M.P. Board solutions for Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1 – काव्य खंड
क्षितिज काव्य खंड Chapter 3- सवैये
पाठ 3 – सवैये
कठिन शब्दार्थ
मानुष = मनुष्य। बसौं = बसना, रहना। ग्वारन = ग्वालाओं के साथ। कहा बस = वश में न होना। मँझारन = बीच में। गिरि = पहाड़। पुरंदर = इंद्र। कालिंदी = यमुना। कूल = किनारा। लकुटी = लाठी। कामरिया = कंबल। तड़ाग = तालाब। कलधौत के धाम = सोने-चाँदी के महल। करील = काँटेदार झाड़ी। वारौं = न्यौछावर करना। गोधन = गाय रूपी धन। भावतो = अच्छा लगना। अधरान = ओठों पर रखी। अधरा न = ओठों पर नहीं। अटा = कोठा, अट्टालिका। टेरि = पुकारकर बुलाना।
(1)
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरन्दर
धारन। जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
सन्दर्भ – प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) में संकलित पाठ ‘सवैये से लिया गया है। इसके रचयिता कृष्णभक्त कवि रसखान हैं।
प्रसंग – इसमें रसखान ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की है कि मुझे किसी भी योनि में जन्म मिले तो वह ब्रजभूमि अथवा ब्रज में ही मिले।
व्याख्या – कवि रसखान अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे भगवन्! यदि अगले जन्म में मनुष्य के रूप में जन्म मिले तो ब्रज में जिससे कि मैं गोकुल ग्रामवासी ग्वालों के साथ रहूँ। यदि मुझे पशु के रूप में जन्म मिले तो मेरी इच्छा यही है कि मैं नित्य (प्रतिदिन) नन्द बाबा की गायों के बीच में मिलकर चरने जाऊँ। यदि मुझे पत्थर के रूप में जन्म मिले तो उसी गोवर्धन पर्वत पर मिले जिसे इन्द्र का अभिमान दूर करने के लिए कृष्ण ने छतरी के समान अंगुली पर धारण किया था। यदि मुझे पक्षी के रूप में जन्म मिले तो मेरी इच्छा यही है कि मैं यमुना नदी के किनारे कदम्ब वृक्ष की डालियों पर निवास करूँ। भाव यह है कि मुझे किसी भी रूप में जन्म मिले तो वह ब्रज में ही मिले।
विशेष- (1) इस पद के माध्यम से प्रतीत हो रहा है कि कवि को ब्रजभूमि से विशेष प्रेम है।
(2) सरल ब्रजभाषा का प्रयोग है।
(3) प्रेम-प्रधानता के साथ-साथ माधुर्य गुण है।
(4) बसौं ब्रज, गोकुल गाँव के ग्वारन, कालिन्दी कूल कदंब की डारन’ इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
(2)
या लकुटी अरू कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
सन्दर्भ – प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) में संकलित पाठ ‘सवैये से लिया गया है। इसके रचयिता कृष्णभक्त कवि रसखान हैं।
प्रसंग – इस सवैया में कवि रसखान का ब्रजभूमि से प्रेम के प्रति अनन्य भाव प्रदर्शित हो रहा है।
व्याख्या – कवि रसखान श्रीकृष्ण की लाठी और ओढ़ने वाले कंबल के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि मैं भगवान कृष्ण द्वारा धारण की जाने वाली लाठी और ओढ़ने वाली काली कामरिया (कंबल) के बदले में तीनों लोकों के राज्य को भी त्याग सकता हूँ। नन्द बाबा की गऊओं को चराने वाले सौभाग्य के बदले में मैं आठों सिद्धियों तथा नौ निधियों (खजानों) के सुख को भी त्याग सकता हूँ। रसखान कहते हैं कि मैं अपनी इन आँखों से ब्रज मण्डल के वन, बागों तथा सरोवरों का दर्शन कब कर पाऊँगा। मेरा मन करता है कि ब्रज क्षेत्र में उगने वाले करील वृक्षों की कुंजों पर सोने-चाँदी से बने करोड़ों महलों को न्योछावर कर दूं।
विशेष-(1) कवि रसखान को ब्रजभूमि से बहुत प्रेम है।
