MP Board Class 9th Geography Solution Chapter 4 :  जलवायु

MP Board Class 9 th Geography Solution भूगोल-समकालीन भारत-I

Chapter 4 : जलवायु [Climate]

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • एक विशाल क्षेत्र में लम्बे समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है। 
  • मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द ‘मौसिम’ से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – मौसम।
  • मानसून का अर्थ, एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन है। 
  • मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है।  
  • मौसम तथा जलवायु के तत्व; जैसे-तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता तथा वर्षण एक ही होते है।
  • भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है। 
  • गर्मियों में, राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से. तक पहुँच जाता है; जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 20° से. रहता है।
  • सर्दी की रात में, जम्मू-कश्मीर में द्रास का तापमान – 45° से. तक हो सकता है जबकि तिरुवनंतपुरम् में 22° से. हो सकता है। 
  • हिमालय में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है तथा शेष भाग में वर्षा के रूप में होता है। 
  • वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 सेमी से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेमी से भी कम होती है।
  • किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छः प्रमुख कारक हैं-अक्षांश, तुंगता (ऊँचाई), वायुदाब एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण।
  • कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम से होकर गुजरती है।
  • जेट धाराएँ एक संकरी पट्टी में स्थित क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई वाली पश्चिमी हवाएँ होती हैं।
  • शीत ऋतु में उत्पन्न होने वाला पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र से जाने वाले पश्चिमी प्रवाह के कारण होता है। 
  • मानसून का प्रभाव उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 20° उत्तर एवं 20° दक्षिण के बीच रहता है। 
  • एलनीनो, दक्षिण दोलन से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल पर पेरू तट से होकर बहती है।
  • मानसून का समय जून के आरम्भ से लेकर मध्य सितम्बर तक, 100 से 120 दिनों के बीच होता है।
  • उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवम्बर से आरम्भ होकर फरवरी तक रहती है।
  • मार्च से मई तक भारत में ग्रीष्म ऋतु होती है। लू, ग्रीष्मकाल का एक प्रभावी लक्षण है।
  • खासी पहाड़ी के दक्षिणी शृंखलाओं में स्थित मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है। यह क्षेत्र स्टेलेग्माइट एवं स्टेलेक्टाइट गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है। 
  • अक्टूबर एवं नवम्बर का महीना, गर्म वर्षा ऋतु से शीत ऋतु में परिवर्तन का काल होता है।
  • उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।
  • पश्चिमी तट के भागों एवं उत्तर-पूर्वी भारत में लगभग 400 सेमी वार्षिक वर्षा होती है।
  • पश्चिमी राजस्थान एवं इससे सटे पंजाब, हरियाणा एवं गुजरात के भागों में 60 सेमी से भी कम वर्षा होती है।

पाठान्त अभ्यास

प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें

(i) नीचे दिए गए स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है ?

(क) सिलचर

(ख) चेरापूंजी

(ग) मासिनराम

(घ) गुवाहटी।

(ii) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है ?

(क) काल वैशाखी

(ख) व्यापारिक पवनें

(ग) लू

(घ) इनमें से कोई नहीं।

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है ?  

(क) चक्रवातीय अवदाब

(ख) पश्चिमी विक्षोभ

(ग) मानसून की वापसी

(घ) दक्षिण-पश्चिमी मानसून।

(iv) भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है ?

(क) मई के प्रारम्भ में

(ख) जून के प्रारम्भ में

(ग) जुलाई के प्रारम्भ में

(घ) अगस्त के प्रारम्भ में।

(v) निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है ?

(क) गर्म दिन एवं गर्म रातें

(ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें

(ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें

(घ) ठंडा दिन एवं गर्म रातें।

उत्तर – (i) (ग), (ii) (ग), (iii) (ख), (iv) (ख), (v) (ग)।

प्रश्न 2. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए

(i) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं ?

उत्तर – (i) अक्षांश, (ii) ऊँचाई, वायु दाब एवं पवन-भारत में जलवायु तथा सम्बन्धित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमण्डलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं

  • वायु दाब एवं धरातलीय पवनें 
  • ऊपरी वायु परिसंचरण तथा । 
  • पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात।

(ii) भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है ?

उत्तर – भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है। एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है। सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु-अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं।

गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से. तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान 20° से. रहता है।

वर्षण के रूप तथा प्रकार में ही नहीं, बल्कि इसकी मात्रा एवं ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता होती है। वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 सेमी से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेमी से भी कम होती है। देश के अधिकतर भागों में जून से सितम्बर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवम्बर में होती है। अर्थात् भारत की जलवायु मानसूनी जलवायु है।

(ii) भारत में किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है और क्यों ?

उत्तर – राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से. तक पहुँच जाता है। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि रेत ऊष्मा को बहुत जल्दी अवशोषित करती है और छोड़ती है। इस कारण मरुस्थल में दिन का तापमान अधिक और रात का तापमान कम होता है।

(iv) किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है ?

उत्तर– मालाबार पश्चिमी तट पर स्थित है। दक्षिण पश्चिमी मानसूनी पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है।

(v) जैट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं

उत्तर – जेट वायुधाराएँ (प्रवाह) – ऊपरी वायुमण्डल में तीव्र गति से चलने वाली पवनों को जेट वायुधाराएँ कहते हैं। ये बहुत ही संकरी पट्टी में चलती हैं।

प्रभाव – भारत में, ये जेट धाराएँ ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती हैं। इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं। गर्मियों में, सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तर में चली जाती है। भारत की जलवायु जेट वायुधाराओं की गति से भी प्रभावित होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तरी भारत में मानसून के अचानक ‘फटने’ के लिए यही जिम्मेदार हैं।

(vi) मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर– ‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम (Mausim) से हुई है, इसका आशय है- मौसम या मौसम के अनुसार हवाओं में होने वाला परिवर्तन, जिसके अनुसार वर्ष में छ: माह तक एक दिशा में तथा छ: माह तक विपरीत दिशा में हवाएँ चला करती हैं। इस प्रकार मौसम के परिवर्तन के अनुसार चलने वाली हवाओं को ‘मानसून’ कहते हैं।

मानसून में विराम-मानसून से सम्बन्धित एक अन्य परिघटना है, ‘वर्षा में विराम’ मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है। इनमें वर्षा रहित अन्तराल भी होते हैं। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से सम्बन्धित होते हैं।

(vii) मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है ?

