MP Board Class 10th Political Science Solution Chapter 6 : राजनीतिक दल

MP Board Class 10  Political Science II लोकतांत्रिक राजनीति-II

Chapter 6 : राजनीतिक दल [Political Parties]

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • आम नागरिकों के लिए लोकतन्त्र का आशय राजनीतिक दल ही है।
  • करीब 100 साल पहले दुनिया के बस कुछ ही देशों में और वह भी गिनती के राजनीतिक दल थे। राजनीतिक दल सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है।
  • राजनीतिक दल के तीन प्रमुख हिस्से हैं- (i) नेता, (ii) सक्रिय सदस्य; और (iii) अनुयायी या समर्थक ।
  • राजनीतिक दल राजनीतिक पदों को भरते हैं और राजनीतिक सत्ता का प्रयोग करते हैं।
  • अधिकांश लोकतान्त्रिक देशों में चुनाव राजनीतिक दलों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों के बीच लड़ा जाता है।
  • दल अलग-अलग नीतियों और कार्यक्रमों को मतदाताओं के सामने रखते हैं।
  • पार्टियाँ देश के कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
  • बहुमत प्राप्त न करने वाला/वाले दल विपक्षी दल कहलाते हैं।
  • जनमत-निर्माण में दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • दल ही सरकारी मशीनरी और सरकार द्वारा चलाए जाने वाले कल्याण कार्यक्रमों तक लोगों की पहुँच बनाते हैं।
  • भारत में ही चुनाव आयोग में नाम पंजीकृत कराने वाले दलों की संख्या 750 से ज्यादा है। 1
  • चीन में सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी को शासन करने की अनुमति है।
  • अमरीका और ब्रिटेन में दो दलीय व्यवस्था है।
  • भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। इस व्यवस्था में कई दल गठबंधन बनाकर भी सरकार बना सकते हैं।
  • पिछले तीन दशकों के दौरान भारत में राजनीतिक दलों की सदस्यता का अनुपात धीरे-धीरे बढ़ता गया है।
  • पूरी दुनिया में राजनीतिक दल ही एक ऐसी संस्था है जिस पर लोग सबसे कम भरोसा करते हैं।
  • देश की हर पार्टी को निर्वाचन आयोग में अपना पंजीकरण कराना पड़ता है।
  • सन् 2017 में देश में सात दल राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त थे।
  • भारतीय जनता पार्टी, पुराने भारतीय जन संघ को जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में गठित किया, पुनर्जीवित करके 1980 में यह पार्टी बनी।
  • इण्डियन नेशनल काँग्रेस इसे आमतौर पर काँग्रेस पार्टी कहा जाता है और यह दुनिया के सबसे पुराने दलों में से एक है।
  • 1885 में गठित इस दल में कई बार विभाजन हुए हैं।

पाठान्त अभ्यास

प्रश्न 1. लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं की चर्चा करें।

उत्तर-लोकतन्त्र में राजनीतिक दल अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। इनमें मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) जनमत तैयार करना – राजनीतिक दल देश की समस्याओं को स्पष्ट रूप से जनता के सामने रखकर जनमत तैयार करते हैं। वे पत्र-पत्रिकाओं तथा सभाओं में इन समस्याओं को सरल ढंग से सामने रखते हैं और फिर इस लोकमत को तथा जनता की कठिनाइयों को संसद में रखते हैं।

(2) मध्यस्थता – राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता का कार्य करते हैं। सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों को जनता के सामने तथा जनता की इच्छाओं को सरकार के सामने रखते हैं।

(3) आलोचना – प्रजातन्त्रीय शासन में बहुमत प्राप्त दल अपनी सरकार बनाता है और अल्पमत दल विरोधी दल का कार्य करते हैं। विरोधी दलों की आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल गलत कार्य व नीतियाँ नहीं अपनाता ।

(4) राजनीतिक शिक्षा – राजनीतिक दल साधारण नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा देने का कार्य भी करते हैं। चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल प्रेस, रेडियो, टी.वी. व सभाओं के माध्यम से अपनी नीतियों व जनता के अधिकारों का वर्णन करते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

(5) शासन पर अधिकार करना – राजनीतिक दलों का अन्तिम उद्देश्य शासन पर अधिकार करना होता है। वे प्रचार साधनों के द्वारा जनमत को अपने पक्ष में करते हैं और सत्ता पर अधिकार करने का प्रयास करते हैं।

(6) संसदीय सरकार के लिए अनिवार्य-संसदीय शासन व्यवस्था में सरकार का निर्माण दलों के आधार पर होता है। संसद के निम्न सदन में जिस दल का बहुमत होता है, वह सरकार बनाता है।

(7) लोकतन्त्र के लिए अनिवार्य-लोकतन्त्रात्मक प्रशासन में राजनीतिक दल अनिवार्य होता है। उसके बिना निर्वाचन की व्यवस्था करना कठिन है। दलों से ही सरकार बनती है और वही उस पर नियन्त्रण रखते हैं। उनके माध्यम से सरकार व जनता के बीच सम्पर्क स्थापित होता है और जनता की कठिनाइयों से सरकार अवगत होती है।

(8) मतदान में सहायक – राजनीतिक दलों के सहयोग से नागरिकों को निर्वाचन के समय यह निर्णय लेने में कठिनाई नहीं होती कि उन्हें अपना मत किस उम्मीदवार को देना है। वह जिस दल के कार्यक्रम व नीति को पसन्द करता है, उसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर देता है।

प्रश्न 2. राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं ?

