MP Board Class 10th Political Science Solution Chapter 5 : जन-संघर्ष और आंदोलन

MP Board Class 10  Political Science II लोकतांत्रिक राजनीति-II

Chapter 5 : जन-संघर्ष और आंदोलन [Popular Struggles and Movements]

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • नेपाल लोकतंत्र की ‘तीसरी लहर’ के देशों में एक है जहाँ लोकतंत्र 1990 के दशक में कायम हुआ।
  • फरवरी 2005 में नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया।
  • नेपाल संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक’ सेवेन पार्टी अलायंस’ (सप्तदलीय गठबंधन – एस.पी.ए.) बनाया ।
  • एस.पी.ए. ने गिरिजा प्रसाद कोईराला को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री चुना।
  • 2008 में राजतंत्र को खत्म किया और नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।
  • बोलिविया में लोगों ने पानी के निजीकरण के खिलाफ एक सफल संघर्ष चलाया। बोलिविया लातिनी अमरीका का एक निर्धन देश है।
  • लोकतंत्र की निर्णायक घड़ी अमूमन वही होती है जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहने वालों के बीच संघर्ष होता है।
  • संगठित राजनीति के कई माध्यम हो सकते हैं। ऐसे माध्यमों में राजनीतिक दल, दबाव समूह और आन्दोलनकारी समूह शामिल हैं।
  • नेपाल के जन-संघर्ष में राजनीतिक दलों के अलावा अनेक संगठन शामिल थे।
  • बोलिविया में जो आन्दोलन चला उसकी अगुआई ‘फेडेकोर’ (FEDECOR) नामक संगठन ने की।
  • दबाव समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं।
  • ‘बामसेफ’ यह मुख्यतया सरकारी कर्मचारियों का संगठन है, जो जातिगत भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाता है।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 हमारी संसद द्वारा पारित एक ऐतिहासिक कानून है।
  • सामाजिक आन्दोलन और दबाव-समूह नागरिकों को कई तरह से लामबंद करने की कोशिश करते हैं।
  • व्यवसाय-समूह अक्सर पेशेवर ‘लॉबिस्ट’ नियुक्त करते हैं अथवा महँगे विज्ञापनों को प्रायोजित करते हैं।
  • अधिकांशतया दबाव-समूह और आन्दोलन का राजनीतिक दलों से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता ।
  • दबाव-समूहों और आन्दोलनों के कारण लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुई हैं।

पाठान्त अभ्यास

प्रश्न 1. दबाव-समूह और आन्दोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं ?

उत्तर – संगठन के तौर पर दबाव – समूह सरकार की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, राजनीतिक पार्टियों के समान दबाव समूह का लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने अथवा भागीदारी करने का नहीं होता। दबाव समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं ।

अक्सर कई तरह की सामूहिक कार्यवाहियों के लिए जन-आन्दोलन जैसे शब्द का प्रयोग होता है; जैसे- नर्मदा बचाओ आन्दोलन, सूचना के अधिकार का आन्दोलन, शराब-विरोधी आन्दोलन, महिला आन्दोलन तथा पर्यावरण आंदोलन | दबाव समूह के समान आन्दोलन भी चुनावी मुकाबले में सीधे भागीदारी करने के बजाय राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन दबाव-समूहों के विपरीत आन्दोलनों में संगठन ढीला-ढाला होता है। आन्दोलनों में निर्णय अनौपचारिक ढंग से लिए जाते हैं और ये फैसले लचीले भी होते हैं। आन्दोलन जनता की भागीदारी पर निर्भर होते हैं न कि दबाव-समूह पर ।

प्रश्न 2. दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का स्वरूप कैसा होता है ? वर्णन करें ।

उत्तर दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं या उनका नेतृत्व राजनीतिक दल के नेता करते हैं। कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, भारत के अधिकतर मजदूर संघ और छात्र संगठन या तो बड़े राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए हैं या उनकी संबद्धता राजनीतिक दलों से है। ऐसे दबाव समूहों के अधिकतर नेता अमूमन किसी-न-किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्त्ता और नेता होते हैं।