अथवा

उपयुक्त उदाहरण देते हुए मानसून की एकता स्थापित करने वाली भूमिका की विवेचना कीजिए।

उत्तर– भारत में जलवायु की विविधता होते हुए भी भारत अपनी जलवायु सम्बन्धी (मानसूनी) एकता के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय पर्वत और मानसून की नियमितता ने भारत की इस एकता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हिमालय तथा उसके विस्तार एक प्रभावशाली जलवायु विभाजक का कार्य करते हैं। यह विशाल उच्च पर्वत-शृंखला उत्तरी हवाओं के सामने अलंघ्य दीवार बनकर खड़ी है। उत्तर ध्रुवीय वृत्त के निकट इन ठण्डी और बर्फीली हवाओं की उत्पत्ति का स्थान है, जहाँ से ये मध्य तथा पूर्वी एशिया की ओर चलती हैं। लेकिन ये हिमालय को पार नहीं कर पाती हैं। इस प्रकार इस उत्तरी पर्वतीय प्राचीर के कारण सम्पूर्ण उत्तर भारत में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पायी जाती है।

हिमालय हमारे देश को एक प्रकार से बन्द बक्से का रूप प्रदान करता है जिसमें मानसून विविध प्रकार की लीलाएँ दिखाता रहता है। इस भौगोलिक ढाँचे में मानसूनी एकता के दर्शन होते हैं जिसमें जीवन की ऋतुलय की विशेषता है। सामान्य भूमि लक्षण, वनस्पति और प्राणी, कृषि कार्य और लोगों का जीवन इस ऋतुलय से पूरी तरह प्रभावित है।

प्रश्न 3. उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है ?

उत्तर – प्रायद्वीपीय भारत की आकृति त्रिभुजाकार है जिसके कारण मानसून दो भागों में बँट जाता है

(i) अरब सागर शाखा, (ii) बंगाल की खाड़ी शाखा।

आर्द्रता से युक्त बंगाल की खाड़ी शाखा तीव्र गति से उत्तर-पूर्व में प्रवेश करती है और वहाँ स्थित पहाड़ियों से टकराकर घनघोर वर्षा प्रदान करती है। यहाँ ऊँचे पर्वत हैं जिसके कारण मानसून पवनें पश्चिम में गंगा के मैदान की तरफ मुड़ जाती हैं। जैसे-जैसे ये पवनें पश्चिम की तरफ बढ़ती हैं, वैसे-वैसे इनकी आर्द्रता कम हो जाती है। यही कारण है कि उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।

प्रश्न 4. कारण बताएँ

(i) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है ?

उत्तर – सर्दी के मौसम में हिमालय के उत्तर में उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, ठंडी शुष्क पवनें उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। गर्मी के मौसम के दौरान भूमि जल की तुलना में अधिक गर्मी ग्रहण करती है जिसके कारण भीतरी भू-भाग के ऊपर एक निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है। इस प्रकार पवनें उच्च दाब के क्षेत्र से, उत्तर में निम्न दाब क्षेत्र की ओर बहने लगती हैं। यही कारण है कि पवनों की दिशा उलट जाती है।

(ii) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है ?

उत्तर – भारत की 25% वर्षा केवल चार महीनों-जून से सितम्बर के वर्षाकाल में होती है। शेष आठ महीनों में बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार वर्षा की अवधि बहुत कम है। 15 सितम्बर से मानसून वापिस होने लगता है क्योंकि उत्तरी-पश्चिमी भाग का निम्न वायुदाब क्षेत्र उच्च वायुदाब क्षेत्र में परिणत होने लगता है। इस प्रकार वर्षा का समय दक्षिण में अधिक और उत्तर में कम होता है। सामान्य रूप से वर्षा 100 से 120 दिन होती है।

(ii) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।

उत्तर – तमिलनाडु राज्य भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। यहाँ शीतकाल में चलने वाली उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें अधिक वर्षा करती हैं जबकि ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें कम वर्षा करती हैं। इसका कारण यह है कि ग्रीष्मकाल में मानसून पवनें दक्षिण-पश्चिम दिशा से चलती हैं। अत: यह क्षेत्र पश्चिमी घाट पर्वत की वृष्टि छाया में पड़ता है जिससे कम वर्षा होती है। शीतकाल में लौटती हुई मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी को पार करके नमी ग्रहण कर लेती हैं। ये पवनें पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकराकर तमिलनाडु के तटीय प्रदेश में वर्षा करती हैं। इस प्रकार जाड़े के मौसम में यह प्रदेश आर्द्र पवनों के सम्मुख होने के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करता है।

(iv) पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।

उत्तर – नवम्बर के प्रारम्भ में, उत्तर-पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थानान्तरित हो जाती है। यह स्थानान्तरण चक्रवाती निम्न दाब से सम्बन्धित होता है, जो कि अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है। ये चक्रवात सामान्यतः भारत के पूर्वी तट को पार करते हैं, जिनके कारण व्यापक एवं भारी वर्षा होती है। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है। कभी-कभी ये चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।

(v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है।

उत्तर – दक्षिण-पश्चिम मानसून का भारत में अंतर्वाह यहाँ के मौसम को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है। मौसम के प्रारम्भ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा होती है। दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश

के कुछ भाग में भी वर्षा होती है, यद्यपि ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं। इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर-पूर्वी भागों में होती है। खासी पहाड़ी के दक्षिणी श्रृंखलाओं में स्थित मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है। गंगा की घाटी में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

