MP Board Class 10th Geography Solution Chapter 1 : संसाधन एवं विकास

MP Board Class 10 th Geography Solution भूगोल-समकालीन भारत-II

Chapter 1 : संसाधन एवं विकास

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं एक ‘संसाधन’ है।  
  • जैव संसाधन की प्राप्ति जीवमण्डल से होती है और इनमें जीवन व्याप्त है, जैसे-मनुष्य, प्राणिजात, वनस्पतिजात आदि।  
  • वे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। जैसे-चट्टानें और धातुएँ।
  • वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण योग्य संसाधन कहा जाता है। जैसे-सौर तथा पवन ऊर्जा, वन्य जीवन।
  • किसी. प्रदेश में वे विद्यमान संसाधन जिनका अब तक उपयोग नहीं किया गया है, संभावी संसाधन कहलाते हैं।
  • वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं।  
  • जून 1992 में 100 से भी अधिक राष्ट्राध्यक्ष ब्राजील के शहर रियो-डी-जेनेरो में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में एकत्रित हुए।
  • झारखण्ड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि प्रान्तों में खनिजों और कोयले के प्रचुर भण्डार हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत 1968 में क्लब ऑफ रोम ने की।
  • भूमि एक बहुत महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। प्राकृतिक वनस्पति, वन्य जीवन, मानव जीवन, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन तथा संचार व्यवस्थाएँ भूमि पर ही आधारित हैं।
  • भारत में भूमि पर विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ; जैसे-पर्वत, पठार, मैदान और द्वीप पाए जाते हैं। पर्वत 30 प्रतिशत, पठार 27 प्रतिशत तथा 43 प्रतिशत भू-क्षेत्र मैदान हैं।
  • भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 वर्ग किमी है।
  • हमारे देश में राष्ट्रीय वन नीति (1952) द्वारा निर्धारित वनों के अन्तर्गत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र हैं।
  • वांछित हम भोजन, मकान और कपड़े की अपनी मूल आवश्यकताओं का 95 प्रतिशत भाग भूमि से प्राप्त करते हैं।
  • मृदा बनने की प्रक्रिया में उच्चावच, जनक शैल, जलवायु, वनस्पति और अन्य जैव पदार्थ और समय मुख्य कारक हैं।
  • जलोढ़ मृदा, गन्ना, चावल, गेहूँ और अन्य अनाजों और दलहन फसलों की खेती के लिए उपयुक्त बनाती है।
  • काली मृदा कपास की खेती के लिए उचित समझी जाती है।
  • मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है।  
  • पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।

(B) पाठान्त अभ्यास प्रश्न

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न

(i) लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है ?

(क) नवीकरण योग्य

(ख) प्रवाह

(ग) जैव

(घ) अनवीकरण योग्य।

(ii) ज्वारीय ऊर्जा निम्नलिखित में से किस प्रकार का संसाधन नहीं है ?

(क) पुनः पूर्ति योग्य

(ख) अजैव

(ग) मानवकृत

(घ) अचक्रीय।

(iii) पंजाब में भूमि निम्नीकरण का निम्नलिखित में से मुख्य कारण क्या है ?

(क) गहन खेती

(ख) अधिक सिंचाई

(ग) वनोन्मूलन

(घ) अति पशुचारण।

(iv) निम्नलिखित में से किस प्रान्त में सीढ़ीदार (सोपानी) खेती की जाती है ?

(क) पंजाब

(ख) उत्तर प्रदेश के मैदान

(ग) हरियाणा

(घ) उत्तराखण्ड।

(v) इनमें से किस राज्य में काली मृदा मुख्य रूप से पाई जाती है ?

(क) जम्मू और कश्मीर

(ख) राजस्थान

(ग) महाराष्ट्र

(घ) झारखण्ड।

उत्तर-(i) (घ), (ii) (क), (ii) (ख), (iv) (घ), (v) (ग)।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

(i) तीन राज्यों के नाम बताएँ जहाँ काली मृदा पाई जाती है। इस पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है ?

उत्तर – काली मृदा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है। काली मृदा कपास की खेती के लिए उचित समझी जाती है और काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है।

(ii) पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है ? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?

उत्तर – पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पाई जाती है।

विशेषताएँ-

(1) इस मिट्टी में विभिन्न मात्रा में रेत, गाद तथा मृत्तिका (चौक मिट्टी) मिली होती है।

(2) यह मृदा सबसे अधिक उपजाऊ होती है।

(3) इस मृदा में साधारणतया पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है।

(iii) पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?