दबाव समूह यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से चुनावों में भाग नहीं लेते परन्तु वे राजनीतिक दलों की कई प्रकार से मदद करते हैं जिससे चुनावों के पश्चात् दल की सरकार उनके हितों की रक्षा करें। चुनावों में दबाव- समूह राजनीतिक दलों की धन, वाहनों तथा अन्य चुनाव सामग्री से मदद करते हैं। वे राजनीतिक दलों को उन बातों के बारे में सूचना भी उपलब्ध कराते हैं, जो उनके हितों से संबंधित होती हैं। इस प्रकार गैर-राजनीतिक होते हुए भी दबाव-समूह राजनीति और प्रशासन से अलग नहीं होते, वे पर्दे के पीछे रहकर राजनीति, राजनीतिक निर्णयों और प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित करने की निरन्तर चेष्टा करते हैं। ये विधायक या सांसद नहीं बनना चाहते परन्तु उनके मतों को प्रभावित करने की चेष्टा करते हैं। इस प्रकार दबाव समूह “राजनीतिक और गैर-राजनीतिक” इन दो स्थितियों के मध्य में स्थित होते हैं।

प्रश्न 3. दबाव- समूहों की गतिविधियाँ लोकतान्त्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती हैं ?

उत्तर– दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतान्त्रिक सरकार के कामकाज में निम्न प्रकार उपयोगी हैं-

(1) दबाव-समूह आँकड़े एकत्र करते हैं, समस्याओं का संग्रह करते हैं तथा उन्हें सरकार के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार सरकार को सहायता पहुँचाते हैं।

(2) दबाव-समूह जागरूक होकर कार्य करते हैं अतः वे सरकारी पदाधिकारियों की भ्रष्ट नीतियों पर भी नियन्त्रण रखते हैं। अन्य शब्दों में, सरकारी पदाधिकारी निरंकुश नहीं हो पाते।

(3) दबाव-समूह अपनी बात मनवाने तथा जनसाधारण को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न जनमत जागरण के साधनों को अपनाकर प्रजातन्त्रात्मक वातावरण उत्पन्न करते हैं।

(4) दबाव-समूह देश के नागरिकों को देश की नीति निर्धारण करने में या सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं।

(5) सरकार भी दबाव-समूहों के माध्यम से जनता की आवश्यकताओं को समझ लेती है।

(6) दबाव-समूह जनता तथा सरकार के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते हैं।

प्रश्न 4. दबाव समूह क्या हैं ? कुछ उदाहरण बताइए ।

उत्तर- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहकर ही वह अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह समाज के समान हितों के मनुष्यों के साथ सहयोग करता है जिसके फलस्वरूप अनेक प्रकार के समूहों का उदय होता है। एक ही प्रकार के हित रखने

वाले व्यक्ति एक समूह में संगठित होकर सामूहिक प्रयास के द्वारा अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने का प्रयास करते हैं। समाज में रहने वाले व्यक्तियों के हितों में भिन्नता पायी जाती है, अत: समाज में अलग समूहों का निर्माण होता है। जब दबाव-समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सरकार से सहायता चाहने लगते हैं और विधायकों तथा मंत्रियों को इस रूप में प्रभावित करने लगते हैं कि कानून का निर्माण उन्हीं के हित में किया जाय तो उन्हें हित या दबाव-समूह कहा जाता है।

औद्योगिक संघ, मजदूर संघ, रेलवे यूनियन, विद्यार्थी संगठन, किसान संगठन व महिलाओं के संगठन दबाव-समूहों की श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 5. दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अन्तर हैं ?

उत्तर-राजनीतिक दल और दबाव समूह में निम्नलिखित अन्तर हैं-

(1) राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य राजसत्ता पर अधिकार करना है परन्तु दबाव समूह शासन सत्ता पर अधिकार करने का प्रयास नहीं करते। दबाव समूहों का उद्देश्य केवल राजनीतिक निर्णयों को ही प्रभावित करना होता है।

(2) राजनीतिक दल सदा सक्रिय रहते हैं और सरकार द्वारा बनायी गयी नीति से सम्बन्धित होते हैं। दबाव समूह सदा सक्रिय नहीं रहते वरन् उस समय ही सक्रिय होते हैं जब उन्हें कुछ सुविधाओं की इच्छा होती है।

(3) राजनीतिक दलों का कार्य-क्षेत्र व्यापक होता है वे सभी लोगों के हितों की सुरक्षा के लिए कार्य करते हैं, परन्तु दबाव-समूहों का क्षेत्र संकीर्ण होता है, वे केवल अपने समूह के हितों को सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं।

