M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2 – काव्य खंड
क्षितिज काव्य खंड Chapter 6 – यह दंतुरहित मुस्कान और फसल
पाठ 6 – यह दंतुरहित मुस्कान और फसल – नागार्जुन
कठिन शब्दार्थ
दंतुरित = बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक = मरा हुआ। लोग इसे पंचामृत कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग बच्चे को धूलि-धूसर गात = धूल मिट्टी से सने अंग-प्रत्यंग। जलजात = | जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ के प्यार के कमल का फूल। परस = स्पर्श । पाषाण = पत्थर। शेफालिका रूप में हुआ है। कनखी = तिरछी निगाह से देखा। छविमान = एक वृक्ष का नाम। अनिमेष = बिना पलक झपकाए लगातार = सुंदर। कोटि-कोटि = करोड़-करोड़। गरिमा = प्रभाव, देखना। इतर = दूसरा। प्रवासी = किसी दूसरे स्थान से आकर महिमा। गुण-धर्म = किसी वस्तु की विशेषताएँ एवं स्वभाव। रुकने वाला व्यक्ति। मधुपर्क = दही, घी, शहद, जल और दूध रूपान्तर = परिवर्तन। संकोच = छोटा रूप। हवा की थिरकन + का योग जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है। आम = हवा का धीरे-धीरे चलना।
यह दंतुरित मुसकान
(1)
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े
शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान ?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर ?
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से ली गयी हैं। इनके रचनाकार कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग – इसमें कवि ने एक छोटे बच्चे की मनोहारी मुस्कान को देखकर मन में उठने वाले भावों को अनेक बिंबों के माध्यम से प्रकट किया है।
व्याख्या – बच्चे की दंतुरित अर्थात् नए दाँतों से युक्त मुस्कान को देखकर कवि कहता है कि बच्चे की यह मुस्कान मरे हुए व्यक्ति के शरीर में भी प्राणों का संचार कर देती है। बच्चे के धूल-मिट्टी में सने हुए अंग इतने मनोहर लग रहे हैं कि मानो कमल तालाब को छोड़कर मेरी कुटिया में आकर खिल रहे हों। तुम्हारा कोमल स्पर्श पाकर मन इस प्रकार पुलकित हो जाता है जैसे उनके स्पर्श मात्र से कठोर पत्थर पिघलकर पानी बन गया हो। पता नहीं बाँस का पेड़ था या बबूल का था, तुम्हारे स्पर्श मात्र से उससे शेफालिका के सुन्दर और सुगंधित फूल झरने लगे हैं। भाव यह है कि तुम्हारे स्पर्श मात्र से मेरे जीवन में सुख का संचार हो गया है। क्या तुम मुझे अभी पहचान नहीं पाए हो ? तुम मुझे इस प्रकार अपलक (पलक झपकाये बिना) नेत्रों से कब तक देखते रहोगे ? क्या तुम मुझे देखते-देखते थक गए हो ? क्या मैं अपनी आँखें दूसरी ओर फेर लूँ। अर्थात् तुम मुझे देखते-देखते थक गए होंगे। अत: मैं अपना चेहरा दूसरी ओर कर लेता हूँ।
विशेष-
(1) नए-नए आने वाले दाँतों की मधुर मुस्कान का सचित्र वर्णन है।
(2) धूलि-धूसर जलजात’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(3) शेफालिका के फूल सुख रूपी फूलों के प्रतीक हैं।
(4) माधुर्य गुण की प्रधानता है।
(5) पंक्तियों की बिंब योजना आकर्षक है।
(6) प्रश्न शैली का प्रयोग है।
(7) भाषा सरल, सहज व भावानुकूल है।
(8) पंक्तियों में लय एवं संगीतात्मकता विद्यमान है।
(2)
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार ?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख मैं न पाता जान तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान धन्य तुम,
माँ भी तुम्हारी धन्य! चिर प्रवासी मैं इतर,
मैं अन्य! इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं
मधुपर्क देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से ली गयी हैं। इनके रचनाकार कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग – इसमें कवि ने एक छोटे बच्चे की मनोहारी मुस्कान को देखकर मन में उठने वाले भावों को अनेक बिंबों के माध्यम से प्रकट किया है।