उत्तर- राजनीतिक दलों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव – पहली चुनौती है पार्टी के भीतर आन्तरिक लोकतन्त्र का न होना। पूरे विश्व में यह धारणा बन गई है कि सम्पूर्ण ताकत एक या कुछ नेताओं के हाथ में केन्द्रित हो जाती है। पार्टियों के पास न सदस्यों की खुली सूची होती है, न नियमित रूप से सांगठनिक बैठकें होती हैं। इनके आन्तरिक चुनाव भी नहीं होते। कार्यकर्ताओं से वे सूचनाओं को साझा भी नहीं करते । सामान्य कार्यकर्ता अनजान ही रहता है कि पार्टी के भीतर क्या चल रहा है। फलस्वरूप पार्टी के नाम पर सारे फैसले लेने का अधिकार उस पार्टी के नेता हथिया लेते हैं। चूँकि कुछेक नेताओं के पास ही असली ताकत होती है इसलिए जो उनसे असहमत होते हैं उनका पार्टी में टिके रह पाना कठिन हो जाता है। पार्टी के सिद्धान्तों और नीतियों से निष्ठा की जगह नेता से निष्ठा ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाती है।

(2) वंशवाद की चुनौती- यह चुनौती पहली चुनौती से ही जुड़ी है – यह वंशवाद की चुनौती। क्योंकि अधिकांश दल अपना कामकाज पारदर्शी तरीके से नहीं करते इसलिए सामान्य कार्यकर्ता के नेता बनने और ऊपर आने की गुंजाइश काफी कम होती है। जो लोग नेता होते हैं वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकीलोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते हैं। अनेक पार्टियों में शीर्ष पद पर हमेशा एक ही परिवार के लोग आते हैं। यह पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ अन्याय है। यह बात लोकतन्त्र के लिए भी अच्छी नहीं है क्योंकि इसमें अनुभवहीन और बिना जनाधार वाले लोग शक्तिशाली पदों पर पहुँच जाते हैं। यह प्रवृत्ति कुछ प्राचीन लोकतान्त्रिक देशों सहित कमोबेश पूरी दुनिया में दिखाई देती है।

(3) धन तथा बाहुबल की भूमिका- तीसरी चुनौती पार्टियों में (खासकर चुनाव के समय) पैसा और अपराधी तत्वों की बढ़ती भूमिका है। चूँकि पार्टियों की चिंता चुनाव जीतने की होती है अतः इसके लिए कोई भी जायज-नाजायज तरीका अपनाने से वे परहेज नहीं करतीं । वे इस प्रकार के प्रत्याशी चुनाव में उतारती हैं। जिनके पास काफी पैसा हो या जो पैसे जुटा सकें। किसी दल को ज्यादा धन देने वाली कम्पनियाँ और अमीर लोग उस पार्टी की नीतियों और फैसलों को भी प्रभावित करते हैं। कई बार पार्टियाँ चुनाव जीत सकने वाले अपराधियों का समर्थन करती हैं या उनकी मदद लेती हैं। पूरे विश्व में लोकतन्त्र के समर्थक प्रजातान्त्रिक राजनीति में अमीर लोग और बड़ी कम्पनियों की बढ़ती भूमिका को लेकर चिंतित हैं।

(4) विकल्पहीनता की स्थिति – चौथी चुनौती पार्टियों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति की है। सार्थक विकल्प का आशय होता है कि विभिन्न पार्टियों की नीतियों और कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण अन्तर हो । हाल के वर्षों में दलों के बीच वैचारिक अन्तर कम होता गया है और यह प्रवृत्ति दुनियाभर में दिखती है । उदाहरण के लिए, हमारे देश में सभी बड़ी पार्टियों के बीच आर्थिक मसलों पर बड़ा कम अन्तर रह गया है। जो लोग इससे अलग नीतियाँ चाहते हैं उनके लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। कई बार लोगों के पास एकदम नया नेता चुनने का भी विकल्प नहीं होता क्योंकि वही थोड़े से नेता हर दल में आते-जाते रहते हैं।

प्रश्न 3. राजनीतिक दल अपना कामकाज बेहतर ढंग से करें, इसके लिए उन्हें मजबूत बनाने के कुछ सुझाव दें।

उत्तर-राजनीतिक दल अपना कामकाज बेहतर ढंग से करें, इसके लिए निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं-

(1) सांसदों और विधायकों को दल-बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। निर्वाचित प्रतिनिधियों के मन्त्रिपद या पैसे के लोभ में दल-बदल करने में आई तेजी को देखते हुए ऐसा किया गया। नए कानून के अनुसार अपना दल-बदलने वाले विधायक या सांसद को अपनी सीट भी गँवानी होगी। इस नए कानून से दल-बदल में कमी आई है, पर इससे पार्टी में विरोध का कोई स्वर उठाना और भी कठिन हो गया है। पार्टी नेतृत्व जो फैसला करता है, सांसद और विधायक को उसे मानना ही होता है।

(2) राजनीतिक दलों का निर्माण जाति, भाषा या क्षेत्र के आधार पर न करके विशुद्ध राजनीतिक तथा आर्थिक सिद्धान्तों के आधार पर किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर ही इन दलों द्वारा राज्य के सभी नागरिकों में एकता उत्पन्न करने व जनमत जाग्रत करने का कार्य भी किया जा सकता है।

(3) उच्चतम न्यायालय ने पैसे और अपराधियों का प्रभाव कम करने के लिए एक आदेश जारी किया है। इस आदेश के द्वारा चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी सम्पत्ति का और अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथपत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस नयी व्यवस्था से लोगों को अपने प्रत्याशियों के बारे में बहुत-सी पक्की सूचनाएँ उपलब्ध होने लगी हैं।

(4) चुनाव का खर्च सरकार उठाए। सरकार दलों को चुनाव लड़ने के लिए धन दे । यह मदद पेट्रोल, कागज, फोन वगैरह के रूप में भी हो सकती है या फिर पिछले चुनाव में मिले मतों के अनुपात में नकद पैसा दिया जा सकता है।

