M.P. Board solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 1- साखियाँ एवं सबद

M.P. Board solutions for Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1  काव्य खंड

क्षितिज काव्य खंड Chapter 1- साखियाँ एवं सबद

पाठ 1  साखियाँ एवं सबद कबीर दास 

साखियाँ

कठिन शब्दार्थ

सुभर जल = अच्छी तरह भरा हुआ जल । केलि क्रीड़ा, खेल। मुकताफल = मोती। उड़ि = उड़कर। विष = जहर । दुलीचा = कालीन, छोटा आसन। स्वान (श्वान) = कुत्ता। झख मारि = मजबूर होना, समय बरबाद करना। पखापखी = पक्ष-विपक्ष। हरि भजै = ईश्वर का भजन करना। कारनै = कारण। सुजान = चतुर, ज्ञानी। निकटि = निकट, नजदीक, पास। काबा = मुसलमानों  का तीर्थ स्थान। मोट चून = मोटा आटा। जनमिया = जन्म लेकर। सुरा = मदिरा, शराब।

(1)

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं ।

मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहि॥ 1

सन्दर्भ – प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ ‘साखियाँ’ से ली गई है। इसके रचयिता ‘कबीरदास जी’ है।

प्रसंग – इसमें कवि ने भक्ति भाव के विषय में बतलाया है।

व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि जब हृदय रूपी मानसरोवर भक्ति रूपी जल से भरा होता है तब हंस रूपी आत्मा उसमें क्रीड़ा करता है। वह आनंद में भरकर मुक्तिरूपी मोतियों को चुगता है तथा वहाँ से विलग होकर अन्यत्र नहीं जाना चाहता है ।

विशेष-(1) आत्मा-परमात्मा के मिलन सुख एवं भक्ति का वर्णन है।

(2) ‘मुकताफल मुकता चुनें’ में अनुप्रास अलंकार है।

(3) भाषा पंचमेल है।

(4) शांत रस की प्रधानता है।

(2)

प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई।

प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ॥2

हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।

स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि॥ 3

सन्दर्भ -प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ ‘साखियाँ’ से ली गई है। इसके रचयिता ‘कबीरदास जी’ है।

प्रसंग – संत कबीरदास जी ने इन साखियों में प्रेमी तथा ज्ञानी के विषय में बतलाया है।

व्याख्या – जब मैं इस संसार में प्रेमी को ढूँढ़ता फिर रहा हूँ तब मुझे कोई सच्चा प्रेमी नहीं मिल पा रहा है। कबीर को यह विश्वास है कि जब प्रेम करने वाले का उसके प्रेमी से मिलन होगा तब सम्पूर्ण जहर अमृत में बदल जाएगा।

कबीरदास जी कहते हैं कि हे मानव! तुम ज्ञान रूपी हाथी पर चढ़ना तो सरलता (सहज) का कालीन डालकर ही चढ़ना क्योंकि यह संसार एक कुत्ते के समान है जो अवसर पाकर अनायास ही मजबूरी में भौंकता रहता है। भाव यह है कि यदि कोई ज्ञान प्राप्त करना चाहता है तो उसे अहंकार त्यागकर इस दिशा में बढ़ना चाहिए।

विशेष  – (1) इसमें कबीर ने ईश्वर के प्रेम को पाने की इच्छा व्यक्त की है।

(2) प्रेमी कौं प्रेमी मिलै’ में अनुप्रास की छटा है।

(3) भाषा पंचमेल खिचड़ी है।

(4) झख मारना’ मुहावरे का प्रयोग है।

(3)

पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।

निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान॥4

हिंदू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।

कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ॥5

सन्दर्भ – प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ ‘साखियाँ’ से ली गई है। इसके रचयिता ‘कबीरदास जी’ है।

प्रसंग – इन साखियों में कबीर ने अपना पराया तथा धर्म भेद को भुलाने की सलाह दी है।

व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि तेरा-मेरा अथवा पक्ष-विपक्ष के चक्कर में मनुष्य संसार को भूल गया है। सत्यता तो यह है कि इस भावना से दूर रहकर ही ईश प्राप्ति सम्भव है। अतः मनुष्य को ईश भजन ही करना चाहिए इसी में उसकी भलाई तथा चतुराई है।

साम्प्रदायिकता का भेद मिटाते हुए कबीर कहते हैं कि हिन्दू तथा मुसलमान सत्यता को समझे बिना राम-रहीम के चक्कर में मारकाट कर रहे हैं। जो दोनों की सत्यता अर्थात् एकता को जानता है उसी का जीवन धन्य है। राम-रहीम तो व्यक्ति के हृदय में वास करते हैं।