व्याख्या -कवि कहता है कि यदि तुम मुझे पहली मुलाकात में पहचान नहीं पाए तो क्या हुआ ? यदि तुम्हारी माँ आज भी हमारे बीच न आती तो मैं तुम्हारे इन नए दाँतों की मधुर मुस्कान को न देख पाता और न जान पाता। अत: तुम्हारा मिलन मेरे लिए सौभाग्यशाली है जो कि तुम्हारी दंतुरित मुस्कान देखने को मिली। कवि पुनः कहता है कि हे बालक! तुम धन्य हो तथा तुम्हें जन्म देने वाली माँ भी धन्य है। मैं तो कोई दूसरा ही हूँ जो कि तुम्हारे लिए अपरिचित ही हूँ। इस नए मेहमान से तुम्हारा कोई सम्बन्ध भी नहीं रहा है। तुम्हें तो अपनी माँ की ममता द्वारा दूध-घी-शहद-जल आदि प्राप्त होते रहे हैं। जब तुम तिरछी चितवन से मेरी ओर देखते हो तो हमारी और तुम्हारी आँखें मिलकर चार हो जाती हैं। तुम्हारे दाँतों की मधुर मुस्कान मुझे बहुत सुंदर लगती है।
विशेष-
(1) बच्चे की दंतुरित मुस्कान का सचित्र वर्णन है।
(2) कनखी मारना, आँखें चार होना मुहावरों का प्रयोग है।
(3) बिंब योजना बहुत ही सुंदर है।
(4) माधुर्य गुण की प्रधानता है।
(5) अनुप्रास अलंकार की प्रधानता है।
(6) भाषा सरल, सहज व भावानुकूल है।
(7) संगीतात्मकता विद्यमान है।
(8) तत्सम शब्दों की अधिकता है।
फसल
(1)
एक के नहीं, दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादूः
एक के नहीं, दो के नहीं, लाख-लाख,
कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं, दो की नहीं
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘फसल’ से ली गयी हैं। इनके रचनाकार कवि ‘ नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने फसल को प्राप्त करने में लगने वाले परिश्रम के विषय में बतलाया है।
व्याख्या –कवि नागार्जुन कहते हैं कि फसल स्वतः ही उत्पन्न नहीं हो जाती। उसे उत्पन्न करने में अथक परिश्रम करना पड़ता है। फसल को एक या दो नदियों के जल से नहीं बल्कि अनेक नदियों के जल से सींचा जाता है। उसे उत्पन्न करने के लिए एक या दो किसान-मजदूरों के परिश्रम की ही नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों किसान-मजदूरों के अथक परिश्रम की आवश्यकता होती है। फसल, मात्र एक या दो खेतों की मिट्टी में ही नहीं बल्कि वह हजारों खेतों की मिट्टी के गुण-धर्म से ही उत्पन्न हो पाती है। वह खेत की उर्वरा शक्ति पर आधारित होती है। अतः फसल को उत्पन्न करने के लिए अनेक नदियों के जल, अनेक किसान-मजदूरों के अथक परिश्रम तथा खेतों की उर्वरा शक्ति की आवश्यकता पड़ती है।
विशेष-
(1) फसल प्राप्ति की क्रिया का वर्णन है।
(2) छन्द मुक्त तुकान्त कविता का प्रयोग है।
(3) शुद्ध एवं साहित्यिक खड़ी बोली है।
(4) ‘लाख-लाख कोटि-कोटि, हज़ार-हज़ार’ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
(5) अनुप्रास की छटा विद्यमान है।
(6) तत्सम एवं तद्भव शब्दों से युक्त शब्दावली है। –
(7) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
(2)
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह नदियों के पानी का जादू है
वह हाथों के स्पर्श की महिमा है भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 में संकलित कविता ‘फसल’ से ली गयी हैं। इनके रचनाकार कवि ‘ नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने फसल को प्राप्त करने में लगने वाले परिश्रम के विषय में बतलाया है।
व्याख्या – कवि कहता है कि फसल क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कवि बतलाता है कि फसल स्वतः ही उत्पन्न नहीं हो जाती। इसे प्राप्त करने के लिए किसान उसमें विभिन्न प्रकार की नदियों का जल देता है तब वह हरी-भरी रहती है। उसे प्राप्त करने के लिए अनेक किसान-मजदूरों को कठोर परिश्रम करना पड़ता है। भिन्न-भिन्न फसलें प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न मिट्टियों; जैसे-काली, पीली, दोमट, चिकनी मिट्टियों की मदद लेनी पड़ती है। सूर्य के प्रकाश की किरणों का भी फसल प्राप्ति में विशेष योगदान होता है क्योंकि प्रकाश के अभाव में फसल उत्पन्न नहीं हो सकती है। इतना ही नहीं हवा के बहाव की भी फसल प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः फसल के लिए सूर्य के प्रकाश, हवा, पानी, उर्वरक मिट्टी तथा किसान के कठिन परिश्रम की परम आवश्यकता होती है।
