म.प्र. बोर्ड कक्षा आठवीं संपूर्ण हल- नागरिकशास्त्र – सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन 3 (Civics: Social & Political Life – III )
पाठ 4 : कानूनों की समझ
प्रश्न – अभ्यास (पाठ्यपुस्तक से)
महत्वपूर्ण बिन्दु
- समाज को सम्यक ढंग से चलाने के लिए कानून अत्यन्त आवश्यक होते हैं।
- कानून वे सामान्य नियम होते हैं जो राज्य द्वारा स्वीकृत तथा लागू किये जाते हैं जिनका पालन सभी के लिए अनिवार्य होता है।
- भारतीय कानून धर्म, जाति और लिंग के आधार पर लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं करता।
- कानून बनाने में संसद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- समाज के विभिन्न समूह किसी खास कानून के लिए अपील करते हैं।
- सभी कानूनी प्रस्ताव विधेयक के रूप में संसद में पेश किये जाते हैं।
- संसद के दोनों सदनों में विधेयक पास होने पर राष्ट्रपति की मंजूरी के पश्चात अधिनियम बनता है।
- भारत के नागरिक किसी भी कानून की जनसभाओं, अखबारों में लेख, टी. वी. चैनलों पर रिपोर्ट के माध्यम से आलोचना कर सकते हैं।
महत्वपूर्ण शब्दावली
आलोचना – किसी वस्तु/विषय की उसके लक्ष्य को ध्यान में रखते हुये उसके गुण-दोषों पर चर्चा करना।
राजद्रोह – राजा या राज्य के प्रति किया जाने वाला द्रोह या विरोध।
दमनकारी – उत्पीड़न या परेशान करने वाला व्यक्ति। स्वतन्त्र और स्वाभाविक विकास या अभिव्यक्ति को रोकने के लिए सख्ती से नियन्त्रण स्थापित करना।
पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर
पृष्ठ संख्या # 43
प्रश्न 1. इस स्थिति को पढ़ें और उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।
एक सरकारी अधिकारी के बेटे को जिला अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई है। इस वजह से वह सरकारी अधिकारी अपने बेटे को भाग निकलने में मदद करता है।
क्या आपको लगता है कि उस सरकारी अधिकारी ने सही काम किया ? क्या उसके बेटे को केवल इसलिए कानून से माफी मिल जानी चाहिए कि उसका बाप आर्थिक और राजनैतिक रूप से बहुत ताकतवर है ?
उत्तर – नहीं, हरगिज नहीं। सरकारी अधिकारी ने सही काम नहीं किया है, बल्कि अपने पद का दुरुपयोग किया है। भारत में सभी लोग कानून की नजर में बराबर हैं, चाहे किसी के पास कितना भी अपने पद का रौब और धन की अधिकता हो। अधिकारी के बेटे को माफी नहीं मिलनी चाहिए। जुर्म साबित होने पर वह भी सामान्य व्यक्ति की तरह दण्ड का भागीदार होगा।
पृष्ठ संख्या # 45
प्रश्न 2. इस किताब में मनमाना शब्द का इस्तेमाल पीछे आ चुका है। अध्याय 1 के शब्द संकलन में आप इसका मतलब पढ़ चुके हैं। अब एक कारण बताइए कि आप 1870 के राजद्रोह कानून को मनमाना क्यों मानते हैं ? 1870 का राजद्रोह कानून किस प्रकार कानून के शासन का उल्लंघन करता है?
उत्तर -1870 का राजद्रोह कानून अंग्रेजी शासन के मनमानेपन की मिसाल था। इस कानून में अगर कोई भी व्यक्ति ब्रिटिश सरकार का विरोध करता था तो उस पर मुकदमा चलाये बिना ही उसे जेल में डाल दिया जाता था। जबकि कानून सभी पर समान रूप से लागू होता हैं 1870 का राजद्रोह “कानून के समक्ष समानता” का उल्लंघन करता है।
पृष्ठ संख्या # 48
प्रश्न 3. घरेलू हिंसा से आप क्या समझते हैं ? हिंसा की शिकार महिलाओं को नये कानून से कौन से दो मुख्य अधिकार प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर – किसी महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मलिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिसके साथ महिला के पारिवारिक सम्बन्ध हैं, करन हिंसा कहलाती है।
हिंसा की शिकार महिलाओं को नये कानून से निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हुए हैं
(1) पीड़िता को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार इन और कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निष्कासन नहीं किया जा सकेगा। उसके पक्ष में संरक्षण आदेश पारित किया जा सकेगा।
(2) पीड़िता या उसकी सन्तान को घरेलू हिंसा के बाद किये जाले खर्च एवं हानि की पूर्ति के लिए मजिस्ट्रेट निर्देश दे सकेगा तथा भरण-पोषण का भी आदेश दे सकेगा।
प्रश्न 4. क्या आप एक ऐसी प्रक्रिया बता सकते हैं जिसका इस्तेमाल इस कानून की जरूरत के बारे में लोगों को अवगत कराने के लिए किया गया हो ?
