M.P. Board solutions for Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1 – काव्य खंड
क्षितिज काव्य खंड Chapter 4- कैदी और कोकिला
पाठ 4 – कैदी और कोकिला– माखनलाल चतुर्वेदी
1.
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
संदेशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली?
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) के कैदी और कोकिला नामक पाठ से ली गयी हैं। इनके कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में अंग्रेजी शासन द्वारा कैदियों को दी जाने वाली यातनाओं के विषय में बतलाया गया है।
व्याख्या – कवि कोयल से पूछते हैं कि तुम क्या गाती हो ? रुक क्यों जाती हो ? कोयल बोलो तो सही। किसका सन्देश लाई हो ? मैं तो कारागार की इन ऊँची-ऊँची काली दीवारों में कैद हूँ। मेरे साथ डाकू, चोर तथा लुटेरे (बदमाश) भी बन्द हैं। ये लुटेरे मुझे जीने के लिए न तो भरपेट भोजन देते हैं और न भूख से मरने ही देते हैं। अतः मैं तड़फकर रह जाता हूँ। मेरे जीवन पर दिन-रात कड़ा पहरा लगा दिया गया है। यह अंग्रेजी शासन है अथवा अन्धकार का गहरा प्रभाव है। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। आकाश में कुछ समय के लिए चन्द्रमा निकला था परन्तु वह भी निराश होकर चला गया। अब तो रात भी काली है अर्थात् दुःख रूपी काली रात है। हे कोयल ! इस अँधेरी काली रात में तुम क्यों जाग रही हो ?
विशेष-
(1) अंग्रेजी सरकार द्वारा कैदियों को दी जाने वाली यातनाओं पर व्यंग्य किया गया है।
(2) प्रश्न शैली का प्रयोग किया गया है
(3) तत्सम प्रधान शब्दावली है।
(4) करुण रस तथा प्रसाद गुण की प्रधानता है।
2.
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा?
मृदुल वैभव की रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो! क्या हुई बावली?
अर्द्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) के कैदी और कोकिला नामक पाठ से ली गयी हैं। इनके कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी हैं।
प्रसंग – इसमें कवि कोयल से उसके भयभीत होने का कारण पूछ रहा है।
व्याख्या – कवि कोयल से पूछता है कि तुम अचानक क्यों कूक पड़ी हो ? क्या तुझे कोई पीड़ा बोझ बनकर दबा रही है ? क्या तुमसे किसी ने कुछ लूट लिया है ? कोयल तुम बोलो तो सही। कोमल तथा शानशौकत की रक्षा करने वाली कोयल, क्या हुआ है ? तुम मुझे कुछ बतलाओ तो सही। क्या तुम पागल हो गयी हो जो आधी रात के समय चिल्ला रही हो। कोयल तुम बोलो तो सही। क्या तुम्हें किसी जंगल में लगी हुई आग दिखाई दी है ? कोयल कुछ बोलो तो सही।
विशेष –
(1) कोयल से भयभीत होने का कारण पूछा है।
(2) प्रश्नात्मक शैली का प्रयोग है।
(3) तत्सम शब्द प्रधान भाषा है।
(4) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
(3)
क्या ? देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों ?
यह ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ?
जीवन की तान,
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलाने वाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली?
इस शांत समय में, अंधकार को बेध,
रो रही क्यों हो? कोकिल बोलो तो!