विशेष-
(1) फसल प्राप्ति के आवश्यक तत्वों का वर्णन है।
(2) प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
(3) प्रश्नोत्तर शैली का प्रयोग है।
(4) तत्सम एवं तद्भव दोनों प्रकार की शब्दावली का प्रयोग
(5) मिट्टी के विविध रूपों का वर्णन है।
(6) छन्द युक्त एवं तुकान्त पंक्तियाँ हैं।
(7) भाषा सरल, सहज व खड़ी बोली है।
(8) प्रसाद गुण की प्रधानता है।
यह दंतुरित मुसकान
प्रश्न 1. बच्चे की दंतुरित मुस्कान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर- बच्चे की दंतुरित मुस्कान देखकर कवि का मन प्रसन्नता से भर जाता है। बच्चे की मुस्कान देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि तालाब में खिलने वाले कमल उसकी कुटिया में खिल रहे हैं।
प्रश्न 2. बच्चे की मुस्कान और एक बड़े व्यक्ति की मुस्कान में क्या अन्तर है ?
उत्तर-बच्चे की मुस्कान स्वार्थ रहित और मन को प्रसन्न करने वाली होती है जबकि बड़े व्यक्ति की मुस्कान में कोई न कोई रहस्य छिपा होता है। अत: वह मन को प्रसन्नता नहीं देती है।
प्रश्न 3. कवि ने बच्चे की मुस्कान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर-कवि ने बच्चे की मुस्कान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है
(1) कमल का तालाब छोड़कर कवि की कुटिया में आ जाना।
(2) बाँस अथवा बबूल से शेफालिका के फूलों का झरना।
(3) बच्चे द्वारा कवि को अपलक नेत्रों से देखना।
(4) तिरछी नजरों से देखना।
(5) बच्चे के नए-नए दाँतों द्वारा मुस्कराना।
प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?
उत्तर –
(क) भाव – प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि छोटा-सा कमल रूपी बच्चा अपने घर को छोड़कर कवि की कुटिया में दंतुरित मुस्कान से खिलखिलाने के लिए आ गया है।
(ख) भाव – कवि कहता है कि बच्चों की दंतुरित मुस्कान स्वाभाविक होती है। जब वह किसी के हृदय को छूती है तब भावहीन और संवेदना शून्य मनुष्य भी सुख और आनंद की अनुभूति करने लगता है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 5. मुस्कान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर – वास्तव में मुस्कान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं।
मुस्कान से व्यक्ति दुःखित जन को भी प्रसन्न कर देता है तथा क्रोध अपनों को भी पराया बना देता है। मुस्कान में व्यक्ति का चेहरा कमल की तरह खिलता हुआ प्रतीत होता है तथा क्रोध में चेहरा भयानक लगता है।
प्रश्न 6. दंतुरित मुस्कान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – सामान्यत: बच्चों के दाँत 08 माह से 10 माह की उम्र में निकलने लगते हैं। इसी उम्र में बच्चा हँसने भी लगता है। अतः प्रस्तुत कविता में बच्चे की उम्र भी यही होगी।
प्रश्न 7. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कवि जब बच्चे की दंतुरित मुस्कान को देखता है तब उसके निस्तेज शरीर में चेतना लौट आती है। कवि का मन भावुक हो जाता है। बच्चा भी कवि को अपलक नेत्रों से देखता है और देखते-देखते थक जाता है। कवि बच्चे से पुनः कहता है कि यदि तुम्हारी माँ आज यहाँ नहीं आती तो मैं तुम्हारी इस मुस्कान का आनंद नहीं ले पाता। बच्चे की नजरों के बाँकपन से बच्चे की दंतुरित मुस्कान की सुंदरता और भी बढ़ जाती है।
पाठेतर सक्रियता
1. आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
2. एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फिल्म देखिए।
उत्तर – उपर्युक्त प्रश्नों का उत्तर विद्यार्थी फिल्म आदि देखकर स्वयं हल करें।
फसल
प्रश्न 1. कवि के अनुसार फसल क्या है ?