(4) दबाव-समूह के सदस्य किसी खास वर्ग या व्यवसाय से सम्बन्धित होते हैं। इसके विपरीत राजनीतिक दलों के सदस्य लाखों और करोड़ों की संख्या में होते हैं।

(5) एक व्यक्ति एक ही समय पर अपने विविध हितों के आधार पर अनेक दबाव-समूहों की सदस्यता प्राप्त कर सकता है। इसके विपरीत कोई व्यक्ति एक समय पर एक ही राजनीतिक दल का सदस्य हो सकता है।

(6) राजनीतिक दलों का संगठित होना एक अनिवार्यता है परन्तु दबाव समूह औपचारिक रूप से संगठित व असंगठित दोनों ही स्थिति में हो सकते हैं।

प्रश्न 6. जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्ग जैसे मजदूर, कर्मचारी, शिक्षक और वकील आदि के हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते हैं उन्हें ‘ कहा जाता है।

उत्तर- दबाव-समूह । .

प्रश्न 7. निम्नलिखित में किस कथन से स्पष्ट है कि दबाव समूह और राजनीतिक दल में अन्तर होता है-

(क) राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं जबकि दबाव समूह राजनीतिक मसलों की चिंता नहीं करते हैं ?

(ख) दबाव – समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज्यादा लोगों तक फैला होता है।

(ग) दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं ।

(घ) दबाव-समूह लोगों की लामबन्दी नहीं करते जबकि राजनीतिक दल करते हैं।

उत्तर-(ग) दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।

प्रश्न 8. सूची-I (संगठन और संघर्ष) का मिलान सूची-II से कीजिए और सूचियों के नीचे दी गई सारणी से सही उत्तर चुनिए-

सूची-Iसूची-II
1. किसी विशेष तबके या समूह के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन(क) आन्दोलन
2. जन-सामान्य के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन(ख) राजनीतिक दल
3. किसी सामाजिक समस्या के समाधान के लिए चलाया गया एक ऐसा संघर्ष जिसमें सांगठनिक संरचना हो भी सकती है और नहीं भी(ग) वर्ग-विशेष के हित समूह
4. ऐसा संगठन जो राजनीतिक सत्ता पाने की गरज़ से लोगों को लामबन्द करता है।(घ) लोक कल्याणकारी हित समूह |

उत्तर- (ख) ग, घ, क, ख ।

प्रश्न 9. सूची I का सूची II से मिलाने करें जो सूचियों के नीचे दी गई सारणी में सही उत्तर हो चुनें-

सूची Iसूची II
1. दबाव- समूह(क) नर्मदा बचाओ आंदोलन
2. लम्बी अवधि का आन्दोलन(ख) असम गण परिषद्
3. एक मुद्दे पर आधारित आन्दोलन .(ग) महिला आन्दोलन
4. राजनीतिक दल(घ) खाद विक्रेताओं का संघ

उत्तर– (अ) घ, ग, क, ख ।

प्रश्न 10. दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-

(क) दबाव समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।

(ख) दबाव समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई न कोई पक्ष लेते हैं।

(ग) सभी दबाव समूह राजनीतिक दल होते हैं।

अब नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनें-

(अ) क, ख और ग

(ब) क और ख

(ग) ख और ग

(द) क और ग ।

उत्तर- (ब) क और ख ।

प्रश्न 11. मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव और फरीदाबाद ज़िले का हिस्सा हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगर ज़िला बना दिया जाय तो इस इलाके पर ज्यादा ध्यान दिया दिया जाएगा। लेकिन, राजनीतिक दल इस बात में कोई रुचि नहीं ले रहे थे। सन् 1996 में मेवात एजुकेशन एण्ड सोशल आर्गेनाइजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति ने अलग जिला बनाने की माँग उठाई। बाद में सन् 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई। इसने एक के बाद एक कई जन-जागरण अभियान चलाए। इससे बाध्य होकर बड़े दलों यानी कांग्रेस और इण्डियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे को अपना समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फरवरी 2005 में होने वाले विधान सभा के चुनाव से पहले ही कह दिया कि नया जिला बना दिया जाएगा। नया जिला सन् 2005 की जुलाई में बना ।

इस उदाहरण में आपको आन्दोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच क्या रिश्ता नजर आता है ? क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिश्ता बताता हो ?

