Chapter 22 – सूक्तयः हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ एवं अभ्यास
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) कः सर्वत्र पूज्यते? (कौन सब जगह पूजा जाता है?)
उत्तर:
विद्वान्। (विद्वान्)
(ख) कस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता वर्तते? (किसका स्वयं स्वामित्व है?)
उत्तर:
विक्रमार्जितसत्त्वस्य। (पराक्रम के द्वारा अर्जित शक्ति)
(ग) कस्मात् परं सुखं नास्ति? (किससे बढ़कर सुख नहीं है?)
उत्तर:
ज्ञानात्। (ज्ञान से।)
(घ) सर्वत्र धनं किम् अस्ति? (सर्वत्र क्या धन है?)
उत्तर:
शीलम्। (चरित्र।)
(ङ) केषां क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति? (किनकी कार्य की सिद्धि साहस से होती है?)
उत्तर:
महताम्। (महान् लोगों की)
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत(एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) पूजास्थानं के न भवतः? (पूजा के योग्य कौन नहीं होते हैं?)
उत्तर:
पूजास्थानं लिङ्ग वयः च न भवतः। (पूजा के योग्य लिंग और आयु नहीं होती है।)
(ख) दुर्लभं वचः का? (दुर्लभ वाणी क्या है?)
उत्तर:
हितं मनोहरि च दुर्लभं वचः। (हितकारी और मनोहारी वाणी दुर्लभ है।)
(ग) केषाम् आज्ञा अविचारणीया? (किनकी आज्ञा अविचारणीय है?)
उत्तर:
गुरुणाम् आज्ञा अविचारणीय है। (गुरुओं की आज्ञा अविचारणीय है।)
(घ) किंन अन्विष्यति किंच मृग्यते? (कौन नहीं खोजता है और कौन खोजा जाता है?)
उत्तर:
रत्नं न अन्विष्यति तत् च मृग्यते। (रत्न नहीं खोजता है और वह ही खोजा जाता है।)
(ङ) महतां क्रियासिद्धिः कुत्रं भवति? कुत्र न भवति? (महान् लोगों की क्रिया की सिद्धि कहाँ होती है? कहाँ नहीं होती है?)
उत्तर:
महतां क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति, उपकरणे न। (महान् लोगों की क्रिया की सिद्धि साहस से होती है, साधनों से नहीं होती है।)
प्रश्न 3.
रिक्तस्थानानि पूरयत (रिक्त स्थान भरो-)
(क) ……….. एकरूपता।
(ख) ………. सर्वत्र पूज्यते।
(ग) नास्ति ……… परं सुखम्।
(घ) गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च ……… न च ………।
(ङ) ……….. सर्वत्र वै धनम्।
उत्तर:
(क) महताम्
(ख) विद्वान्
(ग) ज्ञानात्
(घ) लिङ्गम्, वयः
(ङ) शीलम्।
प्रश्न 4.
विलोमपदानि पाठात् चित्त्वा लिखत- (विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखो-)
(क) एकत्र
(ख) दोषः
(ग) अस्ति
(घ) अनेकरूपता
(ङ) दुःखम्।
उत्तर:
(क) सर्वत्र
(ख) गुणः
(ग) नास्ति
(घ) एकरूपता
(ङ) सुखम्।।
प्रश्न 5.
उचितमेलनं कुरुत(उचित मिलान करो-)
उत्तर:
(क) → (iii)
(ख) → (v)
(ग) → (iv)
(घ) → (ii)
(ङ) → (i)
प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां, समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने “आम्” (हाँ) और अशुद्ध वाक्यों के सामने “न” (नहीं) लिखो-)
(क) हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
(ख) विद्वान सर्वत्र न पूज्यते।
(ग) गुणाः पूजास्थानम्।
(घ) रत्नम् अन्विष्यति न मृग्यते।
(ङ) विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्।
प्रश्न 7.
संस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत(संस्कृत वाक्यों में प्रयोग करो-)
(क) सर्वत्र
(ख) दुर्लभम्
(ग) मृग्यते
(घ) ज्ञानात
(ङ) एव।
उत्तर:
प्रश्न 8.
रेखाङ्कितम् पदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत(रेखांकित शब्द के आधार पर प्रश्न निर्माण करो-)
(क) विद्वान् सर्वत्र पूज्यते। (विद्वान सभी जगह पूजे जाते हैं।)
उत्तर:
कः सर्वत्र पूज्यते? (कौन सभी जगह पूजे जाते हैं?)
(ख) गुणाः पूजास्थानम्? (गुण पूजा के योग्य हैं।)
उत्तर:
के पूजास्थानम्? (कौन पूजा के योग्य हैं?)
(ग) आज्ञा गुरुणां ह्यविचारणीया। (गुरुओं की आज्ञा अविचारणीय है।)
उत्तर:
आज्ञा केषाम् ह्यविचारणीया? (किनकी आज्ञा अविचारणीय है?)
(घ) नास्ति ज्ञानात् परं सुखम्। (ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं है।)
उत्तर:
नास्ति कस्मात् परं सुखम्? (किससे बढ़कर सुख नहीं है?)
(ङ) क्रियासिद्धि सत्त्वे भवति। (कार्य की सिद्धिः साहस से होती है।)
उत्तर:
किम् सत्त्वे भवति?(क्या साहस से होती है?)
(साधकों के अनुभव से निकली वाणी उक्ति या सूक्ति हो जाती है। यहाँ युक्ति की अपेक्षा जीवन के अनुभव का महत्त्व है। सूक्ति के सुनने के बाद ही कहने वाला और सुनने वाला सूक्ति के तत्व को समान रूप से अनुभव करता है। सूक्ति जीवन के सार को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।)
सूक्तयः हिन्दी अनुवाद
(1) विद्वान सर्वत्र पूज्यते।
अनुवाद :
विद्वान् सब जगह पूजा जाता है?
(2) महतामेकरूपता।
अनुवाद :
महान् व्यक्ति एक समान रहते हैं।
(3) शीलम् सर्वत्र वै धनम्।
अनुवाद :
चरित्र (या स्वभाव) सब जगह धन है।
(4) नास्ति ज्ञानाम् परं सुखम्।
अनुवाद :
ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं है।
(5) आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया।
अनुवाद :
गुरु की आज्ञा को सोचना नहीं चाहिए।
(6) हितम् मनोहारि च दुर्लभ वचः।
अनुवाद :
हितकारी और मनोहर वचन दुर्लभ होता है।
(7) क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे।
अनुवाद :
महान लोगों के कार्य साहस से पूर्ण होते हैं, साधनों से नहीं।
(8) गुणा पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्ग न च वयः।।
अनुवाद :
गुण पूजा के योग्य होते हैं, गुणियों में लिंग और अवस्था की अपेक्षा नहीं होती।
(9) न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत्।
अनुवाद :
रत्न किसी को खोजने नहीं जाता अपितु वह। स्वयं खोजा जाता है।
(10) विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता।
अनुवाद :
पराक्रम के द्वारा अर्जित शक्ति से स्वयं ही। स्वामित्व आता है।