M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 – आत्मकथ्य

M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2  काव्य खंड

क्षितिज काव्य खंड Chapter 4 – आत्मकथ्य

पाठ 4 – आत्मकथ्य

(1)

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,

मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

इस गम्भीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन

इतिहास यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन

उपहास तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

किन्तु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने

वालेअपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।

प्रसंग – इसमें कवि ने अपनी आत्मकथा को आधार बनाकर जीवन के यथार्थ और अभावों का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहते हैं कि मेरा मन रूपी भौंरा अपनी मधुर [जार में अपने जीवन की न जाने कौन-सी कहानी कह जाता है। आज अनेक पत्तियाँ मुरझाकर गिरती हुईं देखी जा सकती हैं। आज इस गहरे तथा अन्तहीन विस्तृत साहित्य रूपी आकाश में असंख्य लोगों के जीवन का इतिहास अंकित है। वे सब अपनी आत्मकथा लिखकर निन्दनीय तरीके से अपना उपहास करते रहते हैं। हे मित्रों! उपहास होने पर भी आप लोग कहते हो कि मैं अपने जीवन की कमियों एवं कमजोरियों को सबको बतला दूँ। मेरे जीवन के घड़े को खाली देखकर क्या तुम्हें सुख की अनुभूति होगी ? मेरे जीवन के अभावों को जानकर क्या तुम्हें सुख मिलेगा ? कहीं ऐसा न हो कि तुम मेरी विडम्बनाओं को सुनकर स्वयं को जीवन के अभावों का दोषी मानने लगो और मेरे अभावों से प्रसन्न होकर अपनी कमियों को पूरा कर लो। अर्थात् स्वयं सुखी हो जाओ।

विशेष – (1) आत्मकथ्य अर्थात् आत्मा के कथन को व्यक्त किया गया है।

(2) ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग मन रूपी भौरे के लिए किया गया है। अतः रूपक अलंकार है।

(3) भाषा सरल, सहज व साहित्यिक है।

(4) संगीतात्मकता एवं बिम्ब योजना है।

(5) ‘गागर रीती’ एक रसहीन मन का प्रतीक है।

(6) तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग है।

(2)

यह विडम्बना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।

भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों

की। मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।

प्रसंग – इसमें कवि अपने सुख-स्वप्नों का वर्णन करते हुए दु:खी हो जाता है।

व्याख्या – कवि अपने आत्मकथ्य के विषय में कहता है कि हे मेरे जीवन ! आत्मकथा के लिए यह बड़ा दु:खद होता है कि उसमें व्यक्ति को अपनी छोटी-से-छोटी सभी सरल बातों का उल्लेख करना पड़ता है। आत्मकथा को पढ़कर सामान्यजन अथवा पाठक कवि की हँसी उड़ाते हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि अपने जीवन की भूलों तथा धोखों को पाठकों के सामने कैसे प्रकट करूँ? मैं अपने जीवन की सुखद एवं उज्ज्वल घटनाओं का वर्णन किस प्रकार करूँ? मेरी समझ में सुख-दुःख की घटनाओं का वर्णन करने की बात बिल्कुल नहीं आ रही है। मैंने अपने जीवन में सुख पाने का मधुर स्वप्न देखा था परन्तु मुझे कभी सुख मिला ही नहीं। कभी-कभी ऐसा प्रतीत हुआ कि अब सुख के दिन आने वाले हैं परन्तु वे भी आते-आते रह गए। अर्थात् सुख के क्षण उपभोग से पूर्व ही समाप्त हो गए। उन सुखद दिनों की आशा में लाली से परिपूर्ण मदमस्त कर देने वाली सुन्दरता की छाया बड़ी सुखद प्रतीत होती थी। प्रेम से परिपूर्ण सुबह उस मधुर माया में अपने सुहाग की लाली भरती थी।

विशेष –

(1) कवि के जीवन में सुख के पल आते-आते चले गए।

(2)’चाँदनी रातें’ सुखद दिनों की प्रतीक हैं।

(3) हँसी उड़ाना’ मुहावरे का प्रयोग किया गया है।

(4) आते-आते’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

(5) अनुप्रास की छटा विद्यमान है।

(6) ‘उषा’ का मानवीकरण करने से मानवीकरण अलंकार

(3)

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।

सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की?

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?

क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म कथा ?

अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-2 के पाठ ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।

प्रसंग– इसमें कवि ने अपने अन्तर्मन की व्यथा का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहते हैं कि जीवन के सुखद सपनों की यादें मार्ग में थके हुए मुझ यात्री के लिए सहारा बन गईं हैं। मेरे अन्तर्मन में जो दु:खद घाव भरे हुए हैं उनको यदि उधेड़कर तुम देखोगे तो उस राह में तुम्हें कुछ प्राप्त नहीं होगा। आज मैं इस छोटे-से जीवन में घटित होने वाली बड़ी-बड़ी कहानियों का वर्णन कैसे करूँ? इस विषय में क्या यह उचित नहीं है कि मैं दूसरे लोगों की आत्मकथा को तो सुनता रहूँ तथा अपने विषय में चुपचाप बना रहूँ। कवि कहते हैं कि तुम मेरी सीधी एवं सरल कहानी को सुनकर क्या करोगे ? इस समय मेरी सरल आत्मकथा को सुनने से कोई लाभ भी नहीं है क्योंकि इस समय मेरी दु:ख भरी कहानी मेरे मन में शांतिपर्वक सोई हई है।

विशेष-(1) इसमें कवि ने अपनी मनोव्यथा का हृदयस्पर्शी वर्णन किया है।

(2) ‘स्मृति पाथेय’ में रूपक अलंकार है।

(3) करुण रस की प्रधानता है।

(4) भाषा सरल, सहज तथा साहित्यिक है।

(5) तद्भव एवं तत्सम युक्त शब्दावली है।

(6) बिम्ब योजना की प्रधानता है। प्रश्न

प्रश्न 1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है।

उत्तर – कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है कि पाठक लोग कहीं मेरे विषय में मजाक बनाकर हँसी न उड़ाएँ क्योंकि आत्मकथा में जीवन की अच्छी-बुरी सभी घटनाओं का वर्णन करना पड़ता है।

प्रश्न 2. आत्मकथा सुनाने के सन्दर्भ में अभी समय भी नहीं कवि ऐसा क्यों कहता है ?

उत्तर– आत्मकथा सुनाने के सन्दर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’, कवि ऐसा इसलिए कहता है कि इस समय कवि का मन दुःखों की मार झेलते-झेलते व्यथित हो गया है।

प्रश्न 3. स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?

उत्तर– स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि अपने शेष जीवन को सुखपूर्वक व्यतीत करना चाहता है क्योंकि अपने भूतकाल की यादों के सहारे ही हम मन में शान्ति प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए

(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उत्तर

(क) भाव-प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह है कि कवि ने अपने जीवन में सुख पाने का एक सपना सँजोया था

(ख) भाव-प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा कवि कल्पना करता है कि सुख रूपी प्रेमिका के लाल-लाल कपोलों की आशा रूपी छाया में उषा मधुर माया में अपने सुहाग की लालिमा भरती थी।

प्रश्न 5. ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?

उत्तर – इस कथन के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि आत्मकथ्य के माध्यम से मुझे अपने सुख-दुःख की अनुभूतियों को भी लिखना पड़ेगा। अत: अपने दुःख रूपी सुख की कहानी किस प्रकार व्यक्त करूँ।

प्रश्न 6. ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर– ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित इस प्रकार हैं

(1) इस कविता में छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने प्रकृति का मानवीकरण किया है; जैसे

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में॥

(2) कवि ने अपने जीवन के सुखद दिनों को चाँदनी-रातों के प्रतीक के रूप में कहा है

उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

(3) कवि ने कविता में प्रश्नात्मक शैली का प्रयोग किया है; जैसे

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?

क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

(4) कवि की भाषा मुहावरेदार भी है; जैसे

यह विडम्बना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।

प्रश्न 7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?

उत्तर – कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में इस रूप में व्यक्त किया है कि मेरे पास सुख आते-आते रह गया और अन्तत: वह मिल नहीं पाया

मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग

गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया॥

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर– कवि जयशंकर प्रसाद एक यथार्थवादी कवि हैं। । प्रस्तुत कविता के माध्यम से भी उनकी यथार्थवादिता एवं स्पष्टवादिता के दर्शन होते हैं। ‘आत्मकथ्य’ कविता में बताया है कि आत्मकथ्य को पढ़कर पाठक कवि की निन्दा करता है एवं उसकी हँसी उड़ाता है जो उचित नहीं है। सुख-दुःख तो जीवन के दो पहलू हैं

इस गम्भीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास।

यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास॥

प्रश्न 9. आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों ?

उत्तर – हम सत्यवक्ता एवं यथार्थवादी व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे क्योंकि उनकी आत्मकथा में जीवन की सभी सच्चाइयों तथा यथार्थताओं का खुला चित्रण होता है।

प्रश्न 10. कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिये विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा “आलो आंधारि” बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।

उत्तर – इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी स्वयं लिखें।

पाठेतर सक्रियता

1. किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर – इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने आदरणीय गुरुजनों एवं सहपाठियों के सहयोग से प्राप्त करें।

2. बिना ईमानदारी और साहस के आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गाँधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं ?

उत्तर

इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी ‘सत्य के प्रयोग’ आत्मकथा पढ़कर स्वयं लिखें।

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