(2) ‘नवौ निधि, ब्रज के वन बाग, करील के कुंजन’ पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।
(3) ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग है।
(4) प्रसाद गुण तथा सवैया छन्द है।
(3)
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँगकरौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
सन्दर्भ – प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) में संकलित पाठ ‘सवैये से लिया गया है। इसके रचयिता कृष्णभक्त कवि रसखान हैं।
प्रसंग- इस सवैया में एक गोपी द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की वेश-भूषा को धारण करने के विषय में बतलाया गया है।
व्याख्या – एक गोपी अपनी अन्य साखियों से कहती है कि हे सखी! मैं मोर पंख को अपने सिर पर धारण करूँगी तथा गुंजों से बनी माला को गले में पहन लूँगी। कृष्ण की लाठी लेकर तथा पीताम्बर ओढ़कर गायों तथा ग्वालों के साथ वन में घूसूंगी। रसखान कहते हैं कि गोपी अपनी सखियों से पुनः कहती है कि कृष्ण मुझे इतने प्रिय लगते हैं कि उनके रूप का प्रत्येक शृंगार तेरे कहने से करूँगी, लेकिन कृष्ण की उस वंशी को अपने अधरों (ओठों) पर नहीं धरूँगी।
विशेष-(1) गोपी, श्रीकृष्ण का वेशधारण करना चाहती है परन्तु मुरली रूपी सौत को नहीं धारण करना चाहती है जो कृष्ण के रसीले ओठों पर सदैव विराजमान रहती है।
(2) माधुर्य गुण तथा ब्रजभाषा है।
(3) अनुप्रास तथा रूपक अलंकार की छटा है।
(4) श्रृंगार रस तथा सवैया छन्द है।
(4)
काननिदै अंगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै।
टेरि कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझै है।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
सन्दर्भ – प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-1) में संकलित पाठ ‘सवैये से लिया गया है। इसके रचयिता कृष्णभक्त कवि रसखान हैं।
प्रसंग – कृष्ण की मधुर मुस्कान के जादुई प्रभाव के विषय में बतलाया गया है।
व्याख्या – एक गोपी कृष्ण की बाँसुरी की जादू भरी तान का वर्णन करती हुई दूसरी गोपी से कहती है कि जब कृष्ण मन्द एवं मीठी तान में बाँसुरी बजायेंगे तो मैं कानों में अंगुली कैसे दे लूँगी ? जब वे अपनी मोहिनी तान में गायों को सुनाने हेतु रसखान रूपी अट्टालिका पर चढ़कर गीत गाएंगे तो भी कोई बात नहीं। मैं सब ब्रजवासियों को बुलाकर कहती हूँ कि कल मुझे कोई कितना भी समझाना परन्तु मइया जब वे कल यहाँ आकर मुस्करायेंगे तो उस मधुर मुस्कान से कोई मुझे सँभाल नहीं सकता है। अर्थात् मैं भी उस मधुर मुस्कान की मादकता से बच नहीं सकती।
विशेष-
(1) कृष्ण की जादूभरी मधुर मुस्कान के विषय में बतलाया गया है।
(2) ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली है।
(3) प्रसा गुण एवं सवैया छन्द है।
(4) अनुप्रास अलंकार की प्रधानता है।
अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर – ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम अग्रलिखित रूपों में अभिव्यक्त हुआ है
(1) यदि मुझे मनुष्य के रूप में जन्म मिले तो ब्रज क्षेत्र के गोकुलवासी ग्वालों के रूप में।
(2) यदि पशु के रूप में जन्म मिले तो मैं नन्द बाबा की गायों के झुण्ड में रहकर चरूँ।
(3) यदि मुझे पत्थर के रूप में जन्म मिले तो गोवर्धन पर्वत पर ही मिले।
(4) यदि मुझे पक्षी के रूप में जन्म मिले तो यमुना किनारे कदंब की डाल पर निवास करूँ।
प्रश्न 2. कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण है ?