(5) दो और तरीके हैं जिनसे राजनीतिक दलों को सुधारा जा सकता है। पहला तरीका है राजनीतिक दलों पर लोगों द्वारा दबाव बनाने का । यह काम पत्र लिखने, प्रचार करने और आन्दोलनों के जरिये किया जा सकता है। आम नागरिक दबाव समूह, आन्दोलन और मीडिया के माध्यम से यह कार्य किया जा सकता है। अगर पार्टियों को लगे कि सुधार न करने से उनका जनाधार गिरने लगेगा या उनकी छवि खराब होगी तो इसे लेकर वे चिंतित होने लगेंगे।

सुधार का दूसरा तरीका है सुधार की इच्छा रखने वालों का खुद राजनीतिक दलों में शामिल होना । लोकतन्त्र की गुणवत्ता लोकतन्त्र में लोगों की भागीदारी से तय होती है। अगर आम नागरिक खुद राजनीतिमें भाग न लें और बाहर से ही बातें करते रहें तो सुधार मुश्किल है। खराब राजनीति का समाधान है ज्यादा से ज्यादा राजनीति और बेहतर राजनीति ।

प्रश्न 4 राजनीतिक दल का क्या अर्थ होता है ?

उत्तर-राजनीतिक दल लोगों के एक ऐसे संगठित समूह के रूप में समझा जा सकता है जो चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से कार्य करता है। समाज के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर यह समूह कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम तय करता है। सामूहिक हित एक विवादास्पद विचार है। इसे लेकर सबकी राय अलग-अलग होती है। इसी आधार पर दल लोगों को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि उनकी नीतियाँ औरों से बेहतर हैं। वे लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीतने के बाद उन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं।

गार्नर के शब्दों में, “राजनीतिक दल किसी राज्य के अन्तर्गत मनुष्यों के उस संगठित समूह को कहते हैं जो किसी राजनीतिक उद्देश्य या आर्थिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए शान्तिमय और वैध साधनों से, किसी देश के निर्वाचक मण्डल के बहुमत से अपने पक्ष में करके, राज्य की शासन शक्ति को अपने हाथ में लेना चाहता है।”

इस प्रकार दल किसी समाज के बुनियादी राजनीतिक विभाजन को भी दर्शाते हैं। पार्टी समाज के किसी एक हिस्से से सम्बन्धित होती है। इसलिए उसका नज़रिया समाज के उस वर्ग/समुदाय विशेष की तरफ झुका होता है। किसी दल की पहचान उसकी नीतियों और उसके सामाजिक आधार पर तय होती है।

प्रश्न 5. किसी भी राजनीतिक दल के क्या गुण होते हैं ?

उत्तर-

राजनीतिक दल के गुण

(1) अपने विचारों के समर्थन में निरन्तर जनमत बनाना ।

(2) एक विधान द्वारा संगठित और संचालित होना ।

(3) निर्वाचन आयोग में पंजीकृत होना।

(4) पहचान हेतु एक चुनाव चिह्न होना।

(5) प्रमुख उद्देश्य निर्वाचन में विजय प्राप्त कर सत्ता प्राप्त करना ।

(6) शासक दल पर निगाह रखते हुए जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध जनमत तैयार करना ।

प्रश्न 6. चुनाव लड़ने और सरकार में सत्ता सँभालने के लिए एकजुट हुए लोगों के समूह को ‘कहते हैं।

उत्तर – राजनीतिक दल ।

प्रश्न 7. पहली सूची [संगठन/दल] और दूसरी सूची (गठबंधन/मोर्चा) के नामों का मिलान करें और नीचे दिए गए कूट नामों के आधार पर सही उत्तर ढूँढें-

उत्तर– (ग) ग, क, घ, ख ।

प्रश्न 8. इनमें से कौन बहुजन समाज पार्टी का संस्थापक है ?

(क) काशीराम

(ख) साहू महाराज

(ग) बी. आर. आंबेडकर

(घ) ज्योतिबा फुले

उत्तर– (क) काशीराम ।

प्रश्न 9. भारतीय जनता पार्टी का मुख्य प्रेरक सिद्धान्त क्या है ?

(क) बहुजन समाज

(ख) क्रान्तिकारी लोकतन्त्र

(ग) समग्र मानवतावाद

(घ) आधुनिकता।

उत्तर- (ग) समग्र मानवतावाद ।

प्रश्न 10. पार्टियों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर गौर करें-

(अ) राजनीतिक दलों पर लोगों का ज्यादा भरोसा नहीं है।

(ब) दलों में अक्सर बड़े नेताओं के घोटालों की गूंज सुनाई देती है ।

(स) सरकार चलाने के लिए पार्टियों का होना जरूरी नहीं ।

इन कथनों में से कौन सही है ?

(क) अ, ब और द

(ख) अ और ख

(ग) ब और स

(घ) अ और स

उत्तर- (क) अ, ब और स ।

प्रश्न 11. निम्नलिखित उद्धरण को पढ़ें और नीचे दिए गए प्रश्नों का जवाब दें-

मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। गरीबों के आर्थिक और सामाजिक विकास के प्रयासों के लिए उन्हें अनेक अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। उन्हें और उनके द्वारा स्थापित ग्रामीण बैंक को संयुक्त रूप से वर्ष 2006 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। फरवरी 2007 में उन्होंने एक राजनीतिक दल बनाने और संसदीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनका उद्देश्य सही नेतृत्व को उभारना, अच्छा शासन देना और नए बांग्लादेश का निर्माण करना है। उन्हें लगता है कि पारम्परिक दलों से अलग एक नए राजनीतिक दल से ही नई राजनीतिक संस्कृति पैदा हो सकती है। उनका दल निचले स्तर से लेकर ऊपर तक लोकतान्त्रिक होगा।