उत्तर – कानून की जरूरत के बारे में लोगों को अवगत कराने के निम्नलिखित तरीके हैं
(1) कुछ समूहों या संगठनों के साथ चर्चा की बैठकें आयोजित की गईं।
(2) जन सुनवाई के कार्यक्रम आयोजित किये गए।
(3) संवाददाता सम्मेलन बुलाए गये।
(4) कम्प्यूटर पर एक ऑनलाइन याचिका शुरू की गई।
प्रश्न 5. उपरोक्त (पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ 48 पर) चित्रपट्ट कथा को पढ़कर बताइए कि लोगों ने कौन से दो तरीकों से संसद पर दबाव बनाया ?
उत्तर– पाठ्य-पुस्तक पृष्ठ संख्या 48 पर दी गयी चित्रपट्ट क्या के अनुसार निम्नलिखित तरीकों से संसद पर दबाव बनाया
(1) 1990 के दशक में विभिन्न मंचों से घरेलू हिंसा के लिए नए कानून की माँग उठती रही।
(2) 1999 में वकीलों, कानून के विद्यार्थियों और समाज वैज्ञानिकों के संगठन ‘लायर्स कलेक्टिव’ ने राष्ट्रव्यापी चर्चा के बाद घरेलू हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया। इस विधेयक को बहुत सारे लोगों को पढ़ाया गया।
(3) कई महिला संगठनों और राष्ट्रीय महिला आयोग ने संसदीय स्थायी समिति को अपने सुझाव सौंप दिए।
प्रश्न 6. बगल में (पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ 48 पर) दिए गए पोस्टर के बराबरी के रिश्ते हिंसा से मुक्त’ वाक्य खण्ड से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-“बराबरी के रिश्ते हिंसा से मुक्त” वाक्य खण्ड से तात्पर्य है कि स्त्री और पुरुष दोनों बराबर हैं। लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाये। महिलाओं के साथ किसी प्रकार की मारपीट, यौन उत्पीड़न व भावनात्मक पीड़ा नहीं पहुँचाना है।
पृष्ठ संख्या # 50
प्रश्न 7. एक सप्ताह तक अखबार पढ़ें या टेलीविजन पर खबरें देखें और पता लगाएँ कि क्या कोई ऐसा अलोकप्रिय कानून है जिसका भारत या कहीं और के लोग विरोध कर रहे हैं?
