Class 7th सहायक वाचन Solution
खण्ड 1 : नैतिक शिक्षा
पाठ 8 : सामाजिक समरसता
रिक्त स्थान की पूर्ति
1. लालबहादुर शास्त्री ‘सादा जीवन………………….विचार’ में विश्वास रखते थे।
2. रैदास का जन्म 14वीं शताब्दी में …………………में हुआ था।
उत्तर – 1. उच्च, 2. काशी।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘समरसता’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— समरसता – “सभी सुखी हों। सभी निरोगी हों।सभी एक-दूसरे को अपनत्व की दृष्टि से देखें। किसी को लेश मात्र दुख न हो।” ऐसी भावना समरसता कहलाती है।
प्रश्न 2. ” भारत में अनेकता में एकता है।” समझाइए ।
उत्तर – भारत में अनेक वर्ण, जाति, धर्म और स्तर के लोग रहते हैं, किन्तु यहाँ विभिन्नता के रहते हुए भी अनेकता में एकता है।
प्रश्न 3. शबरी के जूठे बेर भगवान राम ने खाकर हमें क्या संदेश दिया है ?
उत्तर – शबरी के जूठे बेर भगवान राम ने खाकर हमें सामाजिक समरसता का सन्देश दिया है।
प्रश्न 4. विनोबा जी ने अपने को किस जाति से सम्बन्धित बतलाया ?
उत्तर – विनोबा जी ने अपनी जाति के सम्बन्ध में बताया कि “मैं देश में रहता हूँ इसलिए देशस्थ हूँ, काया में रहता हूँ इसलिए
कायस्थ हूँ और सबसे अधिक तो मैं (स्व) आप में रहता हूँ इसलिए स्वस्थ हूँ जो किसी धर्म, जाति और देश से सम्बन्ध नहीं रखता।”
प्रश्न 5. सफाई कर्मचारी के साथ लालबहादुर शास्त्री का होली खेलना किस बात का संकेत है ?
उत्तर – सफाई कर्मचारी के साथ लालबहादुर शास्त्री का होली खेलना सामाजिक समरसता का संकेत है।
प्रश्न 6. ‘संत रैदास’ की शिष्याओं के नाम बताइए।
उत्तर – संत रैदास की प्रमुख शिष्याएँ थीं—(1) महाराणा साँगा की पत्नी–झाली, (2) महाराणा साँगा की पुत्रवधू -मीराजी ।
प्रश्न 7. “ध्येय सबका एक ही है फिर भी भेदभाव के कारण हम आपस में टकरा रहे हैं। ” उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर–हर धर्म चाहे वह हिन्दू हो, मुस्लिम हो, ईसाई हो या सिक्ख हो सभी का उद्देश्य (ध्येय) एक ही है- मानवता की रक्षा करना, सामाजिक समरसता बनाये रखना। क्योंकि, “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। ” किन अज्ञानतावश और सामाजिक समरसता के अभाव में हम सब आपस में धर्मवाद के आधार पर, जातिवाद के आधार पर, क्षेत्रवाद के आधार पर और भाषा के आधार पर टकरा रहे हैं।
प्रश्न 8. आदमी की सबसे बड़ी पूँजी क्या है ?
उत्तर- मन के विचार आदमी की सबसे बड़ी पूँजी है।
प्रश्न 9. हमें कैसे विचार ग्रहण करना चाहिए ?
उत्तर–मस्तिष्क में विचार डालने से पहले विचारों को छानना जरूरी है। हमें साफ, शुद्ध और शुभ विचारों को ही ग्रहण करना चाहिए।