विशेष-(1) साम्प्रदायिकता का विरोध कर राम-रहीम की एकता पर बल दिया है।

(2) भाषा पंचमेल खिचड़ी है।

(3) शांत रस एवं प्रसाद गुण है।

(4) अनुप्रास की प्रधानता है।

(4)

काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।

मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम॥6

ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।

सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोड़॥7

सन्दर्भ – प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ ‘साखियाँ’ से ली गई है। इसके रचयिता ‘कबीरदास जी’ है।

प्रसंग – इन साखियों में राम-रहीम की एकता पर बल देते हुए अच्छे कर्म करने पर बल दिया गया है।

व्याख्या – यदि हम साम्प्रदायिक भेदभाव से अलग हटकर देखें तो मुसलमानों का तीर्थ स्थल काबा ही हिन्दुओं का तीर्थस्थल काशी हो जाता है तथा राम ही रहीम हो जाता है। मोटा आटा ही पिसकर महीन मैदा बन जाता है अर्थात् मन का मोटा भेदभाव निकलकर प्रेम रूपी महीन मैदा बन जाता है। अतः हे कबीर तू इस अभेद रूपी मैदा का भोजन कर और भेदभाव के चक्कर में मत पड़।

ऊँचे कुल में जन्म लेने से ही व्यक्ति तब तक श्रेष्ठ नहीं बन सकता जब तक उसके कर्म ऊँचे न हों। जिस प्रकार शराब को सोने के बर्तन में रख देने पर भी सज्जन उसकी निन्दा ही करते हैं, उसी प्रकार ऊँचे कुल में जन्म लेने वाला यदि नीच कर्म करता है तो समाज में उसकी निन्दा ही होती है। वहाँ ऊँचे कुल का महत्व समाप्त हो जाता है।

विशेष-(1) साम्प्रदायिक भेद-भाव को समाप्त करने पर बल दिया गया है।

(2) काबा और काशी को एक ही माना है।

(3) भाषा सधुक्कड़ी है तथा तत्सम शब्दों का प्रयोग है।

(4) ऊँचे कुल’ का उदाहरण देकर उदाहरण अलंकार का प्रयोग है।

सबद

कठिन शब्दार्थ

टाटी = टटिया, झोंपड़ी। यूँनि = स्तम्भ, टेक। बलिंडा = छप्पर की मजबूत छोटी लकड़ी, बल्ली। छाँनि = छप्पर। भाँडा फूटा = भेद खुला। निरचू = थोड़ा भी। चुवै = चूता है, रिसता है। बूठा = बरसा। खीनाँ = क्षीण हुआ।

(1)

मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।

ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।

खोजी होय तो तुरतै मिलिडौं, पल भर की तालास में।

कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।

सन्दर्भ –प्रस्तुत ‘सबद’ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ ‘साखियाँ से लिया गया है। इस पद के रचनाकार ‘संत कबीरदास जी हैं।

प्रसंग – इस पद में ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या – मनुष्य को सचेत करते हुए ईश्वर कहते हैं कि हे मनुष्य! तुम मुझे कहाँ-कहाँ खोजते फिर रहे हो, मैं तो तुम्हारे पास में ही स्थित हूँ। न तो मैं मन्दिर में हूँ, न मस्जिद में हूँ, न काबा में हूँ और न ही कैलाश पर्वत पर हूँ। न तो मैं किसी क्रिया-कर्म में हूँ और न ही योग-वैराग्य की साधनाओं में मेरा वास है। यदि तुम सच्चे खोजने वाले हो तो देखो मैं तुम्हें पल भर में मिल जाऊँगा क्योंकि मैं तो प्रत्येक जीव की स्वाँस-स्वाँस में वास करता हूँ। कबीर का कहने का भाव यह है कि परमात्मा तो सभी की प्रत्येक स्वांस में वास करता है।

विशेष – (1) ईश्वर की सर्वव्यापकता के विषय में बतलाया गया है।

(2) बाह्य आडम्बरों का विरोध किया गया है।

(3) इस पद में अनुप्रास की छटा है।

(4) भाषा पंचमेल सधुक्कड़ी है।

(2)

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।

भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी॥

हिति चित की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।

त्रिस्नाँ छाँनि परिघर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा॥

जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।

कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जन जाँणी।

आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।

कहैं कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत ‘सबद’ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ ‘साखियाँ से लिया गया है। इस पद के रचनाकार ‘संत कबीरदास जी हैं।

