M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2 – काव्य खंड
क्षितिज काव्य खंड Chapter 7 – छाया मत छूना
पाठ 7 – छाया मत छूना – गिरिजा कुमार माथुर
कठिन शब्दार्थ
छाया = भ्रम, दुविधा। सुरंग = रंग-बिरंगी। सुधियाँ = । भ्रमित हुआ। प्रभुता का शरण-बिंब = बड़प्पन का अहसास। सुध; यादें। छवियों की चित्रगंध = चित्र की स्मृति के साथ मृगतृष्णा = गर्मी से व्याकुल प्यासे हिरण को रेगिस्तान में उसके आसपास की गंध का अनुभव। मनभावनी = मन को पानी की प्रतीति होना। कृष्णा = काली। दुविधा हत साहस = भाने वाली। यामिनी = तारों भरी चाँदनी रात। कुंतल = लम्बे साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना। वरण = चुनना। दूना = । केश, बाल। वैभव = सम्पन्न्ता। सरमाया = पूँजी। भरमाया = दोगुना।
छाया मत छूना
(1)
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी, कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षणछाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से संकलित है। इसके रचनाकार कवि गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
प्रसंग – इसमें कवि अतीत के सुख को याद करके वर्तमान के दुःख को और न बढ़ाने की सलाह अपने मन को दे रहा है।
व्याख्या – कवि अपने मन को सम्बोधित करते हुए कहता है कहे मन! तुम कभी छाया मत छूना अर्थात् अतीत के सुख को बाद करके वर्तमान के दु:ख को और अधिक गहरा मत करना अन्यथा दु:ख और बढ़ जायेगा। जीवन में सुखमयी रंग-बिरंगी सुहावनी यादें भरी हुईं हैं। सुंदरता और सुखों की चित्रमयी गंध जल स्मृतियाँ मन को भाने वाली प्रतीत हो रही हैं। तारों भरी चंदनी रातें व्यतीत हो गईं हैं अब तो उनसे प्रभावित शरीर ही शेष रह गया है। भाव यह है कि अब तो सुख के दिनों की स्मृतियाँ नत्र शेष रह गईं हैं। रातों की चाँदनी प्रेयसी के लम्बे बालों में लगे सफेद तथा सुगंधित फूलों की याद दिलाती है। जीवन का एक -एक क्षण बीती हुई बातों की यादों को छूता हुआ निकल रहा है। अतः हे मन! तुम अतीत के सुख को याद करके वर्तमान के दुःख को मत बढ़ाना अन्यथा दु:ख और बढ़ जायेगा।
विशेष-
(1) कवि अपने मन से छाया न छूने के लिए
(2) तन-सुगंध’ में रूपक अलंकार है।
(3) भूली-सी एक छुअन’ में उपमा अलंकार है।
(4) सम्पूर्ण पद्य में अनुप्रास की छटा विद्यमान है।
(5) प्रतीकात्मक शब्द योजना है।
(6) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
(7) तत्सम प्रधान शब्दावली है।
(8) छन्द रहित तुकान्त पंक्तियाँ हैं।
(2)
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से संकलित है। इसके रचनाकार कवि गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
प्रसंग – इसमें कवि जीवन के कठोर सत्य की ओर जाने के लिए कहता है।
व्याख्या – कवि कहता है कि हे मन! सुख-समृद्धि, मान-सम्मान, धन-दौलत इत्यादि के चक्कर में पड़कर तुम जितना इन सब के पीछे दौड़ोगे उतने ही भँवर-जाल में फंसते चले जाओगे। अतः सन्तोष ही सबसे बड़ा धन है। समाज में बड़प्पन की चाहत में दौड़ना तुम्हारे लिए मृगतृष्णा के समान है। प्रत्येक सुख रूपी चाँदनी रात में दुःख रूपी काली रात छिपी होती है। अर्थात् सुख की वस्तु में ही दुःख छिपा हुआ है। तुम जीवन के कठोर सत्य को पहचानकर उसकी पूजा करो। अर्थात् संसार की वास्तविकता को स्वीकार करो। अतः तुम अतीत के सुख को याद करके वर्तमान के दुःख को और अधिक गहरा मत करो।
विशेष-
(1) जीवन के कठोर सत्य की ओर उन्मुख होने के लिए कहा गया है।
(2) प्रभुता का शरण-बिंब’ में रूपक अलंकार है।
(3) सम्पूर्ण पद्य में अनुप्रास की छटा है।
(4) प्रतीकात्मक शब्द योजना है।
(5) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
(6) ‘मृगतृष्णा’ शब्द जीवन के भटकाव के लिए है।
(7) तत्सम शब्दावली युक्त भाषा है।
(8) छन्द रहित तुकान्त पंक्तियाँ हैं।
(3)
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से संकलित है। इसके रचनाकार कवि गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
प्रसंग – इसमें कवि मन से दुःख दूर करने के लिए कहता है।
व्याख्या – कवि कहता है कि हे मन! तू दोनों ओर के ध्यान को छोड़कर एक सही राह को अपना ले। तेरे पास साहस की कमी नहीं है। तुझे दिखाई तो देता है परन्तु सही मार्गदर्शन नहीं हो पाता है। शरीर को सुखी बनाने के लिए अनेक साधन हैं परन्तु मन के दुःख को दूर करने का किसी के पास उपाय नहीं है। तुझे यह दुःख है कि शरद-रात अर्थात् सुख के दिन आने पर भी चन्द्रमा में चमक (सुख की आभा) नहीं है। बसंत ऋतु के जाने के बाद यदि फूल खिलें तो उनसे क्या लाभ है ? कभी-कभी बसंत के जाने के बाद भी फूल खिलते हैं। अर्थात् दु:ख के बाद सुख मिलता है जो वस्तु तुझे नहीं मिली उसे भूलकर तू भविष्य में करने वाले अच्छे कार्यों में लग जा। अत: तुम अतीत के सुख को याद करके वर्तमानकालिक दुःख को मत बढ़ाओ।
विशेष-
(1) इसमें कहा गया है कि मन के दुःख को दूर करना चाहिए.