उत्तर – पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए निम्न कदम उठाने चाहिए-

(1) समोच्च जुताई, (2) सीढ़ीदार खेती, (3) पट्टीदार खेती।

(iv) जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं ? कुछ उदाहरण दें।

उत्तरजैव संसाधन – इन संसाधनों की प्राप्ति जीवमण्डल से होती है और इनमें जीवन व्याप्त है, जैसे-मानव, वनस्पतिजात, प्राणिजात, मत्स्य जीवन, पशुधन आदि।

अजैव संसाधन – वे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं।

उदाहरणार्थ, चट्टानें और धातुएँ।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए

(i) भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन करें। वर्ष 1960-61 से वन के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसका क्या कारण है ?

उत्तरभारत में भूमि उपयोग प्रारूप

(1) भू-उपयोग को निर्धारित करने वाले तत्वों में भौतिक कारक, जैसे-भू-आकृति, जलवायु और मृदा के प्रकार तथा मानवीय कारक, जैसे जनसंख्या घनत्व, प्रौद्योगिक क्षमता, संस्कृति और परम्पराएँ इत्यादि शामिल हैं।

(2) भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है। इसके 93 प्रतिशत भू-उपयोग के आँकड़े उपलब्ध हैं क्योंकि पूर्वोत्तर प्रान्तों में असम को छोड़कर अन्य प्रान्तों के सूचित क्षेत्र के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान और चीन अधिकृत क्षेत्रों के भूमि उपयोग का सर्वेक्षण नहीं हुआ है।

 (3.) स्थायी चरागाहों के अन्तर्गत भी भूमि कम हुई है। वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त अन्य परती भूमि अनुपजाऊ है और इन पर फसलें उगाने के लिए कृषि लागत बहुत ज्यादा है। इस प्रकार इस भूमि में दो या तीन वर्षों में इनको एक या दो बार बोया जाता है और यदि इसे शुद्ध (निवल) बोये गए क्षेत्र में शामिल कर लिया जाता है तब भी भारत के कुल सूचित क्षेत्र के लगभग 54 प्रतिशत भाग पर खेती हो सकती है।

(4) शुद्ध बोये गए क्षेत्र का प्रतिशत भी विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है। पंजाब और हरियाणा में 80 प्रतिशत भूमि पर खेती होती है, परन्तु अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 10 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र बोया जाता है।

(5) भारत में राष्ट्रीय वन नीति (1952) के अनुसार वनों के अन्तर्गत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वांछित है। जिसकी तुलना में वन के अन्तर्गत क्षेत्र काफी कम है। वन नीति द्वारा निर्धारित यह सीमा पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। वन क्षेत्रों के आस-पास रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका इस पर निर्भर करती है।

(6) भू-उपयोग का एक भाग बंजर भूमि और दूसरा गैर-कृषि प्रयोजनों में लगाई गई भूमि कहलाता है। बंजर भूमि में पहाड़ी चट्टानें सूखी और मरुस्थलीय भूमि शामिल है।

(7) गैर-कृषि प्रयोजनों में लगाई भूमि में बस्तियाँ, सड़कें, रेल लाइन, उद्योग इत्यादि आते हैं। लम्बे समय तक निरन्तर भूमि संरक्षण और प्रबन्धन की अवहेलना करने एवं निरन्तर भू-उपयोग के कारण भू-संसाधनों का निम्नीकरण हो रहा है। इसके कारण समाज और पर्यावरण पर अगम्भीर आपदा आ सकती है।

(ii) प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है ?

उत्तर – संसाधन जिस प्रकार, मानव के जीवन यापन के लिए अत्यन्त आवश्यक है, उसी प्रकार जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। संसाधन प्रकृति की देन है। फलस्वरूप मनुष्य ने इनका अंधाधुन्ध उपयोग किया है, जिससे निम्नलिखित प्रमुख समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं

(1) कुछ व्यक्तियों के लालचवश संसाधनों का ह्रास।

(2) संसाधन समाज के कुछ ही लोगों के हाथ में आ गए हैं, जिससे समाज दो हिस्सों संसाधन सम्पन्न एवं संसाधनहीन अर्थात् अमीर और निर्धन में बँट गया है।

(3) संसाधनों के अंधाधुन्ध शोषण से वैश्विक पारिस्थितिकी संकट उत्पन्न हो गया है, जैसे भूमण्डलीय तापमान, ओजोन परत अवक्षय, पर्यावरण प्रदूषण और भूमि निम्नीकरण आदि हैं।

(4) प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण लोगों की आय बढ़ी है। इससे हर वस्तु की माँग भी बढ़ी है। उत्पादों की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए और भी अधिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए संसाधनों की निरन्तर माँग भी बढ़ी है।

अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

वस्तुनिष्ठ प्रश्न •

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से एक नवीकरणीय संसाधन है

(i) खनिज तेल

(ii) कोयला

(iii) मृदा

(iv) ताप विद्युत्।

2. मृदा निर्माण में सबसे अधिक योगदान होता है

(i) शैल का

(ii) पर्वत का

(iii) जल का

(iv) वायु का।

3. निम्न में से कौन-सा मानवकृत संसाधन नहीं है ?