चुपचाप,
मधुर विद्रोह-बीज इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) के कैदी और कोकिला नामक पाठ से ली गयी हैं। इनके कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी हैं।
प्रसंग – इसमें कवि ने अंग्रेजी सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का वर्णन किया है।
व्याख्या – कवि कोयल से कहता है कि क्या तुम मेरे शरीर में पड़ी हुई जंजीरों रूपी गहने को देख नहीं पा रही हो ? मेरे हाथों में हथकड़ी क्यों हैं ? अरे ये तो अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रदान किए गए गहने हैं। कोल्हू चलाने से निकली चरक-यूँ की ध्वनि हमारे जीवन की अब तान बन गई है।
गिट्टी तोड़ते-तोड़ते अंगुलियों ने भी उन पर गीत लिख दिए हैं। पानी खींचने वाले मोट भी पेट पर जुआ बाँधकर हम ही चलाते हैं तथा अंग्रेजी सरकार की अकड़ रूपी कुआँ खाली करते हैं। रात में हमें रुलाने वाली कोयल दिन के समय तेरे हृदय में करुणा का भाव क्यों नहीं जागता ? रात में तू मेरे ऊपर ऐसा सितम क्यों ढा रही है ?
तुम रात के इस शांत समय में रो-रोकर अंधकार को क्यों चीर रही हो। कोयल तुम कुछ बोलो तो सही। तुम चुपचाप अपने इस मधुर गान द्वारा लोगों में क्या विद्रोह का बीज क्यों बो रही हो ? कोयल कुछ बोलो तो सही।
विशेष-
(1) प्रश्नात्मक शैली का प्रयोग।
(2) तत्सम, तद्भव शब्द प्रधान भाषा है।
(3) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
(4)
काली, तू रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट सागर पर मरने की,
मदमाती! कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!
सन्दर्भ – – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) के कैदी और कोकिला नामक पाठ से ली गयी हैं। इनके कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में अंग्रेजी शासन की काली करतूतों पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या – कवि कोयल से कहता है कि हे कोयल! तू भी काले रंग की है और यह रात भी काले रंग की है। अंग्रेजी शासन की नीतियाँ एवं कार्य भी काले हैं। लहरें भी काली हैं तथा मेरी कल्पनाएँ भी काली हैं। जिसमें मैं बन्द हूँ वह काल की कोठरी भी काली है। सिपाहियों की टोपी, कैदियों के कंबल तथा मुझे जकड़ने वाली लोहे की जंजीरें भी काले रंग की हैं। भाव यह है कि किसी के मन में स्वच्छता नहीं है, सब कालिख से पुते हुए हैं। कारागार के सिपाही सर्पिणी जैसी हुँकार भरते रहते हैं। हे कोयल रूपी सखि ! सिपाही गालियाँ देते हैं। देश की परतन्त्रता रूपी इस काले संकट रूपी समुद्र में भरकर भी इसे स्वतन्त्र करने की इच्छा है। हे कोयल! तुम बतलाओ कि इस काली रात में अपने चमकीले (स्वर भरे) गीतों को क्यों गा रही हो। तुम मुझे कुछ तो बताओ।
विशेष-
(1) इसमें कवि ने कारागार के काले वातावरण का चित्रण किया है।
(2) अनुप्रास एवं रूपक अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग हो गया है।
(3) प्रसाद गुण तथा करुण रस की प्रधानता है।
(4) तत्सम एवं तद्भव दोनों प्रकार के शब्दों का प्रयोग है।
(5)
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो! मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) के कैदी और कोकिला नामक पाठ से ली गयी हैं। इनके कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने अपनी तथा कोयल की तुलना करके स्वयं को छोटा माना है।
व्याख्या – कवि कोयल से कहता है कि तुम्हें तो हरियाली वाली डाल (सुख-सुविधाएँ) मिली हुई हैं परन्तु मुझे तो कारागार की काली कोठरी ही मिली है। तुम तो सम्पूर्ण आकाश में स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण कर सकती हो परन्तु मेरा घर तो दस फुट की कोठरी में ही है। तुम्हारे रसीले गीत तुम्हें धन्यवाद का पात्र बनाते हैं जबकि मेरे लिए तो रोना भी पाप माना जाता है। मुझमें और तुम में असमानता होने पर भी मेरा मन स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए रणभेरी बजा रहा है।
अपने मन में उत्पन्न होने वाली हुँकार पर अपनी रचना से मैं और क्या प्रदान करूँ। हे कोयल! तुम मुझे बतलाओ। मोहनदास करमचन्द गाँधी ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए जो व्रत लिया है उसे मैं किसके प्राणों में रस रूप में भर दूं। हे कोयल! तुम कुछ न बतलाओ तो।
विशेष-
(1) कवि ने अपना तथा कोयल का तुलनात्मक चित्रण किया है।
(2) अनुप्रास एवं रूपक अलंकार की प्रधानता है।
(3) प्रसाद गुण की प्रधानता के साथ तत्सम पदावली है।
(4) स्वतन्त्रता प्राप्त करने का व्रत मोहनदास ने धारण किया था। इसका वर्णन है।
पाठान्त प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर – कोयल की कूक सुनकर कवि को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि वह किसी का सन्देश कूककर कहना चाहती है। कवि कोयल से कहता है कि तुम चुप क्यों हो जाती हो। बोलकर अपना सन्देश मुझे सुनाओ।
प्रश्न 2. कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की सम्भावना बताई ?