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करने का प्रयास करें।
पाठान्त प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘कानून का शासन’ पद से आप क्या समझते हैं ? अपने शब्दों में लिखिए। अपना जवाब देते हुए कानून के उल्लंघन का कोई वास्तविक या काल्पनिक उदाहरण दीजिए।
उत्तर – कानून के शासन से तात्पर्य है कि कानून सबके लिए समान है। कानून सभी नागरिकों को समान संरक्षण प्रदान करता है। वह जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। सभी कानून देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। चाहे वह गरीब हो या अमीर यहाँ तक कि राष्ट्रपति ही क्यों न हो। किसी अपराध या कानून के उल्लंघन की एक निश्चित सजा होती है और सजा तक पहुँचने की भी एक निश्चित प्रक्रिया होती है जिसमें अपराध सिद्ध होने पर सजा दी जाती है।
कानून के उल्लंघन का एक उदाहरण – किसी सरकारी अधिकारी का किसी मन्त्री के पुत्र के हाथों कोई अपराध हो जाने पर पुलिस द्वारा कार्यवाही न करना कानून का उल्लंघन है।
प्रश्न 2. इतिहासकार इस दावे को गलत ठहराते हैं कि भारत में कानून का शासन अंग्रेजों ने शुरू किया था। इसके कारणों में से दो कारण बताइए।
उत्तर – भारत में कानून का शासन अंग्रेजों द्वारा नहीं शुरू करने के निम्नलिखित दो कारण हैं
(1) औपनिवेशिक कानून मनमानेपन पर आधारित या राजद्रोह का एक्ट 1870, रॉलेट एक्ट-1919 इसी तरह के कानून का उदाहरण है। अत: कानून का शासन अंग्रेजों द्वारा अपनाया ही नहीं जा रहा था।
(2) भारतीय राष्ट्रवादियों ने (कानून के शासन) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राष्ट्रवादियों ने अंग्रेजों के मनमाने कानून का विरोध किया व ऐसे कानून की माँग पर जोर दिया जो न्याय व समानता पर आधारित हो। राष्ट्रवादी अदालतों में कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से नागरिकों के अधिकारों की हिफाजत के लिए दबाव डालने लगे थे। अतः स्पष्ट होता है कि ‘कानून के शासन’ की शुरूआत स्वयं भारतीयों द्वारा ही की गई थी।
प्रश्न 3. घरेलू हिंसा पर नया कानून किस तरह बना, महिला संगठनों ने इस प्रक्रिया में अलग-अलग तरीके से क्या भूमिका निभाई, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – घरेलू हिंसा एक गम्भीर समस्या है। इसमें महिलाओं को उनके पति, पिता, भाई और यहाँ तक कि बेटे द्वारा पीटा जाता है। महिलाओं के साथ उनके बेटे तथा बहुओं द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता है। इसमें सबसे पहले महिलाओं ने अपने प्रति हो रहे अत्याचारों को विभिन्न मंचों व जनसुनवाइयों के माध्यम से लोगों के सामने रखा व घरेलू हिंसा को रोकने की माँग रखी। इस पर महिला संगठनों ने घरेलू हिंसा के कानूनों की माँग की। काफी कोशिशों के बाद 1999 में घरेलू हिंसा (रोक एवं सुरक्षा) विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया।
2002 में इस विधेयक को संसद में प्रस्तुत किया गया। परन्तु महिला संगठनों द्वारा इस विधेयक का विरोध किया गया क्योंकि यह विधेयक घरेलू हिंसा को रोकने में प्रभावशाली नहीं था। अतः विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया।
राष्ट्रीय महिला आयोग जैसे कई महिला संगठनों ने स्थाय समिति को कई सुझाव दिये। स्थायी समिति ने महिला संगठन के सुझावों को मानते हुए 2005 में घरेलू हिंसा से सम्बन्धित एक नया विधेयक संसद में पेश किया गया। यह विधेयक संसद से पास होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् कानून बन गया, तथा 2006 में यह कानून लागू हो गया।
प्रश्न 4. अपने शब्दों में लिखिए कि इस अध्याय में आए निम्नलिखित वाक्य (पृष्ठ 44-45) से आप क्या समझते हैं :
अपनी बातों को मनवाने के लिए उन्होंने संघर्ष शुरू कर दिया। यह समानता का संघर्ष था। उनके लिए कानून का मतलब ऐसे नियम नहीं थे ज़िनका पालन करना उनकी मजबूरी हो। वे कानून को उससे अलग ऐसी व्यवस्था के रूप में देखना चाहते थे जो न्याय के विचार पर आधारित हों।
उत्तर – ब्रिटिश भारत में औपनिवेशिक सरकार ने बहुत से ऐसे कानून लागू किये जो भेदभाव पर आधारित थे। वे निरंकुश थे तथा कानून के समक्ष समान नहीं थे।
19वीं शताब्दी के अंत में भारतीय राष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश सरकार के मनमाने रवैये के विरोध में आवाज उठाई तथा कानून की सर्वोच्चता की माँग की।
भारतीय कानून विशेषज्ञ अपने देश के लोगों के अधिकारों की हिफाजत की माँग करने लगे। उन्होंने मांग की कि भारतीयों को ब्रिटिश लोगों के समान माना जाए तथा दोनों पर समान कानून लागू हों। अत: राष्ट्रवादी न्याय पर आधारित कानून की माँग को लागू करना चाहते थे जिस पर सभी की आस्था हो।