(i) मशीन

(ii) वन

(iii) भवन

(iv) तकनीक।

4. आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा (ओडिशा) के डेल्टा क्षेत्रों तथा गंगा के मैदानों में सामान्यतः कौन-सी मृदा पाई जाती है?

(i) लाल मिट्टी

(ii) जलोढ़ मिट्टी

(iii) काली मिट्टी

(iv) लैटेराइट मिट्टी।

5. कौन-सा कारक मृदा के निर्माण में सहयोगी नहीं है ?

(i) वायु और जल

(ii) सड़े-गले पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु

(iii) शैल और तापमान

(iv) पानी का इकट्ठा होना।

6. मृदा संरक्षण के लिए समोच्च रेखा बन्ध बनाने की विधि प्रायः किस क्षेत्र में उपयोग में लायी जाती है ?

(i) डेल्टा प्रदेश

(ii) पठारी प्रदेश

(iii) पहाड़ी क्षेत्र

(iv) मैदानी क्षेत्र।

7. पश्चिमी घाट प्रदेश में किस प्रकार की मृदा पाई जाती है ?

(i) जलोढ़ मृदा

(ii) काली मृदा

(iii) लैटेराइट मृदा

(iv) लाल मृदा।

उत्तर-1. (iii), 2.(i), 3. (ii), 4. (ii), 5. (iv), 6. (i), 7. (ii) .

रिक्त स्थान पूर्ति

1. मानव स्वयं संसाधनों का ………. हिस्सा है।

2. तकनीकी तौर पर देश में पाये जाने वाले सारे संसाधन ……… हैं।

3. भारत के पास अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र से दूर हिन्द महासागर की तलहटी से ….”ग्रन्थियों का खनन करने का अधिकार है।

4. संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए ……. एक सर्वमान्य रणनीति है।

5. संसाधन नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ………. पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किए गए।

6. देश के क्षेत्रफल का लगभग ………” प्रतिशत हिस्सा पठारी क्षेत्र है। 7. सम्पूर्ण उत्तरी मैदान ……….. मृदा से बना है।

8. पुरानी जलोढ़ मिट्टी को ……… कहते हैं।

उत्तर1. महत्वपूर्ण, 2. राष्ट्रीय, 3. मैंगनीज, 4. नियोजन, 5. प्रथम, 6. 27 प्रतिशत, 7. जलोढ़, 8. बाँगर।

सत्य/असत्य

1. मृदा सबसे महत्वपूर्ण अनवीकरण योग्य संसाधन है।

2. उत्पत्ति के आधार पर जैव और अजैव संसाधन हैं।

3. सतत् अस्तित्व सही अर्थ में सतत् पोषणीय विकास का ही एक हिस्सा है।

4. अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 5. भूमि एक असीमित संसाधन है।

6. लैटेराइट मृदा अधिकतर गहरी तथा अम्लीय होती है।

7. मरुस्थली मृदाओं का रंग पीला होता है।

उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. असत्य, 6. सत्य, 7. असत्य।  

सही जोड़ी मिलाइए

उत्तर-1. → (ग), 2. → (घ), 3. → (ङ), 4. → (क), 5. → (ख)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. देश के क्षेत्रफल का कितने प्रतिशत हिस्सा पठारी क्षेत्र है ?

2. पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की बहुतायत किस राज्य में है ?

3. भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल कितना है ?

4. हम भोजन, मकान और कपड़े की अपनी मूल आवश्यकताओं का कितने प्रतिशत भाग भूमि से प्राप्त करते हैं?

5. नवीन जलोढ़क का स्थानीय नाम बताइए।

6. रेगड़ या कपास वाली मिट्टी को क्या कहते हैं ?

7. डेल्टाई भागों में सामान्यतः कौन-सी मृदा पायी जाती है ?

8. तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और केरल की लाल लैटेराइट मृदाएँ किसकी फसल के लिए अधिक उपयुक्त है?

उत्तर1. 27 प्रतिशत, 2. राजस्थान, 3. 32.8 लाख वर्ग किमी, 4.95 प्रतिशत, 5. खादर, 6. काली मिट्टी, 7. जलोढ़ मृदा, 8. काजू।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ‘संसाधन’ से क्या आशय है?

उत्तर–पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, एक ‘संसाधन’ है।

प्रश्न 2. सतत् पोषणीय विकास से क्या आशय है ?