नागरिक शक्ति नामक इस नये दल के गठन से बांग्लादेश में हलचल मच गई है। उनके फैसले को काफी लोगों ने पसन्द किया तो अनेक को यह अच्छा नहीं लगा। एक सरकारी अधिकारी शाहेदुल इस्लाम ने कहा, “मुझे लगता है कि अब बांग्लादेश में अच्छे और बुरे के बीच चुनाव करना संभव हो गया है। अब एक अच्छी सरकार की उम्मीद की जा सकती है। यह सरकार न केवल भ्रष्टाचार से दूर रहेगी बल्कि भ्रष्टाचार और काले धन की समाप्ति को भी अपनी प्राथमिकता बनाएगी।”

पर दशकों से मुल्क की राजनीति में रुतबा रखने वाले पुराने दलों के नेताओं में संशय है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है- “नोबेल पुरस्कार जीतने पर क्या बहस हो सकती है पर राजनीति एकदल अलग चीज़ है। एकदम चुनौती भरी और अक्सर विवादास्पद ।” कुछ अन्य लोगों का स्वर और कड़ा था। वे उनके राजनीति में आने पर सवाल उठाने लगे। एक राजनीतिक प्रेक्षक ने कहा, “देश से बाहर की ताकतें उन्हें राजनीति पर थोप रही हैं।”

क्या आपको लगता है कि यूनुस ने नयी राजनीति पार्टी बनाकर ठीक किया ?

क्या आप विभिन्न लोगों द्वारा जारी बयानों और अंदेशों से सहमत हैं ? इस पार्टी को दूसरों से अलग काम करने के लिए खुद को किस तरह संगठित करना चाहिए ? अगर आप इस राजनीतिक दल के संस्थापकों में एक होते तो इसके पक्ष में क्या दलील देते ?

उत्तर- (i) मोहम्मद यूनुस एक अर्थशास्त्री व गरीबों के लिए आर्थिक और सामाजिक विकास के प्रयास किए। उनका उद्देश्य सही नेतृत्व को उभारना, अच्छा शासन देना और नए बांग्लादेश का निर्माण करना इसलिए बांग्लादेश में एक नई राजनीतिक पार्टी बनाकर ठीक किया।

(ii) हाँ, मैं विभिन्न लोगों द्वारा जारी बयानों और अंदेशों से सहमत हूँ जो किसी न किसी रूप में मोहम्मद यूनुस की नयी पार्टी के कार्यक्रमों से सहमत हैं।

(iii) इस पार्टी को दूसरों से अलग कार्य करने के लिए भ्रष्टाचार और काले धन को समाप्त करने के लिए संगठित होना होगा ।

(iv) यदि मैं इस पार्टी के संस्थापकों में से एक होता तो मैं आम जनता को यह विश्वास दिलाता कि पार्टी का उद्देश्य जनता की भलाई करना व राष्ट्र की प्रगति करना है।

(C) अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. दलीय व्यवस्था किस शासन के लिये अनिवार्य है ?

(i) राजतन्त्र

(ii) कुलीनतन्त्र

(iii) अधिनायकतन्त्र

(iv) प्रजातन्त्र ।

2. राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा दोष है-

(i) वे जनता के शासन को दलीय शासन में बदल देते हैं

(ii) वे समाज में भ्रष्टाचार की वृद्धि में सहायक हैं

(iii) वे राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक हैं

(iv) वे राजनीति को व्यवसाय बना देते हैं।

3. देश के कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाते हैं-

(i) राजनीतिक पार्टियाँ

(ii) वित्त मंत्रालय

(iii) उच्चतम न्यायालय

(iv) राज्य सरकारें।

4. भारत में किस प्रकार की शासन व्यवस्था है ?

(i) राजवंशीय

(ii) राजतन्त्र

(iii) द्विदलीय व्यवस्था

(iv) बहुदलीय व्यवस्था।

5. यूनाइटेड किंगडम (इंग्लैण्ड) में निम्नलिखित में से कौन-सी प्रणाली है ?

(i) एकदलीय व्यवस्था

(ii) द्विदलीय व्यवस्था

(iii) गठबन्धन

(iv) बहुदलीय व्यवस्था।

6. निम्न में से कौन-सा एक राष्ट्रीय दल नहीं है ?

(i) भारतीय जनता पार्टी

(ii) राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी

(iii) बहुजन समाज पार्टी

(iv) राष्ट्रीय जनता दल ।

7. किस संगठन ने राजनीतिक पार्टियों को अपने संगठन के चुनाव कराना तथा आयकर रिटर्न भरना अनिवार्य बनाया है ?

(i) प्रधानमन्त्री

(ii) सर्वोच्च न्यायालय

(iii) चुनाव आयोग

(iv) संसद।

उत्तर- 1. (iv), 2. (ii), 3. (i), 4. (iv), 5. (ii), 6. (iv), 7. (iii)।

• रिक्त स्थान पूर्ति

1. लोकतन्त्र में सबसे अलग दिखाई देने वाली संस्था……………………. है।

2. कई दल मिलकर जब सरकार बनाते हैं, तब वह………………. सरकार कहलाती है।

3. राजनीतिक दलों को मान्यता देने के लिए …………………… आयोग बनाया गया है।

4. नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार………………….. कहलाता है।

5. जनमत निर्माण में………………………….. महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उत्तर-1. राजनीतिक दल, 2. साझा, 3. निर्वाचन, 4 मताधिकार, 5. दल ।

• सत्य/असत्य

1. आम नागरिकों के लिए लोकतन्त्र का आशय राजनीतिक दल ही है।

2. सामूहिक हित एक सर्वव्यापी विचार है।

3. पिछले तीन दशकों के दौरान भारत में राजनीतिक दलों की सदस्यता का अनुपात धीरे-धीरे बढ़ता गया है।

4. देश की हर पार्टी को गृह मंत्रालय में अपना पंजीकरण कराना पड़ता है।

5. बहुजन समाज पार्टी का गठन सन् 1984 में किया गया।

उत्तर – 1. सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य ।

सही जोड़ी मिलाइए

उत्तर– 1.→(ग), 2. (ङ), 3. (क), 4. (ख), 5. (घ) ।

एक शब्द / वाक्य में उत्तर

1. भारतीय जनसंघ को कब पुनर्जीवित करके भारतीय जनता पार्टी को गठित किया गया ?