प्रसंग – इसमें अज्ञान पर ज्ञान की विजय के विषय में बतलाया गया है।

व्याख्या – कबीर कहते हैं कि हे संत लोगो! ज्ञान की आँधी आ गई है। ज्ञान रूपी आँधी आने से भ्रम की वह टटिया (झोंपड़ी) भी उड़ गई जो माया रूपी मजबूत रस्सी से बँधी हुई थी। टटिया को रोकने के लिए विषयाशक्ति एवं बाह्याचार रूपी जो दो खम्भे लगे थे, वे भी आँधी के थपेड़ों से गिर पड़े। उस तृष्णा रूपी छप्पर का प्रमुख आधार मोह रूपी बड़ेर (बल्ली) भी टूट कर नष्ट हो गयी और टटिया धरती पर गिर पड़ी। उस तृष्णा रूपी झोपड़ी के नष्ट होने पर कुमति रूपी बर्तन भी टूट गए अर्थात् कुबुद्धि का घड़ा फूट गया। भाव यह है कि विषय-वासना तथा अज्ञानादि नष्ट हो गए। मिल-जुलकर सज्जन लोगों ने इसे पुनः बाँधकर तैयार किया जिससे कि अज्ञान रूपी जल पुनः न गिरे। जब ईश्वर गति समझ में आयी तो इससे कपट रूपी कूड़ा निकालकर बाहर कर दिया। ज्ञान रूपी आँधी के बाद भगवान के प्रेम और अनुग्रह की वर्षा हुई जिसमें प्रभु-प्रेम रस में भक्त भींग गए। कबीर कहते हैं कि ज्ञान रूपी सूर्य के उदय होने पर अज्ञान रूपी अन्धकार नष्ट हो गया तथा चारों ओर प्रकाश फैल गया।

विशेष – (1) यह स्पष्ट किया गया है कि अज्ञान का पर्दा हटने के बाद ही ज्ञान का प्रकाश फैलता है।

(2) सबद नामक पद है जिसे राग में गाया जाता है।

(3) अनुप्रास एवं रूपक अलंकार का प्रयोग है।

(4) प्रसाद गुण तथा भाषा पंचमेल है।

प्रश्न साखियाँ

प्रश्न 1. ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है ?

उत्तर – ‘मानसरोवर’ से कवि का आशय योग साधना से है। जब कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना मार्ग से ब्रह्म रंध्र में पहुँचती है, तब शिव-शक्ति का समागम होता है। साधना की यह चरमावस्था ही मानसरोवर स्नान है।

प्रश्न 2. कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ?

उत्तर -कवि ने सच्चे प्रेमी की यह कसौटी बताई है कि जब सच्चा प्रेमी अपने प्रियतम से मिलता है तो वह मन के वियोग रूपी विष को मिलन के सुख रूपी अमृत में बदल देता है।

प्रश्न 3. तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है ?

उत्तर – तीसरे दोहे में कवि ने सहज ज्ञान अर्थात् अहंकार से रहित ज्ञान को महत्व दिया है।

प्रश्न 4. इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?

उत्तर – इस संसार में वही सच्चा संत है जो निष्पक्ष एवं निष्काम भाव से ईश्वर का भजन करता है।

प्रश्न 5. अन्तिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है ?

उत्तर -अन्तिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने सम्प्रदायवादी संकीर्णताओंतथाउच्च कुल में जन्मलेने के अहंकार की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 6. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर – कबीर ने बतलाया है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है कुल से नहीं क्योंकि ऊँचे कुल में जन्म लेने मात्र से व्यक्ति तंब तक श्रेष्ठ नहीं माना जाता जब तक उसके कर्म श्रेष्ठ न हों। कर्म श्रेष्ठता ही प्रधान है। जैसे – स्वर्ण-कलश में शराब भर देने से वह अमृत नहीं बन सकती। वह तो शराब ही रहेगी। सज्जन भी इसकी निन्दा करते हैं। \

प्रश्न 7. काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए

हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।

स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि॥

उत्तर – काव्य-सौन्दर्य

(1) ज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।

(2) भाषा सधुक्कड़ी पंचमेल है।

(3) ‘स्वान रूप संसार’ में रूपक अलंकार है।

(4) ‘झख मारि’ मुहावरे का प्रयोग है।

(5) भाषा में तत्सम एवं तद्भव दोनों शब्दों का प्रयोग है।

(6) ‘साखी’ नामक पद है।

प्रश्न सबद

प्रश्न 8. मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है।

उत्तर – मनुष्य ईश्वर को मन्दिर, मस्जिद, काबा, कैलाश आदि स्थानों पर ढूँढ़ता फिरता है जबकि ईश्वर उसके हृदय में ही निवास करता है।

प्रश्न 9. कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खण्डन किया है ?