उत्तर-सतत् पोषणीय आर्थिक विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए हो और वर्तमान विकास की प्रक्रिया भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकता की अवहेलना न करे।

प्रश्न 3. विकसित संसाधन क्या हैं ?

उत्तर– वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी और उनकी संभाव्यता के स्तर पर निर्भर करता है।

प्रश्न 4. भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों के नाम लिखिए।

उत्तर– भारत में पाई जाने वाली मिट्टियाँ हैं-

(1) जलोढ़ मिट्टी, (2) काली या रेगड़ मिट्टी, (3) लाल नही, (4) लैटेराइट मिट्टी, (5) मरुस्थलीय मिट्टी, (6) पर्वतीय मिट्टी।

प्रश्न 5. मृदा अपरदन से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर– मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है।

प्रश्न 6. पवन अपरदन किसे कहते हैं ?

उत्तर–पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा

प्रश्न 7. समोच्च जुताई किसे कहा जाता है?

उत्तर-ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती है। इसे समोच्च जुताई कहा जाता है।

प्रश्न 8. मृदा संरक्षण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर–मिट्टी के अपरदन या क्षय को रोकना ही मृदा का संरक्षण है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। इसलिए मृदा संरक्षण द्वारा विनाश रोकना आवश्यक है।

प्रश्न 9. बाँगर क्या है ?

उत्तर-पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बाँगर कहते हैं। यह नदियों द्वारा निर्मित प्राचीन मृदा है। ऊँचे भागों में पाये जाने वाली यह मिट्टी उन क्षेत्रों में मिलती है जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंच पाता। बाँगर स्लेटी रंग की चिकनी मिट्टी होती है। यह कम उपजाऊ होती है। इसमें प्रायः कंकड़ (कैल्शियम कार्बोनेट) पाये जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संसाधन से क्या आशय है ? इनका हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?

उत्तर–कोई वस्तु या तत्त्व तभी संसाधन कहलाता है जब उससे मानव की किसी आवश्यकता की पूर्ति होती है, जैसे-जल एक संसाधन है क्योंकि इससे मनुष्यों व अन्य जीवों की प्यास बुझती है, खेतों में फसलों की सिंचाई होती है और यह स्वच्छता प्रदान करने, भोजन पकाने आदि कार्यों में हमारे लिए आवश्यक होता है। इसी प्रकार, वे सभी पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हैं, संसाधन कहलाते हैं।

महत्व – संसाधन मानव जीवन को सुखद व सरल बनाते हैं। आदिकाल में मानव पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर था। धीरे-धीरे मानव ने अपनी बुद्धि-कौशल से प्रकृति के तत्त्वों का अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक उपयोग किया। आज विश्व के वे राष्ट्र अधिक उन्नत व सम्पन्न माने जाते हैं जिनके पास अधिक संसाधन हैं। आज संसाधन की उपलब्धता हमारी प्रगति के सूचक बन गये हैं। इसीलिए संसाधनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है।

प्रश्न 2. नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य संसाधन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर(1) नवीकरण योग्य संसाधन – वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण योग्य अथवा पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है। उदाहरण के लिए, सौर तथा पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्य जीवन ।

(2) अनवीकरण योग्य संसाधन-इन संसाधनों का विकास एक लम्बे भू-वैज्ञानिक अन्तराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण हैं। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। इनमें से कुछ संसाधन जैसे धातुएँ पुनः चक्रीय हैं और कुछ संसाधन जैसे जीवाश्म ईंधन अचक्रीय हैं व एक बार के प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 3. एजेंडा-21 क्या है ? इसके सिद्धान्तों की सूची बनाइए।

उत्तर– एजेंडा-21-यह एक घोषणा है जिसे 1992 में ब्राजील के शहर रियो-डी-जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन (UNCED) के तत्वाधान में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा स्वीकृत किया गया था।

सिद्धान्त-

(1) इसका उद्देश्य भूमण्डलीय सतत् पोषणीय विकास हासिल करना है।

(2) यह एक कार्यसूची है जिसका उद्देश्य समान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं एवं सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावरणीय क्षति, निर्धनता और रोगों से निपटना है।

(3) एजेंडा-21 का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रत्येक स्थानीय निकाय अपना स्थानीय एजेंडा-21 तैयार करें।

प्रश्न 4. “भारत में, कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं, जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचुरता है, परन्तु दूसरे तरह के संसाधनों की कमी है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?

