MP Board Class 7th History Solution Chapter 10 : अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन

म.प्र. बोर्ड कक्षा सातवीं संपूर्ण हल- इतिहास– हमारे अतीत 2 (History: Our Pasts – II)

पाठ 10 : अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन

महत्त्वपूर्ण बिन्दु

  • अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में नए राज्यों का गठन हुआ।
  • ईरान के शासक नादिरशाह ने 1739 में दिल्ली पर आक्रमण किया और सम्पूर्ण नगर को लूटकर ले गया ।
  • अम्बेर के शासक सवाई जयसिंह ने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में पाँच खगोलीय वेधशालाओं का निर्माण किया।
  • जंतर-मंतर के नाम से विख्यात इन वेधशालाओं में खगोलीय पिण्डों के अध्ययन हेतु कई उपकरण हैं।
  • अठारहवीं शताब्दी में कई योग्य नेताओं के नेतृत्व में सिक्खों ने अपने-आपको जत्थों और मिस्लों में संगठित किया ।
  • जाटों ने सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दियों में चूड़ामन के नेतृत्व में दिल्ली के पश्चिम में स्थित क्षेत्रों पर नियन्त्रण कर लिया।
  • सूरजमल राजा के राज में भरतपुर शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा।

(ख) महत्त्वपूर्ण शब्दावली

सूबेदारी – पद या ओहदा ।

दल खालसा – जत्थों और मिस्लों की संयुक्त सेनाएँ ।

मिस्ल-सिक्ख योद्धाओं के समूह |

इजारादारी – वह जिसने किसी काम का ठेका या एकाधिकार ले रखा हो ।

चौथ – जमींदारों द्वारा वसूले जाने वाला कर जो किसानों से वसूला जाता था।

महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

1627-1680शिवाजी का जीवन काल ।

1708– गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु ।

1761 – पानीपत की तीसरी लड़ाई ।

पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न – अध्याय 4 में तालिका 1 देखें । औरंगजेब के शासनकाल में किन-किन लोगों ने मुगल सत्ता को सबसे लम्बे समय तक चुनौती दी ?

उत्तर– औरंगजेब को उत्तर भारत में सिक्खों, जाटों और सतनामियों, उत्तर-पूर्व में अहोमों और दक्कन में मराठों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा। मराठों ने औरंगजेब को काफी लम्बे समय तक चुनौती दी थी।

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प्रश्न– अपने राज्य को सुदृढ़ करने की कोशिशों में मुगल सूबेदार दीवान के कार्यालय पर भी क्यों नियन्त्रण जमाना चाहते थे ?

उत्तर- दीवान का कार्यालय वित्तीय कार्यालय था । कार्यालय आय का मुख्य स्रोत होने के कारण सूबेदार अन्य अधिकारियों पर आसानी से नियन्त्रण कर सकता था, इसलिए मुगल सूबेदार दीवान के कार्यालय पर भी अपना नियन्त्रण जमाना चाहते थे ।

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प्रश्न-खालसा से क्या अभिप्राय है ? क्या आपको याद है कि इसके बारे में आपने अध्याय 8 में पढ़ा है ?

उत्तर – खालसा का अर्थ है ‘पवित्रता’ । खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोविन्द सिंह थे, खालसा पंथ का जन्म 1699 ई. में वैशाखी के दिन हुआ था । अध्याय 8 में हमने खालसा पंथ के बाबा गुरु नानक जी के विषय में पढ़ा था।

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कल्पना कीजिए

प्रश्न 1. आप अठारहवीं शताब्दी के एक राज्य के शासक हैं। अब यह बताएँ कि आप अपने प्रान्त में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए क्या-क्या कदम उठाना चाहेंगे और ऐसा करते समय आपके सामने क्या-क्या विरोध अथवा समस्याएँ खड़ी की जा सकती हैं ?

उत्तर-

(1) अठारहवीं शताब्दी के राज्य का शासक होने के कारण सर्वप्रथम मैं अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाऊँगा ।

(2) अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए अपने वित्तीय तन्त्र को मजबूत करूँगा ।

(3) मैं अपने प्रशासन पर कड़ी नजर रखूँगा तथा प्रशासन द्वारा फैलाये जा रहे भ्रष्टाचार पर भी मेरी पैनी नजर होगी।

(4) सबसे बड़ी सम्भावित समस्या होगी दूसरे राज्यों द्वारा हमला। प्रत्येक स्थिति में हमले का सामना करने के लिए तैयार रहूँगा ।

(5) राज्य की सीमा पर सैन्य बल की निगरानी चौबीसों घंटे करूँगा ।

फिर से याद करें

प्रश्न 1. निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-

उत्तर- (क) → (iii), (ख) →(v), (ग) → (i), (घ) → (vi), (च) → (vii), (छ) → (iv), (ज) → (ii)