प्रश्न 5. भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाएँ।

उत्तर– सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं। नीचे दो महत्वपूर्ण तत्व तापमान एवं वर्षण द्वारा स्पष्ट किया गया कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा एक मौसम से दूसरे मौसम में इनमें किस प्रकार की भिन्नता है।

(1) तापमान सम्बन्धी क्षेत्रीय विभिन्नताएँ -गर्मियों में, राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से. तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° से. रहता है। सर्दी की रात में जम्मू-कश्मीर में द्रास का तापमान – 45° से. तक हो सकता है, जबकि तिरुवनंतपुरम् में यह 22° से. हो सकता है।

(2) वर्षण सम्बन्धी क्षेत्रीय विभिन्नताएँ -वर्षण के रूप तथा प्रकार में ही नहीं, बल्कि इसकी मात्रा एवं ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता होती है। हिमालय में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है तथा देश के शेष भाग में यह वर्षा के रूप में होता है। वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 सेमी से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेमी से भी कम होती है। देश के अधिकतर भागों में जून से सितम्बर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवम्बर में होती है।

प्रश्न 6. मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करें।

उत्तर मानसून का प्रभाव उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 20° उत्तर एवं 20° दक्षिण के बीच रहता है। मानसून की अभिक्रिया समझने के लिए निम्न बातें महत्वपूर्ण हैं

(1) स्थल तथा जल के गर्म एवं ठंडे होने की विभेदी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है जबकि इसके आस-पास के समुद्रों के ऊपर उच्च दाब का क्षेत्र बनता है।

(2) ग्रीष्म ऋतु के दिनों में अंत:उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है। (यह विषुवतीय गर्त है, जो प्रायः विषुवत् वृत्त से 5° उत्तर में स्थित होता है। इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है।)

(3) हिन्द महासागर में मेडागास्कर के पूर्व लगभग 20° दक्षिण अक्षांश के ऊपर उच्च दाब वाला क्षेत्र होता है। इस उच्च दाब वाले क्षेत्र की स्थिति एवं तीव्रता भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।

(4) ग्रीष्म ऋतु में, तिब्बत का पठार बहुत अधिक गर्म हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पठार के ऊपर समुद्र तल से लगभग 9 किमी की ऊँचाई पर तीव्र ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं एवं उच्च दाब का निर्माण होता है।

(5) दक्षिणी महासागरों के ऊपर दाब की अवस्थाओं में परिवर्तन भी मानसून को प्रभावित करता है। सामान्यतः जब दक्षिण प्रशांत महासागर के उष्ण कटिबंधीय पूर्वी भाग में उच्च दाब होता है तब हिन्द महासागर के उष्ण कटिबंधीय पूर्वी भाग में निम्न दाब होता है, लेकिन कुछ विशेष वर्षों में वायु दाब की स्थिति विपरीत हो जाती है तथा पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर हिन्द महासागर की तुलना में निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है।

(6) डार्विन, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया (हिन्द महासागर 12°30′ दक्षिण/131° पूर्व) तथा ताहिती (प्रशांत महासागर 180° दक्षिण/149° पश्चिम) के दाब के अन्तर की गणना मानसून की तीव्रता के पूर्वानुमान के लिए की जाती है। अगर दाब का अन्तर ऋणात्मक है तो इसका अर्थ होगा औसत से कम तथा देर से आने वाला मानसून। –

(7) एलनीनो, दक्षिणी दोलन से जुड़ा एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अन्तराल में पेरू तट होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का सम्बन्ध एलनीनो से है। इसलिए इस परिघटना को एसो (ENSO) (एलनीनो दक्षिणी दोलन) कहा जाता है। “

प्रश्न 7. शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताइए।

उत्तर

शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ

(1) उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवम्बर से आरम्भ होकर फरवरी तक रहती है। भारत के उत्तरी भाग में दिसम्बर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। पूर्वी तट पर चेन्नई का औसत तापमान 24° सेल्सियस से 25° सेल्सियस के बीच होता है, जबकि उत्तरी मैदान में यह 10° सेल्सियस से 15° सेल्सियस के बीच होता है। दिन गर्म तथा रातें ठंडी होती हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय में ऊपरी ढालों पर हिमपात होता है।

(2) शीत ऋतु में, देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं तथा इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं।

(3) देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवनें पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती हैं। सामान्यतः इस मौसम में आसमान साफ, तापमान तथा आर्द्रता कम एवं पवनें शिथिल तथा परिवर्तित होती हैं।

(4) शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अन्तर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा, जिसे स्थानीय तौर पर ‘महावट’ कहा जाता है, की कुल मात्रा कम होती है। ये रबी की फसलों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।

(5) प्रायद्वीपीय भागों में शीत ऋतु स्पष्ट नहीं होती है। समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण शीत ऋतु में भी यहाँ तापमान के प्रारूप में न के बराबर परिवर्तन होता है।

प्रश्न 8. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ। उत्तर- भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ

(1) मानसून का समय जून के आरम्भ से लेकर मध्य सितम्बर तक 100 से 120 दिनों के बीच होता है। इसके आगमन के समय सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि हो जाती है तथा निरन्तर कई दिनों तक होती है। इसे मानसून का फटना कहते हैं।

(2) सामान्यतः जून के प्रथम सप्ताह में मानसून भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर से प्रवेश करता है। इसके बाद यह दो भागों में बँट जाता है- पहली अरब सागरीय मानसून एवं दूसरा बंगाल की खाड़ी का मानसून। अरब सागर शाखा लगभग दस दिन बाद 10 या 12 जून के आस-पास मुंबई पहुँचती है। यह एक तीव्र प्रगति है।

(3) बंगाल की खाड़ी शाखा भी तेजी से आगे की ओर बढ़ती है तथा जून के प्रथम सप्ताह में असम पहुँच जाती है। ऊँचे पर्वतों के कारण मानसूनी पवनें पश्चिम में गंगा के मैदान की ओर मुड़ जाती हैं। मध्य जून तक अरब सागर शाखा सौराष्ट्र, कच्छ एवं देश के बीच भागों में पहुँच जाती हैं। अरब सागर शाखा एवं बंगाल की खाड़ी शाखा, दोनों परस्पर गंगा के मैदान के उत्तर-पश्चिम भाग में आपस में मिल जाती हैं।