उत्तर–हाँ, इस कथन से सहमत हैं(i) अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, परन्तु मूल विकास की कमी है।

(ii) राजस्थान में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की बहुतायत है, लेकिन जल संसाधनों की कमी है।

(iii) लद्दाख का शीत मरुस्थल देश के अन्य भागों से अलग-थलग पड़ता है। यह प्रदेश सांस्कृतिक विरासत का धनी है परन्तु यहाँ जल, आधारभूत अवसंरचना तथा कुछ महत्त्वपूर्ण खनिजों की कमी है।

प्रश्न 5. मानव जीवन में भू-संसाधन का क्या महत्त्व है ?

उत्तर— हम भूमि पर रहते हैं, इसी पर अनेक आर्थिक क्रियाकलाप करते हैं और विभिन्न रूपों में इसका उपयोग करते हैं। अतः भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। प्राकृतिक वनस्पति, वन्य जीवन, मानव जीवन, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन तथा संचार व्यवस्थाएँ भूमि पर ही आधारित हैं। परन्तु भूमि एक सीमित संसाधन है, इसलिए उपलब्ध भूमि का विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग सावधानी और योजनाबद्ध तरीके से हेना चाहिए।

प्रश्न 6. मृदा-परिच्छेदिका से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– – मृदा के क्रमिक क्षैतिज परतों, विन्यास और उनकी स्थितियों को दिखाने वाले ऊर्ध्व काट को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं। इस प्रकार मृदा के परतों के विन्यास को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं-

(1) ऊपरी परत को ऊपरी मृदा,

(2) दूसरी परत को उप मृदा,

(3) तीसरी परत को अपक्षयित मूल चट्टानी पदार्थ, तथा

(4) चौथी परत में मूल चट्टानें होती हैं। ऊपरी परत की ऊपरी मृदा ही वास्तविक मृदा की परत है। इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसमें ह्यूमस तथा जैव पदार्थों का पाया जाना है। दूसरी परत में उपमृदा होती है, जिसमें चट्टानों के टुकड़े, बालू, गाद और चिकनी मिट्टी होती है, तीसरी परत में अपक्षयित मूल चट्टानी पदार्थ तथा चौथी परत में मूल चट्टानी पदार्थ होते हैं।

प्रश्न 7. मृदा-परिच्छेदिका का नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर

मृदा-परिच्छेदिका का नामांकित चित्र

        

प्रश्न 8. लाल मिट्टी एवं लैटेराइट मिट्टी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

 प्रश्न 9. जलोढ़ एवं काली मिट्टी में अन्तर बताइए।

उत्तर – जलोढ़ एवं काली मिट्टी में अन्तर जलोढ़ मिट्टी

प्रश्न 10. बांगर तथा खादर मृदाओं के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -बांगर और खादर में निम्न अन्तर पाये जाते हैं

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संसाधन नियोजन क्यों आवश्यक है ? संसाधन नियोजन के क्या सोपान है ?

उत्तर-संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नियोजन एक सर्वमान्य रणनीति है। इसलिए भारत जैसे देश में जहाँ संसाधनों की उपलब्धता में बहुत अधिक विविधता है, यह और भी महत्वपूर्ण है। यहाँ ऐसे देश भी हैं जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचुरता है, परन्तु दूसरे प्रकार के संसाधनों की कमी है। कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं जो संसाधनों की उपलब्धता के सन्दर्भ में आत्मनिर्भर हैं और कुछ ऐसे भी प्रदेश हैं जहाँ महत्वपूर्ण संसाधनों की अत्यधिक कमी है। इसलिए राष्ट्रीय, प्रान्तीय, प्रादेशिक और स्थानीय स्तर पर सन्तुलित संसाधन नियोजन की आवश्यकता है। संसाधन नियोजन के सोपान संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें निम्नलिखित सोपान हैं

(1) राष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना। इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना और संसाधनों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक अनुमान लगाना व मापन करना है।

(2) संसाधन विकास योजनाएँ लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी, कौशल और संस्थागत नियोजन उंचा तैयार करना।

(3) संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजना में समन्वय स्थापित करना।

स्वतन्त्रता के बाद भारत में संसाधन नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किए गए।

प्रश्न 2. स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।

उत्तर-स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है

(1) व्यक्तिगत संसाधन-संसाधन निजी व्यक्तियों के स्वामित्व में भी होते हैं। गाँव में बहुत से लोग भूमि के स्वामी भी होते हैं और बहुत से लोग भूमिहीन होते हैं। शहरों में लोग भूखण्ड, घरों व अन्य जायदाद के स्वामी होते हैं। बाग, चारागाह, तालाब और कुओं का जल आदि संसाधनों के निजी स्वामित्व के कुछ डाहरण हैं।

