M.P. Board solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 2- वाख

M.P. Board solutions for Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1  काव्य खंड

क्षितिज काव्य खंड Chapter 2- वाख

पाठ 2 – वाख 

कठिन शब्दार्थ

वाख = वाणी, शब्द या कथन, यह चार पंक्तियों में बद्ध कश्मीरी शैली की गेय रचना है। कच्चे सकोरे = स्वाभाविक रूप से कमजोर। रस्सी कच्चे धागे की = कमजोर और नाशवान सहारे। नाव = जीवन रूपी नाव। भवसागर = संसार रूपी समुद्र । सम (शम) = अंत:करण तथा बाह्य-इंद्रियों का निग्रह। समभावी = समानता की भावना। खुलेगी साँकल बंद द्वार की = चेतना व्यापक होगी, मन मुक्त होगा। गई न सीधी राह = जीवन में सांसारिक छल-छद्मों के रास्ते पर चलती रही। सुषुम-सेतु = सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल, हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी (सुषुम्ना), जो नासिका के मध्य भाग (ब्रह्मरंध) में स्थित है। बीत गया दिन आह ! = जीवन रूपी दिन निकल गया। जेब टटोली = आत्मालोचन किया। कौड़ी न पाई = कुछ प्राप्त न हुआ। माझी = ईश्वर, गुरु, नाविक। उतराई = सद्कर्म रूपी मेहनताना। थल-थल = सर्वत्र। शिव = ईश्वर । जान = पहचान। साहिब = स्वामी, ईश्वर।

(1)

रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।

जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।

पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।

जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे॥

सन्दर्भ – प्रस्तुत वाख हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-1) के ‘वाख’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता कश्मीरी कवयित्री ललद्यद हैं।

प्रसंग – इस वाख में जीवन को क्षणभंगुर मानकर परमात्मा से मिलन की आशा व्यक्त की गई है।

व्याख्या – कवयित्री दु:खद स्वर में कहती हैं कि मैं अपनी जीवन रूपी नौका को क्षण भर में ही टूट जाने वाले कच्चे धागे की श्वासों रूपी रस्सी से लगातार खींच रही हूँ। मैं इस जीवन-नौका को संसार-सागर से पार करना चाहती हूँ परन्तु पता नहीं भगवान मेरी पुकार कब सुनेंगे। इस कमजोर तथा कच्चे बर्तन रूपी शरीर से निरन्तर पानी टपक रहा है अर्थात् जीवन घट रहा है लेकिन मेरे द्वारा भगवान को प्राप्त करने के लिए किए गए सभी प्रयत्न बेकार जा रहे हैं। मेरे हृदय में बार-बार रह-रहकर दर्द भरी आवाज उत्पन्न होती है तथा अपने प्रियतम परमात्मा के घर जाने की चाहत (इच्छा) मुझे घेरे हुए है।

विशेष-

(1) कवयित्री परमात्मा के घर जाने को व्याकुल है।

(2) कश्मीरी भाषा का अनुवादित रूप है।

(3) वाख’ काव्य-शैली को अपनाया गया है।

(4) ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार तथा सम्पूर्ण वाख में रूपक अलंकार है।

(5) आशावादी दृष्टिकोण को प्रदर्शित किया गया है।

(2)

खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।

सम खा तभी होगा समभावी, खलेगी साँकल बंद द्वार की।

सन्दर्भ – प्रस्तुत वाख हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-1) के ‘वाख’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता कश्मीरी कवयित्री ललद्यद हैं।

प्रसंग – इसमें यह बतलाया गया है कि अन्त:करण तथा बाह्यकरण को वश में करने पर ही माया में फंसा हुआ हमारा मन मुक्त हो सकता है।

व्याख्या – मनुष्य को सम्बोधित करती हुई कवयित्री कहती हैं कि हे मानव! यह जगत तो माया का जाल है। तू इसमें रहकर अपना लक्ष्य (ईश प्राप्ति) प्राप्त नहीं कर पाएगा। नित नवीन-नवीन व्यंजनों को खाकर भी तू ईश प्राप्ति नहीं कर पाएगा। इसके विपरीत जप-व्रत आदि आडम्बरों का पालन करते हुए कुछ नहीं खायेगा तो तेरे मन में अहंकार की भावना जाग्रत हो जाऐगी। यदि तू सच्चे मन से परमात्मा को पाना चाहता है तो अपने अन्त:करण तथा बाह्यकरण को अपने वश में कर अपने तन-मन पर नियंत्रण कर। जब समानता की भावना तेरे मन में उत्पन्न होगी तभी तेरी मुक्ति सम्भव है। ऐसा हो जाने पर ही तेरे मन रूपी बन्द द्वार की कुन्दी खुल सकती है।