2. भारत में चुनाव आयोग में नाम पंजीकृत कराने वाले दलों की संख्या कितनी है ?

3. बहुमत प्राप्त न करने वाले राजनैतिक दल को क्या कहते हैं ?

4. लोकतान्त्रिक देशों में जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को कहते हैं।

5. ऑल इण्डिया तृणमूल काँग्रेस किसके नेतृत्व में बनी ?

6. उस दल को क्या कहते हैं जिसे लोकसभा चुनाव में 6% मत अथवा 4 सीटें प्राप्त हुई हों ?

उत्तर—1. 1980, 2. 750 से ज्यादा, 3. विपक्षी दल, 4. निर्वाचन, 5. ममता बनर्जी, 6. राष्ट्रीय दल ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. राजनीतिक दल किसे कहते हैं ?

उत्तर-राजनीतिक दल उन नागरिकों के संगठित समूह का नाम है जो एक ही राजनीतिक सिद्धान्तों को मानते और एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं।

प्रश्न 2. राजनीतिक दल के तीन प्रमुख हिस्से क्या हैं ?

उत्तर-(1) नेता, (2) सक्रिय सदस्य और (3) अनुयायी या समर्थक।

प्रश्न 3. शासक दल किसे कहते हैं ?

उत्तर- जिस दल का शासन हो यानी जिसकी सरकार बनी हो, शासक दल कहते हैं

प्रश्न 4. राष्ट्रीय पार्टी किसे कहते हैं ?

उत्तर– कई पार्टियाँ पूरे देश में फैली हुई हैं और उन्हें राष्ट्रीय पार्टी कहा जाता है। इन दलों की विभिन्न राज्यों में इकाइयाँ हैं। पर कुल मिलाकर देखें तो ये सभी इकाइयाँ राष्ट्रीय स्तर पर तय होने वाली नीतियों, कार्यक्रमों और रणनीतियों को ही मानती हैं।

प्रश्न 5. बर्लुस्कोनी कौन थे ?

उत्तर-बर्लुस्कोनी इटली के प्रधानमन्त्री थे। वह इटली के बड़े व्यवसायियों में से एक है। वे 1993 में गठित फोर्जा इतालिया के नेता हैं।

प्रश्न 6. दल-बदल क्या है ?

उत्तर- विधायिका के लिए किसी दल-विशेष से निर्वाचित होने वाले प्रतिनिधि का उस दल को छोड़कर किसी अन्य दल में शामिल हो जाना दल-बदल कहलाता है।

प्रश्न 7. शपथपत्र किसे कहते हैं ?

उत्तर-किसी अधिकारी को सौंपा गया एक दस्तावेज इसमें कोई व्यक्ति अपने बारे में निजी सूचनाएँ देता है और उनके सही होने के बारे में शपथ लेता है। इस पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर होते हैं।

प्रश्न 8. साझा सरकार किसे कहते हैं ?

उत्तर- किसी एक दल का बहुमत न आने पर जब कई दल मिलकर सरकार बनाते हैं, तब वह सरकार साझा सरकार कहलाती है। इसे गठबन्धन सरकार भी कहते हैं ।

प्रश्न 9. ‘आम चुनाव’ से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर-हमारे देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किये जाते हैं। इन चुनावों को आम चुनाव कहते हैं।

प्रश्न 10. राजनीतिक पार्टी का मुख्य कार्य क्या है ?

उत्तर-राजनैतिक पदों को भरना और सत्ता का प्रयोग करना ही किसी पार्टी का मुख्य कार्य होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में राजनीतिक दलों की भूमिका का वर्णन कीजिए।

उत्तर–(1) जनमत निर्माण में दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(2) राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं।

(3) दल ही सरकारी मशीनरी और सरकार द्वारा चलाए जाने वाले कल्याण कार्यक्रमों तक लोगों की पहुँच बनाते हैं।

(4) दल ही सरकारें बनाते और चलाते हैं।

(5) दल अलग-अलग नीतियों और कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते हैं।

(6) चुनाव हारने वाले दल शासक दल के विरोधी पक्ष की भूमिका अदा करते हैं।

प्रश्न 2. राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं ? लिखिए।

उत्तर-राष्ट्रीय राजनीतिक दल वे हैं जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश में होता है। इसका आशय यह नहीं है कि उनकी लोकप्रियता सभी राज्यों में एक जैसी है। उनका प्रभाव और इनकी शक्ति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त होने के लिए निम्न शर्त में से कोई एक का होना अनिवार्य है – जो दल एक या एक से अधिक राज्यों में लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में डाले गये मतों का कम से कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करे अथवा यदि कोई दल लोकसभा के सदस्यों का कम से कम 2 प्रतिशत स्थान प्राप्त करे और यह स्थान न्यूनतम तीन राज्यों में होना चाहिए।

प्रश्न 3. एकदलीय व्यवस्था को उदाहरण सहित समझाइए। क्या यह लोकतान्त्रिक विकल्प है ?