(2) सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन-वे संसाधन समुदाय के सभी सदस्यों को उपलब्ध होते हैं। गाँव की शामिलात भूमि (चारण भूमि, श्मशान भूमि, तालाब इत्यादि) और नगरीय क्षेत्रों के सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्थल और खेल के मैदान आदि।

(3) राष्ट्रीय संसाधन-तकनीकी तौर पर देश में पाये जाने वाले सारे संसाधन राष्ट्रीय हैं। सारे बनेज पदार्थ, जल संसाधन, वन, वन्य जीवन, राजनीतिक सीमाओं के अन्दर सारी भूमि और 12 समुद्री मील (22-2 किमी) तक महासागरीय क्षेत्र (भू-भागीय समुद्र) व इसमें पाए जाने वाले संसाधन राष्ट्र की सम्पदा हैं।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन-कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ संसाधनों को नियन्त्रित करती हैं। तट रेखा से 200 समुद्री मील की दूरी। (अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र) से परे खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं है। इन संसाधनों को अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 3. निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए (1) भण्डार, (2) संचित कोष, (3) संसाधनों का संरक्षण

उत्तर-(1) भण्डार-पर्यावरण में उपलब्ध वे पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते है परन्तु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में उसकी पहुँच से बाहर हैं, भण्डार में शामिल हैं। उदाहरण के लिए, जाल दो गैसों, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है, हाइड्रोजन ऊर्जा का मुख्य स्रोत बन सकता है। किन्तु इस उद्देश्य से, इसका प्रयोग करने के लिए हमारे पास उन्नत तकनीकी ज्ञान नहीं है।

(2) संचित कोष-यह संसाधन भण्डार का ही भाग है, जिन्हें उपलब्ध तकनीकी ज्ञान की सहायता प्रयोग में लाया जा सकता है, परन्तु इनका उपयोग अभी प्रारम्भ नहीं हुआ है। इनका उपयोग भविष्य में आवश्यकता पूर्ति के लिए किया जा सकता है। नदियों के जल को विद्युत् पैदा करने में प्रयुक्त किया जा सकता है, किन्तु वर्तमान समय में इसका उपयोग सीमित मात्रा पर ही हो रहा है। इस प्रकार बाँघों में जल, वन आदि संचित कोष हैं जिनका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है।

(3) संसाधनों का संरक्षण-संसाधन किसी प्रकार के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। किन्तु संसाधनों का विवेकहीन उपभोग और अति उपयोग के कारण कई सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इन समस्याओं से बचाव के लिए विभिन्न स्तरों पर संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। आरम्भ से ही संसाधनों का संरक्षण बहुत से नेताओं और चिन्तकों के लिए चिन्ता का विषय रहा है। जैसे कि, गाँधीजी ने संसाधनों के संरक्षण पर अपनी चिन्ता इन शब्दों में व्यक्त की है-“हमारे पास हर व्यक्ति भी आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत कुछ है, लेकिन किसी के लालच की सन्तुष्टि के लिए नहीं। अर्थात् हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत है लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।” उनके अनुसार विश्व स्तर पर, संसाधन ह्रास के लिए लालची और स्वार्थी व्यक्ति तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी की शोषणात्मक प्रवृत्ति जिम्मेदार है। वे अत्यधिक उत्पादन के विरुद्ध थे और इसके स्थान पर अधिक बड़े जनसमुदाय द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे।

प्रश्न 4. भारत में मिट्टियों के विभिन्न प्रकार, उनकी विशेषताएँ एवं वितरण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

भारत में मिट्टियों का वर्गीकरण

(1) जलोढ़ मिट्टी-यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मिट्टी है। भारत के काफी बड़े क्षेत्रों में यही मिट्टी पायी जाती है। इसके अन्तर्गत 40 प्रतिशत भाग सम्मिलित है। वास्तव में सम्पूर्ण उत्तरी मैदान में यही मिट्टी पायी जाती है। यह मिट्टी हिमालय से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों-सतलुज, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी है और उत्तरी मैदान में जमा की गयी है। हजारों वर्षों तक सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए नदियों ने अपने मुहानों पर मिट्टी के बहुत बारीक कणों को जमा किया है। मिट्टी के इन बारीक कणों को जलोढ़क कहते हैं। जलोढ़ मिट्टियाँ सामान्यतः सबसे अधिक उपजाऊ होती हैं।

विशेषताएँ-

(1) इस मिट्टी में विभिन्न मात्रा में रेत, गाद तथा मृत्तिका (चौक मिट्टी) मिली होती है।

(2) यह मिट्टी सबसे अधिक उपजाऊ होती है।

(3) इस मृदा में साधारणतया पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है।

