M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5 – उत्साह और अट नहीं रही

M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2  काव्य खंड

क्षितिज काव्य खंड Chapter 5 – उत्साह और अट नहीं रही

पाठ 5 – उत्साह और अट नहीं रहीसूर्यकांत त्रिपाठी निराला

कठिन शब्दार्थ

गरजो = गर्जना करो। धाराधर = बादल। घुघराले = तप्त = तपती हुई। आभा = चमक। वज्र = कठोर, भीषण। घुमावदार, लच्छेदार। पाले = पतवार, किनारा। उर = हृदय। घन = बादल, मेघ। अट = समाना, प्रविष्ट। सट = समाना। नूतन = नया। विकल = व्याकुल। उन्मन = कहीं मन न टिकने पाट-पाट = जगह-जगह। शोभा-श्री = सौन्दर्य से भरपूर। पट की स्थिति, अनमनापन। निदाघ = गर्मी। सकल = सब, सारे। = समा नहीं रही है।

उत्साह

(1)

बादल, गरजो!

घेर घेर घोर गगन,

धाराधर ओ!

ललित ललित, काले घुघराले,

बाल कल्पना के-से पाले,

विद्युत-छबि उरमें,कवि,

नवजीवन वाले!

वज्र छिपा, नूतन कविता।

फिर भर दो

बादल, गरजो!

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘उत्साह’ से लिया गया है। इसके रचयिता छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग – इसमें कवि बादलों को गर्जना करने हेतु उनका आह्वान करता है।

व्याख्या – कवि बादलों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि हे बादल! तुम खूब गर्जना करो। तुम उमड़-घुमड़ कर तेज । गर्जना करते हुए सम्पूर्ण आकाश को घेरते हुए चारों ओर छा | जाओ। हे बादल ! तुम सुन्दर-सुन्दर काले रंग वाले तथा घुमावदार | बालों के समान हो। अतः तुम बालकों की विचित्र कल्पनाओं | की पतवारों तथा नदी के टेढ़े-मेढ़े किनारों जैसे लगते हो। कवि | कहता है कि नया जीवन प्रदान करने वाले हे बादल ! तुम्हारे हृदय | में बिजली की आभा तथा वज्र के समान कठोर गर्जन छिपा हुआ है। अतः तुम बिजली की चमक तथा गर्जन से आकाश में नवीन कविता का संचार कर दो। हे बादल! तुम खूब गर्जना करो।

विशेष-

(1) कवि ने बादलों को गर्जना करने हेतु कहा है।

(2) ‘घेर-घेर’ तथा ‘ललित-ललित’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

(3) बाल कल्पना के से पाले’ में उपमा अलंकार है।

(4) “विद्युत्-छवि’ में रूपक अलंकार है।

(5) बादलों का मानवीकरण करने के कारण मानवीकरण अलंकार है।

(6) भाषा तत्सम तद्भव शब्दों से युक्त समासनिष्ठ है।

(7) वीर रस की प्रधानता है।

(2)

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन

विश्व के निदाघ के सकल जन,

आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!

तप्त धरा,

जल से फिर शीतल कर दो

बादल, गरजो!

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘उत्साह’ से लिया गया है। इसके रचयिता छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग – इसमें कवि बादलों को गर्जना करने हेतु उनका आह्वान करता है।

व्याख्या – कवि बादलों से कहता है कि हे बादलों! तुम खूब गर्जना करो। सांसारिक प्राणी गर्मी के कारण व्याकुल हो रहे हैं। मौसम के परिवर्तन से चारों ओर व्याकुलता व्याप्त है। हे कभी न समाप्त होने वाले बादल! तुम्हारा आगमन किसी अनजान दिशा की ओर से हुआ है। यह धरती गर्मी से तपने के कारण व्याकुल है। अतः तुम जल-वर्षण करके इसे शीतल कर दो। तुम्हारे द्वारा वर्षा करने पर ही इस धरती की प्यास बुझेगी। हे बादलों! तुम खूब गर्जना करो।

विशेष-

(1) बादलों का आह्वान किया गया है।

(2) विकल विकल’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

(3) बादलों का मानवीकरण करने से मानवीकरण अलंकार है।

(4) सम्बोधन शैली का प्रयोग किया गया है।

(5) तत्सम तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।

(6) अनुप्रासालंकार की छटा विद्यमान है।

(7) ओज गुण की प्रधानता है।

अट नहीं रही है

(1)