विशेष-

(1) बाह्य आडम्बरों का परित्याग करने के लिए बतलाया है।

(2) कश्मीरी भाषा का अनुवादित रूप है।

(3) वाख काव्य-शैली को अपनाया गया है।

(4) दृष्टान्त अलंकार है।

(3)

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।

सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!

जेब टटोली, कौड़ी न पाई।

माझी को दूं, क्या उतराई ?

सन्दर्भ – प्रस्तुत वाख हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-1) के ‘वाख’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता कश्मीरी कवयित्री ललद्यद हैं।

प्रसंग – इसमें मायाजाल में फंसकर भगवान का भजन नहीं कर पाया तथा अन्त समय में खाली ही जाना पड़ रहा है। इस विषय में बतलाया गया है।

व्याख्या – दुःख व्यक्त करती हुई कवयित्री कहती हैं कि भगवान ने जब मुझे इस नश्वर संसार में भेजा था तब मैं सीधी राह से (छल-कपट से रहित) होकर यहाँ आई थी, लेकिन माया के जाल में फंसकर सीधी राह पर न चल सकी। मैं सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल (हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी सुषुम्ना है जो नासिका के मध्य भाग में स्थित है) पर खड़ी रही और मेरा जीवन रूपी दिन (जीवन) बीत गया अर्थात् निकल गया। अब इस माया जगत् को छोड़ने का समय पास आ गया है तब मुझे ज्ञान हो रहा है कि इस माया जगत् में रहकर मैंने कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाया। अब मैं संसार रूपी नाव के खेबनहार भगवान रूपी माझी को उतराई के रूप में क्या दूँगी अर्थात् इस संसार में आकर मैंने माया-जाल में फंसकर कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाया अब भगवान को जाकर क्या जबाव दूँगी ?

विशेष-

(1) माया-जाल के फन्दे के विषय में बतलाया गया है।

(2) रूपक अलंकार की छटा है।

(3) प्रतीकात्मक पर बल दिया गया है।

(4) ‘वाख’ शैली का प्रयोग है।

(4)

थल-थल में बसता है शिव ही,

भेद न कर क्या हिन्दू-मुसलमा।

ज्ञानी है तो स्वयं को जान,

वही है साहिब से पहचान॥

सन्दर्भ – प्रस्तुत वाख हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-1) के ‘वाख’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता कश्मीरी कवयित्री ललद्यद हैं।

प्रसंग– इसमें ईश्वर की सर्वव्यापकता तथा एकत्व के विषय में बतलाया गया है।

व्याख्या – कवयित्री कहती हैं कि शिव (भगवान) तो सर्वत्र अर्थात् सभी पदार्थों में विद्यमान है। चाहे हिन्दू धर्मावलम्बी हों या मुसलमान। उनको ईश्वर की सत्ता में भेद नहीं करना चाहिए क्योंकि ईश्वर तो एक है। यदि तुम स्वयं को ज्ञानी (ज्ञानवान, विद्वान) मानते हो तो पहले स्वयं को पहचानो क्योंकि स्वयं को पहचानने पर ही परमपिता परमात्मा की पहचान सम्भव है। वह परमात्मा ही सर्वव्यापक है। अतः सम्प्रदाय आदि के नाम पर उसमें भेद नहीं करना चाहिए क्योंकि उसके नाम अनेक हैं तथा वह एक है।

विशेष –

(1) साम्प्रदायिक भेदभाव को समाप्त करने तथा ईश्वर के एक होने के विषय में वर्णन है।

(2) ईश्वर को सर्वव्यापी माना है।

(3) ‘थल-थल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

(4) प्रतीकात्मक शब्दावली का प्रयोग है।

प्रश्न

प्रश्न 1. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है ?