उत्तर – चीन में सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी को शासन करने की अनुमति है। हालाँकि कानूनी रूप से वहाँ भी लोगों को राजनीतिक दल बनाने की आजादी है पर वहाँ की चुनाव प्रणाली सत्ता के लिए स्वतन्त्र प्रतिद्वंद्विता की अनुमति नहीं देती इसलिए लोगों को नया राजनीतिक दल बनाने का कोई लाभ नहीं दिखता और इसलिए कोई नया दल नहीं बन पाता। हम एकदलीय व्यवस्था को अच्छा विकल्प नहीं मान सकते क्योंकि यह लोकतान्त्रिक विकल्प नहीं है। किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कम से कम दो दलों को राजनीतिक सत्ता के लिए चुनाव में प्रतिद्वंद्विता करने की अनुमति तो होनी चाहिए। साथ ही उन्हें सत्ता में आने का पर्याप्त अवसर भी मिलना चाहिए।

प्रश्न 4. बहुजन समाज पार्टी के सार्वभौम विचार और संगठन का वर्णन कीजिए।

उत्तर– बहुजन समाज पार्टी का गठन 1984 में स्व. काशीराम के नेतृत्व में किया गया। बहुजन समाज जिसमें दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियाँ और धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं, के लिए राजनीतिक सत्ता पाने का प्रयास और उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा पार्टी साहू महाराज, महात्मा फुले, पेरियार रामास्वामी नायकर और बाबा साहब आंबेडकर के विचारों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेती है। दलितों और कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण और उनके हितों की रक्षा के मुद्दों पर सबसे ज्यादा सक्रिय इस पार्टी का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश में है, पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, दिल्ली और पंजाब में भी यह पार्टी पर्याप्त ताकतवर है।

प्रश्न 5. ‘ऑल इंडिया तृणमूल काँग्रेस’ पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए ।

उत्तर-यह पार्टी 1 जनवरी 1998 को ममता बनर्जी के नेतृत्व में बनी । इसे 2016 में राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई । ‘पुष्प और तृण’ पार्टी का प्रतीक है। धर्मनिरपेक्षता और संघवाद के प्रति प्रतिबद्ध । 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है। अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में भी इसकी उपस्थिति है। 2019 में हुए आम चुनाव में इसे 4.7 फीसदी वोट मिले और 22 सीटों पर जीत हासिल हुई जिससे लोकसभा में यह चौथी सबसे बड़ी पार्टी बन गई।

प्रश्न 6. झारखण्ड, महाराष्ट्र और ओडिशा के उन क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नाम, उनके चुनाव चिह्न सहित बताइए जो वहाँ मुख्य रूप से स्थापित हैं।

उत्तर-

(1) झारखण्ड – झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (जे.एम.एम.), चुनाव चिह्न – तीर कमान ।

(2) महाराष्ट्र – शिवसेना, चुनाव चिह्न – तीर कमान ।

(3) चुनाव चिह्न – बीजू जनता दल (बी.जे.डी.) चुनाव चिह्न – शंख ।

प्रश्न 7. दक्षिण भारत के चार राज्यों में किन्हीं छः ‘क्षेत्रीय दलों’ के नाम लिखिए।

उत्तर-

पांडिचेरी -ऑल इण्डिया एन. आर. काँग्रेस ।

केरल – (1) केरल-काँग्रेस (मणि), (2) इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग ।

आंध्र प्रदेश – (1) तेलुगु देशम पार्टी, (2) वाई एस आर काँग्रेस पार्टी ।

तमिलनाडु – (1) ऑल इण्डिया अन्ना डीएमके, (2) द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ।

प्रश्न 8. क्षेत्रीय दलों और राष्ट्रीय दलों के बीच अन्तर लिखिए।

उत्तर-

क्षेत्रीय दल        राष्ट्रीय दल
1. ये क्षेत्रीय मुद्दे उठाते हैं।1.ये राष्ट्रीय मुद्दे उठाते हैं।
2. क्षेत्रीय दलों में अक्सर किसी एक व्यक्ति यापरिवार का प्रभुत्व होता है।2. राष्ट्रीय दलों पर भी व्यक्ति व परिवारवाद का प्रभाव देखने को मिलता है, लेकिन सभी दलों में ऐसा नहीं होता।
3. ये दल क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करते हैं तथा इनका अस्तित्व भी क्षेत्रीय स्तर तक होता है।3. ये दल पूरे देश में कार्य करते हैं तथा इनका प्रभाव भी पूरे देश में फैला होता है।
4. जब कोई पार्टी राज्य विधानसभा के चुनाव में पड़े कुल मतों का 6 फीसदी या उससे अधिक हासिल करती है और कम-से- -कम दो सीटों पर जीत दर्ज करती है तो उसे अपने राज्य के राजनीतिक दल के रूप में मान्यता मिल जाती है।4. अगर कोई दल लोकसभा चुनाव में पड़े कुल वोट का अथवा चार राज्यों के विधानसभाई चुनाव में पड़े कुल वोटों का 6 प्रतिशत हासिल करता है और लोकसभा के चुनाव में कम-से-कम चार सीटों पर जीत दर्ज करता है तो उसे राष्ट्रीय दल की मान्यता मिलती है।

प्रश्न 9. क्या दलीय व्यवस्था प्रजातन्त्र के लिए अनिवार्य है ?