(4) दिल्ली में मानसून, बंगाल की खाड़ी से 29 जून के लगभग पहुँचता है। जुलाई के प्रथम सप्ताह तक मानसून पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान में पहुँच जाता है। 15 जुलाई तक मानसून हिमाचल प्रदेश एवं देश के शेष भागों में पहुँच जाता है। 23 भारत में मानसूनी वर्षा समय के अनुसार निश्चित नहीं होती। कभी मानसून पवनें जल्दी और कभी बहुत देर से आती हैं जिससे नदियों में बाढ़ आ जाती है या फसलें सूखे से नष्ट हो जाती हैं। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे खरीफ की फसल को नुकसान होता है।

मानचित्र कौशल

भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाएँ

(i) 400 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र,

(ii) 20 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्र,

(iii) भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा।

उत्तर

ग्रीष्मकालीन मानसून

चित्र 9.1

(C) अन्य परीक्षोपयोगी

प्रश्न वस्तुनिष्ठ प्रश्न  

बहु-विकल्पीय

प्रश्न 1. भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून का समय है

(i) जुलाई से अक्टूबर तक,

(ii) जून से सितम्बर तक,

(ii) मार्च से मई तक,

(iv) दिसम्बर से फरवरी तक।

2. किस राज्य में दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा बहुत कम होती है ?

(i) राजस्थान,

(ii) तमिलनाडु, वनमाला

(iii) कर्नाटक,

(iv) पंजाब।

3. भारत के कारोमण्डल तट पर सर्वाधिक वर्षा होती है

(i) जनवरी-फरवरी में,

(ii) जून-सितम्बर में,

(iii) मार्च-मई में,

(iv) अक्टूबर-नवम्बर में।

4. वर्षा की मात्रा में सर्वाधिक परिवर्तनशीलता कहाँ पाई जाती है ?

(i) महाराष्ट्र,

(ii) असम,

(iii) आन्ध्र प्रदेश,

(iv) राजस्थान।

5. मानसूनी हवाओं का सम्बन्ध है

(i) मौसम,

(ii) जलवायु,

(iii) ऋतु,

(iv) उक्त में से कोई नहीं।

6. अधिक वर्षा वाले राज्य

(i) बिहार, उड़ीसा,

(ii) मेघालय, असम,

(iii) मध्य प्रदेश, गुजरात,

(iv) राजस्थान, पंजाब।

7. ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदान में चलने वाली हवा को कहते हैं

(i) गर्म हवा,

(ii) शीत लहर,

(iii) लू,

(iv) समीर।

8. बताइए निम्नलिखित में से सबसे कम वर्षा कहाँ होती है ?

(i) पश्चिमी मरुस्थल में,

(ii) लेह में,

(ii) तमिलनाडु तट पर,

(iv) महान हिमालय में।

उत्तर-1. (ii), 2. (i), 3. (iv), 4. (i), 5. (i), 6. (ii), 7. (iii), 8. (i).

रिक्त स्थान पूर्ति

1. भारत की वर्षा का वार्षिक औसत ………. है।

2. जिस क्षेत्र में औसत तापमान 18° से. से ऊपर रहता है उसे ………. जलवायु कहते हैं।

3. ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली हवाओं को ………. कहते हैं।

4. अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में औसत वर्षा ………. वार्षिक से कम रहती है। 5. भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अनियमितता तथा अनिश्चितता का कारण …….. का उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकना है।

उत्तर-1. 105 सेमी, 2. उष्ण कटिबन्धीय, 3. लू, 4.50 सेमी, 5. जेट स्ट्रीम। 

सत्य/असत्य

1. आम्रवृष्टि मध्य प्रदेश में होती है।

2. भारतीय मानसून में होने वाली वर्षा अनिश्चित है।

3. मानसूनी हवाएँ अपनी दिशाएँ नहीं बदलती हैं।

4. शीत ऋतु दिसम्बर से शुरू होती है।

5. ग्रीष्म ऋतु में उत्तर भारत में चलने वाली हवा को लू कहते हैं।

उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. सत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

उत्तर-1. → (ख), 2. → (क), 3. → (घ), 4. → (ङ), 5. → (ग)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. पर्वतीय वायु विमुख क्षेत्र जहाँ वर्षा नहीं होती।

2. जहाँ गर्मी में अधिक गर्मी तथा सर्दी में अधिक सर्दी हो, वह जलवायु कहलाती है।

3. हवाएँ छः माह की अवधि में अपनी दिशा बदलती हैं।

4. किसी स्थान की दीर्घ अवधि की वायुमण्डलीय दशा कहलाती है।

5. भारत के कोरोमण्डल तट पर सर्वाधिक वर्षा कब होती है ?

6. किन भागों में शीत ऋतु स्पष्ट नहीं होती है ?

7. जम्मू-कश्मीर में द्रास का न्यूनतम तापमान कितना हो सकता है ?

8. हिमालय की औसत ऊँचाई कितनी है ?

9. दक्षिण दोलन से जुड़ा हुआ एक लक्षण क्या है ?

10. विश्व में सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है।

उत्तर-

1. वृष्टि छाया क्षेत्र,

2. महाद्वीपीय जलवायु,

3. मानसून मौसम सम्बन्धी हवाएँ,

4. जलवायु,

5. अक्टूबर-नवम्बर,

6. प्रायद्वीपीय भागों में,

7.-45° से.,

8. 6000 मीटर,

9. एलनीनो,

10. मासिनराम।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जलवायु से क्या आशय है ?

उत्तर – एक विशाल क्षेत्र में लम्बे समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है।

प्रश्न 2. मौसम से क्या आशय है ?

