MP Board Class 7 Sahayak Vachan Chapter 2 : मध्यप्रदेश की लोक कलाएं

खण्ड 3 : हमारा मध्यप्रदेश

पाठ 2 : मध्यप्रदेश की लोककलाएं

रिक्त स्थान की पूर्ति

1. कपड़ों पर लकड़ी के छापों से छापे जाने वाले शिल्प को ……….. कहते हैं।

2. पितृपक्ष में ……….. संजा पर्व मनाती हैं।

3. गणगौर नृत्य ………. का पारम्परिक नृत्य है।

4. दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा के समय ………..का रेखांकन महिलाओं द्वारा किया जाता है।

5. मालवा में नाथ सम्प्रदाय के लोग चिंकारा पर ……….. कथा गायन करते हैं।

उत्तर-1. छीपा शिल्प, 2. किशोरियाँ, 3. निमाड़ अंचल, 4. सुरैती, 5. भरथरी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. प्रदेश के प्रमुख लोक गीतों के नाम लिखिए।

उत्तर – प्रदेश के प्रमुख लोक गीतों के नाम—मध्य प्रदेश के विभिन्न अंचलों में विभिन्न लोकगीत या लोकगायन प्रसिद्ध हैं

(क) निमाड़ अचंल के लोक गीत एवं लोक गायन

(1) कलमी तुर्रा, (2) संत सिंगजी भंजन, (3) निरगुणिया गायन शैली, (4) फाग गायन, (5) मसाण्या अथवा काया खोज गीत, (6) गरबा, गरबी एवं गबलन गायन शैली, (7) नाथ पंथी गायक।

(ख) मालवा अंचल के लोकगीत एवं लोक गायन-

(1) भरथरी गायन, (2) निरगुणी भजन गायन, (3) संजा गीत, (4) हीड़ गायन, (5) बरसाती बारता, (6) पर्व-त्यौहार सम्बन्धी गायन।

(ग) बुन्देलखण्ड के लोक गीत एवं लोक गायन-

(1) आल्हा गायन, (2) फाग गायन, (3) भोला गीत अथवा बम्बुलिया, (4) बेरायटा गायन, (5) देवारी गायन, (6) जगदेव का पुवारा, (7) जवारा गीत।

(घ) बघेलखण्ड के लोकगीत एवं लोक गायन-

(1) बसदेवा गायन, (2) बिरहा गायन, (3) बिदेसिया गायन, (4) फाग गायन।

प्रश्न 2. फाग कब गाया जाता है ? लिखिए।

उत्तर—होली के अवसर पर फाल्गुन के महीने में फाग गीत गाया जाता है।

प्रश्न 3. प्रदेश के किन्हीं दो लोक नृत्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर—

(1) गणगौर लोक नृत्य – निमाड़ अंचल का पारम्परिक गणगौर नृत्य, चैत्र माह में गणगौर पर्व पर किया जाता है। यह दो प्रकार का होता है-एक ‘झालरिया’ नृत्य और दूसरा ‘झेला नृत्य’। इस नृत्य के मुख्य वाद्य ढोल और थाली हैं।

(2) सैरा नृत्य – यह पुरुष प्रधान सामूहिक नृत्य श्रावण भादों के माह में किया जाता है। नर्तक हाथों में डंडा लेकर साधारण वेशभूषा में वृत्ताकार खड़े होकर कृष्णलीलाओं से सम्बन्धित गीत गाते हुए नृत्य करते हैं। इस नृत्य के प्रमुख वाद्य ढोलक, मंजीरा, मृदंग, बाँसुरी एवं टिमरी होते हैं।

प्रश्न 4. बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड के राई नृत्य में क्या अन्तर है?

उत्तर—बुन्देलखण्ड एवं बघेलखण्ड के राई नृत्य में अन्तर—बुन्देलखण्ड में बेड़नी और मृदंग वाद्य नृत्य की जान होते हैं जबकि बघेलखण्ड के राई नृत्य में मुख्य वाद्य ढोलक और नगड़ियाँ होते हैं।

बुन्देलखण्ड के राई नृत्य में नर्तकी होती है जबकि बघेलखण्ड के राई नृत्य में नर्तक ही नर्तकी के वेश में नृत्य करते हैं।

प्रश्न 5. गम्मत क्या है ? गम्मत कब की जाती है ? लिखिए।

उत्तर — गम्मत गम्मत निमाड़ का पारम्परिक लोकनाट्य है। यह मुख्यतः नवरात्रि, होली एवं गणगौर पर्व; इन तीन अवसरों पर की जाती है।

प्रश्न 6. बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध लोकनृत्य कौन-सा है?