उत्तर – ‘रस्सी’ शब्द यहाँ जीवात्मा के लिए प्रयुक्त हुआ है और वह स्वाँस रूपी कच्चे धागे के समान बहुत कमजोर है।

प्रश्न 2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?

उत्तर – कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ इसलिए हो रहे हैं कि वह स्वाँसों रूपी कमजोर रस्सी से जीवन रूपी नौका को भवसागर से पार ले जाना चाहती हैं परन्तु शरीर रूपी कच्चे बर्तन से जीवन रूपी जल टपक रहा है।

प्रश्न 3. कवयित्री का घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर-कवयित्री का घर जाने की चाह से तात्पर्य आत्मा का परमात्मा में मिल जाने से है क्योंकि आत्मा का वास्तविक घर परमात्मा ही है।

प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए

(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।

(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।

उत्तर-

(क) भाव – इस पंक्ति का भाव यह है कि इस माया रूपी जगत् में आकर हमने राम रतन रूपी धन प्राप्त नहीं कर पाया जो कि जीवन का परम लक्ष्य है। अब जीवन व्यतीत हो जाने पर  हमारे पास राम नाम रूपी कुछ भी धन नहीं है।

(ख) भाव – प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह है कि हे मानव! | नित प्रति नवीन-नवीन एवं स्वादिष्ट व्यंजनों को खाकर तुझे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसके विपरीत जप-तप-व्रत आदि आडम्बरों को करने से न खाकर किसी प्रकार सिद्धि आदि प्राप्त हो जाने पर तुझमें अहंकार का भाव उत्पन्न हो जायेगा।

प्रश्न 5. बन्द द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है ?

उत्तर- बन्द द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने यह उपाय सुझाया है कि अहंकार का नाश हो जाने पर तथा सबके लिए समानता की भावना उत्पन्न होने पर ही मानव के बन्द द्वार की साँकल खुल सकती है।

प्रश्न 6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ

उत्तर- यह भाव अधोलिखित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है आई सीधी राह से, गई न सीधी राह। सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !

प्रश्न 7. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो आडम्बर, मायाजाल, धर्म-सम्प्रदाय, जातिवाद आदि से दूर रहकर परमात्मा को पहचानने का प्रयास करता है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8. हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भी भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है

(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है ?

(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।

उत्तर-

(क) हमारी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को अधोलिखित हानियाँ हो रही हैं

(1) जातिगत एवं सम्प्रदायवादी विद्रोहों को बढ़ावा मिल

(2) लोगों में मानसिक एवं घृणित भावना पनप रही है।

(3) देश एवं समाज छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटता जा रहा है।

(4) वर्गवाद एवं सम्प्रदायवाद की समस्या बढ़ रही है।

(5) समाज तथा देश में भेदभाव बढ़ रहा है।

(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अधोलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

(1) आर्थिक विषमता को दूर करना चाहिए।

(2) लोगों में प्रेम की भावना जाग्रत करनी चाहिए।

(3) कबीर के समान ईश्वर की एकता पर बल दिया जाना चाहिए।

(4) जातिवाद, वर्गवाद, सम्प्रदायवाद आदि को समाप्त करना चाहिए।

(5) लिंग भेद को दूर कर समानता करनी चाहिए।

पाठेतर सक्रियता

1. भक्तिकाल में ललद्यद के अतिरिक्त तमिलनाडु की आंदाल, कर्नाटक की अक्क महादेवी और राजस्थान की मीरा जैसी भक्त कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर – विद्यार्थी यह चर्चा अपने अध्यापक/अध्यापिका के सहयोग से कक्षा में करें।

2. ललद्यद कश्मीरी कवयित्री हैं। कश्मीर पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर – कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यह हिन्दी एवं संस्कृत के कवियों की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि रही है। ‘शितिकंठ’ में शैव दर्शन के विषय में बतलाया है। जम्मू एवं कश्मीर का इतिहास बहुत पुराना रहा है। यहाँ सभी सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ कश्मीर की ही प्रसिद्ध रचना है। हिन्दू साम्राज्य काल में अशोक महान् का यह क्षेत्र एक हिस्सा रहा है। कश्मीर की प्राकृतिक सुषुमा निराली है। इसे पर्वतीय रानी भी कहा जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यह एक ठण्डा प्रदेश है।

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