उत्तर- कवि ने कोयल के बोलने के अधोलिखित कारणों की सम्भावना बताई है
(1) कोयल शायद कोई सन्देश लेकर आई है।
(2) शायद उसने कोई दावानल की ज्वाला देखी है।
(3) शायद मधुर विद्रोह-बीज बोने के लिए बोल रही है।
(4) शायद उसे सम्पूर्ण देश एक कारागार के रूप में दिख रहा है।
प्रश्न 3. किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है और क्यों ?
उत्तर- अंग्रेजी शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है क्योंकि अंधकार निराशा का प्रतीक है तथा दुःखों का आधार है। अंग्रेजों ने भारतीयों के मन में निराशा का अन्धकार भर दिया है। देशभक्तों को दु:ख के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला।
प्रश्न 4. कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – पराधीन भारत की जेलों में अपराधियों एवं स्वतन्त्रता सेनानियों को कठोरतम यंत्रणाएँ दी जाती थीं। उन्हें भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था तथा छोटी सी अंधेरी कोठरी में श्रृंखलाएँ डालकर बन्द रखा जाता था। रोने पर भी उन्हें दण्डित किया जाता था। किसी परिचित से मिलने नहीं दिया जाता था। उन्हें हर तरह से प्रताड़ित किया जाता था।
प्रश्न 5. भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो! जो
(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
उत्तर –
(क) भाव-कवि कोयल से जानना चाहता है कि वह तो प्रकृति के सौन्दर्य रूपी वैभव की रक्षा करती है। उसे अचानक क्या हो गया हो जो ऊँचे स्वर में बोल रही है।
(ख) भाव-अंग्रेज सरकार की जेलों में भारतीय कैदियों के पेट पर फीता बांधकर उनसे बैलों की तरह पुर चलवाया जाता था परन्तु ऐसा करके भी कैदी अंग्रेजी सिपाहियों की अकड़ तोड़ते थे।
प्रश्न 6. अर्द्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है ?
उत्तर – अर्द्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि को यह अंदेशा है कि या तो उसने दावानल को देख लिया है या फिर पागल हो गई है।
प्रश्न 7. कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है ?
उत्तर -कवि को कोयल से ईर्ष्या इसलिए हो रही है कि वह तो हरे-भरे पेड़ों पर निवास करती है तथा सम्पूर्ण आकाश में स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण कर सकती है परन्तु मैं तो इस छोटी-सी अंधेरी काल कोठरी से बाहर भी नहीं जा सकता हूँ।
प्रश्न 8. कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन-सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं ? जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है।
उत्तर – कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की अनेक मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है। कोयल के गीतों की चमकीली तथा वाह-वाही भरी स्मृतियाँ अंकित हैं जिन्हें परतंत्रता रूपी संकट-समुद्र पर तैराकर वह नष्ट करने पर तुली है।
प्रश्न 9. हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है ?
