M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 – छाया मत छूना

M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2  काव्य खंड

क्षितिज काव्य खंड Chapter 8 – कन्यादान

पाठ 8 – कन्यादान – ऋतुराज

(1)

कितना प्रामाणिक था उस का दुख

लड़की को दान में देते वक्त जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

लड़की अभी सयानी नहीं थी अभी इतनी भोली सरल थी

कि उसे सुख का आभास तो होता था

लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की

कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘कन्यादान’ से ली गईं हैं। इनके रचनाकार कवि ‘ऋतुराज’ हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कन्यादान एवं कन्याज्ञान के विषय में बतलाया गया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि अपनी कन्या को किसी को दान देते समय माँ को दु:ख होना स्वाभाविक है। कन्यादान के समय माता को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह उसकी सबसे बड़ी और अंतिम धन-सम्पदा है। माँ की दृष्टि में लड़की इतनी बड़ी नहीं थी कि उसमें समझदारी हो। अभी वह इतनी भोली और सरल स्वभाव की थी कि वह जीवन में आने वाले सुखों को तो अनुभव कर सकती थी परन्तु दु:खों को सहन करना नहीं जानती थी। उसे सामाजिक जीवन एवं पारिवारिक जीवन वहन करने का ज्ञान नहीं था अर्थात् वह अभी कम प्रकाश में पढ़ने वाली पाठिका के समान थी। उसे स्त्री के परम्परागत जीवन एवं पुरानी परिपाटी (रीति-रिवाजों) का थोड़ा-सा ज्ञान था।

विशेष –

(1) कन्यादान का वर्णन किया है।

(2) पुत्री को अंतिम पूँजी माना गया है।

(3) नारी के सरल स्वभाव का चित्रण है।

(4) भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

(5) पंक्तियों में उदाहरण अलंकार है।

(6) करुण रस का चित्रण है।

(7) ‘बाँचना क्षेत्रीय भाषा का शब्द है।

(8) आत्मीयता का भाव चित्रित है।

(2)

माँ ने कहा पानी में झाँककर

अपने चेहरे पर मत रीझना आग रोटियाँ सेंकने के लिए है

जलने के लिए नहीं

वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह

बंधन हैं स्त्री जीवन के माँ ने कहा लड़की होना

पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘कन्यादान’ से ली गईं हैं। इनके रचनाकार कवि ‘ऋतुराज’ हैं।

प्रसंग – इसमें माँ अपनी बेटी को परम्परागत आदर्शों से हटकर शिक्षा देती है।

‘व्याख्या – माँ अपनी पुत्री को समझाते हुए कहती है कि तुम अपने शरीर की सुंदरता और कोमलता देखकर प्रसन्न मत होना क्योंकि आग पर रोटियाँ सेंकी जाती हैं, शरीर को जलाया नहीं जाता। भाव यह है कि तुम कभी अन्याय को सहन मत करना। जिस प्रकार मनुष्य शब्द-भ्रम के बंधन में बँधा रहता है। उसी प्रकार स्त्री का जीवन कपड़ों और गहनों के बंधन में बँधा रहता है। अत: तुम इनसे दूर ही रहना। माँ अपनी बेटी से कहती है कि तुम लड़कियों के समान भोलापन, कोमलता, मृदुभाषी आदि गुणों को धारण तो करना परन्तु अन्याय, अत्याचार, जुल्म को सहन करते हुए लड़की के समान प्रतीत मत होना। अर्थात् इन सभी का साहस के साथ सामना करना।

विशेष –

(1) बेटी को पुरानी परिपाटी से हटकर शिक्षा दी गई है।

(2) ‘पानी में झाँकना’ मुहावरे का प्रयोग है।

(3) उपमा अलंकार की प्रधानता है।

(4) ‘आग’ को प्रतीक रूप में माना है।

(5) भाषा, सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

(6) बेटी के प्रति माँ की ममता प्रकट हो रही है।

(7) वस्त्र-गहनों को स्त्री का बंधन माना है।

(8) करुणा की प्रधानता है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना ?

उत्तर – ‘लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना’ हमारे विचार से माँ ने ऐसा इसलिए कहा होगा कि आज लड़की के भोलेपन का लाभ उठाया जा रहा है। उस पर अनेक अत्याचार किए जा रहे हैं। अतः उसे उनका सामना करना चाहिए।

प्रश्न 2. ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं’

(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है ?

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा ?

उत्तर-

(क) प्रस्तुत पंक्तियों में समाज में स्त्री की दयनीय स्थिति की ओर संकेत किया गया है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा कि वह अपने अधिकारों, कर्त्तव्यों को भलीभाँति पहचान सके और अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का सामना कर सके।

प्रश्न 3. ‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर– प्रस्तुत पंक्तियों को पढ़कर लड़की के भोलेपन तथा सीधेपन की छवि हमारे सामने उभरकर आती है। लड़की इतने भोले और सरल स्वभाव की थी कि वह जीवन में आने वाले सुखों को तो अनुभव कर सकती थी परन्तु दु:खों को सहन करना नहीं जानती थी। उसे अभी सामाजिक जीवन का विशेष ज्ञान नहीं था।

प्रश्न 4. माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही है ?

उत्तर – माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ इसलिए लग रही है कि बेटी ही माँ के सबसे निकट होती है तथा उसके सुख-दु:ख को पहचानती है। अत: बेटी का विवाह करने के बाद माँ के पास कुछ शेष नहीं रहता है।

प्रश्न 8. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी ?

उत्तर-माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी

(1) सदैव अपने चेहरे और सुंदरता पर ही रीझकर मत रहना।

(2) स्त्री जाति को अपने अधिकार और कर्त्तव्यों के लिए आवाज उठानी चाहिए क्योंकि आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है, जलने के लिए नहीं।

(3) आभूषण और वस्त्र स्त्री के बंधन होते हैं। अत: इनकी ओर तुम आकर्षित मत होना।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है ?

उत्तर-हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना अनुचित है क्योंकि दान का अर्थ होता है-सदा के लिए कोई वस्तु दे देना। कन्या कोई ऐसी वस्तु नहीं होती कि विवाह के बाद उससे कोई सम्बन्ध ही न रखा जाये। उस पर होने वाले अत्याचारों को देखते रहें। अतः हम अपनी कन्या के साथ सदैव के लिए सम्बन्ध विच्छेद नहीं कर सकते हैं।

 पाठेतर सक्रियता

1. स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर-विद्यार्थी अपने सहपाठियों के साथ कक्षा में चर्चा करें।

2. यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं, क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई सम्बन्ध दिखाई देता मैं लौटूंगी नहीं मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ मैंने अपनी राह देख ली है अब मैं लौट्रॅगी नहीं मैंने ज्ञान के बन्द दरवाजे खोल दिए हैं सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं भाइयो! मैं अब वहनहीं हूँ जो पहले थी मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ मैंने अपनी राह देख ली है। अब मैं लौटूंगी नहीं।

उत्तर-‘कन्यादान’ कविता तथा प्रस्तुत कविता ‘मैं लौटूंगी नहीं’ में बहुत कुछ समानता है। ‘कन्यादान’ कविता में माँ ने अपनी बेटी को जो सीख दी है वह इस कविता में वर्णित है।

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