उत्तर-पेराग्राफ का अध्ययन करने से स्पष्ट है कि सन् 1996 में मेवात एजुकेशन एण्ड सोशल आर्गेनाइजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति जैसे दबाव-समूहों ने अलग जिला बनाने की माँग उठाई। वर्ष 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई। ‘मेवात विकास सभा’ द्वारा इस माँग का समर्थन किया गया, जिसने एक आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। इससे बाध्य होकर राजनीतिक दलों को समर्थन करना पड़ा। सरकार को दबाव तथा आन्दोलन के कारण मेवात को अलग जिला बनाना पड़ा।

विश्व प्रसिद्ध ‘चिपको आन्दोलन’ भी इस प्रकार के आन्दोलन का एक उदाहरण है। इस आन्दोलन के फलस्वरूप क्षेत्र के वनों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की माँग स्वीकार की गई। इस क्षेत्र के वनों के हरे वृक्षों को अगले 15 वर्ष तक काटने पर रोग लगा दी गयी। परिणामस्वरूप जंगलों का संवर्द्धन, भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि एवं वन्य प्राणियों के शिकार पर नियन्त्रण सम्भव हुआ।

अतः निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि जब किसी माँग को दबाव -समूहों और आन्दोलनों द्वारा किया जाता है तो राजनीतिक दल तथा सरकार उसे मानने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

• बहु-विकल्पीय प्रश्न

(C) अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

1. सन् 2006 के अप्रैल माह विलक्षण जन-आन्दोलन किस देश में हुआ ?

(i) श्रीलंका

(ii) भूटान

(iii) नेपाल

(iv) बोलिविया ।

2. नेपाल के राजा वीरेन्द्र की हत्या के बाद वहाँ का राजा कौन बना ?

(i) ज्ञानेंद्र

(ii) सत्येन्द्र

(iii) मानवेन्द्र

(iv) राजेन्द्र ।

3. नेपाल में राजतन्त्र समाप्त कर दिया गया-

(i) 2005 में

(ii) 2006 में

(iii) 2007 में

(iv) 2008 में।

4. बोलिविया में जन-संघर्ष किसके लिए हुआ ?

(i) विद्युत् के लिए

(ii) जल के लिए

(iii) पेट्रोल के लिए

(iv) खाद्य पदार्थों के लिए।

(i) राजनीतिक होते हैं

5. दबाव समूह -.

(i) राजनीतिक होते हैं

(ii) अराजनीतिक होते हैं

(iii) राजनीतिक या अराजनीतिक

(iv) केवल औपचारिक होते हैं।

उत्तर—1. (iii), 2. (i), 3. (iv), 4. (ii), 5. (ii).

रिक्त स्थान पूर्ति

1. नेपाल लोकतन्त्र की ………………………के देशों में एक है।

2. नेपाल की राजधानी ……………………………है।

3. 24 अप्रैल 2006 को एस.पी.ए. ने ……………………………को अंतरिम सरकार का प्रधानमन्त्री चुना।

4. बोलिविया में लोगों ने पानी के …………………………….के खिलाफ एक संघर्ष चलाया।

5. दबाव-समूहों और आन्दोलनों के कारण ………………………….की जड़ें मजबूत हुई हैं।

उत्तर– 1. तीसरी लहर, 2. काठमांडू, 3. गिरिजा प्रसाद कोईराला, 4. निजीकरण, 5. लोकतन्त्र।

सत्य / असत्य

1. सन् 2007 की मार्च में राजा मानवेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया।

2. 2008 में नेपाल संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य बन गया ।

3. बोलिविया में लोगों की औसत आमदनी ₹5000 महीना है ।

4. लोकतन्त्र की निर्णायक घड़ी अमूमन वही होती है जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहने वालों के बीच मित्रता होती है।

5. सन् 2006 में बोलिविया में सोशलिस्ट पार्टी को सत्ता हासिल हुई।

6. दबाव-समूह और आन्दोलन राजनीति पर कई तरह से प्रभाव डालते हैं।

उत्तर– 1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य, 6. सत्य ।

• सही जोड़ी मिलाइए

उत्तर – 1. (ग), 2. (घ), 3. (ङ), 4. (क), 5. (ख)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. बोलिविया में लोगों ने किसके निजीकरण के खिलाफ एक सफल संघर्ष चलाया ?