(2) अनुप्रास अलंकार की छटा विद्यमान है।
(3) उपदेशात्मक शैली है।
(4) भाषा तत्सम प्रधान है।
(5) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
(6) प्रतीकात्मक शब्द योजना है।
(7) छन्द रहित तुकान्त पंक्तियाँ हैं।
प्रश्न
प्रश्न 1. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर –कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है कि कठिन यथार्थ ही जीवन का सत्य है शेष सब कुछ असत्य है। अतः व्यक्ति को कठिन यथार्थ का ही सदैव पूजन करना चाहिए।
प्रश्न 2. भाव स्पष्ट कीजिएप्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-आज व्यक्ति यश-वैभव पाने की लालसा में संलग्न है। यह सब दिखावा मात्र है जो मृगतृष्णा के समान है। सुख के बाद दु:ख तथा दु:ख के बाद सुख का आना निश्चित है। सुख में ही दुःख की अनुभूति छिपी है।
प्रश्न 3. ‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर–‘छाया’ शब्द यहाँ भूतकालीन सुखद स्मृतियों के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है। कवि ने उसे छूने के लिए मना इसलिए किया है कि भूतकालीन सुख को याद करने से वर्तमानकालिक दुःख और बढ़ जाते हैं।
प्रश्न 4. कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है; जैसे-कठिन यथार्थ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए
और यह भी लिखिए कि इसमें शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई ?
उत्तर-कविता में ऐसे अन्य उदाहरण तथा उनके अर्थ की विशिष्टता इस प्रकार है
सुरंग सुधियाँ सुहावनी – रंग-बिरंगी और सुहावनी यादें। (रंग-बिरंगी)
हर चंद्रिका में छिपी-प्रत्येक सुख में कोई न कोई दुःख छिपा होता है। (सुख में दुःख छिपना)
शरद- रात-सर्दी से युक्त रातें। (सुख की रातें/सुख केदिन)
प्रश्न 5. ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं ? कविता में इसका – प्रयोग किस अर्थ में हुआ है ?
उत्तर – चिलचिलाती धूप में हिरण को रेगिस्तान में पानी-सा भरा होने का एहसास होता है परन्तु पास में पहुँचने पर रेत ही रेत नजर आता है। पुनः आगे पानी दिखाई देने लगता है। इसी ज्ञान को ‘मृगतृष्णा’ कहते हैं। कविता में इसका प्रयोग यश-वैभव पाने के अर्थ में हुआ है।
प्रश्न 6. ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर – यह भाव कविता की इस पंक्ति में झलकता है’ जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’
प्रश्न 7. कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-कविता में व्यक्त दु:ख के कारण निम्न प्रकार हैं
(1) भूतकालीन सुख का स्मरण करने से दु:ख होता है।
(2) अतीत का सुख याद करने से दु:ख दो गुना हो जाता है।
(3) यश-सम्मान प्राप्त करने की चाहत में दु:ख बढ़ता ही जाता है।
(4) भौतिकता की ओर दौड़ने से दु:ख बढ़ता ही जाता है।
(5) प्रभुत्व पाने का चाहत में भी दु:ख बढ़ जाता है।
(6) मन में संतोष का भाव न होने पर दु:ख होता है।
(7) जो वस्तु प्राप्त न हो सकी उस पर पश्चाताप करने से दु:ख होता है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8. ‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं ?
उत्तर – हमने अपने जीवन की निम्नलिखित स्मृतियाँ संजो रखी हैं
(1) बचपन के वे दिन जब हम सभी भाई-बहिन एक साथ खाते-पीते व खेलते थे।
(2) विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान आना।
(3) सहपाठियों के साथ शैक्षिक भ्रमण पर ग्वालियर शहर का भ्रमण।
(4) गर्मी की रातों में छत पर सोते हुये एकटक आसमान के तारों को निहारना।
प्रश्न 9. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं ? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर – समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद तो देती है परन्तु उसका स्वाद कम हो जाता है। समय पर होने वाली उपलब्धि का आनंद अलग ही होता है। जैसे किसी को भूख लगने पर रोटी न मिले तो वह दु:खी होगा और अचानक भूख मिटने के बाद रोटी मिल जाये तो उतना सुख प्राप्त नहीं होगा जितना भूखा होने पर होता।
पाठेतर सक्रियता
1. आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफर करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने
पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम । सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और
होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए। –
2. कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थी अपने आदरणीय गुरुजनों की सहायता से एवं पुस्तकालय की सहायता से प्राप्त करें।