उत्तर – मौसम का आशय किसी स्थान विशेष के किसी निर्दिष्ट समय की वायुमण्डलीय दशाओं, तापमान, वायुदाब, हवा, आर्द्रता एवं वर्षा से होता है। वायुमण्डल की उपर्युक्त दशाओं को ही जलवायु और मौसम के तत्व कहते हैं।

प्रश्न 3. व्यापारिक पवनें किन्हें कहते हैं ?

उत्तर – भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर दोनों ही गोलार्डों के उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से निरन्तर बहने वाली पवन को व्यापारिक पवन कहते हैं।

प्रश्न 4. वृष्टि छाया प्रदेश क्या है ?

उत्तर – पर्वतीय वायु विमुख ढाल क्षेत्र जहाँ वर्षा नहीं हो पाती और वह क्षेत्र शुष्क रह जाता है, वृष्टि छाया क्षेत्र की श्रेणी में आता है।

प्रश्न 5. वर्षा ऋतु में मानसून की प्रमुख शाखाएँ कौन-कौन-सी हैं ? उत्तर- भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दो शाखाएँ होती हैं-

(1) अरब सागर की मानसून शाखा, जो प्रायद्वीप के अधिकतर भागों में वर्षा करती है, और

(2) बंगाल की खाड़ी की शाखा जो निम्न वायुदाब की ओर गंगा के मैदान में वर्षा करती हैं।

प्रश्न 6. ‘आम्र वर्षा क्या है ?

उत्तर – ग्रीष्म ऋतु के अन्त में कर्नाटक एवं केरल में प्रायः पूर्व-मानसूनी वर्षा होती है। इसके कारण आम जल्दी पक जाते हैं तथा प्रायः इसे ‘आम्र वर्षा’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 7. उष्ण कटिबन्धीय जलवायु की दो प्रमुख विशेषताएँ कौन-सी हैं ?

उत्तर – (1) लगभग पूरे वर्ष अपेक्षाकृत उच्च तापमान। (2) मुख्य रूप से शुष्क शीत ऋतु।

प्रश्न 8. जेट वायुधाराओं का मौसम पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभाव लिखिए।

उत्तर– भारत की जलवायु जेट वायुधाराओं की गति से भी प्रभावित होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तरी भारत में मानसून के अचानक ‘फटने’ के लिए यही जिम्मेदार है।

प्रश्न 9. तापमान के परिवर्तन से वायुदाब पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर – तापमान में वृद्धि से वायुदाब घटता है और तापमान के घटने पर वायुदाब बढ़ता है।

प्रश्न 10. वर्षाजन्य कोई दो प्रमुख समस्याएँ लिखिए।

अथवा

भारत में वर्षाजन्य समस्याएँ लिखिए।

उत्तर –

(1) मानसून का आगमन और वापसी अनियमित तथा अनिश्चित होती है। देश के करोड़ों किसानों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

(2) बिना वर्षा वाले व वर्षा वाले दिनों की संख्या घटती बढ़ती रहती है।

प्रश्न 11. तिरुवनन्तपुरम् तथा शिलांग में जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा क्यों होती है ? .

उत्तर-तिरुवनन्तपुरम् में अरब सागर की मानसून शाखा तथा शिलांग में बंगाल की खाड़ी के द्वारा वर्षा होती है। ये शाखाएँ इन स्थानों पर जून मास में सक्रिय हो जाती हैं तथा जुलाई आते-आते आगे बढ़ जाती हैं। इसी कारण इन दोनों स्थानों पर जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 12. मानसून फटने अथवा टूटने से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – उत्तरी भारत में मानसून की शाखाओं के मिलन तथा जेट वायुधारा की अनुकूलता के मिलने से घनघोर वर्षा होने की स्थिति को मानसून का फटना या टूटना कहते हैं।

प्रश्न 13. भारत के पूर्वी तट पर उन राज्यों के नाम लिखिए जहाँ उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्रायः आते हैं।

उत्तर-तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 14. भारत की चारों ऋतुओं के नाम उनके महीनों के साथ लिखिए।

उत्तर-

(1) शीत ऋतु-दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी।

(2) ग्रीष्म ऋतु-मार्च, अप्रैल तथा मई।

(3) आगे बढ़ता हुआ मानसून-जून से सितम्बर तक।

(4) पीछे हटता हुआ मानसून-अक्टूबर तथा नवम्बर।

प्रश्न 15. भारत में निम्नलिखित बताइए

(i) सबसे अधिक वर्षा वाले दो महीने।

(ii) सबसे अधिक वर्षा वाले दो स्थान।

(iii) सबसे कम वर्षा वाले दो स्थान।

(iv) पश्चिमी विक्षोभों से शीतकालीन वर्षा पाने वाले स्थान।

उत्तर-

(i) जुलाई, अगस्त,

(ii) चेरापूँजी, मासिनराम,

(iii) लेह, जैसलमेर,

(iv) चण्डीगढ़, श्रीनगर।

प्रश्न 16. नाम बताइए

(i) दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।

(ii) दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।

(iii) अरब सागर और बंगाल की शाखाओं से प्रभावित दो स्थान।

(iv) उत्तर-पूर्वी मानसून से प्रभावित दो स्थान।

उत्तर-

(i) मुम्बई और त्रिवेन्द्रम,

(ii) शिलांग और कोलकाता,

(iii) शिलांग और मुम्बई,

(iv) चेन्नई और कोलकाता।

प्रश्न 17. सम जलवायु किसे कहते हैं ?

उत्तर – जब किसी क्षेत्र या देश के सबसे अधिक गर्म तथा सबसे अधिक ठण्डे महीने के तापमान में कम अन्तर होता है, तो उस क्षेत्र, स्थान या देश की जलवायु को सम जलवायु कहते हैं।

प्रश्न 18. त्रिवेन्द्रम की जलवायु सम क्यों है ?