उत्तर – स्वतन्त्रता संग्रामी हथकड़ियों को अपना गहना मानते थे। जिस प्रकार गहने शरीर की शोभा को बढ़ाते हैं उसी प्रकार हथकड़ियाँ स्वतन्त्रता के दीवानों के हाथों की शोभा बढ़ाती थीं। ऐसा माना है।
प्रश्न 10. ‘काली तू………….. ऐ आली!’-इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।
उत्तर
(1) काली तू…………….”ऐ आली।’ इन पंक्तियों में ‘क’ वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार का चमत्कार उत्पन्न हो गया है।
(2) ‘करनी काली’ में ‘काली’ का अर्थ है-कुव्यवस्था, तथा ‘काली’ का अर्थ है-काले रंग की। अतः यहाँ एक ही ‘काली’ शब्द दो या दो से अधिक बार प्रयुक्त हुआ है तथा अर्थ में भिन्नता होने के कारण यमक अलंकार भी है।
प्रश्न 11. काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं?
(ख) तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह ! देख विषमता तेरी-मेरी, बजा रही तिस पर रणभेरी।
उत्तर
(क) काव्य-सौन्दर्य
(1) प्रश्न शैली का प्रयोग किया गया है।
(2) भाषा तत्सम शब्द प्रधान है।
(3) ‘दावानल’ में तत्पुरुष समास है तथा पंक्ति में प्रश्न अलंकार है।
(4) प्रतीक योजना का प्रयोग है।
(ख) काव्य-सौन्दर्य
(1) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
(2) उर्दू मिश्रित तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
(3) अनुप्रास अलंकार की प्रधानता है।
(4) ओज गुण के साथ अभिधा शब्दशक्ति का प्रयोग है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 12. कवि जेल के आस-पास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है?
उत्तर- कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा लेकिन कोकिला की ही बात इसलिए की है कि अंग्रेजी सरकार की सभी नीतियाँ काली ही काली हैं तथा कोयल का रंग भी काला होता है। क्या सभी काली वस्तुएँ समान हृदय की होती हैं या अलग-अलग। काली होते हुए भी कोयल का हृदय उज्ज्वल था। कवि इसी भेद को देखना चाहता था।
प्रश्न 13. आपके विचार से स्वतन्त्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता होगा?
उत्तर- हमारे विचार से स्वतन्त्रता सेनानियों और चोर, डाकू, बटमार तथा लुटेरों आदि अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार इसलिए किया जाता होगा कि अन्य अपराधी तो समाज को हानि पहुँचाते थे परन्तु स्वतन्त्रता सेनानी तो अंग्रेजी सरकार को हानि पहुँचाकर उसे समूल नष्ट करना चाहते थे। अत: वे भी समान अपराधी माने जाते थे।
पाठेतर सक्रियता
1. पराधीन भारत की कौन-कौन सी जेलें मशहूर थीं, उनमें स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएँ दी जाती थीं ? इस बारे में जानकारी प्राप्त कर जेलों की सूची एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को राष्ट्रीय पर्व पर भित्ति पत्रिका के रूप में प्रदर्शित करें।
उत्तर– इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने गुरुजनों की सहायता से प्राप्त करें।
2. स्वतंत्र भारत की जेलों में अपराधियों को सुधारकर हृदय परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है। पता लगाइए कि इस दिशा में कौन-कौन से कार्यक्रम चल रहे हैं ?
उत्तर – स्वतंत्र भारत की जेलों में अपराधियों को सुधारकर हृदय परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है। इस दिशा में अनेक कार्यक्रम चल रहे हैं; जैसे
(1) परिहार व पैरोल की व्यवस्था,
(2) पुस्तकालय, मनोरंजन आदि की व्यवस्था,
(3) रोजगार एवं शिक्षा की व्यवस्था,
(4) धार्मिक, आर्थिक, कानूनी आदि की स्वतन्त्रता की सुविधा।