उत्तर- दलविहीन लोकतन्त्र व्यावहारिक नहीं है। वस्तुतः प्रतिनिध्यात्मक शासन के लिए राजनीतिक दलों का अस्तित्व अनिवार्य है। राजनीतिक दलों की बुराइयों को दूर करने का एकमात्र व्यावहारिक मार्ग यही है कि जनता के बौद्धिक और नैतिक स्तर को ऊँचा किया जाय। इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिस्थिति में दल के प्रति भक्ति से राष्ट्र के प्रति भक्ति को उच्च स्थान दिया जाना चाहिए। राजनीतिक दलों में योग्य जनभावना से प्रेरित नागरिकों को स्थान दिया जाना चाहिए। राजनीतिक दल प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्र के लिए आवश्यक हैं। इन उपायों को अपनाकर उन्हें प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्र के लिए अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।

प्रश्न 10. “राजनीतिक दलों के सामने वंशवाद उत्तराधिकार एक प्रमुख समस्या है।” कथन का आंकलन कीजिए।

उत्तर- पाठान्त अभ्यास में प्रश्न 2 के अन्तर्गत ‘वंशवाद की चुनौती’ शीर्षक देखें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. राजनीतिक दल लोकतन्त्र की एक अनिवार्य शर्त है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-राजनीतिक दल लोकतन्त्र के लिए एक अनिवार्य शर्त है। जैसा कि निम्न बातों से स्पष्ट है-

(1) राजनीतिक दल न हों तो सारे उम्मीदवार स्वतन्त्र या निर्दलीय होंगे। तब इनमें से कोई भी बड़े नीतिगत बदलाव के बारे में लोगों से चुनावी वायदे करने की स्थिति में नहीं होगा। सरकार बन जाएगी पर उसकी उपयोगिता संदिग्ध होगी।

(2) निर्वाचित प्रतिनिधि सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्रों में किए गए कार्यों के लिए जवाबदेह होंगे। लेकिन देश कैसे चले इसके लिए कोई उत्तरदायी नहीं होगा ।

(3) पंचायत चुनावों में दल औपचारिक रूप से अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करते लेकिन हम पाते हैं चुनाव के अवसर पर पूरा गाँव कई खेमों में बँट जाता है और हर खेमा सभी पदों के लिए अपने उम्मीदवारों का ‘पेनल’ उतारता है। राजनीतिक दल भी ठीक यही काम करते हैं।

(4) राजनीतिक दलों का उदय प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतान्त्रिक व्यवस्था के उभार के साथ जुड़ा है। बड़े समाजों के लिए प्रतिनिधित्व आधारित लोकतन्त्र की जरूरत होती है। जब समाज बड़े और जटिल हो जाते हैं तब उन्हें विभिन्न मुद्दों पर अलग-अलग विचारों को समेटने और सरकार की नजर में लाने के लिए किसी माध्यम या एजेंसी की आवश्यकता होती है।

(5) वहीं विभिन्न जगहों से आए प्रतिनिधियों को साथ करने की आवश्यकता होती है जिससे जिम्मेदार सरकार का गठन हो सके। उन्हें सरकार का समर्थन करने या उस पर अंकुश रखने, नीतियाँ बनवाने और नीतियों का समर्थन अथवा विरोध करने के लिए उपकरणों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक प्रतिनिधि सरकार की ऐसी जो भी आवश्यकताएँ होती हैं-राजनीतिक दल उनको पूरा करते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक दल लोकतन्त्र की अनिवार्य शर्त हैं ।

प्रश्न 2. दल व्यवस्था क्या है ? उसका महत्त्व बताइए ।

अथवा

राजनैतिक दल व्यवस्था क्या है ? उसका महत्त्व बताइए ।

उत्तर- संसदीय लोकतन्त्र के लिए विभिन्न राजनीतिक दल आवश्यक हैं। राजनीतिक दल नागरिकों के संगठित समूह हैं, जो एक-सी विचारधारा रखते हैं। ये अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। राजनीतिक दल एक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं और सदैव शक्ति प्राप्त करने और उसे बनाये रखने का प्रयास करते रहते हैं।

दलीय व्यवस्था का महत्त्व – दलीय व्यवस्था लोकतान्त्रिक शासन को सम्भव बनाती है। आधुनिक युग में शासन कार्य राजनीतिक दलों के सहयोग से होता है। यह शासन के नीति निर्धारण में सहयोग करते हैं और इनके सहयोग से नीतियों में परिवर्तन आसान होता है। दल-व्यवस्था के प्रभाव से सरकार जनोन्मुखी होती है व लोकहित में कार्य करती है। राजनैतिक दल शासन के निरंकुशता पर नियन्त्रण करते हैं। इनके माध्यम से जनता की आशाएँ और अपेक्षाएँ सरकार तक पहुँचती हैं। यह जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण देते हैं। इनके माध्यम से जनता को शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। राजनीतिक दल नागरिक स्वतन्त्रताओं के रक्षक होते हैं। इनके द्वारा राष्ट्र की एकता स्थापित होती है। लॉर्ड ब्राइस का मत है कि, “दल राष्ट्र के मस्तिष्क को उसी प्रकार क्रियाशील रखते हैं, जैसे कि लहरों की हलचल से समुद्र की खाड़ी का जल स्वच्छ रहता है।”

प्रश्न 3. राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर राजनीतिक दलों के प्रकार लिखिए।

उत्तर- दलीय व्यवस्था के प्रकार-किसी राष्ट्र में राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर दल व्यवस्था को तीन वर्गों में बाँटा जाता है-

(1) एकल दल (एक दलीय) प्रणाली- एक दलीय पद्धति या व्यवस्था उसे कहते हैं जिसमें केवल एक राजनीतिक दल होता है और वही समस्त राजनीतिक गतिविधियों का संचालन करता है, जैसे- जनवादी चीन में एक दलीय प्रणाली है, वहाँ केवल साम्यवादी दल को ही मान्यता है। अन्य राजनैतिक विचार रखने वालों पर पाबन्दी है।

(2) द्वि-दलीय प्रणाली – इस प्रणाली में केवल दो दल या दो प्रमुख दल होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है। इस राष्ट्र के दो प्रमुख दल हैं – डेमोक्रेटिक दल तथा रिपब्लिकन दल। इस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की शासन व्यवस्था में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है।