उत्तर- कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए अधोलिखित प्रचलित विश्वासों का खण्डन किया है

(1) ईश्वर सब जगह विद्यमान है। वह घट-घट वासी है। अतः मन्दिर या मस्जिद में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

(2) भगवान न तो काबा में बैठा है और न कैलाश पर्वत पर। वह तो प्रत्येक व्यक्ति अथवा प्राणी की प्रत्येक स्वाँस में विद्यमान है।

(3) न वह किसी योगी को योग-क्रिया द्वारा प्राप्त हो सकता है और न ही वैराग्य धारण करने से प्राप्त हो सकता है क्योंकि वह तो सर्वव्यापी है।

(4) यदि मनुष्य सद्कर्म करके सच्चे मन से उसकी खोज करेगा तो वह पल भर में मिल जाएगा।

प्रश्न 10. कबीर ने ईश्वर को ‘सब श्वाँसों की श्वाँस में क्यों कहा है ?

उत्तर-कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ इसलिए कहा है कि वह तो सर्वव्यापक है। वह तो हर जीव तथा कण-कण में विद्यमान है। सभी लोगों की श्वाँस में उसी का वास है।

प्रश्न 11. कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की है ?

उत्तर – कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से इसलिए की है कि जिस प्रकार तेज आँधी आने पर ही झोंपड़ी, छप्पर आदि उड़ पाते हैं तथा वर्षा भी होती है। उसी प्रकार ज्ञान रूपी तेज आँधी (तूफान) के आने पर मन से अज्ञानता का आवरण एवं दोष उड़ जाता है तथा व्यक्ति का ज्ञान रूपी कपाट खुल जाता है। अज्ञान का नाश होने पर ही भगवान के प्रेम और अनुग्रह की वर्षा हो पाती है।

प्रश्न 12. ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर – ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर यह प्रभाव पड़ता है कि उसका अज्ञान रूपी अन्धकार ज्ञान रूपी सूर्य के उदित होने पर समाप्त हो जाता है और वह भक्त अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान लेता है।

प्रश्न 13. भाव स्पष्ट कीजिए

(क) हिति चित्त की द्वैथूनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।

(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।

उत्तर – (क) भाव-प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि जब | व्यक्ति के हृदय में ज्ञान रूपी आँधी चलने लगती है तब विषय वासना, मोह, माया, तृष्णा आदि भाव नष्ट हो जाते हैं और केवल ज्ञान रूपी प्रकाश ही शेष रह जाता है।

(ख) भाव-प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद ईश कृपा रूपी वर्षा से आनन्द और प्रेम की अनुभूति होती है। इस प्रेमानुभूति को वही अनुभव कर सकता है जो ईश्वर का सच्चा भक्त है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 14. संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और साम्प्रदायिक सद्भाव सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – भक्तिकालीन निर्गुण काव्यधारा के कवि कबीरदास ने संकलित साथियों तथा पदों के माध्यम से धार्मिक और साम्प्रदायिक सद्भाव सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डाला है। उनका मानना है कि निराकार ईश्वर एक है परन्तु विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा वह अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। वह न तो मन्दिर में है, न मस्जिद में है, न काबा तथा कैलाश में निवास करता है। विविध क्रियाओं तथा योग-वैराग्य में भी उसका वास नहीं है। वह तो सर्वत्र विद्यमान है। उसे तो प्रेम की परिभाषा से ही प्राप्त किया जा सकता है। कबीर ने लिखा भी है

मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।

ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।

खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।

कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में॥

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 15. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख।

उत्तर – पखापक्षी-पक्ष-विपक्ष, अनत-अन्यत्र, जोग-योग, जुगति-युक्ति, बैराग-बैराग्य, निरपख-निरपेक्ष।

पाठेतर सक्रियता

1. कबीर की साखियों को याद कर कक्षा में अन्त्याक्षरी का आयोजन कीजिए।

उत्तर – इस आयोजन को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका के सहयोग से करें।

2. एन. सी. ई. ई. आर. टी. द्वारा कबीर पर निर्मित फिल्म देखें।

उत्तर-यह कार्य विद्यार्थी विद्यालय एवं शिक्षकों के सहयोग से करें।

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