उत्तर-(1) त्रिवेन्द्रम समुद्र तट पर स्थित है। समुद्र तटवर्ती स्थानों और क्षेत्रों की जलवायु सम होती है। जल अपना समकारी प्रभाव थल पर छोड़ता है। अतः तटवर्ती क्षेत्र गर्मियों में न अधिक गर्म और न ठण्ड में अधिक ठण्डे होते हैं।

(2) तटवर्ती क्षेत्रों का दैनिक और वार्षिक ताप परिसर दोनों ही कम होते हैं। त्रिवेन्द्रम का वार्षिक अधिकतम तापमान 28° से. तथा न्यूनतम तापमान 26° से. रहता है। इस प्रकार वार्षिक ताप परिसर 28°-26° = 2° से. है।

प्रश्न 19. जुलाई माह में त्रिवेन्द्रम की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा होती है, क्यों?

उत्तर – मानसून सबसे पहले जून माह में भारत के धुर दक्षिण में स्थित समुद्र से उठता है। हमारे देश के पश्चिमी तट पर सर्वप्रथम त्रिवेन्द्रम पड़ता है, इसलिए वहाँ पहले मानसून पहुँचता है और वर्षा होती है। मानसून को मुम्बई तक पहुँचने में 15 से 20 दिन लग जाते हैं, इसलिए मुम्बई में जुलाई में अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 20. दिल्ली में वर्षा लगभग तीन महीने ही क्यों होती है ?

उत्तर – दिल्ली समुद्र से बहुत दूरी पर स्थित है। मानसूनी हवाओं को दिल्ली तक पहुँचने में बहुत समय लगता है तथा लौटने वाली मानसूनी हवाएँ शीघ्र लौट जाती हैं। इसलिए दिल्ली में जुलाई, अगस्त व सितम्बर इन तीन महीनों में वर्षा होती है।

प्रश्न 21. दिल्ली में जोधपुर से अधिक वर्षा क्यों होती है ?

उत्तर – दिल्ली में जोधपुर से अधिक वर्षा होने के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं

(1) देश के उत्तरी मैदान में वर्षा पूर्व से पश्चिम की ओर क्रमशः कम होती जाती है।

(2) आगे बढ़ने पर पवनों में आर्द्रता की मात्रा कम होती जाती है।

(3) जोधपुर में उच्च तापमान तथा बलुई मिट्टी की प्रधानता है। इससे वायु प्रायः शुष्क रहती है और वर्षा का अभाव पाया जाता है।

प्रश्न 22. पुणे की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा क्यों होती है ?

उत्तर – मुम्बई और पुणे दोनों जगह वर्षा दक्षिण-पश्चिमी पवनों के कारण होती है जो अरब सागर से उठती है। परन्तु क्योंकि मुम्बई पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख ढाल पर है इसलिए वहाँ अधिक वर्षा होती है। जबकि पुणे पश्चिमी घाट की पवनाविमुख ढाल पर है और वर्षा छाया में आ जाती है इसलिए वहाँ मुम्बई की अपेक्षा कम वर्षा होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए

(i) कोरिओलिस बल,

(ii) एलनीनो।

उत्तर-

(i) कोरिओलिस बल- पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिओलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। यह ‘फेरेल का नियम’ भी कहा जाता है।

(ii) एलनीनो – ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थायी तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एलनीनो का नाम दिया गया है। एलनीनो स्पैनिश शब्द है, जिसका आशय होता है बच्चा तथा जो कि बेबी क्राइस्ट को प्रदर्शित करता है क्योंकि यह धारा क्रिसमस के समय बहना शुरू करती है। एलनीनो की उपस्थिति समुद्र की सतह के तापमान को बढ़ा देती है तथा उस क्षेत्र में व्यापारिक पवनों को शिथिल कर देती हैं।

प्रश्न 2. दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति का क्या कारण है ?

उत्तर – ग्रीष्म ऋतु में तापमान बढ़ जाने के कारण भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस समय हिन्द महासागर पर अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है जिसके कारण हिन्द महासागर में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवाओं की उत्पत्ति होती है जहाँ से ये अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में आ जाती है। इसके पश्चात् ये भारत के वायु संरचना का अंग बन जाती हैं। विषुवतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। विषुवत् वृत्त को पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। इसीलिए इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहा जाता है।

प्रश्न 3. गंगा की घाटी में चलते हुए उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनों की दिशा क्यों बदल जाती है ?

उत्तर – गंगा-घाटी उत्तरी गोलार्द्ध के उष्ण कटिबन्ध में स्थित है जहाँ वायुदाब अधिक होता है, इसलिए ऐसे उच्च दाब वाले भागों से पवनें सदा भूमध्यरेखीय खण्ड के निम्न दाब के भागों की ओर निरन्तर चलने लगती हैं। अब व्यापारिक पवनें क्योंकि कम गति वाले भागों से तेज गति वाले भागों की ओर चलती हैं इसलिए वे पीछे रह जाती हैं और वे पश्चिम की ओर मुड़ जाती हैं। इस प्रकार उनकी दिशा गंगा की घाटी में उत्तर-पूर्व की दिशा से दक्षिण-पश्चिम की दिशा की ओर हो जाती है।

प्रश्न 4. मानसून के रचना-तन्त्र की विवेचना कीजिए।

उत्तर – मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ऋतु या मौसम। इस प्रकार मानसून का अर्थ उन मौसमी हवाओं से है जो मौसमी परिवर्तन के साथ अपनी दिशा पूर्णतया बदल देती हैं। शुष्क और गर्म स्थलीय हवाएँ समुद्री और वाष्पकणों से भरी हुई हवाओं में बदल जाती हैं। ये मानसून हवाएँ हिन्द महासागर में भूमध्यरेखा को पार करते ही दक्षिण-पश्चिम दिशा अपना लेती हैं। जब कभी उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर के विषुवतीय भागों में उच्च दाब होता है तब हिन्द महासागर के दक्षिणी भागों में दबाव कम होता है और यह परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। इस प्रकार भूमध्यरेखा के आस-पास की हवाएँ विभिन्न दिशाओं में आती-जाती रहती हैं। इन हवाओं की अदला-बदली का मानसून हवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