(4) इसमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।

(5) इसमें कुएँ खोदना और नहरें निकालना सरल होता है, अत: यह कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी है।

(2) काली मिट्टी – इस मिट्टी का रंग काला है। अतः इसे काली मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। इस मिट्टी में मैग्मा के अंश, लोहा व ऐलुमिनियम की प्रधानता पायी जाती है। इस मिट्टी में नमी बनाये रखने की अद्भुत क्षमता होती है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगड़’ है।

विशेषताएँ-

(1) काली मिट्टी का निर्माण बहुत ही महीन मृत्तिका (चीका) के पदार्थों से हुआ है।

(2) इसकी अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता प्रसिद्ध है।

(3) इसमें मिट्टी के पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। कैल्सियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश और चूना इसके मुख्य पोषक तत्व हैं।

(4) यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत उपयुक्त है। अत: इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है।

(3) लाल मिट्टी – यह मिट्टी लाल, पीली, भूरी आदि विभिन्न रंगों की होती है। यह कम उपजाऊ मिट्टी है। इस प्रकार की मिट्टी अधिकतर प्रायद्वीपीय भारत में पायी जाती है। इस मिट्टी में फॉस्फोरिक अम्ल, नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।

विशेषताएँ-

(1) यह मिट्टी लाल, पीले या भूरे रंग की होती है। इस मिट्टी में लोहे के अंश अधिक होने के कारण उसके ऑक्साइड में बदलने से इसका रंग लाल हो जाता है।

(2) इसका विकास प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों से हुआ है।

(3) गहरे निम्न भू-भागों में यह दोमट है तथा उच्च भूमियों पर यह असंगठित कंकड़ों के समान है।

(4) लाल मिट्टी में फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक पदार्थों तथा नाइट्रोजन पदार्थों की कमी होती है।

(4) लैटेराइट मिट्टी-यह कम उपजाऊ मिट्टी है। यह घास और झाड़ियों के पैदा होने के लिए उपयुक्त है। प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी भाग में तमिलनाडु के कुछ भाग, ओडिशा तथा उत्तर में छोटा नागपुर के कुछ भागों में इस मिट्टी का विस्तार पाया जाता है। मेघालय में भी लैटेराइट मिट्टी मिलती है।

विशेषताएँ-

(1) यह मिट्टी लैटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।

(2) इसमें चूना, फॉस्फोरस और पोटाश कम मिलता है, किन्तु वनस्पति का अंश पर्याप्त होता है।

(3) यह मिट्टी चावल, कपास, गेहूँ, दाल, मोटे अनाज, सिनकोना, चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है।

(5) मरुस्थलीय मिट्टी – यह मिट्टी दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा कच्छ के रन की ओर से उड़कर भारत के पश्चिमी शुष्क प्रदेश में जमा हुई है। इस प्रकार की मिट्टी शुष्क प्रदेशों में विशेषकर पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिलती है।

विशेषताएँ-

(1) यह मिट्टी दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा कच्छ के रन की ओर से उड़कर भारत के पश्चिमी शुष्क प्रदेश में जमा हुई है।

(2) यह बालू प्रधान मिट्टी है जिसमें बालू के कण मोटे होते हैं।

(3) इसमें खनिज नमक अधिक मात्रा में पाया जाता है।

(4) इसमें नमी कम रहती है तथा वनस्पति के अंश भी कम ही पाये जाते हैं, किन्तु सिंचाई करने पर यह उपजाऊ हो जाती है।

(5) सिंचाई की सुविधा उपलब्ध न होने पर यह बंजर पड़ी रहती है।

(6) इस मिट्टी में गेहूँ, गन्ना, कपास, ज्वार, बाजरा, सब्जियाँ आदि पैदा की जाती हैं।

(6) पर्वतीय मिट्टी – यह मिट्टी हिमालयी पर्वत श्रेणियों पर पायी जाती है। यह मिट्टी कश्मीर, उत्तर प्रदेश के पर्वतीय भाग के अतिरिक्त असम, पश्चिमी बंगाल, कांगड़ा आदि में भी पायी जाती हैं।

विशेषताएँ-

(1) यह मिट्टी पतली, दलदली और छिद्रमयी होती है।

(2) नदियों की घाटियों और पहाड़ी ढालों पर यह अधिक गहरी होती है।

(3) यह मिट्टी चावल, गेहूँ व आलू की फसल के लिए उपयुक्त है। कहीं-कहीं चाय की खेती भी की जाती है।

प्रश्न 5. मृदा अपरदन के कारण तथ संरक्षण के प्रमुख तरीकों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर

मृदा अपरदन के कारण मृदा अपरदन के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं

(1) वनों का नाश – कृषि के लिये भूमि का विस्तार करने तथा जलाने व इमारती लकड़ी की बढ़ती ई मांग को पूरा करने के लिए पिछले कई वर्षों से वनों का विनाश हो रहा है। फलतः पानी को नियन्त्रित करने की शक्ति घटी है और भूमि का कटाव बढ़ गया है।

(2) अत्यधिक पशु चारण – पशु चारण पर नियन्त्रण न रखने से भी जंगलों की घास काट ली जाती है ज्यवा जानवरों द्वारा चर ली जाती है। इससे भूमि की ऊपरी परत हट जाती है और भूमि कटाव होने लगता है।

(3) आदिवासियों द्वारा झूमिंग कृषि करना – हमारे देश में अनेक स्थानों पर आदिवासी जंगलों को सफ करके खेती करते हैं। फिर उस भूमि को छोड़कर दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं जिससे पहले वाली भूमि पर कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

(4) पवन अपरदन – इस तरह का कटाव वनस्पति का आवरण हटने से होता है। भू-गर्भ में पानी की सतह से अत्यधिक नीचे चले जाने से भी वायु अपरदन होता है।

(5) भारी वर्षा – मिट्टी का कटाव भारी वर्षा से होता है, क्योंकि मिट्टी कटकर बह जाती है। वास्तव में पानी से होने वाला कटाव तीन तरह से होता है- पहला परत का कटाव, फिर नाली का कटाव और अन्त में बाढ़ का कटाव। मृदा संरक्षण बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। अनेक प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है। इसलिए मृदा संरक्षण द्वारा विनाश रोकना आवश्यक है। मृदा संरक्षण के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं

(1) मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने के लिए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना।

(2) मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खादों को भी प्रयोग में लाना।

(3) वृक्ष लगाकर मृदा-अपरदन को रोकना।

(4) नदियों पर बाँध बनाकर जल के तीव्र प्रवाह को रोककर भूमि के कटाव को रोकना।

(5) पर्वतीय भागों में सीढ़ीनुमा खेत बनाना।

(6) खेतों की ऊँची मेंड़ बनाना।

(7) ग्रामीण खेतों में चारागाहों का विकास करना।

प्रश्न 6. भारत में भूमि निम्नीकरण की समस्या पर एक लेख लिखिए व इन समस्याओं को सुलझाने के उपाय बताइए।

उत्तर--(1) मानव क्रियाकलापों के कारण न केवल भूमि का निम्नीकरण हो रहा है बल्कि भूमि को नुकसान पहुँचाने वाली प्राकृतिक ताकतों को भी बल मिला है।

(2) भारत में लगभग 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है। इसमें से लगभग 28 प्रतिशत भूमि निम्नीकृत वनों के अन्तर्गत है, 56 प्रतिशत क्षेत्र जल अपरदित है और शेष क्षेत्र लवणीय और क्षारीय है।

(3) कुछ मानव क्रियाओं; जैसे-वनोन्मूलन, अति पशुचारण, खनन ने भी भूमि के निम्नीकरण में प्रमुख भूमिका निभाई है।

(4) खनन के उपरान्त खदानों वाले स्थानों को गहरी खाइयों और मलबे के साथ खुला छोड़ दिया जाता है। खनन के कारण मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में वनोन्मूलन भूमि निम्नीकरण का कारण बना है।

(5) गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में अति पशुचारण भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण है।

(6) पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक सिंचाई भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। अति सिंचन से उत्पन्न जलाक्रांतता भी भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है जिससे मृदा में लवणीयता और क्षारीयता बढ़ जाती है।

(7) खनिज प्रक्रियाएँ, जैसे सीमेंट उद्योग में चूना-पत्थर को पीसना और मृदा बर्तन उद्योग में चूने (खड़िया मृदा) और सेलखड़ी के प्रयोग से बहुत अधिक मात्रा में वायुमंडल में धूल विसर्जित होती है। जब इसकी परत भूमि पर जम जाती है तो मृदा की जल सोखने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है। भूमि निम्नीकरण की समस्या को दूर करने के उपाय

भूमि निम्नीकरण की समस्याओं को सुलझाने के कई उपाय हैं। वनारोपण और चारागाहों का उचित प्रबंधन इसमें कुछ हद तक मदद कर सकते हैं। पेड़ों की रक्षक मेखला, पशुचारण नियंत्रण और रेतीले टीलों को काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर स्थिर बनाने की प्रक्रिया से भी भूमि कटाव की रोकथाम शुष्क क्षेत्रों में की जा सकती है। बंजर भूमि के उचित प्रबंधन, खनन नियन्त्रण और औद्योगिक जल को परिष्करण के पश्चात् विसर्जित करके जल और भूमि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

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