2. बोलिविया में जो आन्दोलन चला उसका नेतृत्व किस संगठन ने किया ?

3. कोचबंबा विश्वविद्यालय कहाँ स्थित है ?

4. सन् 2006 में लोकतन्त्र के लिए आन्दोलन किस देश में हुआ ?

5. दबाव- समूह और आन्दोलन क्या दलीय राजनीति में सीधे भाग लेते हैं ?

उत्तर- 1. पानी, 2. फेडेकोर (FEDECOR), 3. बोलिविया, 4. नेपाल, 5. सीधे भाग नहीं लेते लेकिन राजनीति दलों पर प्रभाव डालना चाहते हैं ।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. माओवादी विचारधारा क्या है ?

उत्तर -चीनी-क्रान्ति के नेता माओ की विचारधारा को मानने वाले साम्यवादी । माओवादी, मजदूरों और किसानों के शासन को स्थापित करने के लिए सशस्त्र क्रांति के जरिए सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।

प्रश्न 2. नेपाल के जन-संघर्ष में कौन-कौन शामिल था ?

उत्तर – नेपाल के जन-संघर्ष में राजनीतिक दलों के अलावा अनेक संगठन शामिल थे। सभी बड़े मजदूर संगठन और उनके परिसंघों ने इस आन्दोलन में भाग लिया। अन्य अनेक संगठनों मसलन मूलवासी लोगों के संगठन तथा शिक्षक, वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समूह ने इस आन्दोलन को अपना समर्थन दिया।

प्रश्न 3. दबाव-समूह का निर्माण कब होता है ?

उत्तर- दबाव-समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं।

प्रश्न 4. हित-समूह क्या हैं ?

उत्तर-हित-समूह अमूमन समाज के किसी खास हिस्से अथवा समूह के हितों को बढ़ावा देना चाहते हैं। मजदूर संगठन, व्यावसायिक संघ और पेशेवरों (वकील, डॉक्टर, शिक्षक आदि) के निकाय इस तरह के दबाव-समूह के उदाहरण हैं।

विकास योजनाओं और सार्वजनिक कार्यों में पारदर्शिता लाई जा सकती है। शासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया में पक्षपात की सम्भावना एवं भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. नेपाल में लोकतन्त्र की बहाली के लिए चलाए गए आन्दोलन पर टिप्पणी कीजिए ।

उत्तर-(1) नेपाल लोकतन्त्र की ‘तीसरी लहर’ के देशों में एक है जहाँ लोकतन्त्र 1990 के दशक में कायम हुआ ।

(2) नेपाल में राजा औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बना रहा लेकिन वास्तविक सत्ता का प्रयोग जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में था ।

(3) आत्यंतिक राजतन्त्र से संवैधानिक राजतन्त्र के इस संक्रमण को राजा वीरेन्द्र ने स्वीकार कर लिया था। लेकिन शाही खानदान के एक रहस्यमय कत्लेआम में राजा वीरेन्द्र की हत्या हो गई।

(4) नेपाल के नए राजा ज्ञानेंद्र लोकतान्त्रिक शासन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की अलोकप्रियता और कमजोरी का उन्होंने लाभ उठाया। फरवरी 2005 . में राजा ज्ञानेंद्र ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया ।

(5) अप्रैल 2006 में जो आन्दोलन उठ खड़ा हुआ उसका लक्ष्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर दोबारा जनता के हाथों में सौंपना था । संसद की बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक ‘सेवेन पार्टी अलायंस’ बनाया और नेपाल की राजधानी काठमांडू में ‘बंद’ का आह्वान किया। इसमें माओवादी बागी तथा अन्य संगठन भी साथ हो गए। तकरीबन एक लाख लोग रोजाना एकजुट होकर लोकतन्त्र की बहाली की माँग कर रहे थे।

(6) 21 अप्रैल 2006 को आन्दोलनकारियों की संख्या 3 से 5 लाख तक पहुँच गई और आन्दोलनकारियों ने राजा को ‘अल्टीमेटम’ दे दिया।

(7) 24 अप्रैल, 2006 अल्टीमेटम का अन्तिम दिन था । इस दिन राजा तीनों माँगों को मानने के लिए बाध्य हुआ। एस. पी. ए. ने गिरिजा प्रसाद कोईराला को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री चुना । संसद फिर बहाल हुई और इसने अपनी बैठक में कानून पारित किए। इन कानूनों के सहारे राजा की अधिकांश शक्तियाँ वापस ले ली गईं।