मौसम वैज्ञानिकों द्वारा दी गई परिभाषा के आधार पर यह हवाएँ शुष्क गर्म वायु को पूरी तरह हटाकर विषुवतीय महासागरीय वायु के स्थलीय भागों तथा सागरीय क्षेत्र में तीन से लेकर पाँच किलोमीटर की ऊँचाई तक फैल जाती हैं।

प्रश्न 5. सम और विषम जलवायु में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

प्रश्न 6. वर्षा और वर्षण में अन्तर बताइए।

उत्तर

प्रश्न 7. उत्तर-पूर्वी मानसून तथा पीछे हटते हुए मानसून में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

प्रश्न 8. थार मरुस्थल में कम वर्षा क्यों होती है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(1) थार का मरुस्थल राजस्थान के पश्चिमी भाग में है।

(2) इस वनस्पति रहित बलुई क्षेत्र का ग्रीष्म ऋतु में तापमान इतना अधिक रहता है अतः वह आर्द्रता सोख लेता है और वर्षा करने में बाधक बनता है।

(3) वर्षा कम होने का एक प्रमुख कारण यह है कि इस क्षेत्र तक पहुँचते-पहुँचते वर्षावाहिनी मानसूनी सवनों में आर्द्रता बहुत कम रह जाती है।

(4) यह देश का सबसे कम वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है। किसी-किसी वर्ष तो यहाँ वर्षा के दर्शन नहीं होते। फलतः थार मरुस्थल प्यासा-का-प्यासा रह जाता है और यहाँ बहुत कम वर्षा हो पाती है।

प्रश्न 9. क्या कारण है कि तमिलनाडु में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अपेक्षा उत्तर-पूर्वी मानसून से अधिक वर्षा होती है ?

उत्तर – तमिलनाडु में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अपेक्षा उत्तर-पूर्वी मानसून से अधिक वर्षा होती है, क्योंकि

(1) मानसून की अरब सागर शाखा पश्चिमी घाट के पश्चिमी भागों में अधिक वर्षा करती है।

(2) पश्चिमी घाट को पार करने पर इन पवनों में नमी की कमी आ जाती है।

(3) पवनों के नीचे आने के कारण उनका तापमान बढ़ जाता है और वायु की शुष्कता में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप तमिलनाडु तट दक्षिण-पश्चिम मानसून शाखा से बहुत ही कम वर्षा प्राप्त कर पाता है।

(4) तमिलनाडु तट पर पीछे हटते मानसून काल में अधिक वर्षा होती है।

(5) नवम्बर के महीने में बंगाल की खाड़ी में निम्नदाब बन जाता है।

(6) इस अवधि में यहाँ चक्रवात बनने लगते हैं। इन चक्रवातों से युक्त पवनें जब कोरोमंडल तट (तमिलनाडु तट) की ओर आती हैं तो भारी वर्षा करती हैं। इस प्रकार तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा शीत ऋतु में (उत्तर-पूर्वी मानसून से) होती है।

प्रश्न 10. शिलांग में कोलकाता की अपेक्षा अधिक वर्षा क्यों होती है ?

अथवा

शिलांग पहाड़ पर और कोलकाता समुद्र के किनारे, फिर भी शिलांग में कोलकाता से अधिक वर्षा होती है, क्यों?

उत्तर – शिलांग मेघालय के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। पर्वतों से घिरे होने के कारण संघनन प्रक्रिया तेजी से होती है जिससे पवनें भारी वर्षा करने को विवश होती हैं। जबकि कोलकाता मैदानी भाग में स्थित है। बंगाल की खाड़ी के मानसून अराकान पर्वत से रुकावट पाकर अपनी दिशा बदल लेते हैं। साथ ही हिमालय पर्वतमाला उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है। फलतः मानसून की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाती है। इससे वर्षा क्रमश: पूर्व से पश्चिम की ओर कम हो जाती है।

प्रश्न 11. विषम जलवायु से क्या आशय है ? भारत में विषम जलवायु वाले दो स्थानों के नाम लिखिए।

उत्तर – किसी देश या क्षेत्र के वार्षिक तापमानों और वर्षा की मात्रा में बहुत अन्तर पाया जाता है, वहाँ की जलवायु विषम कहलाती है। तापमान की विषमता चाहे दैनिक हो या वार्षिक वह विषम जलवायु के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। उदाहरण के लिए, थार मरुस्थल में दिन का तापमान गर्मियों में 50° से. को भी पार कर जाता है और रात के समय तापमान काफी गिर जाता है। दिल्ली, जोधपुर आदि का वार्षिक ताप परिसर अधिक है। अतः इनकी जलवायु विषम है।

प्रश्न 12. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए

(i) पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ,

(ii) अंत:उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र।

उत्तर –

(i) पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ – सर्दी की ऋतु में उत्पन्न होने वाला पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आने वाले पश्चिमी प्रवाह के कारण होता है। ये प्रायः भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात मानसूनी महीनों के साथ-साथ अक्टूबर एवं नवम्बर के महीनों में आते हैं तथा ये पूर्वी प्रवाह के एक भाग होते हैं एवं देश के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।

(ii) अंत:उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र – ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है। यहीं पर उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र

विषुवत् वृत्त के लगभग समानांतर होता है लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ-साथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?