उत्तर — बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध लोक नृत्य राई है।

प्रश्न 7.मालवा की लोक चित्रकला का वर्णन कीजिए।

उत्तर मालवा की लोकचित्रकला—मालवा में दो प्रकार की लोक चित्रकला प्रचलित है।

(1) परम्परागत – महिलाएं अपने घरों की दीवारों पर पर्व त्यौहारों पर व्रत अनुष्ठान के साथ चित्र बनाती हैं। इसके लिए गेरू, खड़िया, चावल का आटा एवं हल्दी आदि का रंगों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

(2) व्यावसायिक – इसका आधार सामाजिक सौन्दर्य बोध है, जो घर की बाहरी भित्तियों अथवा मन्दिरों के अहातों में बनाई जाती है। पर्व एवं त्यौहारों पर भित्तिचित्र एवं भूमि अलंकरण किया जाता है।

भित्तिचित्रों में हरियाली अमावस्या पर दिवासर, नाग पंचमी पर नागचित्र, श्रावणी पर सरवण चित्र, जन्माष्टमी पर कृष्ण जन्म कथाओं के चित्र, नवरात्रि में नरवत एवं श्राद्ध पक्ष में संजा प्रमुख है

संजा मालवा की किशोरियों का पर्व है, इसमें वे सोलह दिन (श्राद्ध पक्ष में) संजा की अलग-अलग आकृतियाँ बनाती है। इसको बनाने में गोबर, फूल-पत्ती एवं चमकीली पत्तियों को प्रयोग में लाया जाता है। अन्तिम दिन किल्ला कोट बनाया जाता है। प्रतिदिन किशोरियाँ संजा की आरती उतारती हैं।

भूमि अलंकरणों में मालवा में माँहणा माँडने की प्रथा बहुत मुखनी है। इसे दिवाली के अवसर पर विशेष रूप से माँडा जाता है।

प्रश्न 8. बघेल लोक चित्र कला का वर्णन कीजिए।

उत्तर बघेल लोक चित्रकला — इसमें भूमि अलंकरण किसी अनुष्ठान, त्यौहार और व्रत कथा से जुड़े होते हैं तथा भित्ति डेल्वण एवं भित्ति अलंकरण सौन्दर्य बोध से जुड़े होते हैं।

दीवारों पर गीली मिट्टी एवं गोबर से विभिन्न आकृतियाँ करी जाती हैं। सूखने के बाद इन्हें नील, खड़िया, गेरू आदि में रंग दिया जाता है। कहीं-कहीं गेरू, चावल का आटा, हल्दी व सिंदूर का प्रयोग भी होता है।

इनमें प्रसंग के अनुसार चाँद-सूरज, चिड़िया, मोर, सर्प, हाथी, शेर, फूल-पौधे, तुलसी क्यारी एवं विभिन्न देवी देवताओं की आदमकद आकृतियाँ बनाई जाती हैं।

बघेलखण्ड के परम्परागत विभिन्न प्रमुख चित्र निम्न हैं

(1) कोहबर — इस वैवाहिक चित्र को स्त्रियाँ गीत गाते हुए बनाती हैं। दूल्हा-दुल्हन इन चित्रों की पूजा करते हैं।

(2) तिलंगा – कोयले के चूर्ण में तिल्ली का तेल मिलाकर उससे तिलंगा बनाया जाता है।

(3) छठी चित्रण – इसे बच्चे के जन्म के छठवें दिन छठी माता के रेखांकन द्वारा बनाया जाता है।

(4) नेउरानमे – इस चित्र को भादों मास में नवमी के दिन सुहागन महिलाओं द्वारा बनाया जाता है। वे व्रत रखती हैं तथा इसकी पूजा करती हैं।

(5) मोरइला या मोर – मुरैला—इसमें मोरों के जोड़े की आकृतियाँ बनाई जाती हैं।

(6) नागभित्ति चित्र – नागपंचमी के दिन दूध पीते हुए नाग-नागिन के जोड़े का रेखांकन किया जाता है तथा इसकी पूजा की जाती है।

(7) कोंडर और चौक प्रमुख भूमि चित्र हैं।

प्रश्न 9. प्रदेश की रूपंकर कलाओं में से किन्हीं दो को लिखिए।

उत्तर – प्रदेश की रूपंकर कलाएँ — प्रदेश में नाना प्रकार की रूपंकर कलाएँ प्रचलित हैं, जिनमें प्रमुख निम्न हैं —  

(1) कठपुतली – मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार की कठपुतलियाँ बनाई जाती हैं। यह शिल्प मुख्य रूप से राजस्थान से यहाँ आयी है। इनमें अकबर, बीरबल, अनारकली, पुंगीवाला, जोगी, साँप एवं घुड़सवार प्रमुख हैं।

(2) लाख शिल्प — लाख के वृक्ष से लाख प्राप्त करके उसे पिघलाकर व नाना प्रकार के रंग मिलाकर उससे चूड़े, श्रृंगार पेटियाँ, डिब्बियाँ तथा विभिन्न प्रकार के खिलौने पशु-पक्षी आदि बनाये जाते हैं।

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