प्रश्न 2. रिक्त स्थान की पूर्ति करें-

(क) औरंगजेब ने …………………….. में एक लम्बी लड़ाई लड़ी।

(ख) उमरा और जागीरदार मुगल …………………….. शक्तिशाली अंग थे ।

(ग) आसफ जाह ने हैदराबाद राज्य की स्थापना ……………………..में की।

(घ) अवध राज्य का संस्थापक …………………….. था ।

उत्तर- (क) दक्कन, (ख) साम्राज्य, (ग) 18वीं शताब्दी, (घ) सआदत खाँ ।

प्रश्न 3. सही या गलत बताएँ

(क) नादिरशाह ने बंगाल पर आक्रमण किया।

(ख) सवाई राजा जयसिंह इन्दौर का शासक था।

(ग) गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के दसवें गुरु थे ।

(घ) पुणे अठारहवीं शताब्दी में मराठों की राजधानी बना ।

उत्तर– (क) गलत, (ख) गलत, (ग) सही, (घ) सही।

प्रश्न 4. सआदत खान के पास कौन-कौन से पद थे ?

उत्तर– सआदत खान के पास सूबेदारी, दीवानी और राज्य के राजनीतिक, वित्तीय और सैन्य पद थे।

आइए विचार करें

प्रश्न 5. अवध और बंगाल के नवाबों ने जागीरदारी प्रथा को हटाने की कोशिश क्यों की ?

उत्तर- (1) अवध और बंगाल के नवाब मुगल शासन के प्रभाव को कम करना चाहते थे ।

(2) दोनों ही जागीरदारी व्यवस्था को सन्देह की दृष्टि से देखते थे।

(3) अपने विश्वस्त लोगों की नियुक्ति के लिए जागीरदारी व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे ।

प्रश्न 6. अठारहवीं शताब्दी में सिक्खों को किस प्रकार संगठित किया गया ?

उत्तर– (1) अठारहवीं शताब्दी में कई योग्य नेताओं के नेतृत्व में सिक्खों ने अपने आपको पहले ‘जत्थों’ में और बाद में ‘मिस्लों’ में संगठित किया।

(2) इन जत्थों और मिस्लों की संयुक्त सेनाएँ ‘दल खालसा’ कहलाती थीं ।

(3) जत्थों और मिस्लों के दल बैसाखी, दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में मिलते थे।

(4) बैठकों में वे सामूहिक निर्णय लेते थे तथा उन निर्णयों को गुरुमत्ता ( गुरु के प्रस्ताव ) की तरह पालन करते थे।

(5) सिक्खों ने राखी व्यवस्था स्थापित की जिसमें किसानों से 20 प्रतिशत कर लेकर उन्हें संरक्षण प्रदान करते थे । इस तरह सिक्खों ने अपने आपको संगठित किया ।

प्रश्न 7. मराठा शासक दक्कन के पार विस्तार क्यों करना चाहते थे ?

उत्तर – मराठा शासक अपने क्षेत्र का विस्तार करना चाहते थे क्योंकि-

(1) मराठा शासकों को दक्कन के पार से संसाधनों की आशा थी क्योंकि उनके द्वारा किये गये युद्धों में उन्हें असीम धन-धान्य प्राप्त हुआ था ।

(2) मराठा शासक अधिक से अधिक चौथ तथा सरदेशमुखी वसूल करना चाहते थे ।

प्रश्न 8. आसफजाह ने अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए क्या-क्या नीतियाँ अपनाईं ?

उत्तर- आसफजाह ने अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए निम्नलिखित नीतियाँ अपनाईं-

(1) आसफजाह अपने शासन को मजबूत बनाने के लिए कुशल सैनिकों और प्रशासकों को उत्तर भारत से लेकर गया और उन्हें मनसबदारी और जागीरें प्रदान कीं।

(2) उसने प्रत्येक मामले में अपनी नीति को अपनाया । दिल्ली के किसी निर्देश को वह नहीं मानता था ।

(3) मराठों के विरुद्ध और तेलुगु सेनानायकों के साथ युद्ध करने के लिए कूटनीति का सहारा लिया।

प्रश्न 9. क्या आपके विचार से आज महाजन और बैंकर उसी तरह का प्रभाव रखते हैं, जैसा कि वे अठारहवीं शताब्दी में रखा करते थे ?

उत्तर– आज महाजन और बैंकर उस तरह का प्रभाव नहीं रखते हैं, जैसा कि वे अठारहवीं शताब्दी में रखा करते थे । अठारहवीं शताब्दी में महाजन तथा बैंकर अधिक महत्व रखते थे। बड़े-बड़े जमींदार लगान चुकाने के लिए उनसे ऋण लिया करते थे। शासक वर्ग पर भी उनका प्रभाव था क्योंकि राज्य भी उनसे ऋण लेता था ।

परन्तु आज स्थिति बदल चुकी है। आज बैंकों से आसान किस्तों तथा कम ब्याज पर ऋण लिया जा सकता है। प्रशासन में भी उन्हें विशेष महत्व नहीं दिया जाता। अतः आज उनका वैसा प्रभाव नहीं रहा, जैसा कि अठारहवीं शताब्दी में हुआ करता था ।

प्रश्न 10. क्या अध्याय में उल्लिखित कोई भी राज्य आपके अपने प्रान्त में विकसित हुए थे ? यदि हाँ, तो आपके विचार से अठारहवीं शताब्दी का जनजीवन आगे इक्कीसवीं शताब्दी के जनजीवन से किस रूप में भिन्न था ?