उत्तर- भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं

(1) स्थिति – भारत की जलवायु को प्रभावित करने में देश की अक्षांशीय स्थिति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है। कर्क रेखा से इसके मध्य से होकर गुजरती है। भारत की इस विशिष्ट स्थिति के कारण इसके दक्षिणी भाग में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु तथा उत्तरी भाग में महाद्वीपीय जलवायु पायी जाती है।

(2) समुद्र से दूरी – भारत के तटीय भागों में समुद्र का समकारी प्रभाव पड़ने से सम जलवायु है, जबकि उत्तरी मैदान समुद्र से दूर होने के कारण वहाँ गर्मी में अधिक गर्मी और सर्दी में अधिक सर्दी पड़ती है। फलस्वरूप वहाँ महाद्वीपीय जलवायु पायी जाती है।

(3) भू-रचना – भारत की भू-रचना न केवल तापमान अपितु वर्षा को भी प्रभावित करती है। देश के उत्तरी भाग में पूरब से पश्चिम को फैला हुआ विशाल हिमालय पर्वत शीत ऋतु में उत्तर से आने वाली अति उण्डी हवाओं को रोककर भारत को अत्यधिक शीतल होने से बचाता है। यह पर्वत मानसून पवनों को रोककर वर्षा में मदद करता है।

(4) जल और थल का वितरण – भारत को तीन ओर से समुद्र से घेरता है-पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिन्द महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी। उत्तर में विशाल मैदान स्थित है। ग्रीष्म काल में इसका पश्चिमी भाग अत्यधिक गर्म हो जाता है और वहाँ निम्न वायुदाब स्थापित हो जाता है जिससे समुद्र की ओर से हवाएँ चलने लगती हैं। ये हवाएँ दो शाखाओं-अरब सागरीय मानसून शाखा और बंगाल की खाड़ी मानसून शाखा में विभाजित हो जाती हैं, इनसे पूर्वी, उत्तर-पूर्वी और दक्षिण भारत में वर्षा होती है।

(5) उपरितन वायुधाराएँ – वायुधाराएँ हवाओं से भिन्न होती हैं क्योंकि वे भू-पृष्ठ से बहुत ऊँचाई पर चलती हैं। भारत की जलवायु जेट वायुधाराओं की गति से भी प्रभावित होती हैं। ऊपरी वायुमण्डल में बहुत तीव्र गति से चलने वाली हवाओं को जेट वायुधाराएँ कहते हैं। शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभों को भारतीय उपमहाद्वीप उक लाने में जेट प्रवाह मददगार होते हैं। इस प्रकार उपरितन वायुधाराएँ भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है।

(6) मानसूनी पवनें – हमारा देश व्यापारिक पवनों के प्रवाह क्षेत्र में आता है, किन्तु यहाँ की जलवायु पर मानसूनी पवनों का व्यापक प्रभाव देखा जाता है। ये पवनें हमारे देश में ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर व्या शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चला करती हैं। मानसूनी हवाओं के इस परिवर्तन के साथ भारत में मौसम और ऋतुओं में परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर भारत में जलवायु की विषमताओं के कुछ उदाहरण दौजिए

(i) तापान्तर, (ii) वर्षावाहिनी पवनों की दिशा, (iii) वर्षण का रूप, (iv) वर्षा की मात्रा, (v) वर्षा की प्रवृत्ति अर्थात् वर्षा का वस्तुनिष्ठ वितरण।

उत्तर – भारत की जलवायु में बहुत विषमता पायी जाती है, जो निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट है

(i) तापान्तर – भारत के विभिन्न भागों में तापान्तर में काफी विषमता पायी जाती है। एक ही ऋतु में अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग तापमान पाया जाता है। शीत ऋतु में लेह में इतनी कड़ाके की सर्दी पड़ती है कि वहाँ तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है जबकि उसी समय दक्षिणवासी खुले में आनन्दपूर्वक कार्य में लगे होते हैं। अतः तापमान में अन्तर के फलस्वरूप जलवायु में भी विविधता उत्पन्न हो जाती है।

(ii) वर्षावाहिनी पवनों की दिशा – वर्षा करने वाली पवनों की दिशा का भी किसी स्थान की जलवायु पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में ग्रीष्म ऋतु में वर्षावाहिनी पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिम होती है, परन्तु शीत ऋतु में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व हो जाती है। उत्तर-पूर्वी मानसून तमिलनाडु में वर्षा करता है।

(iii) वर्षण का रूप – भारत में वर्षण के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं-वर्षा, ओला, हिमपात, पाला आदि। उत्तर भारत, हिमालय तथा हिमालय के निकटवर्ती क्षेत्रों में वर्षण के प्रायः सभी रूप देखने को मिलते हैं।

(iv) वर्षा की मात्रा – भारत में वर्षा का वितरण बहुत ही असमान है। चेरापूँजी (मासिनराम) में सबसे अधिक वर्षा होती है। यहाँ औसतन वार्षिक वर्षा 1080 सेमी है। मेघालय में 400 सेमी वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी मरुस्थल में 10 सेमी वर्षा होती है।

(v) वर्षा की प्रवृत्ति अर्थात् वर्षा का वस्तुनिष्ठ वितरण – भारत में अधिकतर ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ ग्रीष्म ऋतु में वर्षा होती है परन्तु कुछ ऐसे प्रदेश हैं जो इस ऋतु में बिल्कुल शुष्क रह जाते हैं। शीत ऋतु में केवल तमिलनाडु राज्य में ही पर्याप्त वर्षा होती है।

प्रश्न 3. भारत में ग्रीष्म ऋतु में जलवायु की दशाओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर – ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान अधिक रहने से वायुदाब कम रहता है। मई माह तक थार मरुस्थल से लेकर छोटा नागपुर पठार तक न्यून वायुदाब क्षेत्र बन जाता है। हिन्द महासागर में उच्च वायुदाब रहता है। पवनें उच्चदाब से न्यूनदाब की ओर चलती हैं। ग्रीष्मकाल में स्थानीय पवनें-लू, वैशाखी (धूल भरी आँधियाँ) सक्रिय हो जाती हैं।

कर्क रेखा भारत के लगभग मध्य भाग से गुजरती है। 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् गिरती हैं, अतः उत्तरी भारत का तापमान बढ़ने लगता है। देश के उत्तर-पश्चिम भाग में तापमान 45° से 48° सेल्सियस तक हो जाता है। दक्षिण भारत में समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण तापमान अधिक नहीं हो पाता है। यह 27° से 30° सेल्सियस तक रहता है। ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा होती है, जिसका स्थानीय नाम आम्रवृष्टि है। इस समय दक्कन के पठार पर अपेक्षाकृत उच्चदाब होने के कारण मानसून से पूर्व की वर्षा का क्षेत्र आगे नहीं बढ़ पाता है। इस ऋतु में बंगाल और असम में भी उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं।

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