अट नहीं रही है

आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।

कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो,

उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो,

आँख हटाता हूँ तो हट नहीं रही है।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘अट नहीं रही है’ से ली गयी हैं। इनके रचनाकार छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में फागुन मास की मादकता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि फागुन मास की कांति या सुन्दरता कहीं समा नहीं पा रही है। भाव यह है कि फागुन मास का प्राकृतिक सौन्दर्य इतना मनमोहक है कि वह तन-मन में समा नहीं पा रहा है। चारों ओर सुन्दरता का वातावरण है। वातावरण में चारों ओर सुगन्ध फैली हुई है। श्वांस लेते ही सम्पूर्ण शरीर सुगन्ध से भर जाता है। घर में, द्वार में अर्थात् सर्वत्र सुगन्ध भरी हुई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो कि सुगन्ध से युक्त आकाश में उड़ने हेतु सभी के पंख लगा दिए गये हैं। चारों ओर का प्राकृतिक वातावरण इतना सुन्दर है कि मैं इससे अपनी आँखें हटाना चाहता हूँ परन्तु चाहते हुए भी अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा हूँ।

विशेष-

(1) फागुन मास के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन है।

(2) फागुन मास का मानवीकरण करने से मानवीकरण । अलंकार है।

(3)’घर-घर’ तथा ‘पर-पर’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

(4) अनुप्रास अलंकार की छटा सर्वत्र विद्यमान है।

(5) भाषा सरल, सुबोध तथा तत्सम प्रधान है।

(6) पंक्तियों में लयात्मकता का गुण विद्यमान है।

(2)

पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल,

कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्य-माल,

पाट-पाट शोभा – श्री पट नहीं रही है।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘अट नहीं रही है’ से ली गयी हैं। इनके रचनाकार छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में फागुन मास की मादकता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि फागुन मास में चारों ओर हरियाली छाई हुई है। पेड़ों की डालियों पर हरे तथा किसलयी लाल रंग की पत्तियाँ लगी हुई हैं। पेड़-पौधों पर फूल आने से ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो पेड़ों ने मंद-मंद सुगन्ध से महकते फूलों की मालाएँ अपने हृदय पर धारण कर ली हैं। प्रकृति का एक-एक अंग सौन्दर्य से युक्त है। प्राकृतिक शोभा ऐसी अद्भुत है कि वहाँ समा नहीं पा रही है।

विशेष-

(1) फागुन मास अर्थात् बसंत ऋतु की शोभा का वर्णन है।

(2) मानवीकरण अलंकार की प्रधानता है।

(3) ‘पाट-पाट में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

(4) अनुप्रास की छटा सर्वत्र विद्यमान है।

(5) भाषा सरल तथा तत्सम शब्दों से युक्त है।

(6) शब्द आवृत्ति से लयात्मकता है।

उत्साह

प्रश्न 1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों?

उत्तर – कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए इसलिए कहता है क्योंकि बादल के गर्जन से प्राणियों में फुहार, वर्षा आदि की आशा जाग जाती है तथा उनमें उत्साह भर जाता है।

प्रश्न 2. कविता का शीर्षक उत्साह’ क्यों रखा गया है ?

उत्तर – कविता का शीर्षक उत्साह इसलिए रखा गया है कि उत्साह, उमंग या जोश का पर्याय है। बादलों को उमड़ता तथा गर्जन करता हुआ देखकर प्राणियों में उत्साह भर जाता है।

प्रश्न 3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है ?

उत्तर -कविता में बादल प्यासी धरती की प्यास बुझाने, नवीन अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव तथा क्रान्ति चेतना को सम्भव करने वाले अर्थों की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौन्दर्य कहलाता है। ‘उत्साह’ कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौन्दर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।

उत्तर -‘उत्साह’ कविता में नाद-सौन्दर्य वाले शब्द निम्न प्रकार हैं

(1) घेर घेर घोर गगन धाराधर ओ!