(3) बहुदलीय प्रणाली – बहुदलीय प्रणाली में अनेक राजनीतिक दल होते हैं, किन्तु सभी दलों की स्थिति समान नहीं होती। हमारे देश में बहुदलीय राजनीतिक प्रणाली है। निर्वाचन में किसी एक दल का बहुमत में आना आवश्यक नहीं है।

जब किसी एक दल का बहुमत नहीं आता है, तो देश या प्रान्त में साझा सरकार बनाई जाती है। साझा या गठबन्धन सरकार में दो या अधिक दल शामिल होते हैं।

बहुदलीय प्रणाली का सबसे बड़ा दोष दल-बदल है। चुनावों के समय अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आती हैं। इस प्रणाली में राजनीतिक दलों की नीतियों में स्पष्ट अन्तर करना कठिन हो जाता है। बहुदलीय प्रणाली में व्यक्तिनिष्ठ दलों की संख्या बढ़ जाती है। आये दिन उनका विघटन और पतन होता रहता है।

प्रश्न 4. विपक्षी दल की भूमिका का वर्णन कीजिए ।

अथवा

भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों की भूमिका बताइए ।

उत्तर – विपक्षी दल की भूमिका – लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक संचालन और सत्तारूढ़ पार्टी पर अंकुश रखने के लिए विपक्षी दल का अत्यधिक महत्त्व है। हमारे देश में प्रजातन्त्र है और उसमें सरकार के प्रत्येक कार्य, उसकी प्रत्येक नीति की समालोचना किया जाना अनिवार्य है। यह कार्य विपक्षी दल ही कर सकते हैं। सरकार को तानाशाह बनने से रोकना और नागरिकों के अधिकारों का हनन न होने देना, यह सभी कार्य विपक्ष करता है। विपक्ष की उपस्थिति से सरकार जनता के प्रति अधिक सजगता से अपने दायित्वों का निर्वहन करती है। विधायिका में कोई भी कानून पारित होने से पूर्व उस पर विचार-विमर्श और चर्चा होती है। विपक्ष के सहयोग से कानून के दोषों को दूर किया जा सकता है। विधान मण्डल और संसद की बैठकों के समय विपक्ष की भूमिका और बढ़ जाती है। विपक्ष सदन में प्रश्न पूछकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है। इस प्रकार विपक्ष जनता के सामने अपनी योग्यता को स्थापित करता है, विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है, सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करके सरकार को भूल सुधार के लिए बाध्य किया जाता है। विपक्ष द्वारा अपने दायित्व का सही प्रकार से पालन करने से सरकार प्रभावित होती है ।

प्रश्न 5. निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-

(1) भारतीय जनता पार्टी, (2) इंडियन नेशनल काँग्रेस ।

उत्तर- (1) भारतीय जनता पार्टी –

(i) पुराने भारतीय जन संघ को, जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में गठित किया, पुनर्जीवित करके 1980 में यह पार्टी बनी। भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्य; दीनदयाल उपाध्याय के विचार-समग्र मानवतावाद एवं अन्त्योदय से प्रेरणा लेकर मजबूत और आधुनिक भारत बनाने का लक्ष्य, भारतीय राष्ट्रवाद और राजनीति की इसकी अवधारणा में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एक प्रमुख तत्व है।

(ii) पार्टी जम्मू और कश्मीर को क्षेत्रीय और राजनीतिक स्तर पर विशेष दर्जा देने के खिलाफ है। यह देश में रहने वाले सभी धर्म के लोगों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने और धर्मांतरण पर रोक लगाने के पक्ष में है।

(iii) 1990 के दशक में इसके समर्थन का आधार काफी व्यापक हुआ। पहले देश के उत्तरी और पश्चिमी तथा शहरी इलाकों तक ही सिमटी रहने वाली इस पार्टी ने इस दशक में दक्षिण, पूर्व, पूर्वोत्तर तथा देश के ग्रामीण इलाकों में अपना आधार बढ़ाया ।

(iv) राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के नेता की हैसियत से यह पार्टी 1998 में सत्ता में आई। गठबंधन में कई क्षेत्रीय दल शामिल थे। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। अभी केन्द्र में शासन करने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी कर रही है।

(2) इण्डियन नेशनल काँग्रेस-

(i) इसे आमतौर पर काँग्रेस पार्टी कहा जाता है और यह दुनिया के सबसे पुराने दलों में से एक है । 1885 में गठित इस दल में कई बार विभाजन हुए हैं।

(ii) आजादी के बाद राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अनेक दशकों तक इसने प्रमुख भूमिका निभाई है। जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में इस दल ने भारत को एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य बनाने का प्रयास किया।

(iii) 1971 तक लगातार और फिर 1980 से 1989 तक इसने देश पर शासन किया। 1989 के बाद से इस दल के जन-समर्थन में कमी आई पर अभी यह पूरे देश और समाज के सभी वर्गों में अपना आधार बनाए हुए है।

(iv) अपने वैचारिक रुझान में मध्यवर्गीय (न वामपंथी न दक्षिणपंथी) इस दल ने धर्मनिरपेक्षता और कमजोर वर्गों तथा अल्पसंख्यक समुदाय के हितों को अपना मुख्य एजेंडा बनाया है। यह दल नयी आर्थिक नीतियों का समर्थक है। इन नीतियों का निर्धन और कमजोर वर्गों पर बुरा प्रभाव न पड़े।

(v) 2004 से 2014 तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का नेतृत्व । 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में यह पार्टी पराजित हुई | 2019 के लोकसभा चुनाव में इसे 52 सीटें मिलीं।

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