उत्तर – कवि के अनुसार फसल एक कठिन परिश्रम का परिणाम है। वह स्वतः ही उत्पन्न नहीं हो जाती। इसे प्राप्त करने हेतु सूर्य के प्रकाश, हवा, पानी तथा किसान के कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है। अच्छी फसल प्राप्त करने में उर्वरक (उपजाऊ) मिट्टी की भी अहम भूमिका होती है।
प्रश्न 2. कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर – कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व वायु, तेज, जल, पृथ्वी तथा परिश्रम हैं।
प्रश्न 3. फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है ?
उत्तर – फसल को हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि यह व्यक्त करना चाहता है कि फसल प्राप्त करने में यद्यपि हवा, पानी, सूर्य के प्रकाश आदि की आवश्यकता होती है परन्तु लाखों-करोड़ों मजदूरों-किसानों के हाथों के परिश्रम के बिना यह संभव नहीं है। अतः फसल हाथों के स्पर्श का परिणाम है। प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिएरूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का! उत्तर-भाव-‘फसल’ कविता में फसल के विषय में बतलाया है कि फसल क्या है ? कवि के अनुसार फसल प्राप्ति में सूर्य की किरणों तथा हवा के बहाव की परम आवश्यकता होती है। इनके अभाव में फसल लाख प्रयत्न करने पर भी प्राप्त नहीं हो सकती है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 5. कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किसकिस तरह प्रभावित करती है ?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर – (क) खेतों में विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ होती हैं; जैसे-काली, पीली, दोमट, चिकनी आदि। ये विविध प्रकार की मिट्टियाँ ही अपनी उर्वरा शक्ति के गुणों के आधार पर विविध फसलों को अच्छी तरह से उत्पन्न करती हैं।
(ख) वर्तमान जीवन शैली में मिट्टी के गुण-धर्म को विभिन्न प्रकार के उर्वरकों तथा रासायनिक प्रयोगों द्वारा प्रभावित किया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी के गुण-धर्म में गिरावट आ रही है।
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने पर कुछ भी उत्पन्न नहीं होगा।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम उर्वरकों तथा रासायनिक पदार्थों का बहुत ही कम मात्रा में प्रयोग करके तथा फसल-चक्र को अपनाकर अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
पाठेतर सक्रियता
1. इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुद्रढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर
सेवा में,
श्रीमान् सम्पादक जी
दैनिक अमर उजाला
समाचार पत्र
ग्वालियर (म.प्र.)
विषय : कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ करने हेतु।
महोदय,
आज अन्नदाता कहलाया जाने वाला किसान दूसरों का पेट भरकर स्वयं दु:खी है। अनेक युगों के बाद भी वह गरीबीएवं अशिक्षा से दूर नहीं हो पा रहा है। अत: उनकी इस दुर्दशा को सुधारने के लिए सरकार को भी ठोस कदम उठाने चाहिए। उनके लिए कृषि-सुधार जैसे नियम बनाकर उनकी मदद करनी चाहिए। अत: महोदय से निवेदन है कि अपने समाचार-पत्र द्वारा किसानों की दशा को सरकार को अवगत कराने की कृपा करें। आपकी अति कृपा होगी। ।
‘जय किसान’
भवदीय
दीपक शर्मा
ग्वालियर (म.प्र.)
2. फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है ? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थी इस विषय पर चर्चा अपने आदरणीय गुरुजनों के सहयोग से कक्षा में ही करें।