तर:
फुफ्फुस में कूपिकाओं की रचना श्वसन नलिकाओं के सिरों की फूले हुए गुब्बारे की तरह संरचना होती है, जबकि वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना में रुधिर केशिकाओं का गुच्छा होता है जो एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अन्दर स्थित होता है।
कृपिकाओं का कार्य गैसों के विनिमय के लिए सतह उपलब्ध कराना है, जबकि वृक्काणु का कार्य मूत्र का निस्यंदन करना तथा मूत्र में मिले आवश्यक पदार्थों का पुनरावशोषण करना है।
परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
एक धमनी एवं एक शिरा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धमनी एवं शिरा में अन्तर –
प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण क्रिया का समीकरण सहित वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रकाश-संश्लेषण क्रिया को समझाइए।
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण क्रिया विधि-सभी हरे पौधे पर्णहरिम की सहायता से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइ-ऑक्साइड एवं जल का उपयोग करके ग्लूकोज बनाते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप ऑक्सीजन गैस एक सह-उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। प्रकाश-संश्लेषण क्रिया एक जैवरासायनिक अभिक्रिया है जिसमें जल का ऑक्सीकरण होता है तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड का अपचयन होता है।
रासायनिक अभिक्रिया का समीकरण:
प्रश्न 3.
वृक्क (Kidneys) में मूत्र बनने की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
वृक्क में मूत्र बनने की प्रक्रिया-वृक्क में वृक्कीय धमनी द्वारा रक्त पहुँचाता है। वृक्कीय धमनी से रक्त असंख्य कुण्डलित कोशिका-गुच्छों में पहुँचता है जो बोमन सम्पुट में स्थित होते हैं। यहीं रक्त का छानन होता है, जिसमें ग्लूकोज, विलेय लवण, यूरिया तथा यूरिक अम्ल जल में घुला होता है। यह छनित द्रव अत्यन्त छोटी-छोटी नलिकाओं से गुजरता है जहाँ ग्लूकोज एवं अन्य उपयोगी लवण पुनः अवशोषित करके वृक्कीय शिराओं द्वारा पुनः रक्त में वापस भेज दिए जाते हैं। शेष बचा द्रव ‘मूत्र’ कहलाता है। इस प्रकार वृक्क में मूत्र बनने की प्रक्रिया होती है।
प्रश्न 4.
मानव के आहार नाल (पाचन तन्त्र) का चित्र बनाकर निम्न को नामांकित कीजिएमुख, ग्रसनी, आमाशय, आन्त्र।
अथवा
मानव के आहार नाल का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
मनुष्य के आहार नाल (पाचन तन्त्र) का नामांकित चित्र –
प्रश्न5.
मानव के आहार नाल (पाचन तन्त्र) का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव के आहार नाल (पाचन तन्त्र) का वर्णन-मानव के आहार नाल (पाचन तन्त्र) में निम्न भाग होते हैं –
(1) मुखगुहा:
मुखगुहा में दाँतों का कार्य भोजन को चबाना है। लार ग्रन्थियों का कार्य लार का स्रावण करना है जिसमें पाचक एन्जाइम होता है। जिह्वा का कार्य भोजन में लार को अच्छी तरह मिलाकर लुग्दी बनाना है।
(2) ग्रसिका:
यह मुख गुहा और आमाशय के बीच का नलिका के आकार का भाग होता है जिसके द्वारा मुखगुहा से लुग्दीदार भोजन आमाशय में पहुँचता है।
(3) आमाशय:
यह आहार नाल का सबसे चौड़ा थैलीनुमा भाग होता है जिसकी दीवारों में आमाशयी ग्रन्थियाँ होती हैं जिनसे हाइड्रोक्लोरिक अम्ल म्यूकस एवं पाचक एन्जाइम रेनिन एवं पेप्सिन का स्रावण होता है।
(4) आन्त्र:
यह आहार नाल का सबसे लम्बा भाग होता है जिसके तीन भाग होते हैं –
- ग्रहणी (ड्यूओडिनम) – इसमें पैन्क्रियाज से स्रावित पाचक एन्जाइम मिलते हैं तथा पित्ताशय द्वारा पित्त रस मिलता है।
- क्षुद्रान्त्र – यह आन्त्र का सबसे लम्बा कुण्डली के आकार का भाग होता है जिसमें भोजन का पूर्ण पाचन होता है तथा विलाई द्वारा पचे भोजन का अवशोषण कर लिया जाता है जिसे रक्त वाहिकाओं में भेज दिया जाता है।
- वृहदान्त्र – यहाँ भोजन से अतिरिक्त जल का अवशोषण कर लिया जाता है तथा शेष अवशिष्ट गुदा मार्ग द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
प्रश्न 6
मानव के श्वसन तन्त्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
मानव के श्वसन तन्त्र का नामांकित चित्र –
प्रश्न 7
मानव हृदय के द्वारा रक्त के संवहन की प्रक्रिया समझाइए।
अथवा
मनुष्य के हृदय की कार्यविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव हृदय की कार्यविधि (Function of Human Heart):
शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रक्त शिराओं द्वारा एकत्रित होकर महाशिरा के द्वारा हृदय के दाएँ अलिन्द में एकत्रित होता है, जो त्रिवलनी कपाट द्वारा दाएँ निलय में पहुँच जाता है। फुफ्फुसीय शिरा द्वारा फेफड़ों से शुद्ध रक्त बाएँ अलिन्द में
आता है, जो द्विवलनी वाल्व द्वारा बाएँ निलय में चला जाता है। दाएँ निलय से अशुद्ध रक्त शुद्ध होने के लिए फुफ्फुसीय धमनी द्वारा फेफड़ों में भेज दिया जाता है तथा बाएँ निलय से शुद्ध रक्त महाधमनी द्वारा शरीर के विभिन्न भागों को भेज दिया जाता है।
हृदय निरन्तर धड़कता (संकुचन तथा विमोचन) रहता है, जिसके फलस्वरूप यह रक्त को सारे शरीर में पम्प करता है। जब बाएँ अलिन्द में फुफ्फुस से शुद्ध रक्त आ जाता है तो दोनों अलिन्द एक साथ सिकुड़कर अपने रक्त को क्रमशः दाएँ तथा बाएँ निलय में भेज देते हैं। अब दोनों निलय एक साथ सिकुड़ते हैं। दाहिने निलय का अशुद्ध रक्त फुफ्फुसीय महाधमनी द्वारा फेफड़ों में शुद्धीकरण के लिए चला जाता है और बाएँ निलय का शुद्ध रक्त बार्टी महाधमनी द्वारा सारे शरीर में पम्प कर दिया जाता है। निलयों के सिकुड़ने की आवाजें ही हृदय की धड़कन के रूप में सुनाई देती हैं। सामान्य मनुष्य का हृदय 1 मिनट में 75 से 80 बार धड़कता है।
प्रश्न 8.
मानव के उत्सर्जन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
मानव के उत्सर्जन तन्त्र का नामांकित चित्र –
NCERT Science Book solution class 10th chapter 6 जैव प्रक्रम