उत्तर – जी हाँ, अध्याय में उल्लिखित राज्य प्रान्तों में विकसित हुए थे, अठारहवीं शताब्दी का जनजीवन इक्कीसवीं शताब्दी के जनजीवन से निम्न रूप में भिन्न था-

(1) 21वीं शताब्दी का जनजीवन बहुत ही तेज है जबकि 18वीं शताब्दी का जनजीवन धीमा था ।

(2) 21वीं शताब्दी में कृषि वैज्ञानिक ढंग से की जाती है। इसके विपरीत 18वीं शताब्दी में कृषि बहुत ही पिछड़ी हुई थी।

(3) 21वीं शताब्दी में शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है। 18वीं शताब्दी में शिक्षा का क्षेत्र बहुत सीमित था ।

आइए करके देखें

प्रश्न 11. अवध, बंगाल या हैदराबाद में से किसी एक की वास्तुकला और नए क्षेत्रीय दरबारों के साथ जुड़ी संस्कृति के बारे में कुछ और पता लगाएँ ।

उत्तर – अवध की वास्तुकला और संस्कृति- अवध एक समृद्धशाली प्रदेश था। अवध शासकों का भव्य शहर, कला, संस्कृति और परम्पराओं में सबसे धनाढ्य था । अवध शासन के तहत कत्थक, ठुमरी, गजल इत्यादि कलाओं का विकास हुआ। अवध में निम्नलिखित पर्यटक स्थल आते हैं-

(1) बड़ा इमामबाड़ा – नवाब आसफउद्दौला ने इसका निर्माण करवाया था । इमामबाड़ा अकालग्रस्त जनता को भोजन उपलब्ध कराता था।

(2) घंटाघर – 1887 में निर्मित 22 फुट ऊँचा घंटाघर भारत का सबसे ऊँचा घंटाघर कहलाता है। भारत में अंग्रेजी वास्तुकला का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है।

(3) सआदत अली का मकबरा – सआदत अली का मकबरा लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क के समीप सआदत अली खाँ और खुर्शीद जादी का मकबरा है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण है। मकबरे की शानदार छत और गुम्बद इसकी खासियत है।

लक्ष्मण टीला, रूमी दरवाजा, छतर मंजिल, जामा मस्जिद, मोती महल इत्यादि कई विरासत अवध के क्षेत्र में विद्यमान हैं।

प्रश्न 12. राजपूतों, जाटों, सिक्खों अथवा मराठों में से किसी एक समूह के शासकों के बारे में कुछ और कहानियों का पता लगाएँ ।

उत्तर-

(1) राजपूत शासक महाराणा प्रताप – मेवाड़ की भूमि पर महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। माता से मेवाड़ी परम्परा और शौर्य की गाथा सुनकर प्रताप का मन बचपन से ही मातृभूमि की भक्ति में लग गया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रकुल और धर्म की रक्षा के लिए अर्पित कर दिया। अकबर से पराजित होने और जंगलों में भटकने के बाद भी उनका साहस नहीं टूटा और महाराणा ने चित्तौड़गढ़ वापस प्राप्त किया और राजपूतों की शान फिर से बढ़ाई ।

(2) मराठा शासक शिवाजी महाराज – शिवाजी शाहजी भोंसले मराठा शासन के बहुत ही लोकप्रिय और सफल शासक हुए। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में गुरिल्ला युद्ध कला में महारथ हासिल कर ली थी। छोटी उम्र से ही उनमें देशभक्ति की असीम भावना थी । एक कुशल नेता, सफल और चतुर राजनीतिज्ञ थे।

(3) सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह- सिक्ख शासन की शुरुआत करने वाले महाराजा रणजीत सिंह ने उन्नीसवीं सदी में अपना शासन शुरू किया। उन्होंने दल खालसा नामक एक संगठन का नेतृत्व किया था। उन्होंने छोटे गुटों में बँटे हुए सिक्खों को एकत्रित किया। उनके बाद उनके पुत्र खड़गसिंह ने सिक्ख शासन की कमान सँभाली।

(4) जाट शासक सूरजमल – 17वीं शताब्दी के अन्त और 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में जाटों ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाए । हिन्दू जाट राज्य महाराजा सूरजमल के अधीन अपने चरम पर पहुँच गया। उनका शासन जिन क्षेत्रों में था वे वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, इटावा, हाथरस, राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, एवं हरियाणा के रोहतक जिलों के अन्तर्गत हैं। राजा सूरजमल ने ही भरतपुर में अभेद्य लोहागढ़ किला बनवाया जिसे 13 बार आक्रमण करके भी अंग्रेज हिला तक नहीं सके। यह देश का एकमात्र किला है जो हमेशा अभेद्य रहा। इस राजा के कारण ही उस दौरान जाट शक्ति चरम पर रही।

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