उत्तर– कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे प्रमुख कारण यह है कि कवि को ब्रज तथा ब्रजवासी कृष्ण की लीलाएँ अति प्रिय हैं। अतः कृष्ण का सामीप्य पाने के लिए वह अपना सर्वस्व त्यागकर अपनी आँखों से ब्रजक्षेत्र को निहारना चाहता है।
प्रश्न 3. एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर – एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को इसलिए तैयार है कि कृष्ण के लीला स्थलों को देखकर कवि को जो रसानुभूति होगी, वह संसार के सभी धनों से प्रिय होगी। गायों को चराते समय कृष्ण जिस लकुटी (लाठी) तथा काली कामरिया का प्रयोग करते हैं वह दोनों ही मनोहारी हैं।
प्रश्न 4. सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर – सखी ने गोपी से कृष्ण का ऐसा रूप धारण करने का आग्रह किया था जिसमें वह सिर पर मोरपंख लगाए हुए हो, गले में गुंजों की माला पहने हुए हो; पीताम्बर ओढ़े हुए हो तथा लाठी को हाथ में लेकर ग्वालों के मध्य गायों को चराएं जिससे कि ग्वाला भी गोपी को कृष्ण ही समझें।
प्रश्न 5. आपके विचार से कवि, पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है।
उत्तर -कवि रसखान के प्रेमाकूलित हृदय में ब्रज तथा ब्रजवासी के प्रति अगाध प्रेम का भाव व्याप्त है। उसे ब्रजक्षेत्र के कण-कण में अपने प्रिय कृष्ण की छवि दिखलाई देती है। कवि उस छवि को अपनी आँखों से प्रतिपल निहारना चाहता है। इसी कारण कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है।
प्रश्न 6. चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आपको क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर – श्रीकृष्ण का रूप-सौन्दर्य एवं बाँसुरी वादन जादू भरा-सा है। उनके द्वारा गाए जाने वाले गौधन तथा गायों को सुनाए जाने वाले गीत, उनकी मधुर-मुस्कान से उत्पन्न आकर्षण के कारण गोपियाँ अपने आपको विवश पाती हैं।
प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए
(क) कौटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर बारौं।
(ख) माई री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर–
(क) भाव-प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि कृष्ण की लकुटी और कामरिया तीनों लोकों से निराली हैं। ब्रजक्षेत्र के वन, बाग, सरोवर इत्यादि स्थल तथा स्वयं ब्रजवासी इतने सुहावने हैं कि सोने के करोड़ों भवनों को भी यदि करील से बने कुंजों पर न्यौछावर कर दिया जाय तो भी कम है।
(ख) भाव-प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि गोपियाँ कृष्ण के कमल-मुख की मन्द-मन्द मुस्कान पर बुरी तरह से मुग्ध हो चुकी हैं। एक गोपी सभी ब्रजवासियों को बुलाकर कहती है कि कल जब यहाँ आकर कृष्ण अपनी मधुर मुस्कुराहट से मुस्कुराएंगे तब उनके मुख की मधुर मुस्कान मुझसे किसी भी दशा में सँभाली नहीं जा सकती। अतः मैं भी मुस्कान की मादकता में बह जाऊँगी।
प्रश्न 8. ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 9. काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिएया मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर – (1) अधरान अधरा न’ में यमक अलंकार है।
(2) भाषा में माधुर्य गुण की प्रधानता है।
(3) ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली है।
(4) सवैया नामक छन्द है।
(5) गोपियों की हठधर्मिता प्रदर्शित हो रही है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 10. प्रस्तुत सवैये में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर – हमें अपनी मातृभूमि के कण-कण से असीम प्रेम है। जननी और जन्मभूमि को तो स्वर्ग से भी बड़ा माना जाता है – जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
जननी और जन्म भूमि का निश्छल प्रेम व्यक्ति में क्षमा, दया, करुणा आदि भावों को उत्पन्न करता है। भौगोलिक परिस्थितियों से लड़ते हुए भी मानव अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम-भाव रखता है। किसी कवि ने लिखा भी है
विषुवत रेखा का वासी जो, जीता है नित हाँफ-हाँफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक, वह भी अपनी मातृभूमि पर॥
हिमवासी जो हिम में-तम में, जी लेता है काँप काँप कर।
वह भी अपनी मातृभूमि पर, कर देता है प्राण निछावर॥
और भी देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अमल-असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से जिसमें, मानवता होती है विकसित॥
जिसके हृदय में देश-प्रेम का भाव नहीं होता है वह तो पशु एवं मृतक के समान होता है
जिसको न निज गौरव तथा, निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं है, पशु निरा है और मृतक समान है॥
प्रश्न 11.रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए। उत्तर – विद्यार्थी इस प्रश्न को गुरुजनों के सहयोग से हल करें।
पाठेतर सक्रियता
1. सूरदास द्वारा रचित कृष्ण के रूप-सौन्दर्य सम्बन्धी पदों को पढ़िए।
उत्तर– विद्यार्थी पुस्तकालय से सूर-पदों की पुस्तक लेकर स्वयं या गुरुजनों के सान्निध्य में कृष्ण के रूप-सौन्दर्य सम्बन्धी पदों को पढ़ें।