(8) 2008 में राजतन्त्र को समाप्त किया और नेपाल संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य बन गया। 2015 में यहाँ एक नये संविधान को अपनाया गया । नेपाल के लोगों का यह संघर्ष पूरे विश्व में लोकतन्त्र- प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

प्रश्न 2. बोलिविया के जल-युद्ध पर एक लेख लिखिए।

अथवा

लोकप्रिय संघर्ष लोकतन्त्र कार्यप्रणाली के अभिन्न अंग किस प्रकार से हैं ? बोलिविया के -संघर्ष का उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-

बोलिविया का जल-युद्ध

(1) बोलिविया लातिनी अमरीका का एक निर्धन देश है। यहाँ के लोगों ने पानी के निजीकरण के खिलाफ एक सफल संघर्ष चलाया। इससे पता चलता है कि लोकतन्त्र की जीवंतता से जन-संघर्ष का अन्दरूनी रिश्ता है।

(2) विश्व बैंक ने यहाँ की सरकार पर नगरपालिका द्वारा की जा रही जलापूर्ति से अपना नियन्त्रण छोड़ने के लिए दबाव डाला। सरकार ने कोचबंबा शहर में जलापूर्ति के अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी को बेच दिए। इस कम्पनी ने पानी की कीमत में चार गुना बढ़ोत्तरी कर दी जिससे लोगों का पानी का मासिक बिल ₹ 1000 तक पहुँच गया जबकि बोलिविया में लोगों की औसत आय ₹5000 महीना है। इसके फलस्वरूप जन-आन्दोलन भड़क उठा।

(3) जनवरी 2000 में श्रमिकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा सामुदायिक नेताओं के मध्य एक गठबंधन ने आकार ग्रहण किया और इस गठबंधन ने शहर में चार दिनों की सफल आम हड़ताल की। सरकार वार्ता के लिए तैयार हुई और हड़ताल वापस ले ली गई। फिर भी कुछ हाथ नहीं लगा।

(4) फरवरी में फिर आन्दोलन शुरू हुआ लेकिन इस बार पुलिस ने निर्दयी तरीके से दमन किया। अप्रैल में एक और हड़ताल हुई और सरकार ने ‘मार्शल लॉ’ लगा दिया। लेकिन जनता की ताकत के आगे बहुराष्ट्रीय कम्पनी के अधिकारियों को शहर छोड़कर भागना पड़ा।

(5) सरकार को आन्दोलनकारियों की सभी माँगें माननी पड़ीं। बहुराष्ट्रीय कम्पनी के साथ किया गया करार निरस्त कर दिया गया और जलापूर्ति पुनः नगरपालिका को सौंपकर पुरानी दरें लागू कर दी गईं। इस आन्दोलन को ‘बोलिविया के जल-युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 3. क्या दबाव-समूह और आन्दोलन के प्रभाव सकारात्मक होते हैं ?

उत्तर- दबाव-समूहों और आन्दोलनों के कारण लोकतन्त्र की जड़ें मजबूत हुई हैं। शासकों के ऊपर दबाव डालना लोकतन्त्र में कोई हानिकारक गतिविधि नहीं बशर्ते इसका अवसर सबको मिलना चाहिए। अक्सर सरकारें थोड़े से धनी और ताकतवर लोगों के अनुचित दबाव में आ जाती हैं। जनसामान्य के हित-समूह तथा आन्दोलन इस अनुचित दबाव के प्रतिकार में उपयोगी भूमिका अदा करते हैं और जनता की आवश्यकताओं तथा सरोकारों से सरकार को अवगत कराते हैं।

वर्ग-विशेष हित-समूह भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जब विभिन्न समूह सक्रिय हों तो कोई एक समूह समाज के ऊपर प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सकता। यदि कोई एक समूह सरकार के ऊपर अपने हित में नीति बनाने के लिए दबाव डालता है तो दूसरा समूह इसके प्रतिकार में दबाव डालेगा कि नीतियाँ उस तरह से न बनाई जाएँ। सरकार को भी ऐसे में पता चलता रहता है कि समाज के विभिन्न तबके क्या चाहते हैं। इससे परस्पर विरोधी हितों के मध्य ताल-मेल बैठाना तथा शक्ति सन्तुलन करना सम्भव होता है।

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