ललित ललित, काले धुंघराले,

(2) विकल विकल, उन्मन थे उन्मन

(3) आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन! |

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5. जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अन्तर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।

उत्तर

चारुचंद्र की चंचल किरणें खेल रहीं हैं जल-थल में

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बर तल में।

पुलक-प्रकट करती है धरती हरित तृणों के झोकों से

मानो झूम रहे हैं तरु भी मंद पवन के झोंकों से।

पाठेतर सक्रियता

1. बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।

उत्तर कविताओं का संकलन और उनका चित्रांकन विद्यार्थी स्वयं करें।

अट नहीं रही है

प्रश्न 1. छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है ? लिखिए।

उत्तर – कविता की निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है

कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो,

उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो,

आँख हटाता हूँ तो हट नहीं रही है।

प्रश्न 2. कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से क्यों नहीं हट रही है ?

उत्तर -कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से इसलिए नहीं हट रही है कि फागुन मास में बसंत का सौन्दर्य छा जाता है। इस ऋतु का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम होता है। प्रकृति में चारों ओर . सुन्दरता ही सुन्दरता दिखलाई देती है। अत: कवि का मन फागुन की सुन्दरता को देखने में लगा हुआ है।

प्रश्न 3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है ?

उत्तर -प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन फागुन मास की अलौकिक शोभा के माध्यम से अनेक रूपों में किया है। इस मास में पेड़-पौधों पर रंग-बिरंगे फूल खिलकर सुगन्ध फैलाने लगते हैं। इस सुगन्ध से हमारा तन-मन पुलकित होने लगता है। पेड़ों पर हरे पत्ते एवं लालिमा लिए हुए नवीन कोपलें आने लगती हैं जिनकी शोभा निराली होती है। अत: चारों ओर प्रकृति की व्यापकता फैल जाती है।

प्रश्न 4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?

उत्तर– फागुन में बसंत ऋतु का आगमन होता है जिसे सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है। इस माह में पेड़-पौधों पर नए-नए फूल-पत्ते आने लगते हैं। हवा भी खुशबू लिए हुए शीतल मन्द रूप में चलती है। इस माह में न अधिक गर्मी होती है और न अधिक सर्दी होती है। ये सब बाकी ऋतुओं से भिन्न है।

प्रश्न 5. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर– इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

(1) इन कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।

(2) भाषा समास युक्त एवं तत्सम तद्भव शब्दों से युक्त है।

(3) पुनरुक्तिप्रकाश, मानवीकरण तथा अनुप्रास अलंकार की प्रधानता है।

(4) सम्बोधन शैली का प्रयोग किया गया है।

(5) पंक्तियों में लयात्मकता विद्यमान है।

(6) भाषा सरल, सहज तथा प्रसंगानुकूल है।

(7) फागुन मास तथा बादलों का प्राकृतिक चित्रण है। रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6. होली के आस-पास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।

उत्तर– होली के आस-पास प्रकृति में अनेक परिवर्तन दिखाई देते हैं; जैसे

(1) बसन्त ऋतु का मौसम छा जाने से पेड़ों के पुराने पत्ते गिरने लगते हैं तथा नवीन पल्लव विकसित होने लगते हैं।

(2) चारों ओर का प्राकृतिक वातावरण सुहावना लगने लगता है।

(3) होली के आस-पास धूप अच्छी निकलने लगती है तथा पेड़ों पर फूल-फल आने लगते हैं।

(4) पशु-पक्षी भी प्रसन्नता का भाव अनुभव करते हुए से प्रतीत होते हैं।

(5) इस काल में दिन न तो अधिक बड़े होते हैं न अधिक छोटे।

(6) आम्र मञ्जरी से आम के बाग महकने लगते हैं।

पाठेतर सक्रियता

1. फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।

उत्तर – फागुन में होली तथा फाग जैसे गीतों को गाने की  परम्परा वैदिक काल से ही चली आ रही है। वर्तमान में ब्रज में  एक प्रसिद्ध होली गाई जाती है जो इस प्रकार है

आज बिरज में होरी रे रसिया। होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया॥

कौन के हाथ कनक पिचकारी। कौन के हाथ कमोरी रे रसिया॥

कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी। राधा के हाथ कमोरी रे रसिया॥

अपने-अपने घर ते निकसीं। कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया॥

उड़त गुलाल लाल भए बदरा। केसर रंग में घोरी रे रसिया॥

चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि। जुग जुग जीवो यह जोरी रे रसिया॥

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